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रिज़र्व बैंक के गवर्नर द्वारा वर्ष 2001-2002 के लिए मौद्रिक और ऋण नीति की घोषणा

रिज़र्व बैंक के गवर्नर द्वारा वर्ष 2001-2002 के लिए मौद्रिक और ऋण नीति की घोषणा

19 अप्रैल 2001

 

मुख्य-मुख्य बातें

 

  • उद्योग क्षेत्र के निम्नतर कार्य निष्पादक और वित्तीय बाज़ार के कतिपय खंडों की प्रतिकूल गतिविधियों के बावजूद वर्ष 2000-01 में समष्टि आर्थिक, मौद्रिक और मूल्य संबंधी स्थिति और बाह्य क्षेत्र की गतिविधियाँ मोटे तौर पर अनुकूल

 

  • रिज़र्व बैंक ऋण वृद्धि को पूरा करने तथा निवेश मांग के पुन:प्रचलन को सहायता देने के लिए यथोचित चलनिधि प्रदान करेगा।

 

  • रिज़र्व बैंक मौजूदा स्थिर ब्याज दर का वातावरण जारी रखना चाहता है और वर्ष के दौरान उसमें और नरमी की वरीयता घोषित करता है।

 

  • निर्यात ऋण पर 1 से 1.5 प्रतिशत अंकों से ब्याज दरकम करने और निर्यात ऋण पुनर्वित्त युक्तिसंगत बनाने के उपाय।

 

  • चलनिधि समायोजन सुविधा के अगले चरण पर जाने के उपाय : बैंकों और प्राथमिक व्यापारियों को बैक-स्टॉप सुविधा सहित अन्य उपायों का विस्तृत पैकेज

 

  • प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात और लचीला, प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात की बकाया राशि पर ब्याज में वृद्धि

     

  • मूल उधार दर मानदंड उदारीकृत

     

  • वरिष्ठ नागरिकों द्वारा रखी गयी जमाराशियों पर उच्चतर ब्याज दर देने के लिए बैंकों को अनुमति

     

  • शहरी सहकारी बैंकों को मजबूत बनाने के लिए विवेकपूर्ण उपाय

     

  • रिज़र्व बैंक, सहकारी बैंकों के लिए स्वतंत्र उच्च पर्यवेक्षी निकाय के पक्ष में है

 

  • रिज़र्व बैंक वित्तीय संस्थाओं में अपने स्वामित्व का विनिवेश करके अपनी भूमिका सरल बनाएगा।

     

  • रिज़र्व बैंक से ऋण प्रबंधन कार्य अलग करने का एक स्तर निश्चित करने के लिए कदम उठाये जा रहे हैं।

     

  • शेयर बाज़ारों में बैंकों के निवेश पर संशोधित दिशानिर्देश अगले परामर्शों के बाद मई 2001 से प्रभावी

 

वर्ष 2001-2002 के लिए मौद्रिक एवं ऋण नीति
पर भारतीय रिज़र्व बैंक के
गवर्नर डॉ. विमल जालान का वक्तव्य

 

भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर डॉ. विमल जालान ने आज बैंकों वे मुख्य कार्यपालकों के साथ बैठक में 2001-02 के लिए वार्षिक मौद्रिक और ऋण नीति का उल्लेख किया। इस वक्तव्य में समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों, मौद्रिक नीति की अवस्थितियों तथा वित्तीय प्रणाली को सुदृढ़ करने और बाजारों तथा संस्थागत संरचना के विकास के लिए व्यापक दायरे वाले उपायों के पैकेज की समीक्षा निहित थी। गवर्नर महोदय ने मौद्रिक नीति तथा विदेशी मुद्रा विनिमय दर और आरक्षित निधि के प्रबंधन से सम्बन्धित कुछ विश्लेषणात्मक और व्यावहारिक मुद्दों का भी उल्लेख किया।

2. प्रारंभ में गवर्नर महोदय ने उल्लेख किया कि इस वर्ष की नीति ऐसे समय प्रस्तुत की जा रही है जब वित्तीय प्रणाली के कुछ खंडों में गंभीर कमियाँ उजागर हुई हैं। इस संबंध में गवर्नर महोदय ने कहा कि ध्यान में आयी इन कमज़ोरियों को दूर करने के लिए सुधारात्मक कार्रवाई करने की तत्काल जरूरत है ताकि भारत का वित्तीय क्षेत्र लगातार सुदृढ़ॅ और सुरक्षित रहे।

