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रिज़र्व बैंक के गवर्नर द्वारा वर्ष 2001-02 की मौद्रिक और ऋण नीति की मध्यावधि समीक्षा कीघोषणा

रिज़र्व बैंक के गवर्नर द्वारा वर्ष 2001-02 कीमौद्रिक और ऋण नीति की मध्यावधि समीक्षा की घोषणा

22 अक्तूबर 2001

मुख्य-मुख्य बातें

  • रिज़र्व बैंक ने बैंक दर को 0.50 प्रतिशत कम किया है जिससे यह 7.0 प्रतिशत से घट कर 6.50 प्रतिशत पर आ गई है। मई 1973 से अब तक की यह सबसे कम दर है।
  • रिज़र्व बैंक ने सीआरआर को 2.0 प्रतिशत कम किया है और यह 7.50 प्रतिशत से घट कर 5.50 प्रतिशत हो गयी है। इससे बैंकों को 6000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त चलनिधि प्राप्त होगी। रिज़र्व बैंक ने सीआरआर पर उपलब्ध अधिकांश रियायतों को भी समाप्त कर दिया है।
  • पात्र सीआरआर शेष की राशियों पर दी जाने वाली ब्याज दर को और बढ़ाकर बैंक दर के समतुल्य अर्थात 6.50 प्रतिशत कर दिया गया है (21 अप्रैल 2001 तक यह दर 6.0 प्रतिशत और उससे पहले 4.0 प्रतिशत थी)।
  • मौद्रिक नीति की अवस्थिति को वर्ष की प्रथम छमाही के अनुसार बनाये रखा जाएगा।
  • विश्वव्यापी अनिश्चितताओं को देखते हुए मौद्रिक प्रबंध के लिए वर्ष 2001-2002 के लिए 5.0 प्रतिशत से 6.0 प्रतिशत के दायरे के बीच की वृद्धि दर को तर्क संगत समझा गया है।
  • वित्तीय प्रणाली को सुदृढ़ बनाने के लिए उपाय जारी रहेंगे।
  • क्रेडिट डिलीवरी के लिए रिज़र्व बैंक "ऋण प्रणाली" में बैंकों को परिचालनात्मक लोचशीलता प्रदान करेगा।
  • बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा गैर एसएलआर निवेशाें पर पैनी नज़र रखने के लिए रिज़र्व बैंक ने कदम उठाये।
  • रिज़र्व बैंक चालू खाता सुविधा को औचित्यपूर्ण बनाया जा रहा है।

वर्ष 2001-2002 के लिए मौद्रिक तथा ऋण नीति की मध्यावधि समीक्षा

गवर्नर डॉ. विमल जालान ने प्रमुख वाणिज्य बैंकों के मुख्य कार्यपालकों की बैठक में वर्ष 2001-2002 के लिए मौद्रिक और ऋण नीति की मध्यावधि समीक्षा प्रस्तुत की। घरेलू और बाह्य गतिविधियों की समीक्षा के बाद गवर्नर ने कहा कि अनेक अनिश्चितताओं के बावजूद अर्थव्यवस्था के बुनियादी तत्व जोकि मामूली मुद्रास्फीति में प्रतिबिंबित हुए हैं, स्थिर और निम्न ब्याज दरें, उच्च विदेशी मुद्रा प्रारक्षित निधियां, बड़े पैमाने पर अनाज का स्टॉक और सूचना प्रौद्योगिकी से संबद्ध उद्योगों का प्रतियोगात्मक लाभ प्रभावशाली है। उन्होंने आगे कहा कि मौजूदा संकेतकों के अनुसार प्रणाली की चलनिधि ऋण के लिए सभी उचित आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगी। उन्होंने कहा कि जब तक वातावरण में अनपेक्षित रूप से बदलाव नहीं आता है, भारतीय रिज़र्व बैंक चालू ब्याज दर परिवेश बनाये रखने का प्रयास करेगा।

 

  1. मैक्रो इकॉनॉमिक तथा मौद्रिक गतिविधियों की मध्यावधि समीक्षा

घरेलू गतिविधियां

घरेलू गतिविधियों के मामले में भारत के मौसम विभाग और कृषि मंत्रालय से प्राप्त सूचना का उल्लेख करते हुए गवर्नर ने कहा कि वर्ष 2001-2002 की कृषि संबंधी वृद्धि पिछले वर्ष से लक्षणीय रूप से उच्चतर होने की संभावना है। दूसरी ओर चालू वर्ष की पहली छमाही में औद्योगिक क्षेत्र और निर्यात वृद्धि में पुनरुत्थान की स्थिति अनुकूल नहीं थी। चालू वर्ष के दौरान कृषि में संभाव्य वृद्धि दर का विचार करते हुए, औद्योगिक और निर्यात क्षेत्रों की प्रतिकूल प्रवृत्ति, वैश्विक अनिश्चितता को ध्यान में रखते हुए गवर्नर ने बताया कि पूरे वर्ष के लिए संशोधित वृद्धि दर का एक निश्चित अनुमान लगाना कठिन है। तथापि, विभिन्न घटकों का विचार करके तथा विश्व के अर्थव्यवस्था परिवेश में इस चरण पर कोई गंभीर विघटन न हो, उन्हें लगता है कि ऋण और मौद्रिक प्रबंधन के प्रयोजन के लिए चालू वर्ष में 5.0 से 6.0 प्रतिशत वृद्धि दर का अनुमान यथोचित होगा। उन्होंने यह भी कहा कि चालू वर्ष में इस तरह की वृद्धि दर विश्व के बहुत ही कम देश दर्शायेंगे।

गवर्नर ने कहा कि वर्ष के लिए मुद्रास्फीति दृष्टिकोण उत्साहवर्धक प्रतीत हो रहा है क्योंकि कृषि वृद्धि के आसार सकारात्मक हैं और अनाज के स्टॉक बहुत अधिक हैं। एक वर्ष पहले के 7.4 प्रतिशत की तुलना में वार्षिक मुद्रास्फीति दर 3.2 प्रतिशत है।

गवर्नर ने सूचित किया कि चालू वित्तीय वर्ष में मुद्रा आपूर्ति और अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की कुल जमाराशियां एक वर्ष पूर्व की वृद्धि दरों से थोड़ी सी उच्चतर पायी गयी। उन्होंने यह कहा कि बैंक जमाराशियों के सापेक्ष आकर्षण में सुधार हुआ है और यदि जमाराशि में वृद्धि का सिलसिला जारी रहेगा तो संसाधनों के अभिनियोजन में विशेषत: ऋण और निवेश मांग की सुस्ती के संदर्भ में बैंकिंग प्रणाली के लिए एक आह्वान करेगा। गवर्नर ने यह भी कहा कि सितंबर के अंत में और अक्तूबर के प्रारंभ में वाणिज्य क्षेत्र के लिए बैंकिंग प्रणाली से अनाज से इतर बैंक ऋण और अन्य संसाधन प्रवाहों में कुछ वृद्धि दिखायी दी। प्रारक्षित नकदी निधि विस्तार में अंशदान करनेवाले स्रोतों पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि यद्यपि केंद्र सरकार के पास जमा होनेवाले भारतीय रिज़र्व बैंक के निवल ऋण सन्तुलित वृद्धि दर्शाते हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक की निवल विदेशी मुद्रा आस्तियों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। उन्होंने आशा व्यक्त की कि वर्ष 2001-02 के दौरान प्रारक्षित मुद्रा विस्तार धीमा रहेगा।

केंद्र सरकार के उधार कार्यक्रम की समीक्षा करते हुए गवर्नर ने उल्लेख किया कि सरकार का बाज़ार उधार कार्यक्रम परिपक्वता ढांचे को लंबा खींचकर और न्यूनतर मूल्य पर आयोजित किया जाना था। उधार की भारित औसत परिपक्वता अवधि एक वर्ष पहले के 10.6 वर्षों की तुलना में 13.9 वर्ष थी और भारित प्रतिफल 9.96 प्रतिशत लगभग 100 आधार अंकों से न्यूनतर था। भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपनी ऋण प्रबंधन नीति में, नीलामी मामलों को बाज़ार स्थितियों से संगत बनाये रखते हुए दिनांकित प्रतिभूतियों के निजी नियोजन की स्वीकृति के साथ जोड़ना जारी रखा।

