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रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2003-04 के लिएमौद्रिक और ऋण नीति की मध्यावधि समीक्षा घोषित की

रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2003-04 के लिए
मौद्रिक और ऋण नीति की मध्यावधि समीक्षा घोषित की

3 नवंबर 2003

डॉ.वाइ.वेणुगोपाल रेड्डी, गवर्नर ने प्रमुख वाणिज्य बैंकों के मुख्य कार्यपालकों की बैठक में आज वर्ष 2003-04 के लिए मौद्रिक और ऋण नीति की मध्यावधि समीक्षा प्रस्तुत की। प्रारंभ में गवर्नर महोदय ने यह उल्लेख किया कि इस वक्तव्य की रूपरेखा और विषय-वस्तु, दोनों ही के लिए पिछले वर्षों में पहले से स्थापित परिपाटी का पालन किया गया है। गवर्नर महोदय के वक्तव्य में मौद्रिक नीति से संबद्ध अनेकविध विश्लेषणात्मक और परिचालनगत मामलों की मैक्रो आर्थिक नीति और मौद्रिक गतिविधियों की समीक्षा शामिल है। गवर्नर महोदय ने वर्ष की शेष अवधि के लिए अप्रैल 2003 की गतिविधियों के आधार पर मौद्रिक नीति की अवस्थिति जारी रखने की घोषणा की है और साथ ही कुछेक उपाय घोषित किये हैं। गवर्नर महोदय ने पहले ही किये गये उपायों को लागू किये जाने पर बल देते हुए उन्हें जारी रखने की बात को महत्त्व दिया है ताकि जनसाधारण आसानी से लेनदेन कर सकें। गवर्नर महोदय ने परामर्शी प्रक्रिया को और विस्तार देने के लिए उपाय प्रस्तावित किये और मध्यावधि परिप्रेक्ष्य में स्थिरता के अनुकूल वृद्धि को सुगम बनाने के लिए संस्थागत क्षमता बढ़ाने पर बल दिया।

घरेलू गतिविधियां

वर्ष 2003-04 में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि

दक्षिण-पश्चिम मानसून के फैलाव को देखते हुए और यह मानते हुए कि औद्योगिक क्षेत्र में अच्छा कार्य-निष्पादन होगा तथा निर्यात वृद्धि में निरंतरता बनी रहेगी, वैश्विक आर्थिक सुधार की संभावना को देखते हुए गवर्नर महोदय ने कहा कि सकल घरेलू उत्पाद की समग्र वृद्धि के रुख के साथ पहले की लगभग 6.0 प्रतिशत की अनुमानित वृद्धि के मुकाबले यह 6.5 से 7.0 प्रतिशत के बीच रहेगी।

खाद्येतर ऋण

गवर्नर महोदय ने यह पाया कि 17 अक्तूबर 2003 तक खाद्येतर ऋण में 5.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में 7.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। अब तक वाणिज्यिक क्षेत्र को 55,045 करोड़ रुपये की कुल सहायता राशि उपलब्ध करायी गयी, जो पिछले वर्ष की 55,697 करोड़ रुपये की वृद्धि के बराबर रही है। अलबत्ता, खुदरा ऋण में, खास तौर पर आवास क्षेत्र के लिए उल्लेखनीय वृद्धि देखने में आयी। उन्होंने आशा व्यक्त की कि खुदरा और वैयक्तिक ऋणों के लिए मूल उधार दर को न्यूनतम नियत दर मानने के प्रतिबंध को हाल ही में हटाये जाने से खुदरा उधारों को और प्रोत्साहन मिलना चाहिए।

मौद्रिक संकेतक

मौद्रिक संकेतकों का उल्लेख करते हुए गवर्नर महोदय ने कहा कि चालू वित्तीय वर्ष में 17 अक्तूबर 2003 तक मुद्रा आपूर्ति (एम3) में पिछले वर्ष की 8.1 प्रतिशत की तुलना 7.4 प्रतिशत वृद्धि हुई। उन्होंने कहा कि वार्षिक आधार पर एम3 में 11.9 प्रतिशत की जो वृद्धि हुई वह अनुमानित स्तर के भीतर ही थी लेकिन पिछले वर्ष के 14.0 प्रतिशत के मुकाबले कम थी। भारतीय रिज़र्व बैंक की शुद्ध विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में पिछले वर्ष की 38,452 करोड़ रुपये की वृद्धि की तुलना में 24 अक्तूबर 2003 तक 63,873 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई। इतनी अधिक विदेशी मुद्रा राशियां आने के बावजूद, गवर्नर महोदय ने कहा कि पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान इसमें हुई 0.4 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में इस वर्ष केवल 3.5 प्रतिशत की ही वृद्धि हुई। ऐसा मुख्यत:: रिज़र्व बैंक द्वारा खुला बाजार परिचालन अपनाये जाने से हुआ।

मुद्रास्फीति दर में गिरावट आयेगी

गवर्नर महोदय ने याद दिलाया कि वार्षिक नीति वक्तव्य में मुद्रास्फीति की दर 5.0-5.5 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान लगाया गया था। वार्षिक मुद्रास्फीति दर थोक मूल्य सूचकांक में उतार-चढ़ाव द्वारा मापे गये रूप में बिंदु-दर-बिंदु आधार पर इस वर्ष के पहले दो महीनों के दौरान 6.3-6.9 प्रतिशत के बीच बनी रही, और 18 अक्तूबर 2003 तक घटकर 5.0 प्रतिशत रह गयी। गवर्नर महोदय ने संकेत दिया कि नीतिगत प्रयोजनों के लिए मुद्रास्फीति का बिंदु-दर-बिंदु वार्षिक दर 4.0-4.5 प्रतिशत के बीच अनुमान लगाया जा सकता है और इसमें संभवत: और गिरावट आ सकती है।

