भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा महात्मा फुले अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, पटोडा, जिला बीड (महाराष्ट्र) का लाइसेंस रद्द - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा महात्मा फुले अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, पटोडा, जिला बीड (महाराष्ट्र) का लाइसेंस रद्द
17 सितंबर 2013 भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा महात्मा फुले अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, भारतीय रिज़र्व बैंक ने 24 अगस्त 2013 से महात्मा फुले अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, परोडा, जिला बीड (महाराष्ट्र) का लाइसेंस रद्द कर दिया है क्योंकि यह अर्थक्षम नहीं रहा और जमाकर्ताओं को सतत अनिश्चितता की असुविधा हो रही थी। लाइसेंस रद्द होने के परिणामस्वरूप महात्मा फुले अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, परोडा, जिला बीड (महाराष्ट्र) को बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 5(बी) में यथापरिभाषित 'बैंकिंग' कारोबार करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। सहकारी समितियों के पंजीयक, महाराष्ट्र से भी बैंक के समापन और उसके लिए समापक नियुक्त करने का आदेश जारी करने का अनुरोध किया गया है। उपर्युक्त के मद्देनज़र, भारतीय रिज़र्व बैंक ने जर्माकर्ताओं के हित में बैंक के लाइसेंस को रद्द किया है, लाइसेन्स रद्द किये जाने और समापन प्रक्रिया आरंभ करने से महात्मा फुले अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक लि., पटोडा, जिला बीड, (महाराष्ट्र) के जमाकर्ताओं को डीआईसीजी अधिनियम 1961 के अनुसार निक्षेप बीमा योजना की शर्तों के अधीन बीमाकृत की गई जमाराशि के भुगतान की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी। लाइसेंस रद्द होने के परिणामस्वरूप महात्मा फुले अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, पटोडा, जिला बीड (महाराष्ट्र) को अधिनियम की धारा 5(ख) के अंतर्गत यथापरिभाषित "बैंकिंग व्यवसाय" करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है। इस संबंध में किसी भी स्पष्टीकरण के लिए जमाकर्ता, श्री अभिजीत मजुमदार, महाप्रबंधक, शहरी बैंक विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, नागपुर से संपर्क कर सकते हैं। उनसे संपर्क करने का विवरण नीचे दिया गया है: डाक पता: शहरी बैंक विभाग, अतिरिक्त कार्यालय भवन, ईस्ट हाई कोर्ट रोड, नागपुर-440001; टेलीफोन सं. : (0172) 2806838; फैक्स सं. : (0172) 2552896; ई-मेल पृष्ठाभूमि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैंक को बैंकिंग कारोबार करने के लिए 23 जुलाई 1998 को लाइसेंस मंज़ूर किया गया था। बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 35 के अंतर्गत (इसके बाद "अधिनियम " के नाम से उल्लेख किया गया है) 31 मार्च 2010 की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में रिजर्व बैंक द्वारा किए गए बैंक के सांविधिक निरीक्षण से यह पता चला कि बैंक ने सांविधिक नकदी रिज़र्व बनाए रखने की अपेक्षा की पूर्ति नहीं की है। बैंक ने ₹5 करोड़ की बैंक गारंटी के संबंध में एकल समूह एक्सपोज़र की निर्धारित सीमा उल्लंघन किया है। बैंक ने निर्धारित सीमा से अधिक असुरक्षित अग्रिम की मंज़ूरी दी है। अधिनियम की धारा 35 के अंतर्गत 31 मार्च 2011 की वित्तीय स्थिति के अनुसार बैंक के सांविधिक निरीक्षण से बैंक की कुछ अन्य अनियमितताओं का पता चला, जो पिछले सांविधिक निरीक्षण के दौरान भी पाई गई थी, ये अनियमितताएं अभी भी पाई गई हैं। बैंक का ऋण-जमा अनुपात बढ़कर 148.53% पर बना हुआ है जो 70% की विवेकपूर्ण उच्चतम सीमा की तुलना में अधिक है। बैंक ने एक्सपोज़र सीमा को पार करने के मामले से संबंधित फाइलों व अभिलेखों को निरीक्षण के दौरान निरीक्षण अधिकारी को उपलब्ध नहीं कराया गया। बैंक ने महामेधा अर्बन को- ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, गाजि़याबाद द्वारा मांगा गया 5 करोड़ रुपये के बैंक गारंटी के लिए कोई प्रावधान नहीं किया है। निरीक्षण के निष्कर्षों के आधार पर 29 जून 2012 को उक्त अधिनियम की धारा 36(1) के अंतर्गत बैंक को परिचालनगत अनुदेश जारी किए गए। 