केंद्र का अगस्त 2001 तक का राजकोषीय घाटा उच्चतर था और इसमें करीब आधा हिस्सा चालू वर्ष के लिए बजट अनुमानों का था। वर्ष की पहली छमाही के अधिकांश हिस्से में रिज़र्व बैंक की निवल विदेशी मुद्रा आस्तियों की अनवरत वृद्धि ने धीमी वास्तविक आर्थिक गतिविधि के साथ मिलकर अत्यधिक चलनिधि की स्थिति बना दी। वाणिज्य बैंकों ने पहले ही, निर्धारित सांविधिक चलनिधि अनुपात से बहुत अधिक, 1,29,450 करोड़ रुपये की सीमा तक सरकारी प्रतिभूतियां धारित की हैं जो एनडीटीएल के 36.3 प्रतिशत से सुसंगत है।

उन्होंने कहा कि पिछले दो वर्षों में समग्र ब्याज दर ढांचे में धीरे-धीरे गिरावट आयी और उसका-ह्रासमान प्रवृत्ति दिखाना जारी रहा। अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के मूल उधार दरों में ह्रास हुआ। चूंकि बैंकों को निर्यातकों और उनके मुख्य ग्राहकों को उप-मूल उधार दरों पर उधार देने की अनुमति दी गयी है, ऐसी कंपनियों के लिए बैंक उधारों की लागत और कम हो गयी है। सरकारी क्षेत्र के बैंकों के दीर्घावधि घरेलू जमाराशियों की दरें मार्च 2001 के 10.50 प्रतिशत से कम होकर अक्तूबर 2001 में 9.25 प्रतिशत हुईं।

जैसा कि अप्रैल 2001 के वार्षिक नीति विवरण में घोषित किया गया, राजकोषीय वर्ष की पहली छमाही के दौरान, रिज़र्व बैंक ने अपने पुनर्खरीद परिचालनों के माध्यम से यथोचित चलनिधि की व्यवस्था करना जारी रखा। परिपक्वताओं तथा विभिन्न लिखतों के लिए ब्याज दर परिवेश काफी नरम रहा और अप्रैल और अक्तूबर 2001 के मध्य में 10 वर्षीय सरकारी प्रतिभूतियों पर प्रतिफल में करीब 100 आधार अंकों से गिरावट आयी।

बाह्य गतिविधियां

गवर्नर महोदय ने विश्व अर्थव्यवस्था में आयी मंदी तथा 11 सितंबर की घटना के दुष्परिणाम पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि, विश्व अर्थव्यवस्था में विकास और सुधार के परिदृश्य अत्यंत ही अस्थिर बने हुए है । प्रमुख औद्योगिक देशों के साथ-साथ उभरती अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि का परिदृश्य कारण बुरी तरह प्रतिकूल रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि एशिया के उभरते बाजॉरों में विपरीत प्रवृत्ति पूर्वानुमानित अवधि की अपेक्षा लंबी अवधि तक जारी रहेगी। अलबत्ता, भारत और चीन कम प्रभावित हुए। सकल देशी उत्पाद में व्यापार के निम्नतर हिस्से और सेवा उन्मुखी तथा किफायती सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के कारण भारत विश्वव्यापी मंदी से अपेक्षाकृत अलग थलग बना रहा।

11 सितंबर की घटनाओं के परिणामस्वरूप विदेशी मुद्रा बाज़ार अत्यंत अस्थिर हो गया और पहले दस दिनों में 1.3 प्रतिशत का मूल्यह्रास हुआ और इससे प्रतिभूति बाज़ार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। वित्तीय बाजॉरों में और विशेष रूप से मुद्रा तथा सरकारी प्रतिभूति बाज़ार को स्थिर बनाने के उद्देश्य से रिज़र्व बैंक द्वारा 15 से 25 सितंबर 2001 तक कई उपायों की घोषणा के साथ स्थिरता हासिल की गयी। इस बात का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि औद्योगिक उत्पादन में कोई स्पष्ट वृद्धि परिलक्षित नहीं हुई है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि कुछ समय बाद जब वैश्विक बाजॉरों में पुन: गति आएगी, उसका भारत में भी निवेश की स्थिति पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा ।

इस अवधि के दौरान ने बाह्य और घरेलू अनिश्चितताओं की अवधियों में बाह्य क्षेत्र के प्रबंधन में भारत के अनुभव को रेखांकित करते हुए उन्होंने उल्लेख किया कि, हाल के अनुभव ने एक और बार इस बात को रेखांकित कर दिया है कि निरंतर सतर्क रहना आवश्यक है और अप्रत्याशित झटकों और बाज़ार अनिश्चितताओं के प्रभाव को आत्मसात करने के लिए पर्याप्त रूप से सुरक्षा उपाय करना महत्त्वपूर्ण है। इस संदर्भ में, गवर्नर महोदय ने उल्लेख किया कि अंतर्निहित मांग और आपूर्ति स्थितियों द्वारा एक सुव्यवस्थित रूप में विदेशी मुद्रा दर के उतार-चढ़ाव को निर्धारित करते हुए किसी निश्चित दर संबंधी लक्ष्य के बिना अस्थिरता के प्रबंधन पर बल देने वाली भारत की विदेशी मुद्रा दर नीति समय की कसौटी पर खरी उतरी है। भारतीय रिजॅर्व बैंक विदेशी मुद्रा बाज़ार के संबंध में पहले जैसी सतर्कता, सावधानी और लचीलेपन का दृष्टिकोण अपनाता रहेगा; पहले जैसा ही, देशी और विदेशी वित्तीय बाजॉरों की गतिविधियों की बारीक निगरानी और उचित मौद्रिक, विनियामक तथा समय-समय पर यथापेक्षित उपायों से अपने बाजार परिचालनों को सावधानी के साथ समन्वित करता रहेगा।

भारत की आरक्षित विदेशी मुद्रा में तेजी से वृद्धि हुई है और यह 13 अक्तूबर 2000 के 35 बिलियन अमरीकी डालर से बढ़कर 12 अक्तूबर, 2001 से 10 बिलियन अमरीकी डालर की तीव्र वृद्धि के साथ बढ़कर 45.1 बिलियन अमरीकी डालर हो गई। पिछले कुछ वर्षों में आरक्षित विदेशी मुद्रा के पर्याप्त स्तर के निर्माण के लिए भारत निरंतर प्रयास करता रहा है जिसकी झलक मौजूदा गतिविधियों में मिलती है। हाल के वर्षों में भारत की आरक्षित विदेशी मुद्रा के प्रबंध के समग्र दृष्टिकोण में भुगतान शेष का बदलता संयोजन दृष्टिगोचर होता है और इसमें विभिन्न प्रकार के प्रवाहों तथा अन्य अपेक्षाओं के साथ जुड़े ‘चलनिधि जोखिम’ को भी प्रतिबिंबित करने का प्रयास किया गया है। इस प्रकार आरक्षित मुद्रा के प्रबंध की नीति के विवेक सम्मत निर्माण में अन्यान्य ज्ञात कारकों एवं अन्य आकस्मिकताओं का योगदान रहता है। गवर्नर महोदय ने इस बात का विश्वास व्यक्त किया कि वर्तमान में भारत की आरक्षित विदेशी मुद्रा की स्थिति अनुकूल है। तथापि, इतने से संतोष कर लेना काफी नहीं होगा। उन्होंने उल्लेख किया कि उतार-चढ़ाव को छोड़कर आगे आरक्षित निधि की मात्रा अर्थव्यवस्था में बाह्य क्षेत्र के शेयर और जोखिम समायोजित पूंजी प्रवाहों की वृद्धि की दर के अनुरूप हो। इससे हाल के वर्षों में और साथ ही पिछले वर्षों में देखी गई प्रतिकूल या अप्रत्याशित गतिविधियों के प्रति अधिक सुरक्षा प्राप्त होगी।

वैश्विक मंदी के कारण, चालू वर्ष के दौरान निर्यात की स्थिति अच्छी नहीं रही तथा आयात में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि पिछले वर्ष में 13.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। चालू वित्तीय वर्ष के पहले पांच महीनों में व्यापार में 4.6 बिलियन अमरीकी डालर का घाटा हुआ जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान हुए 3.7 बिलियन अमरीकी डालर के घाटे से अधिक है। वर्ष की शेष अवधि के दौरान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल के मूल्यों को लेकर कुछ अनिश्चय की स्थिति है। वर्तमान गणनाओं को देखें तो यह अपेक्षा की जाती है कि वर्ष 2001-2002 के दौरान चालू खाता घाटा सकल देशी उत्पाद के 2.0 प्रतिशत से भी कम रहेगा।