सरकारी उधार

केंद्र सरकार ने अक्तूबर 2003 के अंत तक बजट की गयी राशि के 62.8 प्रतिशत के शुद्ध बाजार उधार और 60.8 प्रतिशत के कुल उधार पूरे किये हैं। इस वर्ष सरकारी उधारों पर 5.87 प्रतिशत की दर से भारित औसत प्रतिफल पिछले वर्ष के 7.34 प्रतिशत से कम रहे हैं। सितम्बर 2003 तक केंद्र सरकार के 81,014 करोड़ रुपये का कुल राजकोषीय घाटा पिछले वर्ष की इसी अवधि के घाटे से करीब 40.3 प्रतिशत से अधिक था। केंद्र सरकार का 65,427 करोड़ रुपये का राजस्व घाटा इसी अवधि से करीब 37.4 प्रतिशत उच्चतर रहा। गवर्नर महोदय ने कहा कि व ेंद्र और राज्य सरकारों के बड़े कुल उधार जारी रहने की स्थिति चिंता का विषय बनी रही है। ऐसी चिंताएं वांछित वृद्धि पर संभावित प्रतिकूल प्रभाव, जो स्थिरता के साथ साथ चलते हैं, के कारण और साथ ही कार्यक्षम मौद्रिक और ऋण प्रबंधन के संभावित निहितार्थों के कारण उत्पन्न होती हैं। अत: मध्यावधि परिप्रेक्ष्य से राजकोषीय समेकन का कार्य तत्परता से और संकल्प के साथ करने की जरूरत है। इसलिए वाणिज्य और सामाजिक क्षेत्रों में राजस्व आधार बढ़ाने, व्ययों का युक्तिसंगत बनाने और सबसे ऊपर, सार्वजनिक निवेशों की उत्पादकता बढ़ाने की दिशा में प्रयास करने की जरूरत है।

बैंकों के निवेश

गवर्नर महोदय ने यह संकेत दिया कि अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में इस वर्ष किये गये 87,754 करोड़ रुपये के निवेश (17 अक्तूबर 2003 तक) पिछले वर्ष से 72,110 करोड़ रुपये से अधिक हैं।

ब्याज दरें

गवर्नर महोदय ने यह पाया कि वित्तीय बाज़ार सामान्यत: स्थिर रहे हैं तथा प्रणाली में चलनिधि के साथ ब्याज दरें और नरम हुई हैं। औसत मांग मुद्रा दर 5.86 प्रतिशत से घटकर 4.64 प्रतिशत रह गयी; 91 दिवसीय और 364 दिवसीय खज़ाना बिल की दरें 5.89 प्रतिशत प्रत्येक से कम होकर क्रमश: 4.94 प्रतिशत और 4.72 प्रतिशत रह गयीं; 10 वर्षीय अवशिष्ट परिपक्वता अवधि की सरकारी प्रतिभूतियों का प्रतिफल 6.21 प्रतिशत से कम होकर 5.11 प्रतिशत रह गया; सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के अपनी जमा दरों में एक वर्ष में मार्च 2003 के 5.25-7.00 प्रतिशत की रेंज से कटौती की और उन्हें घटाकर अक्तूबर 2003 तक 5.0-6.0 प्रतिशत तक ले आये। अलबत्ता, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा लगायी गयी मांग और मीयादी ऋणों की मध्यावधि उधार दरें 11.5-14.0 प्रतिशत के दायरे में अपरिवर्तित बनी रहीं। इसी तरह, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की मूल उधार दरों की सीमा 9.0-12.25 प्रतिशत के बीच अपरिवर्तित बनी रही। दूसरी ओर, पांच वर्षीय एएए क्षमता के कार्पोरेट बांडों के बीच का कीमत-लागत अंतर (स्प्रेड) और उसी परिपक्वता अवधि की सरकारी प्रतिभूतियों पर प्रतिफल मार्च 2003 के 87 आधार अंकों से कम हो कर अक्तूबर 2003 में 65 आधार अंक रह गया। गवर्नर महोदय ने यह पाया कि हालांकि मूल कंपनियों और आवास जैसी गतिविधियों के लिए उधार दरें उल्लेखनीय रूप से कम हो गयीं, अन्य खंडों के संबंध में अब तक उल्लेखनीय कटौती होनी बाकी है।

बाह्य गतिविधियां

वैश्विक अर्थव्यवस्था की संभावनाओं में सुधार हुआ

गवर्नर महोदय ने पाया कि वार्षिक नीति वक्तव्य को प्रस्तुत किए जाने के समय अर्थात् अप्रैल 2003 से वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ है।

विदेशी मुद्रा बाज़ार स्थिर बना रहा

भारतीय विदेशी मुद्रा बाज़ार में चालू वित्तीय वर्ष (अप्रैल-अक्तूबर 2003) के दौरान ठीक ठाक स्थिति देखने में आयी। मार्च 2003 के अन्त में रुपये की विनिमय दर 47.50 रुपये प्रति अमेरिकी डॉलर थी। इसमें अक्तूबर 2003 के अन्त तक 4.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह प्रति अमेरिकी डालर 45.32 रुपये पर जा पहुंची। लेकिन इसी अवधि के दौरान इसमें यूरो की तुलना में 2.3 प्रतिशत, पाउंड स्टर्लिंग की तुलना में 2.5 प्रतिशत और जापानी येन के मुकाबले 4.2 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई। गवर्नर महोदय ने कहा कि अतीत की भांति ही विदेशी मुद्रा दर का प्रबंधन निश्चित या पूर्वघोषित लक्ष्य के बिना परिवर्तनीयता पर आधारित है जिसमें बदलाव लाए जा सकते हैं।

