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रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2004-05 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य घोषित किया मुख्य-मुख्य बातें वक्तव्य में आम तौर पर पिछले वर्षों के दौरान निर्धारित ढांचा ही अपनाया गया है। घरेलू गतिविधियां

18 मई 2004

रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2004-05 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य घोषित किया मुख्य-मुख्य बातें

वक्तव्य में आम तौर पर पिछले वर्षों के दौरान निर्धारित ढांचा ही अपनाया गया है।

घरेलू गतिविधियां

  • वर्ष 2004-05 के लिए सकल देशी उत्पाद वफ्द्धि का अनुमान 6.5-7.0 प्रतिशत पर किया गया है।
  • यह कल्पना करते हुए कि चलनिधि की पर्याप्त आपूर्ति में कोई झटके नहीं आयेंगे और यथोचित चलनिधि प्रबंधन होता रहेगा, नीति में मुद्रास्फीति दर वर्ष 2004-05 के दौरान 5.0 प्रतिशत के आस-पास रहने का अनुमान लगाया गया है।
  • वर्ष 2003-04 के दौरान मुद्रा भंडारों और मुद्रा आपूर्ति (एम3) में वफ्द्धि ऊंची रही थी जो पूंजीगत प्रवाहों का द्योतक थी; अलबत्ता, विदेशी मुद्रा आस्तियों का विस्तारकारी प्रभाव बहुत हद तक चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत सतत रेपो परिचालनों सहित काफी हद तक खुला बाज़ार परिचालनों के द्वारा निष्क्रिय हो गया था।
  • सितंबर से गैर खाद्यान्न ऋण में लगातार बढ़ोतरी; वाणिज्यिक क्षेत्र को स्रोतों की कुल उपलब्धता पिछले वर्ष की तुलना में अधिक रही।
  • वर्ष 2003-04 के लिए सरकारी बाज़ार उधार कार्यक्रम काफी कम लागत पर पूरा किया गया; हालांकि राजकोषीय घाटे में गिरावट दर्ज की गयी, पूंजी व्यय बढ़ाने की ज़रूरत पर दबाव।
  • वर्ष 2003-04 के दौरान मुद्रा तथा सरकारी प्रतिभूति बाज़ारों में ब्याज दरों में और गिरावट।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने अपने बीपीएलआर को 25-100 आधार बिन्दुओं की द्राफ्ंखला में घटाया है।
  • रिज़र्व बैंक सक्रिय चलनिधि प्रबंधन की अपनी नीति जारी रखेगा; बाज़ार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) एक अतिरिक्त उपाय रहेगा।

बाह्य गतिविधियां

  • वैश्विक आर्थिक सुधार में कुछ अनिश्चितताओं के बावजूद अपेक्षा से अधिक तेज़ी से विस्तार हुआ है और यह मज़बूत हुआ है।
  • वर्ष 2003-04 में डॉलर की तुलना में रुपये की विनिमय दर में सुधार हुआ लेकिन यह यूरो, पाउंड स्टर्लिंग और जापानी येन की तुलना में मंदा रहा।
  • राजकोषीय वर्ष 2003-04 के दौरान भारत के विदेशी मुद्रा भंडारों में 37.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वफ्द्धि हुई और ये 7 मई 2004 को 118.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर पर थे।
  • अमेरिकी डॉलर के रूप में भारत के निर्यात 17.1 प्रतिशत बढ़े जबकि आयातों में 25.3 प्रतिशत की वफ्द्धि हुई; वर्ष 2003-04 के दौरान लगातार तीसरे वर्ष चालू खाते में अधिशेष दर्ज़ होने की उम्मीद है।
  • पूर्व की ही तरह, विनिमय दर प्रबंधन बिना किसी निर्धारित अथवा पूर्व घोषित लक्ष्य के साथ लेकिन दखल देने की योग्यता के साथ लचीलेपन पर आधारित रहा।
  • वर्ष 2003-04 के दौरान बाह्य क्षेत्र में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता व्यापक पूंजी प्रवाहों से संबंधित रही और घरेलू मौद्रिक नीति तथा विनिमय दर प्रबंधन के संचालन के लिए इसकी अनिवार्य भागीदारी बनी रही।

समग्र आकलन

  • अनिश्चितताओं के बावजूद, वर्ष 2004-05 के दौरान सकल देशी उत्पाद वफ्द्धि के क्षेत्र में भारत की स्थिति विश्व के 10 सबसे अच्छे निष्पादन वाले देशों में बने रहने की उम्मीद है।
  • जहां तक मूल्यों का संबंध है, तेल मूल्यों और बड़े पैमाने पर देशी चलनिधि के कारण चली आयी समस्याओं के बावजूद, वर्ष 2004-05 के दौरान इस बात की कोई उम्मीद नहीं है कि मूल्य स्थिति मैक्रो स्थिरता के लिए चिंता का कारण बनेगी।
  • वफ्षि तथा छोटे और मझौले उद्यमियों को बैंक ऋण उपलब्ध कराने में आनेवाली अड़चनों से पार पाने की ज़रूरतों पर बल।
  • भारत में बैंकिंग की गुणवत्ता, प्रयोजनशीलता तथा पहुंच को बढ़ाने के लिए ग्रामीण बैंकिंग क्षेत्र का ढांचा बदलने की ज़रूरत पर बल।
  • हालांकि रिज़र्व बैंक ऐसा नीति परिवेश को उपलब्ध कराना जारी रखेगा जो लोकहित में ज़रूरत से अधिक और विध्वंसकारी उतार-चढ़ाव से बचाता है, बाज़ार सहभागियों से आग्रह किया गया था कि वे किसी भी अनपेक्षित गतिविधि से उभरनेवाली पोर्टफोलियो जोखिम को ध्यान में रखें और उनके लिए पर्याप्त व्यवस्था करके रखें।
  • बाह्य क्षेत्र यह संभावना जगाता है कि ये सार्वजनिक नीतियों के संचालन के लिए सहज बना रहेगा।

मौद्रिक नीति की अवस्थिति

  • वर्ष 2003-04 के दौरान मौद्रिक प्रबंधन वर्ष के लिए मोटे तौर पर निर्धारित नीति की अवस्थिति के अनुरूप ही है।
  • वर्ष 2004-05 के दौरान मुद्रा आपूर्ति (एम3) में विस्तार की परिकल्पना 14.0 प्रतिशत पर जिसमें ऋण वफ्द्धि 16.0 - 16.5 प्रतिशत पर आंकी गयी है।
  • अंतर्राष्ट्रीय तेल अर्थव्यवस्था, भूराजनैतिक जोखिमों सहित उल्लेखनीय अनिश्चितताओं को मौद्रिक नीति की अवस्थिति तैयार करते समय ध्यान में रखा गया। इस तरह से मुद्रा स्फीतिकारी स्थिति पर नज़दीक से निगाह रखने की ज़रूरत है और इस फ्रंट पर ढील दिये जाने की कोई गुंजाइश नहीं है।
  • वर्ष 2004-05 के लिए मौद्रिक नीति की समग्र अवस्थिति इस प्रकार रहेगी : (व) ऋण वफ्द्धि तथा समर्थन निवेश तथा निर्यात मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त चलनिधि का प्रावधान और उसके लिए मूल्य स्तर के उतार-चढ़ाव पर पैनी निगाह रखने की ज़रूरत होगी। (वव) उपर्युक्त के अनुरूप, यथास्थिति बनाये रखते हुए रिज़र्व बैंक एक ऐसा ब्याज दर परिवेश अपनायेगा जो वफ्द्धि की गति को बनाये रखने तथा मैक्रो इकॉनॉमिक तथा मूल्यस्थिरता के लिए अनुकूल हो।

उपाय

  • बैंक दर 6.0 प्रतिशत पर स्थिर रखी गयी।
  • रेपो दर 4.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखी गयी।
  • संशोधित चलनिधि समायोजन सुविधा शुरू की गयी।
  • समग्र निर्यात ऋण प्रत्यावर्तनीय रेपो दर पर उपलब्ध कराया गया था।
  • लगभग सभी बैंकों ने बीपीएलआर की नयी प्रणाली अपना ली है और दरें उनके पूर्व के प्राइम उधार दरों से कम हैं।
  • ऋण उपलब्ध कराने तथा ऋण संस्वफ्ति में सुधार लाने के लिए ऋण जोखिमों के आकलन के लिए बैंकों को ऋणों के मूल्यों को एक सीध में लाने के लिए प्रोत्साहित किया गया है।
  • रिज़र्व बैंक ने व्यास समिति की आंतरिक रिपोर्ट की कुछ सिफारिशों को लागू करने के लिए स्वीकार कर लिया है। ये इस प्रकार हैं - प्राथमिक क्षेत्र के अंतर्गत भंडारण सुविधाओं के लिए ऋण, प्राथमिकता क्षेत्र के ऋणों के रूप में जमानत वफ्षि ऋण, कुछेक वफ्षि ऋणों के लिए एक सीमा तक मार्जिन/जमानत अपेक्षाओं को माफ करना, फसल ऋणों के लिए अनुत्पादक आस्ति मानदंडों को फसल मौसमों की सीध में लाना।
  • निगम ऋण का ढांचा बदलने की ही तरह मझौले उद्यमों के लिए ऋण का ढांचा बदलने वाला तंत्र विकसित करना।
  • आधारभूत ऋण की परिभाषा को विस्तार दिया गया।
  • आधारभूत वित्तपोषण के लिए राज्य सरकारों द्वारा ऋण विस्तार पर कार्यदल गठित किया गया।
  • विश्वसनीय निर्यातकों के लिए गोल्ड काड़ योजना तैयार की गयी।
  • सरकार तथा अन्य स्टेक धारकों द्वारा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के ढांचे को तर्कसंगत बनाने के लिए विभिन्न पुनर्गठन विकल्पों पर विचार - व्यास समिति भी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के ढांचे को बदलने पर विचार कर रही है।
  • 26 जून 2004 से काल/नोटिस मुद्रा बाज़ार में गैर-बैंक सहभागियों के लिए ऋण पर सीमा घटा कर 45.0 प्रतिशत कर दी गयी।
  • सीबीएलओ के अंतर्गत बाज़ार सहभागियों तथा सीसीआइएल के बीच प्रतिभूतियों के स्वचालित मूल्यहीन अंतरण का प्रस्ताव।
  • रिज़र्व बैंक ने निगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम की निष्पादकता की समीक्षा के लिए कार्यदल गठित किया।
  • सीसीआइएल के ज़रिए ओटीसी डेरिवेटिव्ज के लिए समाशोधन पर विचार किया जा रहा है।
  • सीसीआइएल एनडीएस सदस्यों के लिए गैर-एसएलआर ऋण विलेखों में कारोबारों के निपटान के लिए व्यवस्थाएं तैयार करेगा।
  • पूंजी इंडेक्स बांडों पर चर्चा पत्र पब्लिक डोमेन पर रखा जा रहा है।
  • भवन निर्माण क्षेत्र में निवेश के लिए स्वचालित रूट के अंतर्गत ईसीबी सीमा पहले ही बढ़ा कर 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर कर दी गयी है।
  • निवासी व्यक्तियों को प्रति कैलेंडर वर्ष 25,000 अमेरिकी डॉलर आसानी से प्रेषित करने की अनुमति पहले ही दी जा चुकी है।
  • भारतीय निगमों तथा भागीदारी फर्मों को अपनी शुद्ध हैसियत के 100.0 प्रतिशत तक विदेशों में निवेश करने की अनुमति।
  • आधारभूत वित्तपोषण के लिए दीर्घकालीन बांड जारी करने के लिए बैंकों को अनुमति।
  • बैंकों के लिए अरक्षित एक्सपोज़र की मौजूदा सीमा हटायी गयी।
  • सभी सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तीय संस्थाओं पर एक्सपोज़र पर 100.0 प्रतिशत की दर पर जोखिम भार लगेगा।
  • बैंकों को बाज़ार जोखिम के लिए चरणबद्ध रूप में पूंजी प्रभार बनाये रखने की ज़रूरत।
  • बैंक बासले घ्घ् अपनाने के लिए योजना तैयार करेंगे।
  • बैंक अनुत्पादक आस्तियों की आयु के अनुसार उच्चतर प्रावधान करेंगे।
  • बैंक वित्तीय संस्थाएं सीआइबीआइएल को ऋण सूचनाएं उपलब्ध करायेंगे।
  • बैंक नये खाते खोलने के लिए अपने ग्राहक को जानिए नीति का पूरी तरह से पालन करेंगे।
  • वित्तीय समूह संस्थाओं पर कार्यदल की रिपोर्ट पब्लिक डोमेन पर रखी जा रही है।
  • जोखिम आधारित पर्यवेक्षण और बैंकों के लिए भी शुरू किया जायेगा।
  • शहरी सहकारी बैंकों को नये लाइसेंस व्यापक नीति के बाद ही।
  • विकास वित्त संस्थाओं पर कार्यदल की रिपोर्ट पब्लिक डोमेन पर रखी जा रही है।
  • तकनीकी समूह पुनर्वित्त संस्थाओं द्वारा शुरू की गयी विनियामक तथा पर्यवेक्षी प्रणालियों का मूल्यांकन करेगा।
  • इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण तथा इलेक्ट्रॉनिक समाशोधन सेवाओं के लिए बैंकों पर सेवा प्रभारों से छूट।
  • रिज़र्व बैंक ने भुगतान तथा समाशोधन प्रणाली के लिए बोड़ गठित किया।
  • रिज़र्व बैंक को जून 2004 तक आरटीजीएस प्रणाली में अधिकांश वाणिज्यिक बैंकों के शामिल हो जाने की उम्मीद।
  • पूंजी बाज़ार के लिए इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण पर कार्यदल गठित।
  • रिज़र्व बैंक नकदी विभाग ने सभी लेनदेनों के लिए एकल विंडो सेवाएं।
  • जून 2004 तक ऑन-लाइन टैक्स एकाउंटिंग प्रणाली शुरू हो जायेगी।
  • लोक सेवाओं पर क्रियाविधि तथा निष्पादकता लेखा-परीक्षा पर स्थायी समिति ने चार रिपोर्टें प्रस्तुत कीं। इन्हें पब्लिक डोमेन पर रखा जा रहा है।
  • अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय मानकों तथा संहिताओं पर परामर्शदात्री तकनीकी समूह की सिफारिशों पर आगे कार्रवाई की जा रही है।