गवर्नर महोदय ने याद दिलाया कि वैश्विक अनिश्चितता के मौजूदा दौर में निर्यातकों को सहायता देने के प्रयासों के एक हिस्से के रूप में रिज़र्व बैंक ने रुपया निर्यात ऋण पर अधिकतम ब्याज दरों में 6 महीने की अवधि के लिए सभी स्तरों पर 1.0 प्रतिशत पॉइंट की कमी की सूचना दी थी। वायदा प्रीमियमों को हिसाब में लेते हुए रुपया निर्यात ऋण पर प्रभावी ब्याज लागत केवल 3.0-4.0 प्रतिशत ही आयेगी (वायदा प्रीमियम को 5.0 प्रतिशत पर मानते हुए) यह अंतर्राष्ट्रीय रूप से प्रतिस्पर्धात्मक दर है। इसी तरह निर्यातकों को यह छूट दी गयी है कि वे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मक दरों पर अपनी पसंद की मुद्रा में विदेशी मुद्रा ऋण ले सकते हैं।

इससे पूर्व निर्यातकों को उचित दर पर ऋण की समय पर सुपुर्दगी के लिए तथा क्रियाविधि संबंधी अड़चनों को हटाने के लिए कई उपायों की घोषणा की गयी थी। उन्होंने उल्लेख किया कि निर्यातकों की संतुष्टि के सर्वेक्षण का कार्य नैशनल कौन्सिल ऑफ एप्लाइड एकॉनोमिक रिसर्च, नई दिल्ली द्वारा शुरू गया है।

हाल ही की अवधि में अनिवासियों के लिए प्रेषणों, निवेशों जैसे वित्तीय लेनदेनों तथा बैंक खातों के रखरखाव के लिए क्रियाविधियों को काफी सरल बनाया गया है। कतिपय परिस्थितियों तथा एक छोटी सी निगेटिव सूची को छोड़कर अधिकांश गतिविधियों के लिए ऑटोमेटिक रूट के अंतर्गत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति दी गयी है। भारतीय कंपनियों को यथालागू क्षेत्रीय अधिकतम सीमा/सांविधिक अधिकतम सीमाओं तक विदेशी संस्थागत निवेशक निवेश सीमा बढ़ाने की अनुमति दी गयी है। एडीआर/जीडीआर बाज़ार में चलनिधि में सुधार लाने के लिए तथा विदेशों में एडीआर/जीडीआर बाज़ार में अपनी शेयरधारिता का विनिवेश करने के लिए भारतीय शेयर धारकों को अवसर देने के लिए कई उपाय किये गये हैं। विदेशी कंपनियों में अधिग्रहण करने अथवा संयुक्त तत्त्वावधान/पूर्णतया स्वामित्व वाली सहय्ाोगी कंपनियों में विदेशों में प्रत्यक्ष निवेश करने के लिए इच्छुक भारतीय कंपनियां अब कुछेक शर्तों के अधीन विदेशी मुद्रा के अतिरिक्त ब्लॉक आबंटन के साथ ऑटोमैटिक मार्ग के जरिए 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर वार्षिक आधार पर निवेश कर सकती हैं।

समय के साथ-साथ बाज़ार में अपने विदेशी मुद्रा ऋणों की सुरक्षा के लिए निगमों को पर्याप्त मात्रा में छूटें दी गयी हैं। अपने विदेशी मुद्रा जोखिमों की सुरक्षा के लिए निगमों को जो लिखतें उपलब्ध हैं उनके अंतर्गत वायदा विदेशी मुद्रा कवर, मुद्रा विकल्प, विदेशी मुद्रा-रुपया आदान-प्रदान, ऋण राशियों की सुरक्षा आदि शामिल है। बैंकों को अपने उच्चतम प्रबंधतंत्र से इस संबंध में आवश्यक नीतिगत अनुमोदन प्राप्त कर लेने के बाद अपने आस्ति-देयता पोर्टफोलिओ की सुरक्षा की भी अनुमति है।

यह पाया गया है कि कई बार निगमित विदेशी मुद्रा वचनबद्धताओं का बहुत बड़ा हिस्सा बाज़ार के उनके अनुमानों के आधार पर निगमों द्वारा अरक्षित ही बना रह जाता है और इससे अत्यधिक अनिश्चितता की परिस्थितियों में निगमों की समग्र वित्तीय स्थिति पर असर पड़ सकता है। अतएव, गवर्नर महोदय ने इच्छा व्यक्त की कि जिन बैंकों के इस तरह के निगमों में बहुत अधिक ऋण है वे इस तरह के बाहरी अरक्षित ऋणों की निगरानी के लिए प्रणाली विकसित करें।

रिज़र्व बैंक प्रलेखन अपेक्षाओं को कम करने के लिए और अनिवासी भारतीयों द्वारा तथा अन्यों द्वारा एवं विदेश में भारतीय निगमों/निकायों द्वारा भारत में उत्पादक निवेश के लिए अवसरों को और अधिक उदार बनाने के लिए क्रियाविधियों को सरल बनाने के अपने प्रयास जारी रखेगा। गवर्नर महोदय ने इन क्षेत्रों के विशेषज्ञों, निगमों तथा बाज़ार सहभागियों का ई-मेल के ज़रिए helpnri@rbi.org.in पर और सुझाव भेजने के लिए उनका स्वागत किया।

II. 2001-02 की दूसरी छमाही के लिए
मौद्रिक नीति का उद्देश्य

गवर्नर महोदय ने याद दिलाया कि अप्रैल 2001 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में यह कहा गया था कि सामान्य परिस्थितियों में घरेलू अथवा बाह्य क्षेत्रों में किसी विपरीत और अप्रत्याशित घटनाओं को छोड़कर, 2001-2002 के लिए मौद्रिक नीति का समग्र उद्देश्य होगा : ऋण में वृद्धि की पूर्ति के लिए पर्याप्त चलनिधि का प्रावधान और निवेश की मांग के पुनरुत्थान के लिए सहायता प्रदान करना, मध्यावधि में ब्याज दर संरचना को अधिकाधिक लचीलापन प्रदान करने के समग्र ढांचे के भीतर, परिस्थिति की आवश्यकता के अनुसार नरम रुख अपनाते हुए वर्तमान स्थिर ब्याज दर परिवेश को जारी रखना।

गवर्नर महोदय ने कहा कि वर्ष की पहली छमाही के दौरान, प्राथमिक तौर पर जब भी आवश्यकता हुई तब खुले बाजार परिचालनों के साथ संयुक्त रूप में चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत पुनर्खरीद (रेपो) और प्रति-पुनर्खरीद (रिवर्स रेपो) के लचीले परिचालन के माध्यम से मौद्रिक नीति के संचालन में बाजार में पर्याप्त चलनिधि बनाए रखना व्यवहार्य ही रहा। सरकार द्वारा बाजार उधार का उच्च स्तर के होते हुए भी, ब्याज दरों को और नरम रखते हुए, एक स्थिर ब्याज-दर परिवेश बनाए रखना भी संभव रहा।

बाजार की अल्पावधिक समाप्ति पर, औसत मांग मुद्रा अप्रैल के प्रारंभ के 8.6 प्रतिशत से त्वरित घटकर अक्तूबर 2001 के मध्य में 7.0 प्रतिशत रह गई। इस अवधि में एलएएफ रेपो दर भी 7.0 प्रतिशत से घटकर 6.5 प्रतिशत हुई। आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) 19 मई, 2001 से 50 आधार अंक कम करके 7.5 प्रतिशत कर दिया गया। इन परिचालनों की प्रतिकि्रया स्वरूप, अन्य मुद्रा बाजार साधनों में ब्याज दरों ने भी एक हा्रसमान प्रवृत्ति दर्शाई। बाजार की दीर्घावधिक समाप्ति पर 10-20 वर्ष के दायरे के सरकारी पत्र पर द्वितीयक बाजार की प्राप्तियाँ अप्रैल के 10.08-10.70 प्रतिशत से नरम होकर मध्य-अक्तूबर 2001 तक 9.12-9.92 प्रतिशत रह गई हैं।