आरक्षित निधियों में वृद्धि

विदेशी मुद्रा आरक्षित निधियां 17.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि दर्शाते हुए मार्च 2003 के अन्त के 75.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर अक्तूबर 2003 के अंत में 92.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गईं। गवर्नर महोदय ने कहा कि इस समय भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधियों की स्थिति काफी अच्छी है और वह विकास दर, अर्थव्यवस्था में बाह्य क्षेत्र की भागीदारी और जोखिम अनुकूल पूंजी प्रवाह के आकार के अनुकूल है। उन्होंने कहा कि इस अवधि के दौरान 5.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के रिसर्जेंट इंडिया बांड के मोचन की भुगतान देयता को भारतीय वित्तीय बाजार अथवा आरक्षित निधियों पर बिना कोई प्रतिकूल प्रभाव डाले पूरा कर लिया गया।

निर्यात और आयात

चालू वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में भारत के निर्यात में 10.0 प्रतिशत अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई जो कि पिछले वर्ष की इसी अवधि में 18.0 प्रतिशत थी। इसी अवधि के दौरान निर्यात में 21.4 प्रतिशत की तीव्र वृद्धि हुई जो कि पिछले वर्ष की इसी अवधि में 9.2 प्रतिशत थी।

पिछली छह तिमाहियों में सतत अधिशेष की स्थिति में रहनेवाले भुगतान संतुलन के चालू खाते में अप्रैल-जून 2003 के दौरान 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का घाटा देखने को मिला। वर्ष 2003-04 की पहली तिमाही के दौरान विदेशी मुद्रा आरक्षित निधियों में मूल्यन प्रभार सहित निवल अनुवृद्धि 6.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर रही। गवर्नर महोदय ने कहा कि यद्यपि सर्वज्ञात कारणों की वजह से पूंजी प्रवाह की दिशा का पता लगाया जाना कठिन है तथापि भारत के प्रति सकारात्मक रुख में कोई बदलाव नजर नहीं आना चाहिए। लेकिन यदि विकसित औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं की मौद्रिक नीतियों में तटस्थ और लचीलेपन से हटकर कड़ा रुख अपनाया जाता है तो इस रूप में परिवर्तन भी हो सकता है।

समग्र मूल्यांकन

गवर्नर महोदय ने कहा कि समष्टि आर्थिक (मैक्रो इकॉनॉमिक) वातावरण में घरेलू और बाह्य, दोनों में सकारात्मक नज़रिये के साथ इस वर्ष सुधार हुआ है। बिंदु-दर-बिंदु थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति वर्ष के अंत में नरम रहने की संभावना है। हाल ही के वर्षों में मुद्रास्फीति को काबू में रखने से जो लाभ मिले हैं उन्हें समेकित और सुदृढ़ करना आवश्यक है। यह सराहनीय है कि काफी समय तक लगातार प्रयासों से मूल्य स्थिरता में विश्वास बनाये रखने में सहायता मिली है और यह कि मुद्रास्फीतिकारी संभावनाएं अपेक्षाकृत कम समय में प्रतिकूल हो सकती हैं, यदि मूल्यों में उल्लेखनीय प्रतिकूल बातें घटित हों। इसलिए मूल्य स्तर पर सतर्क नज़र रखना बेहद ज़रूरी है।

गवर्नर महोदय ने आगे कहा कि निवेश के माहौल में इस वर्ष सुधार हुआ है जैसा कि वित्तीय बाज़ार के विभिन्न खंडों के कार्यों में देखा जा सकता है। चूंकि उत्पादकता लाभ बड़े पैमाने पर निगमों की पुनर्संरचना में किये गये निवेशों के कारण मिले हैं अत: इस बात की संभावना है कि ऐसे वक्त में निवेश मांग में फिर से उछाल आये। उन्होंने यह भी पाया कि वर्ष के आरंभ की तुलना में इस समय वित्तीय बाज़ार अधिक मजबूत है और वित्तीय क्षेत्र की स्थिति में निरन्तर सुधार हो रहा है। अलबत्ता, व्यवसाय चक्र के परिवर्तन में बाज़ारों में उछाल आने की संभावना हो सकती है, अतएव भावी आकस्मिकताओं का सामना करने के लिए सतत सतर्क निगरानी की आवश्यकता है।

गवर्नर महोदय ने संकेत दिया कि यद्यपि अगस्त 2003 तक ऋण वृद्धि मंद रही तथापि अब खाद्येतर ऋण में वृद्धि होने के संकेत मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि लघु और मध्यम उद्यमियों, संरचनागत और कृषि क्षेत्र को ऋण सुपुर्दगी की व्यवस्था में मज़बूती लाने के लिए बैंकों में संस्थागत एवं प्रोत्साहन देने वाली प्रणाली में सुधार करना आवश्यक है। इस संबंध में यह महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि वित्तीय मध्यस्थों, कंपनियों एवं घरेलू क्षेत्रों में प्रोत्साहन देने वाली ऋण संस्कृति का पोषण किया जाए। उन्होंने आगे कहा कि चिन्ताजनक मंद ऋण वृद्धि के अलावा उधार दरों में गिरावट से समग्र जड़ता के साथ कुछ क्षेत्रों की सेवाओं की गुणवत्ता में कमी के साथ जमा दरों में गिरावट पर आत्म निरीक्षण करने एवं समस्त वित्तीय मध्यस्थों के द्वारा तत्काल कार्रवाई किए जाने की जरूरत है। इस संबंध में विश्वसनीय उपाय, विशेषकर वाणिज्य बैंकों द्वारा, अनिवार्य होंगे ताकि ऋण सुपुर्दगी में पर्याप्त प्रगति की जा सके और ऋण के मूल्य निर्धारण में पर्याप्त पारदर्शिता लायी जा सके।

गवर्नर महोदय ने कहा कि बाह्य क्षेत्र में सकारात्मक गतिविधियों ने, जिन्होंने अनिवार्य विदेशी मुद्रा प्रतिबंधों को दूर कर दिया है, हमारे देश के आर्थिक प्रबंध को पर्याप्त मज़बूती प्रदान की है और सार्वजनिक नीति के व्यवहार को दिलासा दिया है।