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भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने 2004-05 वे लिए

वार्षिक नीति वक्तव्य घोषित किया

डॉ. वाइ.वी.रेड्डी, गवर्नर ने आज प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों के मुख्य कार्यपालकों की एक बैठक में वर्ष 2004-05 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य प्रस्तुत किया। सर्वप्रथम गवर्नर महोदय ने उल्लेख किया कि दिये जा रहे वक्तव्य के लिए पिछले वर्षों के दौरान अपनायी गयी प्रणाली ही अपनायी गयी है। व्यापक रूप से, वक्तव्य में मैक्रो इकोनॉमिक्स और मुद्रागत विकास की समीक्षा को जगह दी गयी, जिसके साथ वित्त क्षेत्र तथा मौद्रिक नीति के लिए चिंता का कारण बनी हुई तमाम विश्लेषणात्मक तथा संरचनागत बातें शामिल की गयी हैं। इसमें विभिन्न क्षेत्रों, जिसमें भारतीय रिज़र्व बैंक समय-समय पर उपाय करता रहा है, के बारे में विस्तार से बताया गया है तथा विस्तफ्त नीतियों, जिनका अनुसरण वर्ष 2004-05 में किया जाना है, पर प्रकाश डाला गया है। साथ ही साथ, इसमें उन व्यापक नीतियों पर ध्यान दिया गया है जिन्हें लचीलापन बनाये रखते हुए आगे बढ़ाया जाना है ताकि परिस्थितियों को देखते हुए ठोस उपाय शीघ्रतापूर्वक और प्रभावी तरीके से उठाये जा सकें। गवर्नर महोदय ने वित्तीय प्रणाली को मजॅबूत बनाने, ऋण सुपुर्दगी तंत्र में सुधार लाने के लिए कई उपायों की घोषणा की और मध्यावधि नज़रिये के संदर्भ में स्थायित्व के साथ क्रमिक वफ्द्धि को मज़बूत बनाने के लिए संस्थागत सुधारों के लिए उपायों का उल्लेख किया। उन्होंने और अधिक सामाजिक कल्याण की दिशा में कार्य करने के लिए परामर्शदात्री प्रक्रिया को मज़बूत बनाने की आवश्यकता पर भी बल दिया।

घरेलू गतिविधियां

वर्ष 2003-04 में सकल घरेलू उत्पाद वफ्द्धि (जीडीपी)

वर्ष 2003-04 के लिए जीडीपी की समीक्षा करते हुए गवर्नर महोदय ने कहा कि परवरी 2004 में केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) द्वारा जारी किये गये अग्रिम आकलन में जीडीपी वफ्द्धि कापी उंची अर्थात् 8.1 प्रतिशत मानी गयी है, जबकि पिछले वर्ष यह दर 4 प्रतिशत थी। यह अन्य बातों के साथ-साथ वफ्षि उत्पादों में जबरदस्त वफ्द्धि की द्योतक है।

मुद्रास्पीति दर

थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) में उतार-चढ़ावों द्वारा, बिंदु-दर-बिंदु आधार पर, मापी गयी वार्षिक मुद्रास्पीति दर मार्च 2003 के 6.5 प्रतिशत से घटकर मार्च 2004 के अंत में 4.5 प्रतिशत रह गयी थी। अलबत्ता, औसत के आधार पर वर्ष 2003-04 के दौरान वार्षिक मुद्रास्पीति दर पिछले वर्ष (3.4 प्रतिशत) की तुलना में अधिक अर्थात् 5.5 प्रतिशत थी। पहली मई 2004 को बिंदु-दर-बिंदु मुद्रास्पीति पिछले वर्ष (6.9 प्रतिशत) की तुलना में घटकर 4.2 प्रतिशत रह गयी थी। औसत के आधार पर 3.9 प्रतिशत की तुलना में यह दर 5.2 प्रतिशत रही।

मौद्रिक संकेतक

मौद्रिक गतिविधियों का उल्लेख करते हुए गवर्नर महोदय ने कहा कि पिछले वर्ष के 12.8 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2003-04 के दौरान मुद्रा आपूर्ति (एम3) में, विलयनों को छोड़कर, 16.4 प्रतिशत की वफ्द्धि हुई है। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की सकल जमाराशियों में हुई वफ्द्धि, विलयनों के समायोजनों सहित, 17.3 प्रतिशत थी जबकि पिछले वर्ष यह वफ्द्धि 13.4 प्रतिशत थी। वर्ष 2003- 04 के दौरान प्रारक्षित मुद्रा में हुई वफ्द्धि 18.3 प्रतिशत थी जो पिछले वर्ष के 9.2 प्रतिशत से हर हाल में अधिक थी। इसका कारण था भारतीय रिज़र्व बैंक की विदेशी मुद्रा आस्तियों में पिछले वर्ष के 82,089 करोड़ रुपये की वफ्द्धि के ऊपर 1,41,428 करोड़ रुपये की वफ्द्धि होना। विदेशी मुद्रा आस्तियों के प्रसार का प्रभाव बड़ी सीमा तक ठोस रूप से खुले बाजार परिचालनों के द्वारा, जिसमें चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत सतत रिपो परिचालन भी सम्मिलित हैं, ब्नष्प्रभावी कर दिया गया था। अद्यतन आकड़ों के अनुसार, 7 मई 2004 को प्रारक्षित मुद्रा में वर्ष दर वर्ष हुई वफ्द्धि पिछले वर्ष के 8.9 प्रतिशत की तुलना में 13.3 प्रतिशत थी।

ऋण प्रवाह

वर्ष 2003-04 के दौरान गैर-खाद्यान्न ऋण, जो मुख्यत: गफ्ह निर्माण और खुदरा क्षेत्रों से जुड़े हैं, में हुई वफ्द्धि विलयनों को छोड़कर पिछले वर्ष की 18.6 प्रतिशत की तुलना में 17.6 प्रतिशत थी। अद्यतन आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2004 के अंत में गैर-खाद्यान्न बैंक ऋण में वर्ष-दर-वर्ष वफ्द्धि पिछले वर्ष के 16.4 प्रतिशत की तुलना में 20.5 प्रतिशत थी।

सरकार के उधार

गवर्नर महोदय ने कहा कि केन्द्र सरकार ने अपने अंतरिम बजट में विशुद्ध बाज़ार ऋणों को संशोधित करके 82,982 करोड़ रुपये किया है जबकि मूल रूप से बजट की गयी विशुद्ध उधार राशियां 1,07,194 करोड़ रुपये रखी गयी थीं। वर्ष 2003-04 के दौरान केन्द्र और राज्यों की मिली-जुली विशुद्ध बाज़ार ऋण राशियां 1,35,192 करोड़ रुपये (कुल 1,98,157 करोड़ रुपये) थीं। केन्द्र सरकार की उधार राशियों की भारित औसत लागत, दिनांकित प्रतिभूतियों के माध्यम से, वर्ष 2002-03 के 7.34 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2003-04 में 5.71 प्रतिशत रह गयी थी। वर्ष 2003-04 के दौरान जारी की गयी दिनांकित प्रतिभूतियों की भारित औसत परिपक्वता पिछले वर्ष के 13.83 वर्ष की तुलना में 14.94 वर्ष रही। वर्ष 2003-04 के दौरान राज्य सरकारों की विशुद्ध बाज़ार ऋण राशियां 46,376 करोड़ रुपये थीं जो पिछले वर्ष (30,933 करोड़ रुपये) की तुलना में विशेष रूप से अधिक थीं। यह वफ्द्धि मुख्यतया 26,623 करोड़ रुपये के कारण थी जो केन्द्र तथा राज्य सरकारों के बीच आपसी सहमति से ऋण अदला-बदली योजना (डेट स्वैप स्कीम) के लिए थी ताकि राज्यों द्वारा केन्द्र सरकार को उनके उच्च लागत के ऋणों की चुकौती की जा सके।

बैंकों के निवेश

गवर्नर महोदय का विचार था कि बैंकिंग प्रणाली में पहले ही विशुद्ध मांग और समय देयताओं के 41.5 प्रतिशत की सीमा तक सरकारी प्रतिभूतियां रखी हुई हैं जिसके कारण उल्लेखनीय ब्याज दर जोखिम की संभावना है क्योंकि सरकारी प्रतिभूतियों पर आय पहले से ही इतनी कम है जितनी पहले कभी नहीं थी। अत: शीघ्रतापूर्वक तथा पूर्णसंकल्प के साथ मध्यम-अवधि नज़रिये से वित्तीय समेव न का अनुसरण करना आवश्यक है।

ब्याज दरें

(व) मुद्रा बाज़ार और सरकारी प्रतिभूतियों पर आय

गवर्नर मबेदय का विचार था कि प्रणाली में ब्याज दरें और भी कम हुई हैं। भारित औसत मांग मुद्रा दर मार्च 2003 के 5.86 प्रतिशत से घटकर मार्च 2004 में 4.37 प्रतिशत हो गयी थी और मई 2004 के दरम्यान यह दर और घटकर 4.28 प्रतिशत रह गयी थी। ठीक इसी प्रकार, 91 दिवसीय और 364 दिवसीय खज़ाना बिलों पर अंतिम आय भी मार्च 2003 के 5.89 प्रतिशत से घटकर 12 मई 2004 को क्रमश: 4.42 प्रतिशत तथा 4.45 प्रतिशत हो गयी थी। एक वर्षीय अवशिष्ट परिपक्वतावाली सरकारी प्रतिभूतियों पर होनेवाली आय अवधि पूरी होने के बाद 5.05 प्रतिशत से घटकर 4.54 प्रतिशत रह गयी थी अर्थात् इसमें 96 आधार बिंदु की गिरावट आयी। पंच वर्षीय और दस वर्षीय अवशिष्ट परिपक्वता पर आय मार्च 2003 के 5.92 और 6.21 प्रतिशत से घटकर मई 2004 के दौरान क्रमश: 4.87 और 5.20 रह गयी थी। सरकारी क्षेत्र के बैंकों में एक वर्ष तक की परिपक्वता के लिए सावधि जमा दरें मार्च 2003 के 4.00-6.00 प्रतिशत की रेंज से घटकर अप्रैल 2004 में 3.75-5.25 प्रतिशत रह गयी थीं। समग्र रूप से, गवर्नर महोदय ने पाया कि जमा दरों के मीयादी ढांचे में काफी फैलाव आया था।