1990 के बाद के दशक के मध्य से मुद्रास्फीति दर में गिरावट का सामयिक आपूर्ति और बाहरी आघातों के बावजूद मुद्रास्फीति संबंधी अनुमानों पर सकारात्मक प्रभाव रहा है। इसके कारण, राजकोषीय घाटे के उच्च स्तर और अन्य संरचनागत सख्ती के होने के बावजूद निरंतर आधार पर सामान्य ब्याज दरों को कम करना संभव हो पाया है। अभी तक तो जहां एक ओर मुद्रास्फीति के जोखिम अपेक्षाकृत कम हैं, वहीं दूसरी ओर प्रणाली में पहले ही उपलब्ध पर्याप्त चलनिधि के संदर्भ में वर्तमान में भारतीय रिजॅर्व बैंक अपने पास उपलब्ध विभिन्न साधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के साथ चलनिधि का सावधानीपूर्वक प्रबंधन जारी रखेगा।

गवर्नर महोदय ने कहा कि कई अनिश्चितताओं के बावजूद अर्थव्यवस्था के मूल तत्त्व अभी भी सुदृढ़ है, जैसा कि मामूली मुद्रास्फीति स्थिर तथा निम्न ब्याज दरें, विदेशी मुद्रा की उच्च प्रारक्षित निधियां, खाद्यान्नों के विपुल स्टॉक और सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित उद्योगों का प्रतिस्पर्धी लाभों, से प्रकट होता है। इस वर्ष के दौरान कृषिगत वृद्धि की संभावनाएं सकारात्मक बनी रहीं। वैश्विक और घरेलू मुद्रास्फीतिगत संभावना निरंतर सकारात्मक बनी रही है। अत:, गवर्नर महोदय ने कहा कि चालू वर्ष की शेष छमाही के लिए अप्रैल के वक्तव्य में घोषित मौद्रिक नीति का समग्र उद्देश्य जारी रखा जाए तथा यह सुनिश्चित किया जाए कि ऋण के लिए सभी न्यायोचित आवश्यकताओं की पूर्ति मूल्य-स्थिरता के अनुरूप की जाए। जब तक कि परिस्थितियों में अप्रत्याशित रूप से कोई परिवर्तन न हो, भारतीय रिजॅर्व बैंक वर्तमान ब्याज दर परिवेश को बनाए रखने के लिए भी प्रयास करेगा।

गवर्नर महोदय ने कहा कि, जहां तक भारतीय रिजॅर्व बैंक का संबंध है, बैंक दर प्रधान संकेतक साधन के रूप में बनी रहेगी और यह ब्याज दरों के सामान्य स्तर को संभव सीमा तक निदेशगत मार्गदर्शन प्रदान करेगी। एलएएफ दरें बैंक दर के इर्द-गिर्द एक लचीली परिसीमा में बनी रहेंगी, ताकि दैनंदिन चलनिधि प्रबंध और अल्पकालिक ब्याज दरों के संचालन के लिए वे अपेक्षाकृत अधिक सकि्रय परिचालन साधनों के रूप में रहें।

तथापि, गवर्नर महोदय ने सूचित किया कि एक ओर जहां मौद्रिक नीति के वर्तमान उद्देश्य को जारी रखने के लिए सभी प्रयास किए जाएंगे, वहीं दूसरी ओर यह सुनिश्चित करने के लिए कि बैंक और बाजार के सहभागी वर्तमान मौद्रिक और ब्याज दर परिवेश के प्रति अधिक संतोषजनक दृष्टिकोण न अपनाएं, इसके लिए दो सूत्र वाक्य रखे जाएँ। पहला, बैंक, प्राथमिक व्यापारी और अन्य बाज़ार सहभागियों को यह बहुत ही स्पष्ट रूप में ध्यान रखना चाहिए कि ब्याज दर वातावरण में अल्पावधि में बड़े नाटकीय तरीके से परिवर्तन हो सकता है। पिछले कुछ एक वर्ष के दौरान ब्याज दरों में आई पर्याप्त गिरावट से मध्यावधि और दीर्घावधि प्रतिभूतियों के धारकों को वसूल की गई और वसूली न की गई ब्याज दरों से भारी लाभ हुआ। यह बात बहुत ही महत्त्वपूर्ण है कि ये लाभ बेकार न जाए या चलनिधि बाजार कार्यकलापों के लिए इन्ाका उपयोग न किया जाए। दूसरे यह कि हमारी वित्तीय प्रणाली के कतिपय संरचनात्मक गुणों को देखते हुए यह स्वीकार करने की जरूरत है कि बैंकों और अन्य वित्तीय मध्यस्थों द्वारा ऋण दरों को और नरम बनाने की गुंजाइश सीमित ही है। अन्य घटकों के रूप में गवर्नर महोदय ने बताया :

  • बैंकों के सावधि जमा धारक सामान्यत: निश्चित आय समूहों से संबंधित हैं और वे मुद्रास्फीति की दीर्घावधि दर के अतिरिक्त युक्तिसंगत सामान्य ब्याज दर की अपेक्षा करते हैं। इससे बैंकों के जमा संग्रहण पर असर डाले बिना उनकी उधार दरों को और कम करने और मध्यावधिक वित्तीय बचतों की बढ़ोतरी को प्रभावित करने की उनकी क्षमता अवरुद्ध होती है।
  • सावधि जमाराशियों पर निश्चित ब्याज दरों को तरजीह देने के कारण बैंक अल्प समय में अपनी ऋण दरों को कम करने में अधिक सक्षम नहीं रहे।
  • सरकारी क्षेत्र के बैंकों के लिए, निधियों की औसत लागत 7.0 प्रतिशत से अधिक है इसके साथ ब्याजेतर परिचालनगत व्यय सामान्यत: कुल परिसंपत्तियों के 2.5 से 3.0 प्रतिशत है, इनसे निधियों के अपेक्षित अंतर-लागत पर दबाव की स्थिति बनी। अनर्जक परिसंपत्तियों के अपेक्षाकृत अधिक होने से उधार दरें और बढ़ी हैं।

यह आवश्यक है कि हमारे ब्याज दर विन्यास के लचीलेपन पर पड़ने वाली उक्त ढांचागत कठिनाइयों के प्रभाव को कम करने के लिए वर्तमान प्रयासों को जारी रखा जाए। हाल ही में, सरकार ने भविष्य निधि और राष्ट्रीय बचत योजनाओं-जैसी संविदागत बचतों पर विद्यमान ब्याज दरों को कम करने के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं। सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति (अध्यक्ष : डा. वाई. वी. रेड्डी) ने भी संविदागत बचतों के लिए एक अधिक स्थायी और लचीले ब्याज दर स्वरूप की सिफारिश की है। बैंकों के लिए यह बहुत अधिक वांछनीय है कि वे दीर्घावधि जमाराशियों के संदर्भ में यथाशीघ्र विविध ब्याज दर विन्यास बनाने की दिशा में कदम बढ़ाएं। चूंकि दोनों ही स्थितियों में ब्याज दरों में अंतर होगा, जो कारोबार चक्र और मुद्रास्फीति स्थिति पर आधारित है, अत: दीर्घावधि जमाराशियों पर विविध ब्याज दर से यह आवश्यक नहीं है कि एक निश्चित अवधि में जमाकर्ता द्वारा अर्जित औसत ब्याज दर कम हो जाए (विशेष रूप से निश्चित दर ढांचा की तुलना में जो कि पुरानी जमाराशियों के अधिक अनुकूल है जबकि नई जमाराशियों की ब्याज दर घट रही है और उसके ठीक विपरीत, जबकि दरें उलटी दिशा में चलती हैं)। इसके अतिरिक्त, बैंकों को अपनी उत्पादकता में सुधार लाने और उधार की मात्रा में वृद्धि करने के लिए अपनी परिचालनगत लागत को कम करने की दिशा में सर्वोत्तम प्रयास करने है।

III वित्तीय क्षेत्र के सुधार और मौद्रिक नीति उपाय

गवर्नर महोदय ने वित्तीय बाजॉरों के विभिन्न खण्डों की कार्यात्मकता में सुधार लाने के लिए विगत में बैंक द्वारा शुरू किए गए संरचनात्मक उपायों के सम्बन्ध में अब तक हुई प्रगति की संक्षिप्त समीक्षा करते हुए कुछ एक में संशोधन भी घोषित किए। उन्होंने कहा कि जहाँ तक संभव रहा है, प्रस्तावित परिवर्तनों के लिए विशेषज्ञों तथा बाज़ार के सहभागियों से व्यापक परामर्श किया गया और मीडिया तथा विशिष्ट जर्नलों में कार्यरत समीक्षकों के सुझावों को भी ध्यान में रखा गया है।