वर्ष 2003-04 की दूसरी छमाही के लिए
मौद्रिक नीति की अवस्थिति

गवर्नर महोदय ने कहा कि अप्रैल 2003 में वार्षिक नीति के वक्तव्य की घोषणा से वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण में सुधार हुआ है; सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि उच्चतर रही; मुद्रास्फीति के प्रति दृष्टिकोण और नरम रहा; मुद्रा आपूर्ति में विस्तार ट्रॅजेक्टरी के भीतर रहा; और वित्तीय बाज़ार विशेषत: विदेशी मुद्रा बाज़ार हालांकि वे सामान्य गतिविधि से अधिक प्रदर्शन कर रहे हैं, स्थिर हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष की शेष अवधि के सुधार के प्रति हाल के संकेतक पॉइन्ट के बावजूद अब तक ऋण का प्रवाह प्रत्याशित से कम हुआ है। यद्यपि पूंजी प्रवाह मज़बूत हैं, चालू खाता शायद घाटे की ओर बढ़ रहा है। इन गतिविधियों से तालमेल रखते हुए उन्होंने यह प्रस्तावित किया कि चालू वर्ष की बाकी अवधि के लिए वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में घोषित मौद्रिक नीति की समग्र अवस्थिति के साथ रहना जारी रखा जाए।

मौद्रिक नीति की अवस्थिति ऋण वृद्धि को पूरा करने के लिए पर्याप्त चलनिधि का प्रावधान करना जारी रखेगी और लागत स्तर पर निगरानी रखते हुए नरम और लचीले ब्याज दर परिवेश को वरीयता देते हुए निवेश मांग के लिए सहायता करेगी।

वित्तीय क्षेत्र सुधार और मौद्रिक नीति उपाय

गवर्नर महोदय ने कहा कि इस समय पहले ही किये गये उपायों को जारी रखते हुए उनके कार्यान्वयन, जनसाधारण द्वारा किये जाने वाले लेन देनों को आसान बनाना, परामर्शी प्रक्रिया को और व्यापक बनाना और मध्यावधि परिप्रेक्ष्य में स्थिरता के साथ तालमेल बनाये रखते हुए वृद्धि को सुगम बनाने के लिए संस्थागत क्षमता पर बल देना जारी रखना होगा। उन्होंने कहा कि मौजूदा संस्थागत ढांचे के भीतर ऋण सुपुर्दगी प्रणाली को मजबूत बनाये जाने पर विचार किया जाना होगा, ताकि वित्तीय अंतर वांछित त्वरित वृद्धि पर गंभीरता से प्रतिबंध न डाले।

(क) बैंक दर

- 6.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रही।

(ख) आरक्षित नकदी निधि अनुपात -

मौजूदा चलनिधि स्थिति को देखते हुए 4.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया।

(ग) चलनिधि समायोजन सुविधा -

विभिन्न देशों के परिप्रेक्ष्य में चलनिधि समायोजन सुविधा के परिचालनों पर आंतरिक दल की रिपोर्ट, जो मुद्रा और सरकारी प्रतिभूति बाजारों पर तकनीकी परामर्शदात्री समिति की हाल ही की चर्चाओं पर संशोधित की गयी थी, व्यापक परिचालन और अभिमतों के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट
www.rbi.org.in पर रखी गयी है। रिपोर्ट पर प्राप्त सुझावों को ध्यान में लेते हुए चलनिधि समायोजन सुविधा पर दिशानिर्देशों को अंतिम रूप दिया जायेगा।

ब्याज दर नीति

(ए) मूल उधार दर तथा दायरे

आधार (बेंचमार्क) मूल उधार दर की प्रणाली के कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दों पर चुनिंदा बैंकों एवं भारतीय बैंक संघ (आइबीए) से विचार-विमर्श किया गया। चूँकि भारतीय बैंक संघ ने आधार (बेंचमार्क) मूल उधार दर के लिए प्रस्तावित दृष्टिकोण से मोटे तौर पर सहमति जतायी है, इसलिए भारतीय बैंक संघ, कार्यात्मक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए, अपने सदस्यों को उपयुक्त आदेश दे सकता है।

ऋण सुपुर्दगी तंत्र

(क) प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को ऋण

(i) लघु उद्योगों के लिए ऋण सुविधाएं

लघु उद्योगों को ऋण प्रवाह में और सुधार लाने के लिए प्रस्ताव है कि:

  • बैंक लघु उद्योग इकाइयों के अच्छे रिकाड़ और वित्तीय स्थिति के आधार पर संर्पाश्विक आवश्यकता से छूट के लिए ऋण सीमा 15 लाख रुपये से बढ़ाकर 25 लाख रुपये (अपने बोर्डों की सहमति से) कर सकते हैं।

(ii) भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) के पास विदेशी बैंकों की जमाराशियां

लघु उद्योगों को ऋण प्रवाह में वृद्धि करने और ब्याज दरों को औचित्यपूर्ण बनाने की दृष्टि से प्रस्ताव है कि:

  • प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र से संबंधित लक्ष्य में कमी के लिए सिडबी के पास विदेशी बैंकों की जमाराशियों पर ब्याज दर बैंक दर के बराबर होगी।
  • सिडबी यह सुनिश्चित करने के लिए उचित उपाय करेगा कि प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों की निधियों का उपयोग तत्परता से किया जाए और ब्याज दर में कमी का लाभ उधारकर्ताओं को मिले।

(iii) बैंकों द्वारा गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को ऋण देना

लघु उद्योग क्षेत्र को और अधिक ऋण देने की दृष्टि से यह प्रस्ताव है कि:

  • लघु उद्योग क्षेत्र को ऋण देने के प्रयोजन से गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को बैंकों द्वारा दिये गये सभी नये ऋणों को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को ऋण के अंतर्गत भी हिसाब में लिया जायेगा।