(वव) उधार दरें

गवर्नर महोदय ने कहा कि आम तौर से सभी वाणिज्यिक बैंकों ने पहले के टेनर-लिंक्ड पीएलआर की जगह पर अपने बीपीएलआर की घोषणा कर दी है। सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने बीपीएलआर की घोषणा करते समय अपनी दरों में 25-100 आधार बिंदु की गिरावट की है। सरकारी क्षेत्र के बैंकों के लिए बीपीएलआर की रेंज न्यूनतम करते हुए 10.25 -11.5 रखी गयी है। पीएलआर की रेंज में दबाव विदेशी और निजी क्षेत्र के बैंकों में साप दिखाई देता है।

मार्च 2004 के अंत की स्थिति के अनुसार, मांग और मीयादी ऋणों (जहां पर अधिकतम कारोबार संकुचित होता है) के लिए, क्रमश: 11.0-12.75 तथा 11.0-13.25 प्रतिशत की रेंज में, सरकारी क्षेत्र के बैंक की मीडियन (प्रतिनिधि) उधार दर में पिछले वर्ष मार्च 2003 के तदनुरूपी स्तर क्रमश: 11.5 -14.0 और 12.0 -14.0 प्रतिशत की तुलना में कुछ सुधार दिखाई दिया।

ब्याज दर जोखिम

वर्ष 2003-04 के दौरान की घट-बढ़ को देखते हुए गवर्नर महोदय ने बैंकरों से जोर देकर कहा कि वे जोखिम प्रबंधन को और चुस्त करने के लिए निवेश घट-बढ़ निधि (आइएपआर) बनाने की दिशा में बिना किसी अड़चन के और चरणबद्ध रूप में आवश्यक कदम उठायें।

बैंकिंग क्षेत्र में प्रगति

भारतीय बैंकिंग क्षेत्र को मजबूत, सक्षम और सुचारू प्रणाली के रूप में विकसित करने के लिए जबरदस्त प्रगति हुई है। भागीदारों के बीच अधिक से अधिक जिम्मेदारी लाने तथा बाज़ार अनुशासित रिज़र्व बैंक के लगातार प्रयासों के परिणामस्वरूप बैंकिंग प्रणाली मजबूत, सक्षम और विश्वसनीय होकर उभरी है जो वैश्विक प्रतियोगिता का सामना करने में सक्षम है। यद्यपि, विधिक ढांचागत सुविधाओं में कतिपय परिवर्तन अभी भी किये जाने हैं तथापि अब तक की प्रगति के कारण भारतीय वित्त प्रणाली वैश्विक मानदंडों के अत्यधिक निकट है।

मुद्रागत प्रबंध

तेजी से खुलेपन की ओर बढ़ती अर्थव्यवस्था में मुद्रागत प्रबंध के डायनैमिक्स जो वर्ष 2003-04 के दौरान स्पष्ट दिखाई दे रही थी, के संदर्भ में गवर्नर महोदय ने कहा कि भले ही घरेलू ब्याज दरें घरेलू मुद्रास्पीति के अनुरूप होती हैं, इसमें निश्चित आर्थिक लाभ होने की उम्मीद में बफ्हद् पूंजी प्रवाह होने की खतरनाक संभावना बनी रहती है। गवर्नर महोदय ने बताया कि पूंजी तथा चालू खाता लेन-देनों में बड़े पैमाने पर लाये गये उदारीकरण के कारण और भी पूंजी अपने देश में आनी शुरू हो गयी ब्ै। तथापि उन्होंने बैंकरों को विश्वास दिलाया कि सिस्टम में उचित चलनिधि की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक चलनिधि के सक्रिय प्रबंध की नीति खुले बाज़ार परिचालनों (ओएमओ) के माध्यम से तथा चलनिधि समायोजन सुविधा द्वारा आगे भी जारी रखेगा और इसके साथ ही अन्य नीति लिखतों को भी उपयोग में लायेगा। बाज़ार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) के परिचालन ने चलनिधि तथा मौद्रिक प्रबंध को एक अतिरिक्त लिखत उपलब्ध कराया है।

बाब्री गतिविधियां

विश्व आर्थिक परिवेश में हुए सुधार

गवर्नर महोदय ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा अप्रैल 2004 में विश्व अर्थव्यवस्था के संबंध में उपलब्ध करायी गयी अद्यतन जानकारी के अनुसार वर्ष 2004 के लिए विश्व उत्पादन वफ्द्धि 4.6 प्रतिशत तथा वर्ष 2005 के लिए 4.4 प्रतिशत रखी गयी थी। उन्होंने नोट किया कि पिछले नवंबर माह में विश्व आर्थिक सुधार में उम्मीदों से कहीं अधिक विस्तार हुआ है और इसमें मज़बूती आयी है। उन्होंने यह भी नोट किया कि हाल ही के वर्षों में वफ्द्धि के प्रमुख चालकों के रूप में उभरते हुए बाजारों ने काम किया है। तथापि उन्होंने सावधान किया कि अभी भी तमाम अनिश्चितताएं बनी ब्ुई हैं जैसे - वैश्विक तेल मूल्यों में मज़बूती,प्रमुख मुद्राओं में अति घटबढ़ तथा आर्थिक गतिविधियों में उठान के कारण चक्रीय कारक।

वैश्विक गतिविधियाँ-मुख्य चिंताएं

ब्याज दर अनिश्चितताओं के संभावित वैश्विक प्रभाव, प्रमुख मुद्राओं में अति घटबढ़ और देश में पूंजी आगम प्रवाह पर तथा वित्त क्षेत्रों पर उनके प्रभाव की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए गवर्नर महोदय ने कहा कि ये सभी मुद्दे उभरते हुए बाजार की प्रमुख चिंताजनक बातें रहेंगी।

विदेशी मुद्रा बाजार लस्थर बना रहा

गवर्नर महोदय ने नोट किया कि 2003-04 के दौरान रिसर्जेंट इंडिया बांडों की चुकौती के कारण अक्तूबर 2003 में 5.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के र्भुगतानों के बावजूद भारतीय विदेशी मुद्रा बाज़ार ने आम तौर पर व्यवस्थित परिस्थितियां देखी। मार्च 2003 में 47.50 रुपये प्रति अमेरिकी डॉलर पर रुपये की विनिमय दर मार्च 2004 में 9.5 प्रतिशत बढ़कर 43.39 रुपये प्रति अमेरिकी डॉलर हो गयी लेकिन यूरो की तुलना में इस अवधि के दौरान 3.1 प्रतिशत, पाउंड-स्टर्लिंग की तुलना में 5.9 प्रतिशत और जापानी येन की तुलना में 4.4 प्रतिशत की गिरावट आयी।

मुद्रा भंडारों में बढ़ोतरी

गवर्नर महोदय ने कहा कि रिज़र्व बैंक की विदेशी मुद्रा भंडारों का उच्चतर स्तर बनाये रखने की नीति में प्रत्याशित चालू खाता घाटों तथा अप्रत्याशित पूंजी आवाजाही से उभरने वाले जोखिम पर चलनिधि को भी हिसाब में लेती है। उन्होंने आगे कहा कि भारत की विदेशी मुद्रा भंडार मार्च 2003 के अंत के 75.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर में 37.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वफ्द्धि के साथ मार्च 2004 के अंत में 113.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गये और 7 मई 2004 को बढ़कर 118.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गये। गवर्नर महोदय ने इस बात पर जोर दिया कि विदेशी दर प्रबंधन लचीलेपन पर आधारित है और इसके लिए न तो कोई पूर्व निर्धारित लक्ष्य होता है और न ही पूर्व घोषित लक्ष्य और इसमें दखल देने की योग्यता शामिल होती है।

निर्यात और आयात

2003-04 के दौरान भारत के निर्यातों ने अमेरिकी डॉलर के रूप में पिछले वर्ष के 20.3 प्रतिशत की तुलना में 17.1 प्रतिशत की वफ्द्धि दर्शायी। आयातों ने पिछले वर्ष के 17.0 प्रतिशत की तुलना में 25.3 प्रतिशत की उच्चतर वफ्द्धि दर्शायी।

चालू खाता अधिशेष

भुगतान संतुलन के चालू खाता जो पिछले दो वर्षों के दौरान लगातार अधिशेष बने रहे, अप्रैल-दिसंबर 2003 के दौरान 3.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर बढ़े। मूल्यन परिवर्तनों को शामिल करते हुए विदेशी मुद्रा भंडारों में जुड़नेवाली शुद्ध राशियां अप्रैल-दिसंबर 2003 के दौरान 26.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहीं। अगर मौजूदा संकेतकों को देखा जाये तो भारत लगातार तीसरे वर्ष 2003-04 के दौरान चालू खाता अधिशेष दर्ज करेगा।

2003-04 के दौरान बाह्य क्षेत्र की सर्वाधिक उल्लेखनीय विशेषता घरेलू मौद्रिक नीति तथा विनिमय दर प्रबंधन के संचालन के लिए अपनी अनिवार्य भागीदारी के साथ बड़ी मात्रा में पूंजियों का आना रही। नीति हस्तक्षेपों के विभिन्न तरीकों (बाज़ार आधारित बनाम गैर बाज़ार आधारित के रूप में वर्गीवफ्त) पर, उसव े अच्छे बुरे नतीजों पर विस्तार से बात करते हुए गवर्नर महोदय ने कहा कि इस संदर्भ में मौद्रिक प्राधिकारियों का प्रमुख लक्ष्य इस तरह के विदेशी मुद्रा बाज़ार हस्तक्षेप को पूरी तरह से आंशिक रूप में दरकिनार करना है ताकि मौद्रिक नीति के आशय को बरकरार रखा जा सके। अलबत्ता, घरेलू मौद्रिक नीति पर इस तरह के प्रभावों के असर की डिग्री बहुत हद तक उस विनिमय दर तंत्र पर निर्भर करती है जो प्राधिकारी अपनाते हैं। हालांकि व्यवहार में केन्द्रीय बैंक सभी देशों में विदेशी बाज़ारों में हस्तक्षेप करते हैं उभरते हुए बाज़ारों में बड़ी मात्रा में आनेवाली राशियों के संदर्भ में हस्तक्षेप का और अधिक गहन नजॅरिया अपनाने की जरूरत पड़ सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि मौद्रिक प्राधिकारी के सामने मुख्य मुद्दा यह तय करना होता है कि क्या पूंजी आगमन स्थायी तथा लगातार चलनेवाली प्रवफ्ति के हैं अथवा इस तरह की आगमन अस्थायी है और इनमें विपरीत बदलाव भी आ सकता है। व्यवहार में अलबत्ता, इस तरह के निर्धारण करना बहुत मुश्किल होता है।

इस बात का उल्लेख करते हुए कि खुला बाज़ार परिचालनों में प्रतिभूतियों के प्रति स्टेरिलायजेशन के विलेख के रूप में आम तौर पर इस्तेमाल की जाती है, उन्होंने कहा कि घरेलू मुद्रा आपूर्ति पर पूंजी प्रवाहों के असर को निष्क्रिय करने के लिए कई दूसरे विलेख उपलब्ध हैं। व्यापक पूंजी प्रवाहों का प्रबंध करने के लिए इस्तेमाल किये जानेवाले अन्य नीतिगत क्रियाओं में से कारोबार उदारीकरण, निवेश संवर्धन, पूंजी खाते का उदारीकरण, बाह्य ऋण का प्रबंधन, गैर-ऋण आगमनों का प्रबंधन, आगमनों पर कराधान और विदेशी मुद्रा भंडारों का इस्तेमाल आदि शामिल हैं।