3. गवर्नर महोदय ने कहा कि यद्यपि उत्पादन में तत्काल ही जो नुकसान हुआ है वह महत्त्वपूर्ण नहीं है, लेकिन गुजरात में आए भूकंप ने काफी नुकसान पहुँचाया है और आधारभूत संरचना को पुन:स्थापित करने की लागत के कारण इस राज्य पर राजकोषीय दबाव पड़ेगा जिससे राजस्व में हानि होगी और सहायता तथा पुनर्वास का वित्तपोषण करना होगा।

4. गवर्नर महोदय ने कहा कि वर्ष 2000-01 में सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि दर लगभग 6.0 प्रतिशत रहने की संभावना है, जबकि पिछले दो वर्षों में यह 6.4 प्रतिशत और 6.6 प्रतिशत थी। पिछले वर्ष समष्टि आर्थिक विकास का स्वागत योग्य लक्षण यह था कि सेवा क्षेत्र में, विशेषकर सूचना प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित सेवाओं में अच्छा कार्यनिष्पादन रहा। एक वर्ष पहले की वार्षिक मुद्रास्फीति दर 6.8 प्रतिशत थी जो 2000-01 में 4.9 प्रतिशत रही। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जो स्फीति-दर प्रकट होती है, वह फरवरी 2001 के अंत तक 3.0 प्रतिशत की न्यून दर पर रही।

5. मौद्रिक गतिविधियों का उल्लेख करते हुए वर्ष 2000-01 के दौरान, अंक-दर-अंक आधार पर मुद्रा आपूर्ति (एम3) में वार्षिक वृद्धि एक साल पहले के 14.6 प्रतिशत की तुलना में 16.2 प्रतिशत पर अधिक रही और इंडिया मिलेनियम जमाराशियों (आइएमडी) के लगभग 26,000 करोड़ रुपए के बड़े धनागम प्राप्त हुए। अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की कुल जमाराशियों में 17.8 प्रतिशत की वृद्धि पिछले वर्ष के 17.8 प्रतिशत की तुलना में अधिक रही। वर्ष के दौरान समग्र रूप से खाद्येतर ऋणों में पिछले वर्ष की 16.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी की तुलना में 14.3 प्रतिशत की निम्नतर संवृद्धि हुई।

6. वर्ष 2000-01 के दौरान आरक्षित मुद्रा में हुई 8.3 प्रतिशत (लगभग 23,200 करोड़ रुपए) की वृद्धि पिछले वर्ष की 8.1 प्रतिशत (लगभग 21,000 करोड़ रुपए) की वृद्धि से तुलनीय थी। आरक्षित मुद्रा में विस्तार बड़े पैमाने पर निवल विदेशी मुद्रा आस्तियों (एनएफईए) में वृद्धि से हुआ।

7.गवर्नर महोदय ने खाद्यान्नों के विशाल बफर स्टाक पर चिन्ता व्यक्त की और इस संदर्भ में राजकोषीय और मौद्रिक पहलुओं से अवसर लागत का उल्लेख किया। उन्होंने 2001-02 के केन्द्रीय बजट में घोषित खाद्य अर्थव्यवस्था के प्रबंधन में सुधारों का स्वागत किया।

8. गवर्नर महोदय ने बताया कि 2000-01 में राजकोषीय घाटे पर नियन्त्रण से मौद्रिक और ऋण प्रबंधन कार्यों में सुविधा हुई है, क्योंकि ब्याज दरों पर अनावश्यक दबाव डाले बिना ही केन्द्र सरकार द्वारा बाजार से उधार लेने के कार्यक्रम (1,15,183 करोड़ रुपये सकल और 73,787 करोड़ रुपये निवल) को आगे बढ़ाया जा सका।