वित्तीय बाज़ार में नवीनतम गतिविधियां

गवर्नर महोदय ने कहा कि मार्च 2001 के बाद से इक्विटी बाज़ार की गतिविधियों और भारतीय रिज़र्व बैंक के निदेशों तथा सामान्य विवेकपूर्ण अपेक्षाओं के विपरीत कुछ बैंकों द्वारा चुनिंदा शेयर दलालों संस्थाओं को भारी मात्रा में मदद देने में लगे होने के कारण भारत के वित्तीय क्षेत्र की संभावित सुभेद्यता के प्रति चिन्ता उत्पन्न हुई है। इस प्रकार अस्थायी और सीमित चलनिधि सहायता उपायों के माध्यम से बैंकिंग क्षेत्र में और वित्तीय क्षेत्र के अन्य महत्त्वपूर्ण खण्डों में इक्विटी बाज़ार से आनेवाले इस ‘छूत’ के रोग को रोका जाए। खासकर मुद्रा और सरकारी प्रतिभूतियों के बाजॉरों को इससे अछूता ही रखा जाए। वित्तीय संस्था (इसका स्वामित्व सहकारी है, सरकारी या निजी - इन पर ध्यान दिए बिना) में आ रही कमजोरी की दशा में ‘नियामक सहनशीलता’ के दायरे को न्यूनतम करना होगा।

हाल ही के अनुभव से यह भी ज्ञात हुआ है कि देश में कुछ सहकारी बैंकों के गैर-जिम्मेदारीपूर्ण और अनैतिक हरकत से एक क्षेत्र विशेष के अलावा या सम्बद्ध राज्य तक को एक संक्रामक रोग लग जाता है, जिसका जमाकर्ताओं, छोटे सहकारी बैंकों पर घातक प्रभाव पड़ता है और व्यवस्था पर भरोसा नहीं रह जाता है। कमजोर बैंकों और सहकारी संस्थाओं की स्थानेतर निगरानी और निरीक्षण के उपाय शुरू किए जा चुके है। भारतीय रिज़र्व बैंक इस निगरानी और पर्यवेक्षण मशीनरी को और भी सुदृढ़ बनाने का प्रस्ताव करता है। वर्तमान समय में तीन दिशाओं और बहुस्तरीय संस्थागत प्रणाली (के केन्द्र, राज्य और भारतीय रिज़र्व बैंक सहित) से उत्पन्न पर्यवेक्षी कठिनाइयों को दूर करने के प्रयोजन से भारतीय रिज़र्व बैंक ने शहरी सहकारी बैंक के समूचे क्षेत्र के लिए शीर्षस्थ पर्यवेक्षी निकाय अलग से स्थापित करने का प्रस्ताव है।

गवर्नर महोदय ने कहा कि शहरी सहकारी बैंकों और उनके प्रतिनिधि संगठनों के साथ चल रहे सार्थक विचार-विमर्श का भारतीय रिज़र्व बैंक स्वागत करता है। यह विशिष्ट उपायों को सुधारने/संशोधित करने के लिए तैयार रहेगा। शर्त एक ही रहेगी कि सहकारी क्षेत्र में जनता की जमाराशियों की रक्षा के लिए पर्याप्त, व्यावहारिक और स्पष्ट कार्यप्रणाली प्रदान की जाए।

गवर्नर महोदय ने कहा कि हाल की घटनाओं से यह बात सामने आई है कि बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के बोड़, वाणिज्य बैंकिंग और वित्तीय संस्थाओं के कार्यों पर सूचित सतर्कतापूर्ण नज़र और पर्यवेक्षण रखें। भारतीय रिज़र्व बैंक का प्रस्ताव है कि चुनिंदा वाणिज्य बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के निदेशकों को मिलाकर एक परामर्शदाता समूह गठित किया जाए, जो यह सुझाव देगा कि बोर्डों की आंतरिक पर्यवेक्षी भूमिका को मजबूत बनाने के उपाय क्या हैं, जिन पर सरकार/भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विचार किया जाएगा।

घोषणा में निम्नलिखित मामलों/उपायों की भी चर्चा की गयी थी।

मौद्रिक उपाय

(क) बैंक दर

  • मैक्रो इकॉनॉमिक तथा मौद्रिक गतिविधियों की समीक्षा के आधार पर बैंक दर आज (अक्तूबर 22, 2001) को कारोबार की समाप्ति से प्रभावी करते हुए 7.0 प्रतिशत से 0.50 प्रतिशत घटाकर 6.50 प्रतिशत की जा रही है। इस स्तर पर यह दर मई 1973 के बाद सबसे कम है।

(ख) नकदी प्रारक्षित अनुपात - कटौती तथा युक्तिकरण

वर्तमान में सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी शुद्ध मांग और मीयादी देयताओं के 7.5 प्रतिशत की दर पर नकदी प्रारक्षित अनुपात भारतीय रिज़र्व बैंक के पास बनाये रखे। बैंकों के लिए 3.0 प्रतिशत की दर पर नकदी प्रारक्षित अनुपात बनाये रखने की सांविधिक न्यूनतम अपेक्षा है फिर भी बैंकों पर समय-समय पर अतिरिक्त चलनिधि सांविधिक अनुपात लगाया जाता है। साथ ही समय के साथ साथ नकदी सांविधिक अनुपात अपेक्षाओं के लिए देयताओं की कुछेक विशिष्ट श्रेणियों में बैंकों को कई छूटें दी जाती हैं। नकदी प्रबंध के एक विलय के रूप में नकदी सांविधिक अनुपात की जटिलता इन छूटों और अलग अलग निर्धारणों के साथ बढ़ती जाती है। नकदी चलनिधि अनुपात निर्धारणों को युक्तिसंगत बनाने और नकदी चलनिधि अनुपात को सामान्यत: सांविधिक स्तर पर रखने के दीर्घकालिक लक्ष्य की ओर बढ़ने की दृष्टि से नकदी चलनिधि अनुपात की व्याप्ति और उसके स्तर के संबंध में कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों का प्रस्ताव है।

  • यह प्रस्ताव है कि नकदी चलनिधि अनुपात को शुद्ध मांग और मीयादी देयताओं के 7.50 प्रतिशत से 200 आधार पॉइंट घटाकर 5.50 प्रतिशत कर दिया जायें। नवंबर 3, 2001 शुरू होनेवाले पखवाड़े से नकदी चलनिधि अनुपात घटाकर 5.75 प्रतिशत कर दिया जायेगा और 29 दिसंबर 2001 से शुरू होनेवाले पखवाड़े से नकदी सांविधिक अनुपात को और घटाकर शुद्ध मांग और मीयादी देयताओं के 5.50 प्रतिशत पर ले आया जाएगा।
  • इसी समय 3 नवंबर 2001 से शुरू होनेवाले पखवाड़े से शुद्ध मांग और मीयादी देयताओं की गणना (नकदी सांविधिक अनुपात बनाये रखने की अपेक्षा के लिए) अंतर-बैंक देयताओं को छोड़कर सभी रियायतें समाप्त कर दी जायेंगी।

यह अपेक्षा की जाती है की इन सुविधाओं से अल्पकालिक आय वक्र विकसित होगा, मुद्रा बाज़ार विकसित होगा, बैंकों तथा गैर-बैंकों के बीच विनियामक दलाली कम होगी, बैंकों के पास ऋण योग्य संसाधनों की उपलब्धता में वृद्धि होगी तथा मौद्रिक नीति के संचालनों में अप्रत्यक्ष विलेखों की कुशलता में सुधार होगा।

  • शुद्ध मांग और मीयादी देयताओं के मौजूदा स्तर पर उपर्युक्त दो उपायों का मिलाजुला प्रभाव बैंकिंग प्रणाली के पास कुल ऋण योग्य संसाधनों में लगभग 8,000 करोड़ रुपये की वृद्धि करेगा। (3 नवंबर 2001 से प्रभावी लगभग 6,000 करोड़ रुपये)
  • रिज़र्व बैंक अन्य विलेखों के अलावा नकदी प्रबंध के लिए दोनों दिशाओं में नकदी चलनिधि अनुपात विलेख का प्रयोग जारी रखेगा(उदाहरण के लिए चलनिधि समायोजन सुविधा)