31 मार्च 2012 की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में रिजर्व बैंक द्वारा उक्त अधिनियम की धारा 35 के अंतर्गत किए गए बैंक के सांविधिक निरीक्षण से कई अनियमितताएं व उल्लंघन पाए गए जो पिछले निरीक्षण के दौरान दर्शाए गए और ये अनियमितताएं व उल्लंघन अभी भी विद्यमान हैं। बैंक की मूल्यांकित निवल संपत्ति (-) ₹ 1424.74 लाख और जोखिम आस्तियों की तुलना में पूंजी अनुपात (सीआरएआर) (-) 187.01% था और सकल अनर्जक आस्तियां (एनपीए), सकल अग्रिमों के 61.70% पर रहीं। बैंक की स्वाधिकृत निधियां बिल्कुल समाप्त हो चुकी थीं, जमाराशि का 100 % तक का ह्रास हो चुका था और ₹ 1727.50 लाख की हानि हुई थी। बैंक के पूर्व अध्यक्ष के चालू खाते में ओवरड्राफ्ट की अनुमति दी गई जिसे डमी ऋण खातों को खोलकर और उक्त चालू खाते में रुपये का अंतरण करके उसे नियमित किया गया। बाद में इन डमी ऋण खातों को चालू खाते में ओवरड्राफ्ट सुविधा की अनुमति देकर बंद किया जाता था। आवधिक रूप से इस प्रकार के काइट-फ्लाइंग (झूठी हुंडी से पैसे इक्कट्ठा करने) जैसे उपाय के ज़रिए बैंक से बिना किसी प्रतिभूति के ₹ 1010.00 रुपये धोखाधड़ी से निकाला गया। ₹ 300.00 लाख और ₹ 200.00 लाख की मीयादी जमाराशि के रसीदों की जमानत पर मेसर्स अशुतोश इम्पेक्स, नई दिल्ली के पक्ष में मेर्सस विजय कॉटन ट्रेडिंग कंपनी, पटोडा की तरफ से ₹ 500.00 लाख का बैंक गारंटी जारी की गई, जो बैंक की लेखा बहियों में अभी भी बकाया दर्शा रहा है। बैंक ने ₹ 100.00 लाख - ₹ 100.00 लाख रुपये की अन्य तीन एफडीआर को समय पूर्व आहरण की अनुमति दे दी जो उपर्युक्त बैंक गारंटी के लिए प्रतिभूति के रूप में रखी गई थी। दिनांक 20 अप्रैल 2009 को विजय कॉटन ट्रेडिंग कंपनी के चालू खाते में ओवरड्राफ्ट की अनुमति देते हुए मेर्सस विजय कॉटन ट्रेडिंग कंपनी, पटोडा के नाम से ₹ 200.00 लाख रुपये का एफडीआर जारी किया गया। दिनांक 26 नवंबर 2009 को इस एफडीआर को समय-पूर्व समाप्ति (premature closure) कर दी गई। ₹ 203,57,643/- की ब्याज राशि के साथ अन्य प्राप्य राशि को मेर्सस विजय कॉटन ट्रेडिंग कंपनी के चालू खाते में अंतरण किया गया और इस तरीके से ओवरड्राफ्ट राशि को वापस किया गया। बैंक में इस आशय का मंज़री पत्र और अन्य संबंधित कागज़ात उपलब्ध नहीं थे। अधिमान्य भुगतान को रोकने और जमाकर्ताओं के हित की रक्षा करने की दृष्टि से बैंक को भारतीय रिज़र्व बैंक के दिनांक 28 फरवरी 2013 के निदेश के ज़रिए 1 मार्च 2013 की कारोबार-समाप्ति से अगले छ: महीने की अवधि के लिए सर्वसमावेशी निदेशों के अधीन रखा गया है। उक्त अधिनियम की धारा 22 के अंतर्गत बैंक को दिनांक 9 अप्रैल 2013 को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। इस संबंध में बैंक द्वारा दिनाक 6 मई 2013 को किए गए उत्तर का अवलोकन तथा विचार करने पर उसे संतुष्ट नहीं पाया गया। संकटपूर्ण वित्तीय स्थिति के परिप्रेक्ष्य में उसका पुनरुज्जीवन संभव नहीं था और इस तरह के कारोबार जारी रहने से वह जनसाधारण के हित में नहीं होगा। अत: भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंक के जमाकर्ताओं के हित में बैंक का लाइसेंस रद्द कर दिया है। अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2013-2014/577 |