(ख) कृषि और संबंधित कार्यकलापों को ऋण प्रवाह संबंधी परामर्शदात्री समिति

अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्त्व को देखते हुए और इस क्षेत्र की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने में अधिक प्रगति के लिए गवर्नर महोदय का प्रस्ताव है कि इस क्षेत्र को ऋण-प्रवाह बढ़ाने के लिए अल्पावधि और मध्यावधि उपायों का सुझाव देने के लिए एक परामर्शदात्री समिति गठित की जाये। व्यास समिति के कार्यान्वयन में हुई प्रगति का मूल्यांकन करते हुए यह समिति अन्य बातों के साथ-साथ इस क्षेत्र के विकास में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबाड़) की भूमिका, ग्रामीण मूलभूत सुविधा विकास निधि के वर्तमान ढांचे और विनियोजन, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की भूमिका और ऋण प्रदान करने के संबंध में प्रोत्साहन एवं दृष्टिकोण संबंधी पहलुओं को भी देखेगी।

(ग) लघु उद्योग क्षेत्र को ऋण प्रवाह संबंधी कार्यकारी दल

इस क्षेत्र की ऋण आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए गवर्नर महोदय का प्रस्ताव है कि कपूर समिति और गुप्ता समिति की सिफॅारिशों के कार्यान्वयन में हुई प्रगति का मूल्यांकन करने तथा ऋण प्रवाह में सुधार के उपायों का सुझाव देने के लिए एक कार्यकारी दल गठित किया जाये, जो विशेष रूप से इस क्षेत्र की बड़ी कंपनियों के साथ विनिर्माण और विपणन सुविधाओं संबंधी सम्बद्धता पर विचार करेगा। यह दल प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को ऋण में कमी से संबंधित सिडबी के पास जमाराशियों के उपयोग के तरीकों पर भी ध्यान देगा और लघु उद्योगों को समय पर और पर्याप्त मात्रा में ऋण-प्रवाह को बढ़ाने के लिए उचित संस्थागत व्यवस्था का सुझाव देगा।

(घ) माइक्रो वित्त

माइक्रो वित्त संबंधित अनौपचारिक दलों की सिफारिशों के आधार पर प्रस्ताव है कि: (i) बैंक स्वयं सहायता समूह को वित्त प्रदान करने में अपनी शाखाओं को पर्याप्त प्रोत्साहन दें और उनके साथ संबंध कायम करें, (ii) स्वयं सहायता समूह के कार्य की समूह काम काज के तौर तरीके उन पर छोड़े जा सकते हैं; (iii) स्वयं सहायता समूह को माइक्रो वित्त प्रदान करने का रास्ता पूरी तरह से असुविधा-रहित हो; (iv) नाबाड़ क्रियाविधि को सरल बनाते हुए माइक्रो वित्त-प्रवाह को बनाये रखने और बढ़ाने में अपनी प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करे; और (v) जो बैंक शाखाएं माइक्रो वित्त प्रदान करने में लगी हों, नाबाड़ उन शाखाओं के बीच अनुभवों के आदान-प्रदान सुनिश्चित करने के लिए तंत्र बनायें।

मुद्रा बाज़ार

(क) विशुद्ध अंतर-बैंक मांग/सूचना मुद्रा बाजार की ओर बढ़ना

एक विशुद्ध अंतर-बैंक मांग/सूचना मुद्रा बाजार की ओर और अधिक बढ़ने के उद्देश्य से गवर्नर महोदय का प्रस्ताव है कि:

  • 27 दिसंबर 2003 से प्रारंभ पखवाड़े से गैर बैंकिंग सहभागी औसतन किसी भी रिपोर्टिंग पखवाड़े में 2000-01 के दौरान मांग/सूचना मुद्रा बाजार में अपने दैनिक ऋण औसत के 60 प्रतिशत तक ऋण दे सकते हैं। गैर बैंकिंग सहभागिता को और कम करने की समय-सारणी बाजार के सहभागियों के परामर्श से घोषित की जायेगी।

(ख) स्थायी सुविधाओं को औचित्यपूर्ण बनाना

क्षेत्र विशेष के लिए स्थायी सुविधाओं को क्रमिक रूप से समाप्त करने की ओर बढ़ने की दृष्टि से और साथ ही व्यवस्था में चलनिधि के आने की दरों को औचित्यपूर्ण बनाने के लिए गवर्नर महोदय को प्रस्ताव है कि:

  • ‘सामान्य’ और आपात (बैकस्टॉप) स्थायी सुविधाएं 27 दिसंबर 2003 से प्रारंभ पखवाड़े से एक तिहाई और दो तिहाई (33:67) के अनुपात में उपलब्ध होंगी।

(ग) मांग/सूचना मुद्रा बाजार में प्राथमिक व्यापारियों की पहुंच

रिपो बाजार को और अधिक विकसित करने तथा साथ ही मुद्रा बाजार के विभिन्न खंडों का संतुलित विकास सुनिश्चित करने के लिए गवर्नर महोदय का प्रस्ताव है कि:

  • 7 फरवरी 2004 से एक रिपोर्टिंग पखवाड़े में प्राथमिक व्यापारियों को औसत के आधार पर पिछले वित्तीय वर्ष के मार्च के अंत में उनकी शुद्ध स्वाधिकृत निधियों के 200 प्रतिशत तक के उधार लेने की अनुमति होगी।

(घ) एनडीएस प्लेटफार्म पर मांग/सूचना मुद्रा बाजार के लेनदेनों की सूचना देना

यद्यपि एनडीएस प्लेटफार्म पर सौदों की रिपोर्ट देने में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है फिर भी गवर्नर महोदय की राय में मुद्रा, सरकारी प्रतिभूतियों और विदेशी मुद्रा बाजार संबंधी व्यापारिक जानकारी के पूर्ण प्रसार से पारदर्शिता में सुधार होगा और बाजार अधिक सुदृढ़ता से कार्य करेगा। इस उद्देश्य से एनडीएस के सभी सदस्य अपने सौदों की जानकारी की रिपोर्ट सौदा पूरा होते ही दें।