गवर्नर महोदय ने कहा कि रुपये की विनिमय दर में हाल ही में आये उतार-चढ़ाव ने अर्थव्यवस्था की बाह्य प्रतिस्पर्धात्मकता का ध्यान खींचा है और इस तरह से रियल इपेक्टिव एक्स्चेंज रेट का हवाला देना प्रासंगिक होगा। उन्होंने आगे कहा कि रियल इपेक्टिव एक्स्चेंच रेट रिज़र्व बैंक के दिन प्रतिदिन के परिचालनों के लिए प्रासंगिक नहीं भी हो सकता लेकिन माध्यमिक से दीर्घकालिक पर विचार करते समय इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है।

समग्र मूल्यांकन

वित्त वर्ष 2003-04 के दौरान मुख्य घटनाक्रम के गुणात्मक मूल्यांकन और समग्र नीति के संदर्भ में गवर्नर महोदय ने महसूस किया कि सामान्य मानसून की संभावित परिस्थिति, विशेषकर विश्व-अर्थव्यवस्था में अनेक अनिश्चितताओं के बावजूद और यदि कोई अप्रत्याशित आघात नहीं लगते, तब सकल घरेलू उत्पाद में वफ्द्धि के संदर्भ में, 2004-05 में भारत विश्व के अग्रणी देशों में बना रहेगा, ऐसी आशा रखने के पर्याप्त कारण हैं।

कीमतों की स्थिति पर, गर्वनर महोदय ने पाया कि तेल की कीमतों और बड़ी घरेलू चल निधि के क्षेत्र में समस्याएँ मंडरा रही हैं। तथापि, भारत की आघातों को सहने की मानी हुई दृढ़ता, अच्छे मानसून की संभावनाओं के साथ खाद्य भंडार की पर्याप्त मात्रा, तथा अच्छे-खासे विदेशी मुद्रा भंडार के चलते वर्ष 2004-05 के दौरान कीमतों की स्थिति स्थूल स्थिरता के लिए कोई चिन्ता नहीं पैदा होने देगी, परन्तु कल्याणकारी विचारों को ध्यान में रखकर और मुद्रा स्पिति की संभावनाओं के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए भारत पर विश्व तथा अन्य घटनाक्रमों के प्रभावों पर पैनी निगाब् रखने की आवश्यकता है।

ऋण के संबंध में, गर्वनर महोदय ने कहा कि वफ्षि तथा लघु और मझौले उद्योगों को बैंक ऋण मिलने में आनेवाली रुकावटों को दूर करने के लिए विशेष प्रयास करने की आवश्यकता है। साथ ही, आधारभूत गतिविधियों में निवेश बढ़ाने से, उत्पादन क्षेत्रों में ऋण की संभावनाओं में भी वफ्द्धि होगी। उन्होंने यह भी बताया कि वित्त विकास संस्थाओं की पुनर्संरचना की जा रही है और ग्रामीण बैंकिंग क्षेत्र की पुनर्संंरचना पर विचार किया जा रहा है जिससे भारत में बैंकिंग की पब्ुंच, गुणवत्ता एवं उपयोगिता में वफ्द्धि करने की प्रक्रिया में सहायता मिलेगी।

वैश्विक वित्त बाजारों के संबंध में, गर्वनर महोदय ने पाया कि वर्ष 2004-05 के लिए कोई मुख्य मुद्दा उभरा है तो वह है अमेरिका में स्थूल आर्थिक अस्थिरताओं के बने रहने से तथा भूराजनैतिक अनिश्चितताओं के साथ बाकी विश्व पर पड़ने वाले उसके संभावित प्रभाव है। इन चिन्ताओं में ही, परिसंपत्तियों के मूल्य पर प्रभाव शामिल है, जोकि किसी मौद्रिक नीति के संकुचित होने से आगामी महीनों में अपेक्षित है तथा वस्तुओं की कीमतों, खासकर तेल की कीमत से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उभर सकती है। जबकि रिज़र्व बैंक ऐसा नीतिगत परिवेश प्रदान करता रहेगा, जिससे लोगों को अनावश्यक और अस्थिरताओं से बचाव होता रहेगा, बाजार के सहभागियों से अपेक्षा है कि किसी अप्रत्याशित घटनाक्रम से पैदा होने वाले निवेश जोखिम को ध्यान में रखकर उनके लिए पर्याप्त व्यवस्था रखेंगे। इसके अलावा, बाह्य क्षेत्र पिछले वर्षों में मजबूत हुआ है। बाह्य क्षेत्र की संभावनाएं सार्वजनिक नीतियों के लिए अनुकूल बताती हैं।

मौद्रिक नीति - 2004-05 की अवस्थिति

गर्वनर महोदय ने कहा कि वर्ष 2003-04 के दौरान मौद्रिक प्रबंध मुख्य तौर पर, वर्ष के लिए नीति की अवस्थिति के उद्देश्यों के अनुरूप किया गया है तथा उन्होंने माना कि वर्ष 2004-05 के दौरान घटनाओं का समग्र मूल्यांकन और 2004-05 का दृष्टिकोण, गुणात्मक रूप से आशा का संचार करते हैं। उन्होंने कहा कि मौद्रिक नीति की अवस्थिति कई तत्वों पर निर्भर करेगी जिसमें (क) वास्तविक क्षेत्र की संभावनाएं, विशेषकर सकल घरेलू उत्पाद में वफ्द्धि; (ख) मुद्रा स्पिति की संभावनाएं, तथा (ग) विश्व घटनाचक्र शामिल हैं। सकल घरेलू उत्पाद की वफ्द्धि के संबंध में, उन्होंने कहा कि भारत विश्व को अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं में बना रहेगा। मौद्रिक नीति निर्धारत करने के उद्देश्य से उद्योग क्षेत्र की सतत वफ्द्धि, सामान्य मानसून तथा अच्छे निर्यात को ध्यान में रख कर वर्ष 2004-05 के लिए सकल घरेलू उत्पादक की वास्तविक वफ्द्धि 6.5 से 7.0 प्रतिशत के बीच रखी जा सकती है। इस वफ्द्धि दर को हासिल करना अर्थव्यवस्था की वफ्द्धि दर में संरचनागत गति को दर्शाती है। कीमतों की स्थिति पर उन्होंने माना कि, वर्तमान रुझानों को देखते हुए, किन्हीं बड़े आपूर्ति आघातों उम्मीद न करते हुए तथा चलनिधि के बढ़िया प्रबंध से वर्ष 2004-05 में मुद्रा स्पिति दर बिंदु-दर-बिंदु आधार पर 5.0 प्रतिशत के आसपास रखी जा सकती है।

वैश्विक घटनाक्रमों के संबंध में गर्वनर महोदय ने कहा कि अब सुधार अधिक धारणीय प्रतीत होता है तथा उभरती अर्थ व्यवस्थाओं में अधिक उभरने की शक्ति है। तथापि, उन्होंने कहा कि कुछ स्पष्ट अनिश्चितताएं और खतरे हैं, जिन्हें मौद्रिक नीति तैयार करते हुए ध्यान में रखना चाहिए। विशेषकर, नीति इस संभावना को देखें कि गतिमान निर्यातों और आयातों के साथ-साथ बड़ी व्यापारिक कमी भी आएगी। चालू खाते पर इसके प्रभाव को पहचानकर, पहले की तरह प्रतिप्रेषणों से इसकी भरपाई की जाएगी। नीति को विशाल पूंजी प्रवाहों की मौेजूदगी के लिए भी तैयार रहना होगा।

सकल घरेलू उत्पाद की वास्तविक वफ्द्धि मुद्रा स्पिति के साथ नकदी प्रवाह (एम 3) का आकलित विस्तार, तथा वर्ष 2004-05 में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का कुल जमा क्रमश: 14.0 प्रतिशत और 14.5 प्रतिशत पर रखा गया है। केन्द्र और राज्य सरकारों के बाजार से उधार लेने की योजनाओं को देखते हुए रिज़र्व बैंक, वर्ष 2004-05 की मौद्रिक नीति के आकलनों में समग्र चल निधि तथा ब्याज दरों के गंभीर दबावों के बगैर ऋण प्रबंध करने की आशा करता है।

संक्षेप में, गर्वनर महोदय ने पाया कि अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में किसी विरोधी या अप्रत्याशित घटनाक्रम के उभरने के अलावा, तथा दृष्टिगत मुद्रा स्पिति की स्थिति बुरी नहीं होगी, तब मौद्रिक नीति 2004-05 का वर्तमान आकलन का समग्र उद्देश्य यह होगा कि-

  • कीमतों की स्थिति पर पैनी निगाह रखते हुए ऋण वफ्द्धि और निवेश की सहायता और अर्थव्यवस्था में निर्यात की माँग की भरपाई के लिए पर्याप्त चल निधि का प्रावधान।
  • उपर्युक्त के अनुसार, यथा स्थिति कायम रखते हुए, एक ऐसा ब्याज दर वातावरण बनाना जोकि वफ्द्धि की गति को बनाए रखे तथा स्थूल अर्थव्यवस्था और कीमतें स्थिर बनाए रखे।

वित्तीय क्षेत्र के सुधार और मौद्रिक नीति के उपाय

गर्वनर महोदय ने कहा कि आज वित्तीय क्षेत्र (पहले की तुलना में) अधिक प्रतिस्पर्धा के वातावरण में परिचालित होता है। तथा अंतर्राष्ट्रीय वित्त प्रवाह में तुलनात्मक रूप से बड़ी मात्रा में भागीदारी करता है। परिणाम स्वरूप उन्होंने कब कि, मौद्रिक नीति का निर्धारण करना पेचीदा हो गया है और उसे विशेषकर, किसी संभावित वित्तीय असंतुलनों के बनने के प्रति सावधान होना चाहिए तथा इसे ऐसे आघातों को सहने के लिए उपाय और बचाव खोजने की आवश्यकता हो गई है।

एक सार्थक ऋण संस्वफ्ति को बनाये रखने की आवश्यकता पर बल देते हुए, गर्वनर महोदय ने कहा कि जैसे जैसे वित्तीय संस्थान आगे बढ़ते हुए और अधिक पेचीदा हो रहे हैं, वही यह आवश्यक हो जाता है कि ग्राहक सेवाओं की गुणवत्ता में, खासकर आम आदमी को ध्यान में रखकर सुधार करना चाहिए।

उपायों को सामयिक और प्रभावशाली ढंग से लागू करने को सुनिश्चित करने वे लिए, भारतीय रिज़र्व बैंक ने नीतिगत उपायों को लाने से पहले परामर्श करने की विधि अपनायी है, ताकि वित्तीय क्षमता तथा स्थिरता के लाभ आम आदमी तक पहुँचें तथा भारतीय वित्तीय प्रणाली की सेवाएँ, पारदर्शी तरीके से अतंर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम स्तरों के समान अपनी पहचान रख सकें।

क) बैंक दर - 6.0 प्रतिशत पर स्थिर रखी गयी।

ख) पुन: खरीद दर - 4.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तनीय रखी गयी।

ग) चलनिधि समायोजन सुविधा - संशोधित योजना

चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएप) पर एक आंतरिक समूह की सिपारिशों तथा बाजार के सहभागियों और विशेषज्ञों की सलाहों पर विचार करते हुए चल निधि समायोजन सुविधा की समीक्षा की गयी जोकि 29 मार्च 2004 से लागू की गयी, जिनमें अन्य बातों के साथ साथ (व) प्रतिदिन संचालित की गयी सात दिवसीय स्थिर दर पुन: खरीद तथा (वव) सप्ताह के कारोबार दिवस को प्रतिदिन संचलित ओवरनाइट स्थिर दर प्रत्यावर्तनीय पुनर्खरीद दर ।

वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए, 7 दिवसीय रेपो को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 4.50 प्रतिशत प्रतिवर्ष पर कायम रखा गया। प्रत्यावर्तनीय रेपो खरीद दर को पुनर्खरीद रेपो दर से जोड़ा जाता है, इसे 29 मार्च 2004 से निम्न अंतर 150 आधार बिंदु को 6.00 प्रतिशत प्रतिवर्ष कम कर दिया गया। इसके साथ ही, भारतीय रिज़र्व बैंक की चलनिधि समायोजन सुविधा के वर्तमान प्रावधान के स्वरूप को तर्कसंगत बनाने के उद्देश्य से, बैंकों को दी जानेवाली निर्यात ऋण को पुनर्वित्त की पूरी राशि और प्राथमिक ऋणदाताओं को दी जाने वाली चलनिधि सहायता एक ही दर यानि प्रत्यावर्तनीय रेपो दर पर मुहैया करायी गयी।

आंतरिक समूह ने भारतीय रिज़र्व बैंक की पुन: खरीद सुविधा को अधिक लचीला बनाने के लिए एक स्थायी जमा सुविधा प्रारंभ करने का प्रस्ताव दिया था, जिससे माँग मुद्रा की दर की गति को आधार देने में सहायता भी मिलती। रिज़र्व बैंक इस प्रस्ताव पर सहमति देता है परन्तु इसके लिए भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 के संबंधित प्रावधानों में संशोधन होने तक इंतजाम करना पड़ेगा।

ब्याज दर नीति

मूल उधार दर तथा फैलाव

भारतीय बैंक संगठन (आइबीए) द्वारा दी गयी सलाह के संदर्भ में गर्वनर महोदय ने कहा कि लगभग सभी वाणिज्यिक बैंकों ने नयी बीपीएलआर प्रणाली अपना ली है तथा उनकी पहले की मूल उधार दर (पीएलआर) से यह दर 25-200 बिंदु के आधार पर यह कम है।

गर्वनर महोदय ने पाया कि बड़े और ऊंचे दर्जे के उधारदाताओं को ऋण देने के लिए बैंकों में तेज स्पर्धा है, अन्य उधारकर्ताओं जिनका बैंकों के साथ लंबा नाता ब्ै और अच्छा ऋण रिकाड़ भी ब्ै उन्ब्ें कम दरों का लाभ नब्ीं मिल पाता। गवर्नर मबेदय ने बैंकों को सूचित किया कि वे उधारकर्ताओं का व्यापक तथा कठोर जोखिम आकलन शुरू करने की व्यवस्था करें और इसके लिए अपने पास उपलब्ध डेटा बेस का और साथ ब्ी साथ आंतरिक और बाह्य घटकों का इस्तेमाल करें ताकि ऋण का मूल्यन जोखिम के साथ और अधिक उचित ढंग से किया जा सके।

ऋण वितरण तंत्र

(क) प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र उधार

बैंकिंग प्रणाली से वफ्षि और संबद्ध क्रियाकलापों पर ऋण के प्रवाह पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा गठित परामर्शदात्री समिति (अध्यक्ष : प्रो.वी.एस.व्यास) का संदर्भ देते हुए गवर्नर महोदय ने कहा कि समिति ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की है और भारतीय रिज़र्व बैंक ने उसमें से कुछ सुझाव लागू करने के लिए स्वीवफ्त किये हैं।

(व) भंडारण सुविधाओं के लिए ऋण

भंडारण सुविधाओं को मजबूत बनाने के लिए ऋण उपलब्धता और बढ़ाने के लिए गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया है कि :

  • भंडारण इकाइयों, जिनमें शीत भंडारण इकाइयां भी शामिल हैं - जो वफ्षिगत उत्पाद/उत्पादन रखने के लिए बनायी गयी हैं, पिर चाहे उनका स्थान कहीं भी हो, को ऋण प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत परोक्ष वफ्षिगत वित्त माना जायेगा।

(वव) बैंकों द्वारा प्रतिभूतिवफ्त परिसंपत्तियों में निवेश

वफ्षिगत ऋणों के प्रतिभूतिकरण के बढ़ते हुए बल को देखते हुए गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि :

  • बैंकों द्वारा प्रतिभूतिवफ्त परिसंपत्तियों में किये गये निवेश, जो वफ्षि के लिए प्रत्यक्ष (अप्रत्यक्ष) उधार दर्शाते हैं, को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वफ्षि के लिए प्रत्यक्ष (अप्रत्यक्ष) उधार समझा जायेगा, बशर्ते प्रतिभूतिवफ्त ऋण मूल रूप से बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से आये हैं।

(ववव) वफ्षिगत ऋण - मार्जिन/प्रतिभूति आवश्यकताओं से छूट

वफ्षि - विशेषत: छोटे उधारकर्ता - जिनके पास संपार्श्विक के रूप में आवश्यक परिसंपत्ति नहीं है, को दिये जाने वाले ऋण के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए गवर्नर महोदय ने यह प्रस्ताव किया कि :

  • बैंक 50,000 रुपये तक के वफ्षिगत ऋणों के लिए और 5 लाख रुपये तक के वफ्षि आधारित कारोबार और वफ्षि आधारित क्लिनिकों में छूट दे सकते हैं।

(वख्) वफ्षिगत वित्त के लिए एनपीए मानदंड

पसलों की कटाई के साथ चुकौती तारीखों को एक सीध में लाने के लिए गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि :

  • अल्पावधि पसलों के लिए स्वीवफ्त ऋण को तब अनुत्पादक आस्तियां (एनपीए) माना जायेगा, यदि निर्धारित तारीख के बाद दो पसल मौसमों में मूल राशि या उस पर ब्याज की किस्त का भुगतान नहीं किया जाता।
  • दीर्घावधि पसलों के लिए मंजूर किया गया ऋण तब अनुत्पादक आस्ति समझा जायेगा यदि निर्धारित तारीख के बाद एक पसल मौसम में मूल राशि या उस पर ब्याज की किस्त का भुगतान नहीं किया जाता।
  • पसल ऋणों के उपर्युक्त सभी निर्धारण यथोचित परिवर्तनों सहित वफ्षिगत मीयादी ऋणों के लिए भी लागू होंगे।

(ख) मैक्रो वित्त

जमाकर्ताओं के हित की रक्षा करने और व्यास समिति की अंतरिम रिपोर्ट की सिपॉरिशों के आधार पर गवर्नर ने प्रस्ताव किया कि :

  • मैक्रो वित्त संस्थाओं को तब तक सार्वजनिक जमाराशियां स्वीकार करने की अनुमति नहीं दी जायेगी जब तक वे रिज़र्व बैंक के वर्तमान विनियामक ढांचे का अनुपालन नहीं करतीं।

(ग) किसान क्रेडिट काड़ योजना

नैशनल काउन्सिल ऑप एप्लाइड इकॉनॉमिक रिसर्च को किसान क्रेडिट काड़ योजना के प्रभाव के मूल्यांकन के सर्वेक्षण का काम सौंपा गया था। गवर्नर महोदय ने कहा कि उक्त रिपोर्ट शीघ्र ही मिल जायेगी।

(घ) लघु और मझौले उद्यमों के लिए नीतिगत ढांचा

लघु उद्योग क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने पर कार्य दल (अध्यक्ष: डॉ.ए.एस.गांगुली) ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि :

  • लघु और मझौले उद्यमों को ऋणों का यथोचित कीमत-निर्धारण निश्चित करने हेतु बैंकों को सुविधा देने की दृष्टि से उचित ऋण अभिलेखों की प्रणाली विकसित करना सही युक्त है। इस प्रयोजन के लिए क्रेडिट इन्पॅर्मेशन ब्यूरो ऑप इंडिया लिमिटेड (सिबिल), भारतीय रिज़र्व बैंक, सिडबी और आइबीए के परामर्श से एक प्रणाली तैयार करेगा। साथ ही मझौले उद्यमों के लिए कॉर्पोरेट डैट रिस्ट्रक्चरिंग की तरह ऋण पुनर्विन्यास के लिए एक प्रणाली विकसित करने का प्रस्ताव है। इस संबंध में यथोचित परिचालनगत दिशानिर्देशों का सुझाव देने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक एक विशेष दल की स्थापना करेगा।

(ङ) बुनियादी उधारों की व्याप्ति बढ़ाना

बुनियादी क्षेत्र के अत्यावश्यक महत्त्व को ध्यान में रखते हुए गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि :

  • निम्नलिखित परियोजनाओं/क्षेत्रों को शामिल करने के लिए बुनियादी उधारों की व्याख्या की व्याप्ति व्यापक करना : (व) वफ्षि-प्रक्रिया और वफ्षि के लिए निविष्टियों की आपूर्ति निहित परियोजनाओं से संबद्ध निर्माण; (वव) प्रोसेस किये गये वफ्षि-उत्पादों का अनुरक्षण और भंडारण, पल, सब्जी और पूल जैसे नष्ट होनेवाली वस्तुएं, जिनमें गुणवत्ता के लिए परीक्षण सुविधाएं भी शामिल हैं, के लिए निर्माण और (ववव) शैक्षिक संस्थाओं और अस्पतालों का निर्माण।

(च) राज्य सरकारों द्वारा ऋण बढ़ाने पर कार्य दल

राज्य स्तर पर बुनियादी वित्तपोषण के महत्त्व को देखते हुए गवर्नर महोदय ने सरकार, राज्य सरकार चयनित बैंक, वित्तीय संस्थाओं और भारतीय रिज़र्व बैंक के सदस्यों को लेकर राज्य सरकारों द्वारा बुनियादी सुविधाओं के वित्तपोषण के लिए ऋण बढ़ाने पर कार्य दल की घोषणा की।

(छ) निर्यातकों के लिए स्वर्ण काड़ योजना

गवर्नर महोदय ने कहा कि चयनित बैंकों और निर्यातकों के परामर्श से अच्छी शर्तों पर निर्यात ऋण उपलब्ध कराने के लिए अच्छे ट्रेक रिकॉड़ वाले ख्याति-प्राप्त निर्यातकों के लिए स्वर्ण काड़ योजना बनायी जा रही है।

(ज) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का ढांचा बदलना

गवर्नर महोदय ने कहा कि क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का ढांचा युक्तिसंगत बनाने और बेहतर लाभप्रदता की ओर बढ़ने के लिए सरकार और अन्य स्टेक-धारक विभिन्न पुनर्विन्यास विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। व्यास समिति की क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्विन्यास के पहलु को देख रही है और सरकार को यथोचित सिपॉरिशें प्रस्तुत करने के लिए विभिन्न विकल्प ढूँढ रही है।

(झ) सहकारी बैंकों का ढांचा बदलना

गवर्नर महोदय ने कहा कि सरकार ने सहकारी ऋण संरचना को पुन: सक्रिय बनाने की योजना की घोषणा की थी। सरकार ने यह प्रस्ताव किया है कि संशोधित नियामक ढांचा लागू हो जाने के तुरंत बाद यह योजना प्रारंभ की जायेगी।

मुद्रा बाज़ार

(क) शुद्ध अंतर-बैंक मांग/नोटिस मुद्रा बाजार की ओर बढ़ना

बाजार गतिविधियों को और बढ़ाने तथा शुद्ध अंतर-बैंक/नोटिस मुद्रा बाजार की ओर बढ़ने के लिए गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया है कि :

  • दिनांक 26 जून 2004 को शुरू होने वाले पखवाड़े से गैर-बैंक सहभागियों को 2000-01 के दौरान मांग/नोटिस मुद्रा बाजार में उनके औसत दैनिक उधार के 45 प्रतिशत तक, रिपोर्टिंग पखवाड़े में औसतन उधार की अनुमति दी जायेगी।

(ख) संर्पाश्विक उधार और उधार देने का दायित्त्व (सीबीएलओ)

गवर्नर महोदय ने घोषित किया कि सीबीएलओ खंड के और विकास को प्रोत्साहन देने के दृष्टि से यह प्रस्ताव है कि :

  • बाजार सहभागियों और सीसीआइएल के बीच प्रतिभूतियों का स्वचलित मूल्य-रहित अंतरण सुकर बनाना

