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आरबीआई बुलेटिन– सितंबर 2024

आज, भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने मासिक बुलेटिन का सितंबर 2024 अंक जारी किया। बुलेटिन में ग्यारह भाषण, चार आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।

चार आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. भारतीय राज्यों के व्यापार चक्र का समन्वय; III. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार: भारतीय अनुभव; IV. परतों को उधेड़ना: हाल के समय में एनबीएफसी क्षेत्र की समीक्षा।

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

वैश्विक आर्थिक गतिविधि धीमी हो रही है, जबकि मुद्रास्फीति की गति सुस्त बनी हुई है, जिससे मौद्रिक नीति प्राधिकरणों में सतर्कता बढ़ रही है। भारत में, घरेलू चालक - निजी खपत और सकल स्थिर निवेश - मजबूत थे और शुद्ध निर्यात क्रमिक रूप से सकारात्मक रहे, जिससे 2024-25 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की संवृद्धि को समर्थन मिला। कृषि के खराब प्रदर्शन की भरपाई विनिर्माण क्षेत्र में तेजी और लचीली सेवाओं से हुई। घरेलू खपत दूसरी तिमाही में तेजी से बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि हेडलाइन मुद्रास्फीति में कमी आई है, साथ ही ग्रामीण मांग में भी सुधार हुआ है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति अगस्त में लगातार दूसरे महीने रिज़र्व बैंक के लक्ष्य से नीचे रही, हालांकि हाल के अनुभव के मद्देनजर खाद्य कीमतों में उतार-चढ़ाव एक आकस्मिक जोखिम बना हुआ है।

II. भारतीय राज्यों के व्यापार चक्र का समन्वय

सत्यानंदसाहू, कुणालप्रियदर्शी, चैतालीभौमिक, सपनागोयलऔरप्रीतिकाद्वारा

भारतीय राज्यों की विशिष्ट आर्थिक विशेषताओं को देखते हुए, यह शोधपत्र भारतीय राज्यों के संवृद्धि की गतिकी तथा व्यापार चक्रों की सह-गति की प्रकृति का पता लगाता है। बैक्सटर-किंग (बी-के) बैंड-पास फिल्टर और अनऑब्जर्व्ड कंपोनेंट मॉडल (यूसीएम) का उपयोग करके पिछले चार दशकों में राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय चक्रों के समन्वय का विश्लेषण किया गया है। इसके अलावा, व्यापार चक्र समन्वय पर राज्यों की भौगोलिक निकटता और आर्थिक संरचना के प्रभाव की जांच प्रतिगमन ढांचे के माध्यम से की गई है।   

मुख्य बातें:

  • 2000 के दशक से पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्रों में राष्ट्रीय चक्र के साथ आर्थिक गतिविधि का मजबूत सह-गति देखने को मिल रहा है, जिसके कारण समय के साथ राष्ट्रीय और क्षेत्रीय व्यापार चक्रों के बीच समन्वय बढ़ा है।
  • क्षेत्रीय चक्रों के बीच उच्च समसामयिक सहसंबंधों का तात्पर्य सामान्य कारकों के बड़े असर से है, जैसे राष्ट्रीय स्तर पर नीतिगत परिवर्तन या सामान्य मौसम संबंधी झटके या सामान्य वैश्विक झटके जैसे कच्चे तेल की कीमतें, सभी क्षेत्रों को एक साथ प्रभावित करती हैं। साथ ही, मध्यम रूप से उच्च एक-वर्षीय विलंबित क्रॉस-सहसंबंध कुछ क्षेत्रों में विशिष्ट झटकों के प्रभाव- विस्तार (स्पिलओवर) प्रभावों की उपस्थिति को रेखांकित करते हैं।
  • घटक राज्यों की भौगोलिक निकटता का व्यापार चक्रों के समन्वय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, यद्यपि हाल की अवधि में अपेक्षाकृत इसका परिमाण कम रहा है।