विदेशी मुद्रा बाजार

(क) कंपनियों के असुरक्षित विदेशी मुद्रा ऋण आदि जोखिम

गवर्नर महोदय ने कंपनियों द्वारा असुरक्षित विदेशी मुद्रा उधारों का बैंक की आस्तियों पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में बताया। इसे ध्यान में रखते हुए बैंकों द्वारा दिये जाने वाले 100 लाख अमेरिकी डालर से अधिक के सभी विदेशी मुद्रा ऋण बोड़ की सुविचारित नीति के आधार पर ही दिए जाएँ, जिससे कि सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। निम्नलिखित मामले अपवाद होंगे:

  • जहां विदेशी मुद्रा ऋण निर्यातों को वित्त प्रदान करने के लिए है वहां बैंक सुरक्षा पर जोर न दें, लेकिन वे स्वयं आश्वस्त हो लें कि ग्राहकों ने ऋण राशि के लिए प्राप्य राशियों को शामिल (कवर) नहीं किया है।
  • जहां विदेशी मुद्रा ऋणों को विदेशी मुद्रा के खर्चों को पूरा करने के लिए दिया गया है।

(ख) निर्यात संबंधी अनुवर्ती कार्रवाई

गवर्नर महोदय ने प्रस्तावित किया कि पहली जनवरी 2004 से, सभी निर्यातक निर्यात से मिलने वाली अपनी बकाया राशियों को बट्टे खाते डाल सकते हैं और वसूली के लिए 180 दिन की सामान्य अवधि को भी बढ़ा सकते हैं, बशर्ते इस प्रकार बट्टे खाते डाली गयी और विलंब से वसूल की जाने वाली समग्र राशि किसी कैलेंडर वर्ष में उनकी निर्यात से प्राप्य राशियों के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।

सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री - छूट

गवर्नर महोदय ने उल्लेख किया कि वर्तमान में, विक्रेता के अपने पोर्टफोलियों में वास्तविक रूप से प्रतिभूति न होने पर उसे सरकारी प्रतिभूति में किसी प्रकार की बिक्री करने की अनुमति नहीं है। सरकारी प्रतिभूति बाजार को और अधिक विकसित करने के लिए यह प्रस्ताव है कि खरीद के लिए पहले से ही संविदागत (कांट्रैक्टेड) सरकारी प्रतिभूति के विक्रय की अनुमति तभी दी जाएगी जब यह इस खरीद संविदा की गारंटी सीसीआइएल जैसी किसी अनुमोदित वेंद्रीय प्रतिपक्षी (काउंटर पार्टी) ने दी हो अथवा उसका प्रतिपक्षी (काउंटर पार्टी) भारतीय रिज़र्व बैंक रहा हो। इस प्रस्ताव को लागू करने की प्रक्रिया को सहज बनाने के लिए सरकारी प्रतिभूतियों के लेनदेन के निपटान को डीवीपी III प्रणाली में स्विच ओवर कर दिया जाएगा। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि उपर्युक्त व्यवस्था की कार्यप्रणाली की प्रत्येक माह समीक्षा की जाए ताकि उसमें संशोधन करने या उसे बनाए रखने, जो भी उपयुक्त हो, पर विचार किया जा सके।

विवेकशील मानदण्ड

(क) निवेश घट-बढ़ आरक्षित निधि

गवर्नर महोदय ने बैंकों द्वारा निवेश घटबढ़ आरक्षित निधियों के लिए किये गये प्रावधानों की समीक्षा व ी और कहा कि हालांकि, 5 प्रतिशत का निर्धारित लक्ष्य प्राप्त करने के लिए बैंकों के पास काफी समय है, उनसे आग्रह है कि वे तेजी से आइएफआर बनायें ताकि ब्याज दर जोखिमों से निपटने के लिए वे अच्छी स्थिति में रहें।

(ख) वित्तीय संस्थाओं के लिए विवेकपूर्ण मानदण्ड

अंतरराष्ट्रीय मानदण्डों के अनुरूप, वित्तीय संस्थाओं और बैंकों के आस्ति वर्गीकरण मानदण्डों में एकरूपता लाने की दृष्टि से यह प्रस्ताव किया जाता है कि :

  • वित्तीय संस्थाओं के लिए ऋण अनर्जकता के निर्धारण हेतु 31 मार्च, 2006 को समाप्त वर्ष से 90 दिवस का मानदण्ड अपनाया जाए। तथापि, संशोधित मानदण्ड अपनाने से अतिरिक्त प्रावधान करने के भार को कम करने के लिए वित्तीय संस्थाओं को यह अनुमति दी जाती है कि वे अपेक्षित प्रावधानीकरण को 31 मार्च, 2006 को समाप्त वर्ष से शुरू करके तीन वर्ष की अवधि के भीतर, प्रत्येक वर्ष अतिरिक्त प्रावधानीकरण के न्यूनतम एक-चौथाई का प्रावधान करते हुए, चरणबद्ध रूप से पूरा करें।

(ग) वित्तीय विनियमन पर स्थायी तकनीकी परामर्श समिति

गवर्नर महोदय ने कहा कि भूमण्डलीकरण और जोखिम प्रबंधन के संदर्भ में वित्तीय क्षेत्र को इस समय काफी चुनौतियों एवं मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। परामर्श प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाने और अनवरत आधार पर ऐसी प्रक्रिया स्थापित करने की दृष्टि से, गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि भारतीय रिज़र्व बैंक की मुद्रा और सरकारी प्रतिभूति बाजार (टीएसी) से संबंधित तकनीकी परामर्श समिति के समान ही वित्तीय विनियमन से संबंधित स्थायी तकनीकी परामर्श समिति का गठन किया जाए। इस समिति में अकादमियों, वित्तीय बाजारों, बैंकों, गैर-बैंक वित्तीय संस्थाओं और साख-निर्धारण एजेंसियों से लिए गए विशेषज्ञ शामिल होंगे। यह समिति, संदर्भित मामलों की जाँच करेगी और परामर्श के विद्यमान माध्यमों के अतिरिक्त, भारतीय रिज़र्व बैंक को बैंकों और गैर-बैंक वित्तीय संस्थाओं तथा अन्य बाजार सहभागियों सहित उनके विनियमन के संबंध में निरंतर आधार पर परामर्श देगी।