सरकारी प्रतिभूति बाजार

(क) निगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम की समीक्षा

एनडीएस में होनेवाली उत्साब्वर्धक गतिविधियों और समय बीतने के साथ-साथ अर्जित अनुभव के आधार पर भारतीय रिज़र्व बैंक ने एनडीएस की परिचालनगत कार्यक्षमता के संदर्भ में उसके कार्यनिष्पादन की समीक्षा करने के लिए एक कार्य दल (अध्यक्ष: डॉ.आर.एच पाटील) का गठन किया है।

(ख) सीसीआइएल द्वारा ओवर दि काउंटर ब्याज दर डेरिवेटिव्ज़ का समाशोधन

गवर्नर महोदय ने यह जानकारी दी कि ओवर दि काउंटर डेरिवेटिव्ज़ सर्किट को मजबूत बनाने और उसमें निहित जोखिम को कम करने के लिए सीसीआइएल के माध्यम से समाशोधन व्यवस्था पर विचार किया जा रहा है।

(ग) गैर एसएलआर प्रतिभूतियों में व्यापार - निपटान और सूचना

गवर्नर महोदय ने कहा कि एनडीएस सदस्यों द्वारा सूचीबद्ध तथा गैर-सूचीबद्ध गैर-एसएलआर ऋण लिखतों के व्यापारों से संबद्ध सूचना का प्रसारण और गैर-गारंटीवफ्त आधार पर निपटान के लिए सीसीआइएल एक व्यवस्था करने पर विचार कर रहा है।

(घ) पूंजी तालिकावफ्त बांड (सीआइबी)

गवर्नर महोदय ने सूचित किया कि आशोधित सीआइबी की उत्पाद विशेषताओं का ब्यौरा देने वाले सीआरबी पर एक चर्चा पत्र (डिस्कशन पेपर) पब्लिक डोमैन पर रखा जा रहा है।

(ङ) बाजार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस)

गवर्नर महोदय ने कहा कि भारत सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक ने 25 मार्च 2004 को बाजार स्थिरीकरण योजना के मूलाधार और परिचालनगत तैर-तरीकों का वर्णन करनेवाले सहमति ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किये थे। बाजार स्थिरीकरण योजना का उद्देश्य दिन-प्रतिदिन के सामान्य चलनिधि प्रबंधन परिचालनों से स्टरलाइज़ेशन के रूप में अधिक टिकाऊ तरीके से चलनिधि खपत को अलग करना है। वित्तीय बाजारों को पारदर्शिता और स्थिरता प्रदान करने के लिए प्रारंभ में 25 मार्च 2004 को अप्रैल-जून 2004 को समाप्त तिमाही के लिए बाजार स्थिरीकरण योजना के अंतर्गत 35,500 करोड़ रुपये के लिए खजॉना बिलों/दिनांकित प्रतिभूतियों को जारी करने के लिए एक संकेतात्मक अनुसूची जारी की गयी। बाजार स्थिरीकरण योजना के अंतर्गत 14 मई 2004 तक 27,000 करोड़ रुपये के अंकित मूल्य के साथ खज़ाना बिल और दिनांकित प्रतिभूतियां जारी की गयीं, जिनमें से दिनांकित प्रतिभूतियां 15,000 करोड़ रुपये की थी।

विदेशी मुद्रा बाजार

(क) अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल के व्यक्तियों को रुपये में आवास ऋण

उदारीकरण के और एक उपाय के रूप में गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि:

  • उधारकर्ता के भारत में स्थित नज़दीकी रिश्तेदारों को अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल के व्यक्तियों द्वारा रुपये में लिये गये आवास ऋणों के किश्त, ब्याज और अन्य प्रभार यदि कोई हों, की चुकौती सीधे प्राधिवफ्त व्यापारियों/आवास वित्त संस्थाओं को करने की अनुमति देना।

(ख) बाह्य वाणिज्यिक उधार छूट

गवर्नर महोदय ने कहा कि समीक्षा के बाद, बाह्य उधारों की सीमा स्वचलित रूट के अंतर्गत 500 मिलियन डॉलर तक बढ़ायी गयी है, जिसकी न्यूनतम औसत परिपक्वता अवधि 5 वर्ष होगी। बाह्य उधारों का अंतिम उपयोग इसलिए बढ़ाया गया है, जिससे संयुक्त उद्यमों/पूर्णत: स्वाधिवफ्त सहायक संस्थाओं में विदेशी सीधे निवेश का समावेश किया जा सके, ताकि कंपनियों को वैश्विक भागीदार बनने में आसानी हो। साथ ही बैंक और वित्तीय संस्थाएं, जो सरकार के अनुमोदन से वस्त्र उद्योग या स्टील क्षेत्र पुनर्विन्यास पैकेज में शामिल हुई हैं, को अनुमोदन रूट के अंतर्गत बाह्य वाणिज्यिक उधार लेने की अनुमति दी गयी।

(ग) निवासी व्यक्तियों के लिए प्रेषण योजना - उदारीकरण

गवर्नर महोदय ने जानकारी दी कि अब निवासी व्यक्ति किसी भी चालू या पूंजी खाता लेनदेन या इनमें से किसी भी संयुक्त लेनदेन के लिए प्रति कैलेण्डर वर्ष 25,000 अमेरिकी डॉलर मुक्त रूप से प्रेषित कर सकते हैं।

(घ) विदेशी निवेश

विदेश स्थित भारतीय कंपनियों की कौशलपूर्ण (स्ट्रैटेजिक) उपस्थिति को बढ़ाने के लिए भारतीय कंपनियों और भागीदारी पर्मों को निवेश में अपनी निवल संपत्ति के शत प्रतिशत निवेश की अनुमति दी गयी है।

(ङ) बैंकों की बाह्य देयताओं पर आंतरिक दल

गवर्नर महोदय ने घोषणा की कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा गठित, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की बाह्य देयताओं पर आंतरिक दल ने अप्रैल 2004 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जो पब्लिक डोमैन पर रखी जा रही है। उन्होंने कहा कि दल की सिपॉरिशों के आधार पर भारतीय रिज़र्व बैंक ने निम्नलिखित उपायों को लागू किया है:

  1. एनआरई मीयादी जमाराशियों की एक से तीन वर्षों की ब्याज दरें 17 अप्रैल 2004 से अमेरिकी डॉलर की तदनुरूपी परिपक्वता अवधि के लिए लिबोर/स्वैप दरों तक कम कर दी गयी हैं।
  2. एनआरई बचत जमाराशियों पर ब्याज दर की उच्चतम सीमा छह महीने की अमेरिकी डॉलर लिबोर/स्वैप दर पर निर्धारित की गयी; और इन खातों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी धारणाधिकार की अनुमति नहीं दी जायेगी।
  3. दिनांक 24 अप्रैल 2004 से प्राधिवफ्त व्यापारियों या प्राधिवफ्त बैंकों से इतर कंपनियों को अनिवासी भारतीयों से नये आवक प्रेषणों या उनके एनआरई/एपसीएनआर(बी) खातों के ज़रिए प्राप्त नयी जमाराशियां स्वीकारने की अनुमति नहीं है।

विवेकपूर्ण उपाय

विनियमन और पर्यवेक्षण के क्षेत्रों के संबंध में बात करते हुए गवर्नर महोदय ने कहा कि भारतीय रिज़र्व बैंक बैंकों और वित्तीय संस्थाओं का बोझ कम करने के लिए, देश के संस्थागत ढांचों और क्षमता में भेदों के कारण, पर्याप्त लचीले प्रवफ्ति की अंतर्राष्ट्रीय उत्वफ्ष्ट प्रणालियां अपनाकर सुधार की प्रक्रिया जारी रखने के लिए कटिबद्ध है। इस दिशा में गवर्नर महोदय ने निम्नलिखित और उपाय प्रस्तावित किये :

(क) आधारभूत वित्तपोषण के लिए दीर्घावधि बांड

आधारभूत ऋण को बढ़ावा देने के लिए गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया है कि :

  • बैंकों को आधारभूत क्षेत्र के पांच वर्ष से अधिक की शेष अवधि समाप्ति वाले उनके कुल एक्सपोज़र की सीमा तक न्यूनतम पांच वर्ष की अवधि समाप्ति वाले दीर्घकालीन बांड उगाहने की अनुमति दी जाए।

(ख) अनरक्षित एक्सपोज़रों की सीमाएं हटाना

बैंकों को उनकी ऋण नीतियों पर और अधिक लचीलापन देने की दृष्टि से गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि :

  • अनरक्षित एक्सपोज़रों की मौजूदा सीमा को हटाना ताकि बैंकों के बोड़ अनरक्षित एक्सपोज़रों पर अपनी स्वयं की नीति बना सकें।
  • बैंकों को 10.0 प्रतिशत का अतिरिक्त प्रावधान अर्थात् अवमानक श्रेणी में कुल बकाया अग्रिमों के 20.0 प्रतिशत का कुल प्रावधान करने की ज़रूरत होगी ताकि वे अनरक्षित एक्सपोज़रों पर अपेक्षित घाटे को पूरा कर सकें।
  • संदेहपूर्ण तथा हानि श्रेणियों में अनरक्षित एक्सपोज़रों के लिए 100.0 प्रतिशत के स्तर पर प्रावधान पहले की तरह जारी रहेगा।

(ग) विवेकशील ऋण एक्सपोज़र सीमाएं

ईसीबी तक उधारकर्ता आसानी से पहुंच सवें, इस बात को देखते हुए तथा पूंजी/ऋण बाज़ार के ज़रिए संसाधन जुटाने की उनकी योग्यता को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि मामला-दर-मामला अनुमोदन देने की प्रथा को समाप्त कर दिया जाए। तदनुसार, गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया है कि :

  • बैंक अपवादात्मक परिस्थितियों में अपने निदेशक मंडलों के अनुमोदन से उधारकर्ता को एक्सपोज़र की सीमाएं पूंजी निधि के अधिकतम और 5.0 प्रतिशत तक बढ़ाने के बारे में इस शर्त पर विचार कर सकते हैं कि उधारकर्ता अपनी वार्षिक रिपोर्टों में यथोचित प्रकटन करने के लिए बैंकों को सहमति देते हैं। एकल तथा समूह उधारकर्ताओं के लिए आधारभूत एक्सपोज़र के लिए पूंजी निधियों की क्रमश: 5.0 और 10.0 प्रतिशत की अतिरिक्त छूट जारी रहेगी।
  • बैंकों के ऐसे एक्सपोज़र जो भारत सरकार द्वारा पूरी तरह से गारंटीशुदा है, ऋण एक्सपोज़र मानदंडों के दायरे से बाहर रहेंगे।
  • बैंक 31 मार्च 2005 तक या तो पूंजी निधियां बढ़ा कर अथवा एक्सपोज़र घटा कर निर्धारित सीमाओं से परे अतिरिक्त एक्सपोज़र धीरे धीरे कम करेंगे।

(घ) सार्वजनिक वित्तीय संस्थाओं को एक्सपोज़र के लिए जोखिम भार

गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि :

  • पहली अप्रैल 2005 से शुरू करते हुए सभी सार्वजनिक वित्तीय संस्थाओं को एक्सपोज़रों पर 100.0 प्रतिशत का जोखिम भार लगेगा।

(ङ) बाज़ार जोखिम के लिए पूंजी प्रभार

बासले घ्घ् के अंतर्गत मानदंडों को सुगमता से अपनाने को सुनिश्चित करने के लिए गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि 2 वर्ष की अवधि के आस-पास बाज़ार जोखिम के लिए पूंजी प्रभारों को लागू करने को नीचे बताये गये अनुसार धीरे-धीरे समाप्त किया जाए:

  • बैंकों को 31 मार्च 2005 तक अपने कारोबार बही एक्सपोज़रों (डेरिवेटिव्ज सहित) के संबंध में बाज़ार जोखिम के लिए पूंजी प्रभार बनाये रखने की ज़रूरत होगी।
  • बैंकों को 31 मार्च 2006 तक बिक्री के लिए उपलब्ध (एएफएस) श्रेणी के अंतर्गत शामिल प्रतिभूतियों के संबंध में बाज़ार जोखिम के लिए पूंजी प्रभार बनाये रखने की ज़रूरत होगी।