(ग) रिज़र्व बैंक के पास रखे जानेवाली नकदी शेष राशियों पर ब्याज

  • 3 नवंबर 2001 से शुरू होनेवाले पखवाड़े से पात्र नकदी शेष राशियों पर अदा किया जानेवाला ब्याज, बैंक दर अर्थात् 6.5 प्रतिशत पर होगा।

चलनिधि समायोजन सुविधा - प्रगति

चलनिधि समायोजन सुविधा जून 2000 में लागू की गई थी, यह सुविधा दिन प्रतिदिन की चलनिधि को प्रभावित करने के लिए एक प्रभावी और लोचशील उपाय के रूप में सामने आई है। अप्रैल 2001 में वार्षिक नीति विवरण में उपायों का एक पैकेज घोषित किया गया था जिसमें चलनिधि समायोजन सुविधा की परिचालन कि्रयाविधियों में परिवर्तनों को शामिल किया गया था, साथ ही इसमें मांग मुद्रा बाज़ार से शुद्ध अंतर बैंक बाज़ार की ओर सरल संक्रमण की नीति और इस प्रणाली में उपलब्ध चलनिधि सहायता को औचित्यपूर्ण बनाने का कार्यक्रम निर्धारित किया गया था। इससे बाजार पर कोई असर नहीं पड़ा है। मांग मुद्रा की परिवर्तनशीलता में महत्त्वपूर्ण रूप से कमी हुई है। यह उत्साहवर्धक है कि गैर-बैंक सहभागियों के ‘रेपो’ परिचालनों की मात्र हाल ही की अवधि में बनी है।

  • चलनिधि समायोजन सुविधा की प्रभावशीलता को बढ़ाने के सम्बन्ध में यह पुन:उल्लेखनीय है कि ओवरनाइट रेपो के अलावा, भारतीय रिज़र्व बैंक अपने विवेकानुसार जब भी जरूरी हो तो 14 दिवसीय अवधि के दीर्घावधिक रेपो भी शुरू कर सकता है।

वाणिज्यिक पत्र - अमूर्त धारिता (डिमेटियरालाइस्ड होल्डिंग)

भारतीय रिजॅर्व बैंक ने 10 अक्तूबर 2000 को नियम और शर्तोंं में ढील देते हुए और कि्रयाविधियों को कारगर बनाते हुए वाणिज्यिक पत्र को जारी करने के लिए नए मार्गदर्शी सिद्धांत जारी किए । इसके अलावा ‘फिजिकल्स ’ को ‘डिमेट’ में परिवर्तित करने के लिए, फिम्मडा ने बाज़ार के सहभागियों, जमाकर्ताओं और भारतीय रिजॅर्व बैंक के परामर्श से, संबंधित मार्गदर्शी सिद्धांतों को बनाया और 3 अक्तूबर 2001 को उसे सार्वजनिक किया गया, ये सिद्धान्त बहुत अच्छी तरह काम कर रहे हैं।

सरकारी प्रतिभूति बाज़ार का विकास

  • 91 दिवसीय खज़ाना बिलों की अधिसूचित राशि को बढ़ाकर 250 करोड़ रुपए कर दिया गया। यह भी सुनिश्चित किया गया कि 91 दिवसीय और 364 दिवसीय खज़ाना बिलों की परिपक्वता अवधि एक ही हो ताकि गौण बाज़ार में विभिन्न परिपक्वता अवधि के खज़ाना बिलों के पर्याप्त मूर्त स्टॉक भी उपलब्ध रहें।
  • सरकारी प्रतिभूतियों के लिए बोली लगाने और गौण बाज़ार लेनदेन में इलेक्ट्रोनिक सुविधाएँ देने के लिए नेगोशियेटेड डीलिंग सिस्टम की शुरुआत की जा रही हैं, इससे व्यवसाय के बारे में सूचनाएँ भी तुरंत प्रसारित हो जाएँगी।
  • कंपनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत, 30 अप्रैल 2001 को भारतीय स्टेट बैंक को मुख्य प्रवर्तक के रूप में लेकर क्लिअरिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (सीसीआइएल) पंजीकृत की गयी। सीसीआइएल का परिचालन परीक्षण जांच (टेस्ट रन) के साथ नवम्बर 2001 में शुरू होने की संभावना है।
  • सरकार के अनुमोदन से, प्रायोगिक आधार पर नये एक समान मूल्य नीलामी फॉर्मेट का प्रारंभ किया जायेगा।
  • गैर-प्रतियोगात्मक आधार पर सरकारी प्रतिभूतियों के खुदरा सहभागिता की योजना को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
  • रिज़र्व बैंक ने ‘सेपरेट ट्रेडिंग ऑफ रजिस्टड़ इंटरेस्ट एंड प्रिन्सिपल ऑफ सिक्युरिटिज़’ (एसटीआरआइपीएस) का विकास करने के लिए रूपरेखा दर्शानेवाला परामर्शदात्री पत्र तैयार किया है।

सैटेलाइट डीलर प्रणाली की समीक्षा

सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में प्राथमिक व्यापारियों को द्वितीय स्तर के रूप में विशेषत: खुदरा खंड का प्रवर्तन करने के उद्देश्य से सैटेलाइट डीलर प्रणाली 1996 में शुरू की गयी।

  • रिज़र्व बैंक ने प्राथमिक व्यापारियों और सैटेलाइट डीलरों के बीच बेहतर लिंकेज प्रस्थापित करने की व्याप्ति की जांच करने के लिए सैटेलाइट डीलर प्रणाली की समीक्षा करने का निर्णय लिया, जिससे सरकारी प्रतिभूतियों के लिए खुदरे स्तर पर एक प्रभावी वितरण माध्यम बन सके।

विवेकशील मानदंड

(क) ऋण सूचना ब्यूरो

अप्रैल 2001 में वार्षिक नीति घोषणा में बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं में से उधारकर्ताओं पर सूचना जमा करने, उसे प्रोसेस करने तथा ऋण सूचना का आदान-प्रदान करने के लिए ऋण सूचना ब्यूरो स्थापित करने के बारे में उल्लेख किया गया था।

    • ऋण सूचना ब्यूरो द्वारा ऋण संबंधी आंकड़ों/सूचना के संग्रहण और प्रसार की प्रकि्रया को परिचालित करने के लिए भारतीय रिजॅर्व बैंक एक समूह बनाएगा जिसमें ऋण सूचना केंद्र, भारतीय बैंक संघ, चुनिंदा बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के प्रतिनिधि होंगे । यह समूह ऋण सूचना ब्यूरो द्वारा वाद दाखिल खातों की सूची और चूककर्ताओं, जिनमें जानबूझकर ऋण न चुकानेवाले चूककर्ता भी शामिल हैं, की सूची के संबंध में सूचना का संग्रहण और उसका प्रसार करने की भूमिका अदा करने की संभावना की जांच करेगी जो कार्य वर्तमान में भारतीय रिजॅर्व बैंक द्वारा किया जा रहा है ।

(ख) बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं द्वारा गैर-एसएलआर निवेश

यह देखा गया है कि बैंकों द्वारा किए जानेवाले निवेशों में से गैर-एसएलआर प्रतिभूतियों में बैंकों के निवेशों का एक महत्त्वपूर्ण अंश निजी स्थापन के जरिए है । इस बाजार में अपारदर्शी प्रथाएं चिंता की बात हो सकती हैं।

  • बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं के गैर-एसएलआर निवेश संविभागों, विशेष रूप से निजी प्लेसमेंट मार्क के ज़रिए, से उभरने वाले जोखिमों को नियंत्रण में रखने के लिए यह प्रस्ताव है कि बैंकों द्वारा अपनाये जानेवाले और अधिक विवेकशील दिशानिर्देशों को जारी किया जाए। इन्हें बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं के साथ और परामर्श करके अंतिम रूप दिया जायेगा।
  • बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं को पहले ही सूचित किया जा चुका है 31 अक्तूबर 2001 के बाद से अलग से अथवा अन्य प्रकार से नये निवेश करने और बांड तथा डिबेंचर केवल डिमेट रूप में ही रखने की अनुमति दी जायेगी।
  • व्यापारों में पारदर्शिता जिसमें बांडों का नाम, कारोबार की राशि तथा मूल्य जिस पर कारोबार किया गया शामिल है, की सुविधा के लिए बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं को एक रिपोर्र्टिंग तंत्र विकसित करने की सुविधा होगी और एनएसडीएल/सीडीएसएल बाद में इस तरह की सूचना को बाज़ार में दे सकते हैं। इस तरह की व्यवस्थाएं निगमों, बैंकों, वित्तीय संस्थाओं, राज्य तथा केंद्रीय सरकारों द्वारा प्रायोजित संस्थाओं द्वारा प्रत्यक्ष अथवा विशेष प्रयोजन वाहक के रूप में जारी सभी बांडों पर एक समान रूप में लागू होंगे।
  • समग्र रूप से सरकारी बजटों के प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष वित्तपोषण के प्रस्ताव प्रत्यक्ष अथवा विशेष प्रयोजन वाहक के रूप में तैयार किये जाने चाहिए और इस तरह के प्रस्ताव विशिष्ट निगरानी योग्य परियोजनाओं, विशेष रूप से पूंजी सघन तथा उच्च लागत क्षेत्रों के प्रस्तावों के लिए होने चाहिए। इनमें आधारभूत ढांचा, परियोजनाएं शामिल होंगी। वित्तपोषण तथा प्रतिफल के घटक सुपरिभाषित होने चाहिए तथा इनका आकलन कर लिया जाना चाहिए।