9. गवर्नर महोदय ने राजकोषीय दायित्व विधान के वचनों सहित राजकोषीय समेकन के लिए प्रयासों का स्वागत किया और कहा कि संविदागत बचतों पर ब्याज दर को कम करने को भी मिला लिया जाए तो इनसे अनुकूल ब्याज दर व्यवस्था की ओर बढ़ने में सहायता मिलेगी। इससे भौतिक और सामाजिक संरचना में अति आवश्यक निवेश के लिए सरकारी स्रोत प्रदान करने में भी मदद मिलेगी, इससे निजी निवेश को भी प्रोत्साहन मिलेगा।

10. सरल चलनिधि स्थितियों और सहज ब्याज दर परिवेश की निरन्तरता का उल्लेख करते हुए गवर्नर महोदय ने जोर दिया कि यदि वर्तमान आर्थिक परिस्थितियाँ बदलती हैं तो उचित मौद्रिक उपाय करना फिर से जरूरी हो जाएगा जो कि वर्तमान सहज परिस्थितियों के अनुरूप नहीं भी हो सकता है। उन्होंने बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से अनुरोध किया कि वे अनपेक्षित आकस्मिकताओं के लिए अपनी व्यवसाय योजना में पर्याप्त गुंजाइश रखें और अपने परिचालनों पर मौद्रिक तथा बाह्य परिवेश में परिवर्तनों के प्रभावों को पूरी तरह से ध्यान में रखें।

11. मौद्रिक प्रबंधन के कुछ व्यावहारिक पक्षों पर राय देते हुए गवर्नर महोदय ने उल्लेख किया कि वर्तमान अवधि के लिए नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर संभावित स्फीतिकारी दबावों के सही आकलन में कठिनाई है। इसलिए समुचित नीति योजना बनाने से पहले मांग-आपूर्ति के घटकों की वजह से प्रच्छन्न स्फीति को भी ध्यान में रखना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। स्फीतिकारी दृष्टिकोण के आकलन के लिए रिज़र्व बैंक क्रियाविधि में अवशोधन को जारी रखेगा और एक मौद्रिक संसूचक निर्धारित करेगा जो कि परिवर्तनशील परिवेश में मौद्रिक नीति के निरूपण के लिए सर्वोत्तम गाइड होगा।

बाह्य गतिविधियाँ

12. गवर्नर महोदय ने उल्लेख किया कि 2000-01 के दूसरे भाग में भारत की विदेशी मुद्रा आस्तियों में लगभग 7.0 बिलियन अमरीकी डालर की बढ़ोतरी हुई और मुद्रा विनिमय दर के उतार-चढ़ाव भी सामान्यतया सुव्यवस्थित और दायरे के भीतर रहे, इसका मुख्य कारण भारत की विदेशी संभावनाओं में फिर से विश्वास का बढ़ना रहा।

13. गवर्नर महोदय ने फारेक्स मार्केट के बहुरूपी व्यवहार की ओर ध्यान दिलाया; संवृद्धि दर, व्यापार घाटा या तेल कीमतों जैसे महत्त्वपूर्ण आर्थिक चरांकों या ‘वास्तविक’ अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन नहीं हुए, फिर भी वर्ष की दोनों छमाहियों में गहरे विभेद रहे।

 

  • विदेशी मुद्रा बाजार में अल्पावधि में दैनंदिनी गतिविधियों को तथाकथित ‘मूल सिद्धांतों’ अथवा देश के भुगतान दायित्वों, जिसमें ऋण भुगतान भी शामिल है, को पूरा करने की देश की क्षमता से कोई खास लेना-देना नहीं होता है। इसके द्वारा उत्पन्न कोई प्रतिकूल समाचार और ‘संभावना’ एक सर्वोच्च भूमिका निभाने का कारण बन सकता है। निर्यात/आयात प्राप्तियों और भुगतानों, धन-प्रेषणों और अंत: बैंक स्थितियों में ‘बढ़त और घटत’ पर अपने प्रतिकूल प्रभाव के कारण प्रतिकूल संभावनाएं सामान्यत: स्वत:पूर्ण भी होती हैं।

 

  • अंतर बैंक कारोबार के परिप्रेक्ष्य में, जो विदेशी मुद्रा बाजार में गति निर्धारित करता है, ‘सकल’ में लेन-देन की मात्रा ‘निवल’ प्रवाह की तुलना में कई गुणा अधिक और अस्थिर है। ‘सकल’ प्रवाह में विनिमय दरें अधिक संवेदनशील हैं और बदले में ‘सकल’ प्रवाह में अस्थिरता विनिमय दर संभावनाएं के संबंध में संवेदनशील हैं।

