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आरबीआई बुलेटिन - अक्तूबर 2023

19 अक्तूबर 2023

आरबीआई बुलेटिन - अक्तूबर 2023

आज भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने मासिक बुलेटिन का अक्तूबर 2023 अंक जारी किया। बुलेटिन में दो भाषण, छह आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।

छह आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. अनिश्चितता को मापना: एक भारतीय परिप्रेक्ष्य; III. भारत में बैंक की लाभप्रदता पर जी-सेक प्रतिफल संबंधी गतिविधियों का प्रभाव; IV. उत्पादन भारित वर्षा सूचकांक और कृषि उत्पादन: संबंध का पुनरावलोकन; V. आवास वित्त कंपनियां और कोविड-19 महामारी: क्या आकार मायने रखता है?; और VI. कोविड-19 महामारी और भारत के अनुसंधान एवं विकास व्यय की आघात सहनीयता।

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

कमजोर विनिर्माण गतिविधि और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में सख्त वित्तीय स्थितियों के कारण 2023 की तीसरी तिमाही से वैश्विक संवृद्धि की गति कम हो गई, यहां तक कि कई उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में आश्चर्यजनक संवृद्धि दर्ज की गई। बढ़ते प्रतिफल और कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें वैश्विक संवृद्धि के लिए निकटतम जोखिम के रूप में उभरी हैं। भारत में, उच्च आवृत्ति संकेतक, वैविध्यपूर्ण गति प्राप्त करते देखे जा सकते हैं। ऋण में कमी और उच्च क्षमता उपयोग ने पूंजी-भारी उद्योगों को ट्रैक्शन प्राप्त करने में सक्षम बनाया है। भारतीय रुपया (आईएनआर) में अस्थिरता कम देखी जा रही है। मुद्रास्फीति अपने जुलाई के शीर्ष-स्तर से कम हो गई है, जिससे समष्टि आर्थिक मूलतत्वों को बल मिला है।

II. अनिश्चितता को मापना: एक भारतीय परिप्रेक्ष्य

माइकल देवब्रत पात्र, रेन्जिथ मोहन, जॉइस जॉन और इंद्रनील भट्टाचार्य द्वारा

यह आलेख भारतीय रिज़र्व बैंक के पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं के सर्वेक्षण की प्रतिक्रियाओं से समष्टि आर्थिक गतिविधियों के आसपास अनिश्चितता को मापता है। इस उपाय में एक सामान्य अस्थायी घटक शामिल है, जो एक विशिष्ट समय अवधि, जैसे कि कोविड​​-19 महामारी; और विशिष्ट अनिश्चितता, जो एक विशेष पूर्वानुमानकर्ता के लिए विशिष्ट है और पूर्वानुमानकर्ताओं के बीच असहमति में परिलक्षित होती है, के लिए सभी पूर्वानुमानकर्ताओं को प्रभावित करने वाली अनिश्चितता की धारणा है।

मुख्य बातें:

  • सामान्य अस्थायी अनिश्चितता से - विशिष्ट अनिश्चितता के बजाय - 2008-14 की अवधि के दौरान समग्र अनिश्चितता में वृद्धि, 2014-20 के दौरान गिरावट, कोविड​​-19 महामारी के दौरान फिर से वृद्धि और 2022 से गिरावट आई।

  • उच्च अनिश्चितता की अवधि के दौरान, यह उपाय मंद संवृद्धि और मुद्रास्फीति में वृद्धि का मूल्यवान संकेत प्रदान करता है, लेकिन यह एक दुविधा भी उत्पन्न करता है - क्या मौद्रिक नीति को सौम्य बनाकर मंदी को दूर किया जाना चाहिए या मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए नीति को सख्त किया जाना चाहिए?

III. भारत में बैंक की लाभप्रदता पर जी-सेक प्रतिफल संबंधी गतिविधियों का प्रभाव

राधेश्याम वर्मा और राकेश कुमार द्वारा

इस आलेख में अनुभवजन्य रूप से 2015-16 की पहली तिमाही से 2022-23 की पहली तिमाही तक के दौरान सरकारी प्रतिभूति (जी-सेक) के प्रतिफल में परिवर्तन से बैंक की लाभप्रदता पर पड़ने वाले प्रभाव का अनुमान लगाया गया है।

मुख्य बातें:

  • बढ़ते प्रतिफल की अवधि में, बैंकों के ट्रेडिंग पोर्टफोलियो का मार्क-टू-मार्केट मूल्यन, व्यापारिक घाटे को बढ़ाता है। अल्पावधि में निवल ब्याज मार्जिन (एनआईएम) बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि बैंकों की आस्तियों और देयताओं की संरचना और परिपक्वता प्रोफ़ाइल के आधार पर देयताओं की तुलना में आस्तियों का पुनर्मूल्यन तेजी से होता है।