(ग) पारदर्शिता तथा लेखाकरण मानक

उनकी वित्तीय स्थितियों में पारदर्शिता और विश्वसनीयता को सुनिश्चित करने के लिए एक और उपाय के रूप में यह निर्णय लिया गया है कि बैंक मार्च 2002 को समाप्त होनेवाले वर्ष से अपने तुलन-पत्रों में लेखों पर टिप्पणी में निम्नलिखित अतिरिक्त जानकारी देंगे।

  • अनर्जक आस्तियों की ओर किये गये प्रावधानों में लेनदेन तथा निवेशों में मूल्यह्रास के लिए किये गये प्रावधानों में लेनदेन
  • यह निर्णय लिया गया है कि इन्स्टीट्यूट ऑफ चार्टड़ एकाउण्टेण्ट ऑफ इंडिया, बैंकों तथा भारतीय रिज़र्व बैंक से प्रतिनिधियों को लेते हुए एक कार्यदल बनाया जाए जो लेखाकरण मानकों के अनुपालन में खामियों का पता लगायेगा और इन अंतरालों को दूर करने, कम करने के लिए उपाय सुझायेगा।

पर्यवेक्षण तथा निगरानी

भारतीय रिज़र्व बैंक ने 1999 में तिमाही आधार पर नकदी तथा ब्याज दर जोखिमों की ऑफसाइट विवरणियों की शुरुआत की थी। इसे अंतत: पाक्षिक रिपोर्टिंग प्रणाली बनाया जाना था। तिमाही प्रणाली अब स्थिर हो चुकी है ।

  • बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासले समिति ने नवीन पूंजी समझौते पर परामर्शी दस्तावेजों का दूसरा सेट जारी किया। रिज़र्व बैंक ने अपने अभिमत बासले समिति को भेज दिये हैं और इन्हें मई 2001 से रिज़र्व बैंक वेबसाइट पर भी डाल दिया गया है।
  • पूर्व निर्धारित ट्रिगर पाइंट्स पर आधारित प्रॉम्प्ट करेक्टिव योजना मौजूदा पर्यवेक्षी ढांचे को आगे बढ़ाने के सतत प्रयासों के रूप में तैयार की गयी है।
  • बैंक जोखिम आधारित पर्यवेक्षण प्रक्रिया में आसानी से शिफ्ट कर सके इस दृष्टि से रिज़र्व बैंक ने विशेषज्ञों/जनता से अभिमत/सुझाव मंगानेवाला चर्चापत्र जारी किया है। यह योजना है कि आगामी समय में जोखिम आधारित पर्यवेक्षण नज़रिये को प्रायोगिक रूप से चलाकर देखा जाए।

अनुत्पादक परिसंपत्तियों का निपटान

अनुत्पादक परिसम्पत्तियों के एक मुश्त निपटान की योजना के तहत 30 जुलाई 2001 की स्थिति के अनुसार सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने 5.23 लाख खातों के सम्बन्ध में कुल 2192 करोड़ रुपये की राशि वसूल की है।

  • इस बात को देखते हुए कि इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य निर्दिष्ट समयावधि के भीतर ‘एक-बार निपटान’ का अवसर प्रदान करना था और पहले ही पर्याप्त समय दिया गया है, इस योजना को बढ़ाने का प्रस्ताव नहीं है । तथापि, 1995 के दिशा-निर्देशों में निपटान के लिए निर्धारित व्यापक ढांचा प्रचलन में जारी रहेगा और बैंक अपने बोड़ के अनुमोदन से समझौते तथा बातचीत के जरिए निपटानों को शामिल करते हुए वसूली और बट्टे खाते डालने के लिए विशेषकर अनुत्पादक परिसंपत्तियों की श्रेणी के अंतर्गत आने वाले पुराने और सुलझाए न गए मामलों के लिए अपनी नीति बनाने और उसके कार्यान्वयन के लिए स्वतंत्र होंगे ।

शहरी सहकारी बैंक

अप्रैल 2001 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में की गई घोषणा की अनुवर्ती कार्रवाई के रूप में संबंधित विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श कर रिजॅर्व बैंक ने केंद्र सरकार को एक अलग पर्यवेक्षी प्राधिकरण की स्थापना से संबंधित प्रारूप विधेयक प्रस्तुत किया है ।

  • पर्यवेक्षी तंत्र को और मजबूत बनाने के लिए रिजॅर्व बैंक ने अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों के लिए अप्रत्यक्ष निगरानी प्रणाली भी लागू की है ।
  • शहरी सहकारी बैंकों और उनके फेडरेशनों से प्राप्त अभ्यावेदनों के प्रति उत्तर में यह प्रस्तावित है कि शहरी सहकारी बैंकों को यह अनुमति दी जाए कि वे किसी भी व्यक्ति को कतिपय पैरामीटरों के तहत शेयरों की जमानत पर ऋण स्वीकृत कर सकते हैं।
  • अप्रैल 2001 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य के अनुसार शहरी सहकारी बैंकों से अपेक्षित था कि 31 मार्च 2002 तक वे अपनी निवल मांग और मीयादी देयताओं की प्रतिशतता के तौर पर सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों के रूप में अपनी सांविधिक चलनिधि अनुपात धारित का कतिपय उच्च अनुपात प्राप्त करें। शहरी सहकारी बैंकों और उनके संघों ने यह प्रतिवेदन दिया है कि वर्तमान बाज़ार परिस्थितियों में अनेक छोटे शहरी सहकारी बैंक सांविधिक चलनिधि अनुपात धारिता के निर्धारित स्तर प्राप्त करने में निर्धारित समयावधि के अनुपालन में वास्तविक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। इन प्रतिवेदनों के प्रतिउत्तर में यह प्रस्ताव है कि सांविधिक चलनिधि अनुपात के निर्धारित स्तर को प्राप्त करने से संबंधित समय-सीमा को संशोधित किया जाए।
  • भारतीय रिजॅर्व बैंक ने शहरी सहकारी बैंकों द्वारा अनुसरण किए जानेवाले पूंजी पर्याप्तता के मानदंड संबंधी मार्गदर्शी सिद्धांत जारी किए हैं । यह स्पष्ट किया जाता है कि वर्तमान मार्गदर्शी सिद्धांतों के तहत, यह अपेक्षित है कि अनुसूचित शहरी सहकारी बैंक मार्च 2004 तक और गैर अनुसूचित शहरी सहकारी बैंक मार्च 2005 तक क्रमिक रूप से पूंजी पर्याप्तता मानदंडों को प्राप्त करे।

क्रेडिट संवितरण प्रणाली

(क) बैंक क्रेडिट संवितरण के लिए "ऋण प्रणाली"

कार्यशील पूंजी के नकद क्रेडिट में परिवर्तनशील गतिविधियों की वजह से बैंकिंग प्रणाली की ओर से नकदी और चलनिधि के जोखिम को न्यूनतम करने के लिए ‘ऋण प्रणाली’ शुरू की गई है।

  • कंपनियों और बैंकों दोनों को उपलब्ध अल्पावधि निवेश अवसरों के वर्तमान माहौल में, अब से आगे बैंक चाहे तो, 10 करोड़ रुपए और उससे अधिक की कार्यशील पूंजीगत सीमाओं के लिए 20 प्रतिशत से अधिक नकदी ऋण घटक बढ़ाकर कार्यशील पूंजी की संरचना बदल सकते हैं ।