 

  • बुरी खबरों अथवा प्रतिकूल गतिविधियों के कारण किसी भी प्रकार की प्रारंभिक प्रतिकूल गतिविधि, व्यापक अंतर बैंक कारोबार के कारण तेज हो सकती है। प्रतिकूल गतिविधि के ‘अंध नकल’ प्रभाव की स्थिति और बाजार के सहभागियों की भेड़चाल से गैर बैंकिंग सहभागियों के बीच और अधिक खरीद अथवा बचाव व्यवस्था की स्थिति पैदा हो सकती है। जोखिम प्रबंधन में ‘जोखिम पर दैनिक आय’ उपाय भेड़चाल को सुदृढ़ बनाते हैं। किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति में, विशेषकर कुछेक प्रमुख परिचालकों के प्रभुत्व वाले अत्यल्प लेनदेन और अल्प विकसित बाजार में विपरीत स्थिति में काम करने के स्थान पर दूसरों का अनुसरण करना एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है।

 

  • विकासशील देशों में सामान्यत: लघु और स्थानीयकृत विदेशी मुद्रा बाजार होते हैं, जहां सांकेतिक स्वदेशी मुद्रा मूल्यों से ह्रासमान प्रवृत्ति की अपेक्षा होती है, विशेषकर यदि मुद्रास्फीति की दर प्रमुख औद्योगिक देशों की तुलना में अधिक हो। ऐसी स्थिति में, जब संभावनाएं प्रतिकूल होती हैं और मुद्रा मूल्यह्रास होता है तो बाजार के सहभागियों में विदेशी मुद्रा को अधिक समय तक रखने और बिक्री को रोक रखने की प्रवृत्ति रहती है किंतु जब मुद्रा का अधिमूल्यन होता है और संभावनाएं अनुकूल होती हैं तो सहभागियों की प्रवृत्ति उपर्युक्त के विपरीत होती है। इस प्रकार, दोनों स्थितियों में बाजार का चलन संतुलित नहीं रहता है।

 

  • आयातकों/निर्यातकों और अन्य अंतिम उपयोगकर्ता द्वारा समुचित जोखिम प्रबंधन उपायों को अपनाए बगैर विनिमय दर गतिविधियों को प्रतिफल के स्रोत के रूप में देखने की प्रवृत्ति कभी-कभी आपूर्ति की मांग की विषम स्थिति पैदा कर देती है जो अक्सर ‘समाचार और विचार’ पर आधारित होती है। मांग-आपूर्ति में बेमेल का आत्मकेन्द्रित त्रिभुज, इसका लाभ उठाने के लिए बढ़े हुए अंतर बैंक क्रिया कलाप और नकारात्मक भावनाओं से उत्प्रेरित गतिमान परिवर्तनशीलता आधारभूत सिद्धान्तों के अनुरूप नहीं होते, ये तुरंत गतिशील हो सकते हैं, जिसके लिए प्राधिकारियों द्वारा तुरंत हस्तक्षेप/प्रतिसाद अपेक्षित है।

14. गवर्नर महोदय ने फिर से बताया कि सैद्धांतिक रूप से दरों के स्वतंत्र अस्थायी विनिमय दरों (बगैर हस्तक्षेप के) या नियत दरों के मुद्रा बोड़ जैसी व्यवस्था के लिए एक मजबूत आधार बनता है, हालांकि, व्यवहार में यही हो रहा है कि अधिकांश देशों में "नियंत्रित" परिवर्तनशीलता के कुछ प्रकार अपनाये गए हैं और केन्द्रीय बैंक आवधिक रूप से बाजॉर में हस्तक्षेप करते हैं।

15. गवर्नर महोदय ने अप्रत्याशित आकस्मिक खर्चों, अस्थिर पूंजी प्रवाह और अन्य गतिविधियों, जो संभावनाओं को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकती हैं, के लिए विदेशी मुद्रा प्रारक्षित नीधियों के सृजन के महत्त्व पर बल दिया। उन्होंने कहा कि आरक्षित निधियों, यदि हों तो, को बनाए रखने की निवल वित्तीय लागतों की तुलना में ये अर्थिक खर्चें काफी अधिक होना संभावित है। गवर्नर महोदय ने पुन: कहा कि विगत वर्षों में भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधियों के प्रबंधन के लिए समग्र दृष्टिकोण ने भुगतान संतुलन के बदलते हुए घटकों को दर्शया है और विभिन्न प्रकार के प्रवाहों और अन्य अपेक्षाओं से जुड़े "चलनिधि जोखिमों" को दिखाने का प्रयास किया है।