(च) नये पूंजी समझौते (बासले घ्घ्) को लागू करने के लिए तैयारी

चूंकि बासले घ्घ् के अंतर्गत उन्नत नज़रिये को लागू करने के लिए सुव्यवस्थित जोखिम प्रबंधन प्रणाली एक पूर्व आवश्यकता है, गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि:

  • बैंकों को बासले घ्घ् के अंतर्गत उपलब्ध विकल्पों की गहराई से जांच की जानी चाहिए और बासले घ्घ् को अपनाने के लिए दिसंबर 2004 के अंत तक योजना तैयार कर लेनी चाहिए और इस संबंध में की गयी प्रगति की तिमाही अंतरालों पर समीक्षा करनी चाहिए। रिज़र्व बैंक इस दिशा में बैंकों द्वारा की गयी प्रगति की पैनी निगरानी करेगा।

(छ) देश जोखिम प्रबंधन

गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि :

  • 31 मार्च 2005 को समाप्त होने वाले वर्ष से दिशानिर्देशों को ऐसे देशों में भी बढ़ाया जाये जहां किसी बैंक का उसकी आस्तियों के 1.0 प्रतिशत अथवा अधिक का एक्सपोज़र है।

(झ) अनुत्पादक आस्तियों के लिए प्रावधानीकरण अपेक्षाएं

सिक्युराइटाज़ेशन एंड रिकन्स्ट्रक्शन ऑफ फाइनान्शियल एसेट्स एंड इन्फोर्समेंट ऑफ सिक्युरिटी इंटरेस्ट एक्ट, 2002 के अधिनियमित किये जाने और समय बीतने के साथ साथ आस्ति की वसूली की उम्मीदें/सीमा घटते जाने को देखते हुए यह ज़रूरी है कि बैंक अनुत्पादक आस्तियों की वसूली के लिए तेज़ी से काम करेगा। तदनुसार, गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि:

  • अनुत्पादक आस्तियों की उम्र के अनुसार जिन्हें तीन वर्ष से अधिक के लिए संदेहपूर्ण की श्रेणी में शामिल किया गया है, 31 मार्च 2005 से शुरू करते हुए ग्रेडेड उच्चतर प्रावधानीकरण अपेक्षाएं शुरू करना।

(ञ) जानबूझ कर चूककर्ता - प्रक्रिया पर स्पष्टीकरण

इस प्रकार के अभ्यावेदन प्राप्त हुए हैं कि जानबूझ कर चूककर्ताओं के रूप में उधार खातों के वर्गीकरण के बाद शिकायतों का निवारण इस बात को देखते हुए सही नहीं है कि हो चुकी हानि की आसानी से भरपाई नहीं की जा सकती। गवर्नर महोदय ने स्पष्ट किया कि उधार खातों का वर्गीकरण और शिकायत निवारण तंत्र, दो अलग-अलग प्रक्रियाएं हैं जिनमें (व) चूककर्ताओं की पहचान स्पष्ट कारणों से जानबूझ कर के रूप में होती है तथा (वव) जानबूझ कर चूककर्ता के रूप में वर्गीवफ्त किये जाने के पहले उधारकर्ता को अभ्यावेदन करने का एक मौका दिया जाता है।

(ट) ऋण सूचना उपलब्ध कराना - सीआइबीआइएल की भूमिका

गवर्नर महोदय ने उल्लेख किया कि रिज़र्व बैंक कुशल ऋण सूचना प्रणाली के विकास को उच्चतम प्राथमिकता देता है और यह इस संबंध में प्रगति की बारीकी से निगरानी करता रहेगा। सुदृढ़ वित्तीय प्रणाली को विकसित करने की दृष्टि से यह प्रस्तावित है कि :

  • बैंकों/वित्तीय संस्थाओं के निदेशक मंडल सभी उधारकर्ताओं के संबंध में सीआइबीआइएल को ऋण सूचना उपलब्ध कराने तथा रिज़र्व बैंक को अनुपालन की रिपोर्ट देने के लिए किये गये उपायों की समीक्षा करें।
  • ऋण सूचना कार्यालय, उदाहरण के लिए ऋण क्रम निर्धारण एजेंसियां वित्तीय प्रणाली के परिचालन के लिए महत्त्वपूर्ण होती हैं और कई तरीके से उनके विनियामक के साथ सुविधापूर्ण संबंध होते हैं। इस तरह से यह वांछनीय है कि पर्याप्त रूप से विभिन्नता लिये ऐसे स्वामित्व की ओर बढ़ा जाए जहां पहले चरण में चुकता पूंजी के 10.0 प्रतिशत से अधिक और बाद में 5.0 प्रतिशत से अधिक स्वामित्व किसी अकेली इकाई का न हो।

(ठ) ऋण वसूली ट्रिब्यूनलों में प्रगति

गवर्नर महोदय ने उल्लेख किया कि ऋण वसूली ट्रिब्यूनलों के कामकाज़ पर आंतरिक समीक्षा के आधार पर और इस संबंध में और अधिक सुधारों पर विचार करने के उद्देश्यों से रिज़र्व बैंक ने सरकार से एक कार्यदल गठित करने का अनुरोध किया है।

(ड) अपने ग्राहक को जानिये तथा ग्राहक संबंध की गोपनीयता

अपने ग्राहक को जानिये सिद्धांत के संदर्भ में गवर्नर महोदय ने सूचित किया कि:

  • नये खाते खोलने के लिए बैंक अपने बोर्डों द्वारा अपनायी गयी अपने ग्राहक को जानिये नीति का पूरी तरह से पालन करें; वे इसके लागू करने को ऐसे मामलों में मौजूदा खाते तक सीमित करें जहां ऋण/नामे लेनदेन 10 लाख रुपये से अधिक का है अथवा जहां पर बैंकों को किसी असामान्य लेनदेन की आशंका है।
  • बैंक न्यासों, मध्यस्थों से संबंधित सभी खातों अथवा ऐसे खातों के संबंध में जो आदेश अथवा मुख्तारनामा के ज़रिए चलाये जाते हैं, अपने ग्राहक को जानिये नीति को लागू करें। अपने ग्राहक को जानिये क्रियाविधि स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप लागू की जाए और दिसंबर 2004 तक पूरा कर लिया जाए।

बैंकों को सूचित किया गया है कि अपने ग्राहक को जानिये प्रयोजनों के लिए उनके द्वारा गोपनीय आधार पर जुटायी गयी जानकारी किसी अन्य प्रयोजन, उदाहरण के लिए उत्पादों की क्रॉस बिक्री के लिए इस्तेमाल में नहीं लायी जानी चाहिए।

(ढ) गैर-एसएलआर प्रतिभूतियों में बैंकों में निवेश

गवर्नर महोदय ने कहा कि पहली जनवरी 2005 से शुरू करते हुए केवल ऐसे बैंकों, जिनके गैर-सूचीबद्ध गैर-एसएलआर प्रतिभूतियों में निवेश विवेकशील सीमाओं के भीतर है, को ही विवेकशील सीमाओं तक इस तरह की प्रतिभूतियों में नये निवेश करने की अनुमति दी जाएगी।

(त) सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सतर्कता प्रक्रियाओं को तर्कसंगत बनाना

गवर्नर महोदय ने संकेत दिया कि केंद्रीय सतर्कता आयोग ने निर्णय लिया है कि केवल ऐसे सतर्कता मामले जिनमें स्केल ङ के ऊपर वे अधिकारी शामिल हैं, ही आयोग को सूचना के लिए भेजे जाने की ज़रूरत है। स्केल घ्ङ या उससे नीचे के स्तर के अधिकारियों की संलग्नता वाले सतर्कता मामले बैंकों द्वारा खुद ही निपटा लिये जाएं ताकि मामलों को तेज़ी से निपटाया जा सके। संशोधित व्यवस्थाओं से यह उम्मीद की जाती है कि इससे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के स्टाफ को अपनी ड्यूटी सामान्य वाणिज्यिक अधिनिर्णय के अनुरूप लेने के लिए सही परिवेश मिल सकेगा।

(थ) वित्तीय समूह संस्थाओं पर कार्यदल

गवर्नर महोदय ने संकेत दिया कि अंतर एजेंसी कार्यदल जिसका नाम बदल कर वित्तीय समूह संस्थाओं पर कार्यदल कर दिया गया है, ने वित्तीय समूह संस्थाओं का पता लगाने के लिए मानंदड, अंतर समूह लेनदेनों तथा इस तरह की समूह संस्थाओं के बीच एक्सपोज़रों का पता लगाने के लिए तथा समूह संस्थाओं के संबंध में सूचना के अंतर विनियामक आदान-प्रदान के लिए तंत्र विकसित करने के लिए मानदंड सुझाये हैं।

(द) त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई

गवर्नर महोदय ने उल्लेख किया कि योजना की वित्तीय परिवेक्षण बोड़ द्वारा समीक्षा की गयी थी और यह निर्णय लिया गया कि त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई के ढांचे को जारी रखा जाए।

(ध) जोखिम आधारित पर्यवेक्षण

गवर्नर महोदय ने उल्लेख किया कि यह निर्णय लिया गया है कि जोखिम आधारित पर्यवेक्षण को कुछ आशोधनों के साथ वर्ष 2004-05 के दौरान 15 और बैंकों तक बढ़ाया जाए।

(ण) समेकित पर्यवेक्षण

गवर्नर महोदय ने पाया कि बैंकों को जोखिमों के पर्यवेक्षी आकलन की सुविधा के लिए समेकित विवेकशील रिपोर्टें तैयार करने और प्रस्तुत करने और साथ ही साथ समूह आधार पर कुछेक विवेकशील विनियमों का पालन करने के लिए सूचित किया गया था। इन रिपोर्टों की रिज़र्व बैंक द्वारा छमाही आधार पर समीक्षा की जा रही है।

(प) मैक्रो विवेकशील संकेतक

गवर्नर महोदय ने कहा कि मैक्रो विवेकशील समीक्षाओं पर खास-खास लक्षण वार्षिक आधार पर प्रकाशित किये जायेंगे।

शहरी सहकारी बैंव

गवर्नर महोदय ने कहा कि भारतीय रिज़र्व बैंक का प्रयास शहरी सहकारी बैंकिंग क्षेत्र को मजबूती से विकसित करना रहा है और उन्होंने निम्नलिखित उपायों का प्रस्ताव किया:

(क) शहरी सहकारी बैंकों को लाइसेंस

गवर्नर महोदय ने शहरी सहकारी बैंकों को मजबूत, स्वस्थ और स्थिर बनाने के लिए प्रस्ताव किये कि :

  • नये लाइसेंस जारी करने पर विचार शहरी सहकारी बैंकों पर व्यापक नीति के बाद ही किया जाए और इसमें क्षेत्र के बारे में यथोचित विधिक तथा विनियामक ढांचा तैयार किया जाए और शहरी सहकारी बैंकिंग क्षेत्र के वित्तीय स्वास्थ्य सुधार के लिए शीघ्र ही एक नीति तैयार की जाए।

(ख) शहरी सहकारी बैंकों के पुनर्गठन की योजना

शहरी सहकारी बैंकों के पुनर्गठन की योजना के कार्यान्वयन में हुई प्रगति की समीक्षा करने पर पाया गया कि निधियां डालने और अनर्जक आस्तियों की वसूली में योजना के कुछ शर्तों का अनुपालन नहीं किया गया। इस अनुभव को देखते हुए गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव दिया:

  • पुनर्गठन के लिए केवल उन्हीं योजनाओं पर विचार किया जाए जिनमें स्टेक धारक अर्थात् अंशधारक/सहकारी संस्थाएं/सरकार यथानिर्धारित पूंजी पर्याप्तता मानदंडों की प्राप्ति तक पुनर्पूंजीकरण कर सकते हों जिसमें निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम द्वारा निपटाए गये दावों से प्राप्त चलनिधि शामिल न हों और निर्धारित समय-सीमा के भीतर ही सहनीय सीमा के स्तर पर अनर्जक आस्तियों के स्तर को कम करने के लिए स्पष्ट योजना तैयार की जाए।