  • अनुभवजन्य निष्कर्षों से पता चलता है कि 3-महीने वाले खजाना-बिल के प्रतिफल में वृद्धि का व्यापारिक आय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, लेकिन एनआईएम पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बड़े बैंकों के मामले में, व्यापारिक आय हानि अपेक्षाकृत कम है जबकि एनआईएम मामूली रूप से अधिक है जो उनकी आस्ति-देयता प्रोफ़ाइल के बेहतर प्रबंधन को दर्शाता है। प्रतिगमन परिणाम बताते हैं कि बड़े बैंकों ने बढ़ते प्रतिफल के प्रभाव को बेहतर ढंग से प्रबंधित किया है।

IV. उत्पादन भारित वर्षा सूचकांक और कृषि उत्पादन: संबंध का पुनरावलोकन

शिवांगी मिश्रा, राजेंद्र रघुमंद और संजय सिंह द्वारा

भारत में कृषि उत्पादन के लिए वर्षा के महत्व को ध्यान में रखते हुए, भारतीय रिज़र्व बैंक के कर्मचारी, उत्पादन भारित वर्षा सूचकांक (पीआरएन) तैयार करते रहे हैं जो राज्य-वार वर्षा और अखिल भारतीय खाद्यान्न उत्पादन में उसके संबंधित योगदान का विवरण रखता है। यह आलेख ख़रीफ़ खाद्यान्न उत्पादन के पूर्वानुमान में अपने निष्पादन को मजबूत करने के लिए पीआरएन (एमपीआरएन) को आशोधित करने का प्रयास करता है।

मुख्य बातें:

  • दक्षिण-पश्चिम मानसून (एसडब्ल्यूएम) महीनों में, जुलाई की वर्षा का खरीफ खाद्यान्न उत्पादन पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है, इसके बाद जून, सितंबर और अगस्त का स्थान आता है, जो दर्शाता है कि जून में मानसून की शुरुआत में देरी या उसके कमजोर प्रदर्शन का खरीफ उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव, यदि जुलाई में मानसून जोर पकड़ता है तो कुछ हद तक कम हो सकता है।

  • इसके अलावा, अधिक वर्षा का ख़रीफ़ खाद्यान्न उत्पादन पर महत्वपूर्ण और नकारात्मक प्रभाव पाया गया।

  • जबकि पीआरएन, बेहतर इन-सैंपल फिट और कम पूर्वानुमान त्रुटि के मामले में भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) वर्षा सूचकांक से बेहतर प्रदर्शन करता है, पीआरएन की तुलना में एमपीआरएन में सुधार दिखता है।

V. आवास वित्त कंपनियां और कोविड-19 महामारी: क्या आकार मायने रखता है?

नंदिनी जयकुमार, रजनीश कुमार चंद्रा, ब्रिजेश पी., और प्रयाग सिंह रावत द्वारा

यह आलेख राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी) को पास आवास वित्त कंपनियों (एचएफसी) द्वारा प्रस्तुत त्रैमासिक पर्यवेक्षी डेटा का उपयोग करके जून 2016 और सितंबर 2022 के बीच की अवधि के लिए एचएफसी क्षेत्र के कार्य-निष्पादन की अनुभवजन्य जांच करता है।

मुख्य बातें:

  • मार्च 2022 के अंत में लगभग 36 प्रतिशत बाज़ार हिस्सेदारी के साथ एचएफसी, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) के बाद आवास वित्त क्षेत्र में दूसरा सबसे बड़ा सहभागी है।

  • नीति और विनियामक समर्थन से क्षेत्र को कोविड-19 के आघातों से उबरने में मदद मिली तथा इसने मजबूत ऋण संवृद्धि और कम जीएनपीए अनुपात दर्ज किया। तथापि, महामारी का एचएफसी की ऋण वृद्धि पर विषम प्रभाव पड़ा, क्योंकि कोविड के बाद की अवधि में बड़ी एचएफसी की तुलना में छोटी एचएफसी द्वारा ऋण वितरण में गिरावट आई।

VI. कोविड-19 महामारी और भारत के अनुसंधान एवं विकास व्यय की आघात सहनीयता

सिद्धार्थ नाथ, श्रुति जोशी और साधन कुमार चट्टोपाध्याय द्वारा

यह आलेख भारत में कार्यरत कंपनियों के लिए अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) गतिविधियों के निर्धारकों का उल्लेख करता है। यह अनुसंधान एवं विकास पर कोविड-19 महामारी के प्रभावों की भी जांच करता है।

मुख्य बातें:

  • फर्म-स्तरीय विशेषताएं जैसे आकार, आयु, डिजिटलीकरण, और प्रचार (उत्पाद और विपणन अनुसंधान) व्यय फर्म-स्तरीय अनुसंधान एवं विकास के महत्वपूर्ण चालक हैं।

  • फर्म स्तरीय अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों पर कोविड-19 का कोई महत्वपूर्ण प्रतिकूल प्रभाव नहीं देखा गया।

  • परिणाम बताते हैं कि अनुसंधान एवं विकास सहित ज्ञान-आधारित अमूर्त पूंजी में निवेश आम तौर पर निवेश के शुरुआती चरणों में वहन की गई बड़ी विफल लागत के कारण उत्पन्न संकट के प्रति आघात-सह होता है।

बुलेटिन के आलेखों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2023-2024/1146

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