16. उन्होंने कहा कि निर्यातकों और निर्यात व्यापार संगठनों से प्राप्त सुझावों की भारतीय रिज़र्व बैंक और बैंकर समूहों ने जांच की और निर्यात ऋण की प्रक्रिया को और सरल बनाने के लिए बैंकों को मार्गदर्शी सिद्धांत जारी किए गए। गवर्नर महोदय ने किसी बाहरी स्वतंत्र एजेंसी के सहयोग से एक सर्वेक्षण कराने का प्रस्ताव किया ताकि रिज़र्व बैंक द्वारा निर्यात ऋण डिलीवरी की क्रियाविधि को सरल बनाने के साथ-साथ बैंक सेवाओं से निर्यातकों की संतुष्टि के स्तर का भी आकलन किया जा सके।

17. गवर्नर महोदय ने कहा कि विनाशकारी भूकंप की वजह से निर्यातकों को होनेवाली परेशानियों को कम करने की दृष्टि से बैंकों को इस आशय के दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं कि वे निर्यातकों को सहायता/रियायत प्रदान करें। इनमें पैंकिंग क्रेडिट की अवधि बढ़ाने, देय-राशियों को उपयुक्त किस्तों में चुकाए जानेवाले अल्पावधि ऋण में बदलने और अनर्जक परिसंपत्तियों के वर्गीकरण मानदंडों में ढील देने संबंधी दिशा-निर्देश शामिल हैं।

18. गवर्नर महोदय ने विदेशी निवेश को बढ़ाने के लिए हाल ही में किए गए कुछ उपायों का भी उल्लेख किया जैसे आइ टी के क्षेत्र में विदेशी निवेश प्रस्ताव, अपने विदेशी सहयोगियों से राशि प्राप्त करने और उन्हें शेयर जारी करने के लिए भारतीय कम्पनियों को सामान्य अनुमति के लिए स्वत: अनुमोदन, एडीआर/जीडीआर मार्केट में सुधार, और अपनी शेयरधारिता में परिवर्तन करने के लिए भारतीय शेयरधारकों को अवसर इत्यादि। गवर्नर महोदय ने यह भी कहा कि क्रियाविधि को सरल बनाने, प्रलेखीकरण की अपेक्षाओं को काम करने तथा भारत में अनिवासी भारतीयों तथा अन्य लोगों व विदेश स्थित भारतीय निगमों द्वारा उत्पादनकारी निवेश के लिए अवसरों में रियायत देने के प्रयासों को रिज़र्व बैंक जारी रखेगा।

II. 2000-02 के लिए मौद्रिक नीति की अवस्थिति

19. गवर्नर महोदय ने कहा कि मार्च, 2001 के दौरान शेयर बाजारों ने काफी उथल-पुथल और अनिश्चितता का अनुभव किया जिससे कुछ शेयर बाजारों में समस्याएं एवं कुछ सहकारी बैंकों में चलनिधि/दिवालियापन की समस्याएं उत्पन्न हुई। इन्होंने कुछ वाणिज्य बैंकों को भी प्रभावित किया। इस कठिन समय में रिज़र्व बैंक की एक महत्त्वपूर्ण वरीयता इस "संक्रामक रोग" को शेयर बाजारों से मुद्रा और सरकारी प्रतिभूति बाजारों तथा समग्र रूप में बैंकिंग प्रणाली में फैलने से रोकने का प्रयास करने और इसे न्यूनतम रखने की रही। गवर्नर महोदय ने यह भी कहा कि वित्तीय स्थिरता के हित में यही होगा कि सहकारिता क्षेत्र के नियंत्रण हेतु नियामक संरचना को सुदृढ़ करने वाले उपाय किए जाएँ।

