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आरबीआई बुलेटिन – नवंबर 2022

18 नवंबर 2022

आरबीआई बुलेटिन – नवंबर 2022

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने मासिक बुलेटिन का नवंबर 2022 का अंक जारी किया। बुलेटिन में आठ भाषण, पाँच आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।

पाँच आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. जब किसी समाचार के मायने उसके शब्दों से कहीं ज्यादा हैं: भारतीय अर्थव्यवस्था से साक्ष्य; III. हरित डेटा केंद्र: सतत डिजिटलीकरण का मार्ग; IV. आर्थिक संकेतकों के रूप में भुगतान प्रवाह: हाइब्रिड मशीन लर्निंग फ्रेमवर्क का उपयोग करते हुए तात्कालिक पूर्वानुमान; और V. भारत में स्थिर निवेश के लिए वित्तीय स्थितियों का संचरण: एक तथ्यात्मक अन्वेषण।

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था के परिदृश्य में गिरावट का जोखिम बना हुआ है। वैश्विक वित्तीय स्थितियां तंग होती जा रही हैं और बाजार में तरलता घटने से वित्तीय कीमत में उतार-चढ़ाव बढ़ रहा है। बाजार नीतिगत दरों में मामूली वृद्धि को अब कीमत निर्धारण में शामिल कर रहे हैं और जोखिम-वहन क्षमता लौटी है। भारत में अर्थव्यवस्था में आपूर्ति प्रतिसाद मजबूत हो रहा है। हेडलाइन मुद्रास्फीति के कम होने के संकेत मिलने से घरेलू समष्टि-आर्थिक परिदृश्य को श्रेष्ठ तौर पर इस रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है कि यह सुदृढ़ लेकिन विकट वैश्विक प्रतिकूलताओं के प्रति संवेदनशील है। शहरी मांग मजबूत प्रतीत हो रही है, ग्रामीण मांग मंद है लेकिन हाल के दिनों में इसमें गति आ रही है।

II. जब किसी समाचार के मायने उसके शब्दों से कहीं ज्यादा हैं: भारतीय अर्थव्यवस्था से साक्ष्य

समाचार (न्यूज़) को सूचना के संभावित समृद्ध स्रोत के रूप में खंगालते हुए और बिग डेटा तकनीकों का लाभ उठाते हुए, इस आलेख में समष्टि-आर्थिक चर की एक श्रृंखला के संबंध में रुख़ सूचकांकों का निर्माण किया गया है और भारतीय संदर्भ में आर्थिक विश्लेषण के लिए उनकी उपयोगिता को परखा गया है।

प्रमुख बिंदु:

  1. समाचार-आधारित रुख़ सूचकांक अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में बदलते पैटर्न को ग्रहण करते हैं। सांख्यिकीय और मशीन लर्निंग पद्धति द्वारा परीक्षित पूर्वानुमान फ्रेमवर्क में रुख़ की भविष्य-सूचक क्षमता समाचार से प्राप्त उपयोगी रुख़ को संवर्धित कर सकती है।

  2. कोविड-19 महामारी ने रुख़ को दबा दिया था। आर्थिक गतिविधियों के धीरे-धीरे फिर से शुरू होने और सामान्य स्थिति की ओर लौटने से रुख़ में सुधार हुआ।

  3. उच्च आवृत्ति रुख़ सूचकांक आर्थिक स्थितियों पर प्रारंभिक संकेत प्रदान करने के लिए उपयोगी पूरक संकेतक हो सकता है।

III. हरित डेटा केंद्र: सतत डिजिटलीकरण का मार्ग

इस आलेख में बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिए डेटा केंद्रों के महत्त्व, पर्यावरण पर उनके प्रभाव और हरित डेटा केंद्रों के लाभ के बारे में चर्चा की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  1. डिजिटलीकरण पर बढ़ते जोर के कारण देश में डेटा केंद्रों की आवश्यकता कई गुना बढ़ गई है। डेटा केंद्र, अपने परिचालन में बहुत अधिक बिजली की खपत करते हैं जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में योगदान होता है।