(घ) सर्वांग रूप से महत्त्वपूर्ण वित्तीय मध्यवर्ती
संस्थाओं (एसआइएफआइएस) की निगरानी

सेबी के अध्यक्ष तथा इरडा के अध्यक्ष के साथ परामर्श करके गवर्नर महोदय ने सर्वांग रूप से महत्त्वपूर्ण वित्तीय मध्यवर्ती संस्थाओं के लिए एक विशेष निगरानी प्रणाली स्थापित करने का प्रस्ताव रखा है। वित्तीय मध्यस्थों में ये बातें शामिल होंगी (i) भारतीय रिज़र्व बैंक, सेबी और इरडा के लिए सामान्य हित के वित्तीय मामलों पर रिपोर्टिंग प्रणाली; (ii) अन्तर-समूह लेनदेन की रिपोर्टिंग, और (iii) भारतीय रिज़र्व बैंक, सेबी और इरडा के बीच संबद्ध जानकारी का आदान-प्रदान। इस बात पर सहमति हो गयी है कि इरडा से एक सदस्य को सहयोजित करने के पश्चात, वर्तमान आरबीआइ-सेबी तकनीकी समिति एसआइएफआइएस की एक सूची प्रस्तावित करेगी और अगले तीन महीनों में एक समयबद्ध तरीके से एक रिपोर्टिंग प्रणाली के संबंध में सुझाव देगी।

(ङ) लोक सेवाओं के संबंध में क्रिया-विधियों
और कार्यनिष्पादन लेखा-परीक्षा संबंधी स्थायी समिति

सेवा के वर्तमान स्तर का आधार निर्धारित करने, आवधिक तौर पर प्रगति की समीक्षा करने, तथा निरंतरता के आधार पर परिवर्तन करने के लिए उचित प्रोत्साहनों का सुझाव देने की दृष्टि से गवर्नर महोदय ने एक स्थायी समिति की स्थापना का प्रस्ताव रखा। इस स्थायी समिति के दो कार्य होंगे (i) लोक सेवाओं के संबंध में क्रियाविधि और कार्यनिष्पादन लेखा परीक्षा तथा भारतीय रिज़र्व बैंक में विनियामक निपटानों को हाथ में लेना, और (ii) बैंकों द्वारा स्थापित करने हेतु नीचे प्रस्तावित ग्राहक सेवा तदर्थ समितियों को सलाह देना और उनके साथ समन्वयन करना। उक्त स्थायी समिति अपने कार्य के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक को एक वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी जो भारतीय रिज़र्व बैंक के बोड़ के सम्मुख रखी जाएगी।

(च) बैंकों में ग्राहक सेवा के संबंध में क्रियाविधियों तथा
कार्यनिष्पादन लेखापरीक्षा संबंधी तदर्थ समितियां

विभिन्न बैंकिंग सेवाओं के संबंध में ग्राहक सेवाओं में व्यापक सुधार व र समर्थन देने की दृष्टि से गवर्नर महोदय ने प्रत्येक वाणिज्य बैंक को सूचित किया कि वह बैंक द्वारा दी जाने वाली लोक सेवाओं के संबंध में क्रियाविधियों और कार्यनिष्पादन लेखा परीक्षा के कार्य हेतु एक तदर्थ समिति का गठन करे। प्रत्येक तदर्थ समिति से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने गठन की तारीख से छह महीने के भीतर अपना कार्य पूरा कर ले।

(छ) विकास वित्त संस्थाओं संबंधी कार्य दल

गवर्नर महोदय ने ध्यान दिलाया कि आइसीआइसीआइ ने एक बैंक के रूप में परिवर्तित होने की प्रक्रिया पूरी कर ली है तथा आइडीबीआइ वैसा करने की प्रक्रिया से गुजर रहा है। शेष मीयादी उधारदात्री संस्थाओं और पुनर्वित्त संस्थाओं से संबंधित विनियामक और पर्यवेक्षी मुद्दों पर काम शुरू करने तथा उन्हें संसाधन उपलब्ध कराने में सुधार लाने के लिए विकास वित्त संस्थाओं के संबंध में उन्होंने एक कार्यदल के गठन का प्रस्ताव रखा। उक्त कार्यदल गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के व्यापक ढांचे के भीतर रहते हुए, एक अलग संवर्ग के रूप में विकास वित्त संस्थाओं के लिए अल्पावधि संसाधनों की पहुंच सहित, विभिन्न विनियामक और पर्यवेक्षी पहलुओं की जाँच करेगा और चार महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।

(ज) कंपनी नियंत्रण

गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव रखा कि एक परामर्शी प्रक्रिया के द्वारा: (i) बैंकों के संबंध में गांगुली समिति और सेबी समिति द्वारा सुझाये गये दृष्टिकोणों का तालमेल बिठाया जाए और (ii) अच्छी कंपनी नियंत्रण प्रथाओं के उपर्युक्त सिद्धांतों को प्राथमिक व्यापारियों, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और अन्य वित्तीय संस्थाओं पर भी यथोचित रूप से लागू किया जाए।

प्रौद्योगिकी उन्नयन

गवर्नर महोदय ने नोट किया कि रिज़र्व बैंक, बैंकिंग क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के उन्नयन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, उन्होंने संकेत दिया कि राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली (एनएसएस) के जून 2004 तक चालू हो जाने की आशा है जो देश के विभाजित समाशोधन तथा निपटान संबंधी बुनियादी ढांचे का एकीकरण व रेगी और बैंकों द्वारा अधिक प्रभावी निधि प्रबंध कर सकेगी।