20. गवर्नर महोदय ने उल्लेख किया कि विश्व अर्थव्यवस्था में मंदी का प्रभाव भारत में अधिक नहीं रहेगा। इस वर्ष अनुकूल घटक यही रहा है कि अन्तर्राष्ट्रीय स्फीतिकारी परिवेश काफी मामूली रहा है। गवर्नर महोदय ने यह विश्वास व्यक्त किया कि यद्यपि मर्चेंडाइस निर्यात संवृद्धि थोड़ी सामान्य रह सकती है, तो भी अधिक अलग-अलग गंतव्यों के साथ साफ्टवेयर निर्यात और निजी धनप्रेषण में बढ़ोतरी बनी रहेगी। चालू खाते में घाटे का आकार, संभावना है कि सघउ के 2.0 प्रतिशत के भीतर बना रहेगा।

21. गवर्नर महोदय ने निम्न राजकोषीय घाटे और नियंत्रित उधार कार्यक्रम का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय रिज़र्व बैंक यह आशा करता है कि ऋण प्रबंध का संचालन समग्र चलनिधि और ब्याज दरों पर किसी गंभीर दबाव के बिना किया जाएगा।

22. गवर्नर महोदय ने कहा कि रिज़र्व बैंक यह सुनिश्चित करेगा कि ऋण के लिए सभी विधिसम्मत अपेक्षाओं की पूर्ति मूल्य स्थिरता के अनुरूप की जाए। इस लक्ष्य की दिशा में, खजाना बिलों के दुतरफा विक्रय/क्रय सहित खुले बाजार के कार्यकलापों (ओएमओ) के माध्यम से एवं जब भी आवश्यक हो, आरक्षित नकदी निधि अनुपात में आगे और कमी करते हुए, चलनिधि के सक्रिय मांग-प्रबंध की अपनी नीति जारी रखेगा। यह भी संभव होना चाहिए कि चालू ब्याज दर परिवेश को बनाये रखा जाए, तथा मध्यावधि और दीर्घावधि ब्याज दरों में कुछ और नरमी लाने की संभावना का पता लगया जाए। तथापि उन्होंने चेतावनी दी कि प्रतिकूल और अप्रत्याशित गतिविधियों की स्थिति में बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को पीछे लौटने या सख्ती के लिए भी तैयार रहना चाहिए।

23. गवर्नर महोदय ने कहा कि वर्ष वे लिए समग्र रूप से मौद्रिक नीति निरूपण के प्रयोजन से वास्तविक सघउ की संवृद्धि दर को 6.0 से 6.5 प्रतिशत पर, स्फीति की दर को 5.0 प्रतिशत के भीतर और व्यापक मुद्रा (एम3) में यथापेक्षित विस्तार को लगभग 14.5 प्रतिशत पर रखा जाए। गैर-खाद्य बैंक ऋण (निवेश के लिए समायोजित) में 16.0 से 17.0 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान हैं, इसे ऋण की जरूरतों को पर्याप्त रूप से पूरा किया जा सकेगा।

24. ब्याज दरों में और लोचशीलता के बारे में उन्होंने जोर दिया कि वित्तीय प्रणाली को अपनी परिचालनगत दक्षता में सुधार करना चाहिए और मध्यस्थता लागत में और कमी का लक्ष्य रखना चाहिए। बैंकों के लिए यह जरूरी है कि परिचालनगत दक्षता में और सुधार करें तथा स्फीतिकारी दृष्टिकोण में परिवर्तनों के अनुसार ब्याज दर लोचशीलता के लिए सक्रिय देयता प्रबंध को सुधारें।

25. संक्षेप में, सामान्य परिस्थिति के अंतर्गत और घरेलू अथवा बाह्य क्षेत्रों में किसी विपरीत और अप्रत्याशित गतिविधियों को छोड़कर वर्ष 2001-02 के लिए मौद्रिक नीति की कुल अवस्थिति इस प्रकार है:

 

 

  • कीमत स्तर में गतिविधियों पर नज़र रखते हुए निवेश-मांग में चेतना लाने और ऋण संवृद्धि को पूरा करने के लिए पर्याप्त चलनिधि का प्रावधान
  • मध्यम अवधि में ब्याज दर व्यवस्था को अधिकाधिक लोचशीलता प्रदान करने के समग्र फ्रेमवर्क के भीतर वर्तमान स्थिर ब्याज दर परिवेश को यथासंभव सरल बनाने की तरजीह के साथ स्थितियों के अनुसार व्यवस्था।

