भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंक प्रभारों की तर्कसंगतता सुनिश्चित करने के लिए एक योजना बनाने हेतु कार्यकारी दल गठित किया - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंक प्रभारों की तर्कसंगतता सुनिश्चित करने के लिए एक योजना बनाने हेतु कार्यकारी दल गठित किया
18 मई 2006
भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंक प्रभारों की तर्कसंगतता सुनिश्चित करने के लिए एक योजना बनाने हेतु कार्यकारी दल गठित किया
भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज बैंक प्रभारों की तर्कसंगतता सुनिश्चित करने हेतु एक योजना बनाने और उन्हें निष्पक्ष व्यवहार संहिता में शामिल करने के लिए एक कार्यकारी दल गठित किया। निष्पक्ष व्यवहार संहिता के अनुपालन की निगरानी भारतीय बैंकिंग संहिता और मानक बोर्ड द्वारा की जाएगी। इस कार्यकारी दल के निम्नलिखित सदस्य होंगेः
1. श्री एन.सदाशिवन, बैंकिंग लोकपाल, मुंबई - अध्यक्ष
2. श्री एस.दिवाकर, आल इंडिया डिपाज़िटर्स एसोसिएशन
3. श्री एच.एन.सिनोर, मुख्य कार्यपालक अधिकारी, भारतीय बैंक संघ
4. श्री पी.सरन, प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक, बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग
5. श्री काज़ा सुधाकर, मुख्य महाप्रबंधक, ग्रामीण आयोजना और ऋण विभाग - सदस्य सचिव
इस कार्यकारी दल के विचारार्थ विषय निम्नानुसार हैं :
i. ग्राहक व्यक्ति को दी जानेवाली विभिन्न प्रकार की मौलिक बैंकिंग/वित्तीय सेवाओं का एक-एक करके उल्लेख करना जिनके लिए यह योजना लागू होनी चाहिए।
ii. ऐसी सेवाओं के लिए प्रभार/शुल्क की मात्रा निर्धारित करने के लिए बैंकों द्वारा अपनायी जानेवाले आधार/पद्धति का अध्ययन करना और उन सिद्धांतों का निरूपण करना जिन्हें उचित माना जा सकेगा।
iii. उपर्युक्त (वव) के अंतर्गत वर्णित सिद्धांतों के आधार पर सेवा प्रभार निर्धारित करने/बदलने की तर्कसंगतता सुनिश्चित करने और अधिसूचित करने के लिए एक योजना तैयार करना।
iv. उपर्युक्त संदर्भित (ववव) के अनुसार विकसित योजना के संबंध में निष्पक्ष व्यवहार संहिता में समुचित बातें जोड़ने का सुझाव देना।
v. भारतीय बैंकिंग संहिता और मानक बोर्ड द्वारा निष्पक्ष व्यवहार संहिता के संबद्ध परंतुकों के अनुपालन की निगरानी करने के लिए उपाय प्रस्तावित करना।vi. तत्संबद्ध कोई अन्य विषय।
आशा की जाती है कि यह दल जुलाई 2006 के अंत तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर देगा।
आपको याद होगा कि वार्षिक नीतिगत वक्तव्य 2006-07 के पैराग्राफ 162 में कहा गया है कि रिजॅर्व बैंक को बैंकों द्वारा वसूले जाने वाले अतार्किक और अपारदर्शी सेवा प्रभारों के बारे में जनता से लगातार अभिवेदन मिल रहे हैं जिनमें कहा गया है कि इस संबंध में मौज़ूदा संस्थागत व्यवस्था पर्याप्त नहीं है। इस नीति में बैंक प्रभारों की तर्कसंगतता सुनिश्चित करने के लिए एक योजना बनाने हेतु एक कार्यकारी दल गठित करने का भी प्रस्ताव किया गया था।
अजीत प्रसाद
प्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2005-2006/1490