III. प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र उधार: भारतीय अनुभव

सांभवीढींगरा, अर्पिताअग्रवालऔरस्नेहलएस. हेरवाडकरद्वारा

भारत में प्राथमिकता- प्राप्त क्षेत्र को उधार (पीएसएल) का उपयोग अर्थव्यवस्था के जरूरतमंद क्षेत्रों को सीधे ऋण देने के लिए नीति मध्यक्षेप उपकरण के रूप में किया गया है। यह आलेख मार्च 2006 से मार्च 2023 तक त्रैमासिक बैंक-स्तरीय डेटा का उपयोग करके ऐसे ऋणों की व्यावसायिक व्यवहार्यता और बैंकों के समग्र वित्तीय स्वास्थ्य पर उनके प्रभाव का मूल्यांकन करता है।

मुख्य बातें:

  • विभिन्न देशों से प्राप्त साक्ष्यों से पता चलता है कि मजबूत संस्थागत ढांचे, सख्त कार्य-निष्पादन मानकों और प्रभावी निगरानी वाले निर्देशित उधार कार्यक्रम आम तौर पर सफल होते हैं।
  • इस आलेख के विश्लेषण से पता चलता है कि भारतीय बैंकों की पीएसएल हिस्सेदारी उनके प्राथमिकता क्षेत्र पोर्टफोलियो की आस्ति गुणवत्ता से प्रभावित होती है। प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र उधार प्रमाणपत्रों की शुरूआत से इन क्षेत्रों को ऋण प्रदान करने में वृद्धि हुई।
  • अनुभवजन्य निष्कर्ष यह दर्शाते हैं कि अधिक भौतिक उपस्थिति वाले बैंक, जमीनी स्तर पर प्राथमिकता वाले ऋण देने में बेहतर स्थिति में होते हैं।
  • उच्चतर पीएसएल संवृद्धि से बैंकों की समग्र आस्ति गुणवत्ता में भी सुधार पाया गया है। 

 

IV. गहन विश्लेषण: हाल के समय में एनबीएफसी क्षेत्र की समीक्षा  

अभ्युदयहर्ष, रजनीशकुमारचंद्रा, नंदिनीजयकुमारऔरब्रिजेशपी. द्वारा।

यह आलेख पर्यवेक्षी डेटा का उपयोग करके 2023-24 (तीसरी तिमाही तक) में हाल ही में स्केल आधारित विनियमन (एसबीआर) ढांचे की पृष्ठभूमि के सापेक्ष एनबीएफ़सी क्षेत्र के कार्य-निष्पादन का आकलन करता है। यह भारत पर ध्यान केंद्रित करते हुए वैश्विक गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान (एनबीएफ़आई) परिदृश्य का अवलोकन भी प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त, यह आलेख भारत के एनबीएफ़सी क्षेत्र से संबंधित विनियामक ढांचे के विकास का विवरण देता है।

मुख्य बातें:

  • एसबीआर ढांचा एनबीएफसी के लिए विनियामक ढांचे को उनके बदलते जोखिम प्रोफाइल और आकार और जटिलता के संदर्भ में विकास को ध्यान में रखते हुए जाँचता है। तथापि, बैंकों और एनबीएफसी के विनियामक प्रतिपादन में महत्वपूर्ण अंतर मौजूद हैं।
  • वर्ष 2023 में, एसबीआर में परिवर्तन के बीच, एनबीएफसी ने दोहरे अंकों का स्थिर ऋण विस्तार, पर्याप्त पूंजी और न्यूनतर चूक अनुपात प्रदर्शित किया।
  • सभी क्षेत्रों में सकल अनर्जक आस्ति (जीएनपीए) अनुपात में गिरावट के साथ क्षेत्र की आस्ति गुणवत्ता में सुधार जारी रहा।
  • सरकारी एनबीएफसी के लिए त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई मानदंडों का विस्तार करने और खुदरा ऋणों की कतिपय श्रेणियों पर जोखिम भार बढ़ाने जैसे विनियामक उपायों ने इस क्षेत्र को संभावित आघातों के प्रति आघात-सहनीय बना दिया है।

  बुलेटिन के आलेखों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।

(पुनीत पंचोली)  
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2024-2025/1141

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