(क) रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट प्रणाली को लागू करना

गवर्नर महोदय ने कहा कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने क्रमिक रूप से रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट प्रणाली का क्रियान्वयन शुरू कर दिया है। जून 2004 तक पूर्ण रूप से कार्यात्मक आरटीजीएस प्रणाली के चालू हो जाने की आशा है। यह प्रणाली भारतीय रिज़र्व बैंक की एकीकृत लेखा-प्रणाली के साथ पूर्ण रूप से एकीकृत होगी। गवर्नर महोदय ने बैंकों और प्राधिकृत व्यापारियों से यह अपेक्षा की कि वे आरटीजीएस प्रणाली में प्रभावी रूप से भाग लेने के लिए बुनियादी ढांचे, प्रणालियों और क्रियाविधियों, तथा पर्याप्त प्रशिक्षित मानवशक्ति के साथ पूर्णरूप से अपनी तैयारी सुनिश्चित करें। उन्होंने आगे कहा कि आरटीजीएस सेवाएं बैंकों द्वारा अपने शाखा नेटवर्क के माध्यम से प्रदान की जाएंगी, बैंक अपनी शाखाओं और भुगतान प्रणाली गेटवे, जिनके माध्यम से बैंक आरटीजीएस प्रणाली के साथ परस्पर-क्रिया करेंगे, के बीच आवश्यक संबद्धता की व्यवस्था कर लें।

(ख) आरटीजीएस के अंतर्गत आंतर-दिवस चलनिधि

आरटीजीएस के शुरू हो जाने के साथ सुचारू और समय पर निपटान प्रक्रिया के लिए यह आवश्यक हो जाएगा कि सहभागियों के लिए आंतर-दिवस चलनिधि सहायता उपलब्ध कराने के लिए आंतर-दिवस निधियों की आवश्यकता में वृद्धि की जाए। गवर्नर महोदय ने आरटीजीएस परिवेश की ओर सहज रूप से जाने की दृष्टि से, बाजार सहभागियों को सूचित किया कि वे सक्षम नकदी प्रवाह प्रबंधन के लिए कार्यनीति तैयार करें।

केन्द्रीय डेटाबेस प्रबंधन प्रणाली (सेंट्रल डेटाबेस मैनेजमेंट सिस्टम)

रिज़र्व बैंक ने एक केन्द्रीय डेटाबेस प्रबंधन प्रणाली की स्थापना की है, जो रिज़र्व बैंक उपयोगकर्ताओं की पहुंच और विश्लेषण के लिए दिसंबर 2002 से उपलब्ध है। गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव रखा कि संबंधित सीडीबीएमएस डेटा को पब्लिक डोमेन में रखा जाये। तदनुसार, विशेष रूप से उपयोगकर्ताओं की आवश्यकताओं के निर्धारण के द्वारा इस प्रक्रिया के संबंध में दिशा-निर्देश के लिए एक विशेषज्ञ दल का गठन किया जा रहा है। आशा है कि ये डेटा जून 2004 के अंत तक शोधकर्ताओं तथा अन्य उपयोगकर्ताओं के लिए ऑनलाइन उपलब्ध हो जायेंगे।

सरकारी कारोबार करना

(क) एजेंसी व्यवस्था को बढ़ाना

अब तक, सरकारी क्षेत्र के बैंक सरकारी कारोबार करने के लिए रिज़र्व बैंक के एजेंट के रूप में प्राधिकृत थे। जनता की सुविधा और सरकारी कारोबार को समय पर करने हेतु एक व्यापक नेटवर्क प्रदान करने के लिए निजी क्षेत्र के चार बैंक पहली अक्तूबर 2003 से राजस्व जमा करने, पेंशन के भुगतान और केन्द्र सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों के व्यय संबंधी कार्यों से संबद्ध सरकारी लेनदेन करने के लिए प्राधिकृत किये गये थे।

(ख) ऑन लाइन टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन सिस्टम

केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोड़ (सेंट्रल बोड़ ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस) के अनुरोध पर रिज़र्व बैंक ने एक ऑन लाइन टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन सिस्टम के परिचालन के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया है। यह भी निर्णय लिया गया है कि चुनिंदा शहरों में, जहां वर्तमान में बैंक कर वापसी सुविधा प्रदान करते हैं, कर निर्धारितियों को इलेक्ट्रॉनिक क्लियरिंग सर्विसेजॅ के माध्यम से कर वापसी (टैक्स रिफंड) की जाये। शुरुआत में, इन चुनिंदा शहरों में इलेक्ट्रॉनिक क्लियरिंग सर्विसेजॅ के माध्यम से लाभार्थियों को 25,000 रुपये तक के कर वापसी के पायलेट प्रोजेक्ट का प्रस्ताव है।

मुद्रा प्रबंध की गतिविधियां

अप्रैल 2003 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में बताये गये अनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अपनायी गयी स्वच्छ नोट नीति को विशेष उपायों तथा भारतीय रिज़र्व बैंक के सभी निर्गम कार्यालयों में नोट प्रोसेसिंग कार्यों के मशीनीकरण के द्वारा और सरल बनाया गया है। स्टैपल रहित नोटों की परिचालन प्रणाली की सहायता के लिए बैंकों को सूचित किया गया कि वे नोट बैंडिंग मशीन और नोट काउंटिंग/सॉर्टिंग मशीनों जैसे आवश्यक उपकरण मुहैया करायें।

रिज़र्व बैंक आम जनता की सुविधा को अत्यधिक महत्त्व देता है। गवर्नर महोदय ने जहां बैंकों द्वारा हाल की अवधि में की गई असाधारण प्रगति की प्रशंसा की, वहीं इस संबंध में, रिज़ॅर्व बैंक तथा बैंकों के आपसी सहयोग से और प्रगति की इच्छा व्यक्त की।

सूरज प्रकाश
प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2003-2004/580

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