  2. अनुकूल भौगोलिक स्थिति और अनुकूल सरकारी नीतियों के परिणामस्वरूप, भारत का डेटा केंद्र उद्योग उच्च वृद्धि के चरण में है और मौजूदा एवं भावी दोनों डेटा केंद्रों के लिए हरित प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए बेहतर स्थिति में है।

  3. इस आलेख में दिए गए सुझाव बैंकों और वित्तीय संस्थानों को अपने डेटा केंद्रों को हरित बनाने में मदद कर सकते हैं जैसे कि उद्योग द्वारा मान्यता प्राप्त प्रमाणन प्राप्त करना जैसे इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (आईजीबीसी) और लीडरशिप इन एनर्जी एंड एनवायरनमेंटल डिज़ाइन (एलईईडी) प्रमाणन; पुराने या अक्षम सूचना प्रौद्योगिकी उपकरण को बदलना; डेटा केंद्र परिचालन में हरित उपायों को एकीकृत करना, जिसमें उनके डिजाइन, सामग्री, निर्माण, ऊर्जा खपत और अपशिष्ट प्रबंधन शामिल हैं।

IV. आर्थिक संकेतकों के रूप में भुगतान प्रवाह: हाइब्रिड मशीन लर्निंग फ्रेमवर्क का उपयोग करते हुए तात्कालिक पूर्वानुमान

भुगतान प्रक्रिया वित्तीय मध्यस्थता का एक महत्वपूर्ण पहलू है। एक कुशल भुगतान और निपटान प्रणाली आर्थिक गति के लिए प्रणोदक के रूप में कार्य कर सकती है। इस संदर्भ में, यह अध्ययन योजि‍त सकल मूल्य (जीवीए) में वृद्धि के लिए भुगतान डेटा के उपयोग की परीक्षा करता है।

प्रमुख बिंदु:

  1. मिश्रित आवृत्ति डेटा के आधार पर तात्कालिक पूर्वानुमान के लिए एक हाइब्रिड मशीन लर्निंग फ्रेमवर्क लागू किया गया है। यह अध्ययन मिश्रित डेटा नमूनाकरण (एमआईडीएएस) और सहायक वेक्टर मशीन (एसवीएम) मॉडल के संयोजन का उपयोग करने पर केंद्रित है।

  2. अलग-अलग भुगतान संकेतकों से उपलब्ध जानकारी के दोहन के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए गए हैं। इसके अलावा, मात्रा और मूल्य दोनों चैनलों का पता लगाया जाता है।

  3. हाइब्रिड पद्धति से प्राप्त तात्कालिक पूर्वानुमानों के मामले में भविष्य-सूचक सटीकता में काफी बेहतर हो जाती है।

V. भारत में स्थिर निवेश के लिए वित्तीय स्थितियों का संचरण: एक तथ्यात्मक अन्वेषण

इस आलेख में, वित्तीय स्थिति सूचकांकों के निर्माण के लिए गतिक कारक मॉडल (डीएफ़एम) और वेक्टर स्वत: प्रतिगमन (वीएआर) पद्धतियों का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, भारत में निवेश वृद्धि पर वित्तीय स्थितियों के प्रभाव, और संबंधों में विषमता का तथ्यात्मक अन्वेषण किया गया है ताकि निवेश के प्रति जोखिमों का पता लगाया जा सके।

प्रमुख बिंदु:

  1. वित्तीय स्थितियां निवेश को एक अंतराल के साथ प्रभावित करती हैं और भविष्य की मांग से जुड़ी प्रत्याशाएं निवेश वृद्धि को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

  2. निवेश चक्र के मंद होने पर प्रभाव असममित पाया गया जबकि तंग वित्तीय स्थितियां निवेश वृद्धि अहम प्रभाव डालती हैं।

बुलेटिन आलेखों में व्यक्त किए गए विचार लेखकों के हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों को व्यक्त नहीं करते हैं।

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2022-2023/1226

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