(ख) खाद्य क्रेडिट के लिए संघीय सहायता व्यवस्था

खाद्य क्रेडिट की संघीय सहायता व्यवस्था की समीक्षा करने के लिए रिजॅर्व बैंक ने एक समिति गठित की है जिसमें बैंकों, भारतीय रिजॅर्व बैंक, भारत सरकार और भारतीय खाद्य निगम के प्रतिनिधि हैं।

  • इस समिति की रिपोर्ट पर सम्बद्ध एजेंसियों और सरकार के परामर्श से विचार-विमर्श किया जा रहा है।

(ग) किसान व्रेडिट काड़

पात्र किसानों के लिए किसान व्रेडिट काड़ की शुरुआत सफल साबित हुई है ।

  • अगले तीन वर्षों के अंदर सभी पात्र किसानों को शामिल करने की योजना में तेजी लाने के लिए रिजॅर्व बैंक ने सभी बैंकों को सूचित किया है कि वे 2001-02 के अपने लक्ष्यों को प्राप्त करें।

सार्वभौमिक बैंकिंग

  • अप्रैल 2001 में सार्वभौमिक बैंकिंग के दृष्टिकोण पर वित्तीय संस्थाओं को भेजे गए भारतीय रिज़र्व बैंक के परिपत्र में प्रस्तुत विचारों को ध्यान में रखते हुए रिजॅर्व बैंक आवेदन पत्रों पर तुरंत विचार करना चाहता है। किसी विशिष्ट प्रस्ताव पर विचार करते समय, रिजॅर्व बैंक का अत्यधिक जोर ग्राहकों की विभिन्न संबंधित वित्तीय संस्था के अनुकूल उद्देश्यों पर होगा और साथ ही बैंकिंग व्यवसाय में सभी सहभागियों पर लागू पारदर्शी और समान विनियामक ढांचे के माध्यम से वित्तीय प्रणाली में यथेष्ट प्रतिस्पर्धा को सुनिश्चित करना होगा।

गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां

रिज़र्व बैंक ने पंजीकरण प्रमाणपत्र के लिए 36,505 गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों से आवेदनपत्र प्राप्त किये, जिनमें से 13,815 आवेदनपत्र अनुमोदित किये गये और 18,355 अगस्त 2001 के अंत में अस्वीकृत किये गये। रिज़र्व बैंक विवेक के साथ गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी के और विकास को पर्याप्त महत्त्व देता है।

अत: भारतीय रिज़र्व बैंक गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी के अनौपचारिक सलाहकार दल तथा गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी के विभिन्न संगठनों के साथ विशेषत: छोटे गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी के लाभ के लिए स्व-नियामक संगठन के प्रवर्तन की आवश्यकता पर चर्चा कर रहा है।

प्रौद्योगिकी उन्नयन

भुगतान और निपटान प्रणाली में बैंक प्रभावशाली रूप से और आसानी से सहभागी हो सके तथा विभिन्न भुगतान प्रणाली परियोजनाओं की रूपरेखा देने की दृष्टि से बैंकों और राष्ट्रीय भुगतान काउन्सिल जैसे शीर्ष निकायों के सदस्यों से प्राप्त फीडबैक के आधार पर प्रारूप भुगतान प्रणाली विज़न दस्तावेज़ तैयार किया गया, तथा उसे अंतिम रूप दिया जा रहा है।

  • सभी बैंकों के इस्तेमाल के लिए भारतीय वित्तीय नेटवर्क पहले से उपलब्ध है और इस नेटवर्क पर साझा अंतर-बैंक एप्लीकेशन्स कार्यान्वित किये जा रहे है। इलेक्ट्रॉनिक मोड पर निधियों की गतिविधियों के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा जो प्रणालियां उपलब्ध करायी गयी हैं उनमें से एक प्रणाली है इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण।

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा चालू खाता
सुविधा को तर्कसंगत बनाना

  • सीसीआइएल के शुरू होने तथा एनडीएस के प्रस्तावित कार्यान्वयन से यह भी अनावश्यक हो जाएगा कि कुछ गैर-बैंक संस्थाएं भारतीय रिज़र्व बैंक के पास चालू खाता रखें। इस मामले की जांच एक दल द्वारा की गयी थी।

विधिक सुधार

बैंकिंग क्षेत्र में प्रमुख विधिक सुधार शुरू किये गये जिनमें जमानत संबंधी कानून, परक्राम्य लिखित अधिनियम, बैंकों में धोखाधड़ी, बैंकिंग का विनियामक ढांचा जैसे क्षेत्र शामिल थे। विधिक सुधारों के लिए उठाए गए विविध कदमों से संबंधित आगे की प्रगति निम्नानुसार है :-

  • सरकार ने परक्राम्य लिखित अधिनियम, 1881 के उपबंधों में परिवर्तनों का सुझाव देने के लिए जो कार्यदल गठित किया था, उसने सरकार ने जो कार्यदल गठित किया था, उसने अन्य बातों के साथ-साथ यह अनुशंसा भी की है कि चेकों और इलेक्ट्रॉनिक चेकों का संक्षेपण किया जाए और इसके लिए उपयुक्त विधिक संशोधन किए जाएं। परिसंपत्ति प्रतिभूतीकरण संबंधी कार्यदल ने परिसंपत्ति प्रतिभूतीकरण पर एक विधेयक का प्रारूप तैयार किया है जो सरकार के विचाराधीन है। न्यायालय के हस्तक्षेप के बिना प्रतिभूतियां अपने कब्जे में लेने और उन्हें बेचने के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को अधिकार देने के लिए सरकार द्वारा गठित एक अन्य कार्य दल ने जो प्रारूप विधान तैयार किया है, उसे जनता की राय जानने के लिए अगस्त 2001 में भारतीय रिजॅर्व बैंक की वेबसाइट पर डाल दिया गया है। इसका प्रारूप विधेयक सरकार के विचाराधीन है।
  • भारतीय रिजॅर्व बैंक अधिनियम, 1934, बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949, में संशोधन, लोक ऋण अधिनियम, 1944 के बदले सरकारी प्रतिभूति विधेयक संबंधी प्रस्ताव फिलहाल सरकार के विचाराधीन हैं।
  • भारत में भुगतान प्रणालियों पर कानून का प्रारूप तैयार करने के लिए भारतीय रिजॅर्व बैंक ने राष्ट्रीय भुगतान परिषद के साथ परामर्श करके एक अंतर्राष्ट्रीय परामर्शदाता तथा एक प्रतिष्ठित भारतीय प्रारूपकार को नियुक्त किया है।
  • बैंक धोखाधड़ियों पर विशेषज्ञ समिति (अध्यक्ष- डा. एन. एल. मित्रा) ने अपनी रिपोर्ट भारतीय रिज़र्व बैंक को सितंबर 2001 में प्रस्तुत की जिसे बैंक की वेबसाइट पर डाल दिया गया है। समिति ने जांच करके बैंक धोखाधड़ियों के लिए प्रतिरोधक और समस्या निवारक उपाय सुझाये हैं। इस समिति ने जो महत्त्वपूर्ण अनुशंसाएं की हैं उनमें वित्तीय धोखाधड़ी को आपराधिक कृत्य के रूप में शामिल करने की आवश्यकता तथा वित्तीय धोखाधड़ी पर एक नया अध्याय शामिल करके भारतीय दंड संहिता में संशोधन करना, आरोपित व्यक्ति पर साक्ष्य का भार अंतरित करने के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम में संशोधन करना तथा वित्तीय धोखाधड़ी में शामिल संपत्तियों और जब्तशुदा गैर-कानूनी लाभों का अंतरण करने के लिए आपराधिक कि्रयाविधि की संहिता में विशेष उपबंध करना; तथा बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा सवार्ेत्तम संहिता-कि्रयाविधियां विकसित करने सहित प्रतिरोधक उपाय करना शामिल हैं। इस रिपोर्ट की भारतीय रिजॅर्व बैंक जांच कर रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय मानक और संहिताएं

  • अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय मानकों और संहिताओं संबंधी स्थाई समिति द्वारा गठित सभी परामर्शदाता दलों ने स्थायी समिति के अध्यक्ष को अपनी रिपोर्टें प्रस्तुत कर दी हैं और इन्हें व्यापक सूचना के लिए भारतीय रिजॅर्व बैंक की वेबसाइट www.rbi.org.in पर डाल दिया गया है।

सूरज प्रकाश
प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2001-2002/498

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