विकास वित्त संस्थाओं पर कार्यदल

गवर्नर महोदय ने कहा कि मीयादी उधार देने वाली संस्थाओं और पुनर्वित्त संस्थाओं से जुड़े नियामक और पर्यवेक्षी मुद्दों और उन्हें संसाधनों के प्रवाह में सुधार से जुड़े मुद्दों पर चर्चा के लिए गठित कार्यदल (अध्यक्ष : एन. शिवदासन) ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है जिसे पब्लिक डोमेन पर रखा जायेगा।

शीर्ष पुनर्वित्त संस्थाओं की विनियामक और पर्यवेक्षी गतिविधियों की समीक्षा

पुनर्वित्त संस्थाओं (आरएपआई) के विनियामक और पर्यवेक्षी ढांचे में प्रत्येक गतिविधि के लिए विशिष्ट लक्षण बनाए रखे हुए उनमें निरंतरता और आवश्यक तालमेल बनाये रखने के लिए गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव दिया :

  • आरएपआइ द्वारा नियोजित विनियामक और पर्यवेक्षी पद्धति के क्षमता को मूल्यांकन के लिए एक तकनीकी दल का गठन हो जिसमें भारतीय रिज़र्व बैंक के प्रतिनिधियों, शीर्ष पुनर्वित्त संस्थाओं और बाहरी विशेषज्ञ शामिल हों, इसमें कोई अंतर हो तो उसकी पहचान की जाए और इसके ढांचे को मजबूत बनाने के लिए सिपारिशें दी जाएं। यह समूह अपनी रिपोर्ट चार माह के भीतर प्रस्तुत कर दे।

तकनीकी उन्नयन

कतिपय विशिष्ट क्षेत्रों और तकनीकी उन्नयन संबंधी अन्य उपायों की प्रगति और स्थिति संबंधी विवरण गवर्नर महोदय द्वारा दिया गया।

(क) इलेक्ट्रानिक समाशोधन सेवा और इलेक्ट्रानिक निधि अंतरण - सेवा प्रभारों में छूट

इलेक्ट्रानिक निधि अंतरण (ई.एप.टी) को प्रोन्नत करने और इलेक्ट्रानिक समाशोधन सेवा (ई.सी.एस.) को प्रोत्साहित करने के दृष्टिकोण से गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव दिया कि 31 मार्च 2006 तक ईसीएस और ईएपटी, दोनों संव्यवहारों के लिए बैंकों पर सेवा प्रभार में छूट दी जाये।

(ख) भुगतान और निपटान प्रणालियों के लिए बोड़

गवर्नर महोदय ने भुगतान और निपटान प्रणालियों (वीपीएसएस) के लिए बोड़ के गठन की सूचना दी। यह केंद्रीय बोड़ की समिति के रूप में कार्य करेगा।

(ग) वास्तविक समय सकल भुगतान प्रणाली (आरटीजीएस)

26 मार्च 2004 को प्रारंभ हुई लाइव आरटीजीएस प्रणाली अब तक 25 बैंकों में ठीक ठाक काम कर रही है। गवर्नर महोदय ने संभावना व्यक्त की कि जून 2004 तक अधिकतम वाणिज्यिक बैंक आरटीजीएस प्रणाली से जुड़ जायेंगे।

(घ) केंद्रीय डाटाबेस प्रबंधन प्रणाली पर विशेषज्ञ दल

गवर्नर महोदय ने सूचित किया कि केंद्रीय डेटा-बेस प्रबंधन प्रणाली (सी.डी.बी.एम.एस.एस.) के प्रकाशित करने योग्य खण्ड के पब्लिक डोमेन पर रखने की प्रक्रिया के मार्गदर्शन के लिए एक विशेष दल (अध्यक्ष : प्रोपेसर ए.वैद्यनाधन) का गठन किया जायेगा। इससे शोधार्थियों, विश्लेषण कर्ताओं और अन्य उपयोगकर्ताओं को मदद मिल सकेगी।

(ङ) पूंजी बाजार के लिए इलेक्ट्रानिक निधि अंतरण पर कार्य दल

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा इलेक्ट्रानिक निधि अंतरण पर सेबी, स्टाक एक्स्चेंज, राष्ट्रीय प्रतिभूति निक्षेपागार लिमिटेड और आईआरडीए के प्रतिनिधियों को लेते हुए एक कार्यदल का गठन कर लिया है। गवर्नर महोदय ने पाया कि दल मौजूदा ई.एप.टी. सुविधाओं का मूल्यांकन करेगा और पूंजी बाजार के लिए ऊ+1 निपटान सुविधा की व्यापकता को बढ़ाने के लिए सिपारिशें देगा।

मुद्रा प्रबंधनप्रणाली की गतिविधियां

नवंबर 2003 की मध्यावधि समीक्षा के बाद महत्त्वपूर्ण गतिविधि यह हुई कि सिक्कों की मांग में कमी आयी है। जिसके परिणाम स्वरूप सिक्कों की वापसी शुरू हो गयी। भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने सभी नकदी विभागों में सभी लेनदेनों के लिए एकल खिड़की सुविधाओं की शुरूआत कर दी है। गवर्नर महोदय ने कहा कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने इसके काउंटरों पर प्राप्त सभी जप्त नोटों के लिए रसीद जारी करना प्रारंभ कर दिया है। बैंकों को भी ऐसा करने के लिए सूचित किया गया है।

सरकारी कारोबार का संचालन

ऑन-लाइन टैक्स एकाउंटिंग प्रणाली

भारतीय रिज़र्व बैंक ने ऑन-लाइन टैक्स एकाउंटिंग प्रणाली श्ुरू करने के लिए एक उच्चाधिकार समिति गठित की थी। ऑन-लाइन टैक्स एकाउंटिंग प्रणाली जून 2004 में शुरू हो जाने की संभावना है। साथ ही केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोड़ (सीबीडीटी) प्रारंभ में 12 शहरों के अलग-अलग वेतन प्राप्त करने वाले करदाताओं की 25,000 रुपये तक की कर वापसी के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने इलेक्ट्रॉनिक समाशोधन सेवा की सुविधा प्राप्त करेगा। यह सुविधा यथासमय अन्य शहरों के लिए भी उपलब्ध करायी जायेगी।

लोक सेवाओं पर क्रियाविधि तथा निष्पादकता लेखा-परीक्षा पर स्थायी समिति (अध्यक्ष : श्री एस.एस.तारापोर) का गठन लोक सेवाओं पर क्रियाविधि तथा निष्पादकता पर लेखा-परीक्षण और भारतीय रिज़र्व बैंक में नियामक निकासी (क्लिअरेंस) और बैंकों द्वारा गठित ग्राहक सेवाओं पर तदर्थ समितियों का समन्वयन करने के लिए किया गया। गवर्नर महोदय ने नोट किया कि समिति ने चार रिपोर्टें प्रस्तुत की हैं, जिनमें इस बात पर बल दिया गया है कि भारतीय रिज़र्व बैंक को आम आदमी को अधिकार प्रदान करने वाले और विधिमान्य लेनदेन करने में उसके अधिकारों की रक्षा करने वाले मददगार के रूप में उभरकर सामने आना होगा।

(क) विदेशी मुद्रा लेनदेनों पर रिपोर्ट

भारतीय रिज़र्व बैंक अलग-अलग व्यक्तियों से संबद्ध विदेशी मुद्रा नियंत्रण मामलों पर समिति की सिपॉरिशों की जांच की और कुछ सुझावों का कार्यान्वयन किया गया है।

(ख) अलग-अलग व्यक्तियों से संबद्ध सरकारी लेनदेन

अलग-अलग व्यक्तियों से संबद्ध सरकारी लेनदेनों पर समिति की सिपॉरिशों के अनुसार, भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने स्वयं की और एजेन्सी बैंकों द्वारा प्रदान की जानेवाली सेवाओं की कमियां दूर करने के लिए अनेक कदम उठाये हैं। गवर्नर महोदय ने नोट किया कि बैंकों को ग्राहक सेवाएं बढ़ाने की आवश्यकता मज़बूत बनाने के लिए आवश्यक अनुदेश जारी किये गये है।

(ग) बैंकिंग परिचालन

अलग-अलग व्यक्तियों से संबद्ध जमा खातों और अन्य सुविधाओं से संबंधित बैंकिंग परिचालनों पर समिति की सिपॉरिशों के आधार पर निम्नलिखित उपायों को लागू किया गया है : (व) चेकों के लिए ड्रॉप बॉक्स सुविधा और नियमित जमा काउंटरों के माध्यम से चेकों की प्राप्ति-सूचना की सुविधा (वव) अनुरोध पर काउंटरों पर चेक बुक का वितरण (ववव) मासिक अंतरालों पर लेखों का वितरण जारी करना, (वख्) विद्यमान खाताधारकों को बचत खाते के न्यूनतम शेष राशियों में किसी प्रकार के परिवर्तन तथा उसे चालू न रखने के प्रभारों के बारे में न्यूनतम एक माह पूर्व सूचित करना और (ख्) निवासी व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप में अनिवासी साधारण (एनआरओ) खाते खोलने के अनुरोध को स्वीकार करना।

जमाकर्ताओं की डिसएनप्रेंचाइजमेंट समिति के प्रेक्षणों तथा बैंकों के परिचालनात्मक प्रक्रिया, जिसके कारण मफ्तक जमाकर्ताओं के दावों को निपटाने में रुकावटें आती हैं, की संपूर्ण जाँच कराने के लिए रिज़र्व बैंक सहमत हैं।

घ) मुद्रा प्रबंध

समिति ने अपनी मुद्रा प्रबंध रिपोर्ट में: व्यक्तियों (गैर कारोबारी) से संबंधित सेवाएँ, गुणवत्ता के साथ ग्राहक सेवाएँ और बढ़ाने के लिए रिज़र्व बैंक तथा अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की भूमिका को और अधिक भविष्योन्मुखी/प्रोएक्टिव बनाने की संस्तुति की है।

ङ) तदर्थ समितियाँ

बैंक द्वारा उपलब्ध करायी जा रही लोक सेवाओं के संबंध में कार्यविधि तथा निष्पादन लेखा परीक्षा प्रारंभ करने के प्रयोजनार्थ बैंकों द्वारा गठित तदर्थ समितियों की प्रगति तथा कार्यविधि और कार्य व्यवहार की पुन:डिज़ाइनिंग के लिए उचित कार्रवाई करने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए इन तदर्थ समितियों की अवधि छह महीनों के लिए बढ़ा दी गई है। गर्वनर महोदय ने आम लोगों को सेवा उपलब्ध कराने को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की है।

जमा बीमा

गर्वनर महोदय ने नोट किया कि ड्राफ्ट बैंकिंग जमा बीमा निगम विधेयक (बीडीआइसी) 2003 में सरकार से प्राप्त सुझावों के आधार पर सुधार किये जा रहे हैं। निगम की ऋण गारंटी योजना अब बंद कर दी गयी है क्योंकि ऋण संस्थायें आहिस्ता- आहिस्ता इस योजना से बाहर हो चुकी हैं।

अंतर्राष्ट्रीय वित्त मानक तथा संब्तिाएं

अंतर्राष्ट्रीय वित्त मानक तथा संब्तिाओं पर परामर्शदात्री/तकनीकी समूहों की संस्तुतियाँ रिज़र्व बैंक, सेबी, आइआरडीए द्वारा उनके संबंधित क्षेत्रों में अपनायी जा रही हैं। इस दिशा में अब तक हुई प्रगति की समीक्षा की गई है जिन क्षेत्रों में आगे और कार्रवाई करने की आवश्यकता है उन क्षेत्रों की पहचान की जा सके। गर्वनर महोदय ने जताया कि परार्मशदाताओं का एक पैनल समीक्षा पर विचार कर रहा है और उम्मीद है कि इसे दो महीनों के भीतर पब्लिक डोमेन पर डाला जाएगा।

मध्यावधि पुनरीक्षा

पहले की ही तरह वार्षिक नीति वक्तव्य की समीक्षा अक्तूबर-नवम्बर 2004 में की जाएगी।

सूरज प्रकाश

प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2003-2004/1341

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