III. वित्तीय क्षेत्र के सुधार और मौद्रिक नीति के उपाय

26. वित्तीय प्रणाली को सुदृढ़ बनाने और वित्तीय बाजारों के विभिन्न खण्डों के कार्यों में सुधार के लिए गवर्नर महोदय ने कुछ संरचनात्मक उपाय घोषित किए।

तरलता समायोजन सुविधा - चरण II की समीक्षा

27. जैसा कि अप्रैल 2000 के नीति विवरण में निर्दिष्ट प्राप्त अनुभवों औरय व्यापक परामर्शों के आधार पर तथा बाजार प्रतिभागियों से यह सामान्य प्रतिक्रिया मिलने पर कि तरलता समायोजन सुविधा कार्य पहला चरण भली भांति कार्य करता रहा यह निर्णय लिया गया है कि तरलता समायोजन का दूसरा चरण आगे कार्यान्वित किया जाये।

क) स्थायी चलनिधि सुविधाओं में परिवर्तन, बैक-स्टॉप सुविधा
का प्रारंभ और निर्यात पुनर्वित्त के लिए नया फार्मूला

 

  • भारतीय रिज़र्व बैंक से उपलब्ध स्थायी चलनिधि सुविधाओं को दो भागों, अर्थात् (I) सामान्य सुविधा और (ii) बैक-स्टॉप सुविधा, में विभाजित करने का प्रस्ताव है।
  • सामान्य सुविधा बैंक दर पर उपलब्ध करायी जायेगी।
  • बैक-स्टॉप सुविधा के लिए दैनिक आधार पर निश्चित की जानेवाली परिवर्तनशील दर उस प्रति-पुनर्खरीद-अधिकतम दर पर परिवर्तनशील दर पर उपलब्ध करायी जायेगी
  1.  

     

    1. रिवर्स रेपो कट ऑफ दर के ऊपर 1.0 प्रतिशत पाइंट पर
    2. जहां चलनिधि समायोजन सुविधा की नीलामी के भाग के रूप में कोई भी प्रति-पुनर्खरीद बोली स्वीकार नहीं की गयी, वहां दर रिज़र्व बैंक के निर्णयानुसार चलनिधि समायोजन सुविधा की नीलामी से प्राप्त दिन की पुनर्खरीद अधिकतम दर से 2.0 से 3.0 प्रतिशत अंक अधिक होगी;
    3. यदि दिन के दौरान पहले पुनर्खरीद अथवा पुनर्खरीद नीलामियों में बोलियां स्वीकार नहीं की गयीं तो दर रिज़र्व बैंक के निर्णयानुसार एनएसई-एमआइबीओआर से 2.0 से 3.0 प्रतिशत अंक अधिक होगी।
  •  

    • प्राथमिक व्यापारियों तथा बैंकों को उपलब्ध नकदी समर्थन की कुल सीमाओं से प्रारंभ में सामान्य सुविधा लगभग दो तिहाई हिस्से होगी और बॅक स्टॉप सुविधा लगभग एक तिहाई होगी।

28. गवर्नर ने घोषणा की कि निर्यात ऋण पुनर्वित्त सुविधा का औचित्यीकरण किया जाए ताकि यह सुविधा निर्यातकों को बैंक द्वारा दिए जा रहे कुल ऋण सहायता की मात्रा को अच्छी तरह दर्शा सके। अब 5 मई 2001 से शुरू होने वाले पखवाड़े से वाणिज्य बैंकों को द्वितीय पूर्ववर्ती पखवाड़े के अंत की स्थिति के अनुसार पुनर्वित्त के लिए पात्र बकाया निर्यात ऋण के 15.0 प्रतिशत की सीमा तक निर्यात ऋण पुनर्वित्त दिया जायेगा। फार्मूला में परिवर्तन के कारण, उपर्युक्त उल्लिखित बैंक पुनर्वित्त के कतिपय प्रतिशत को 31 मार्च 2002 तक पाने के हकदार बने रहेंगे। यदि इन बैंकों द्वारा लिये जानेवाले निर्यात ऋणों की मात्रा में वृद्धि होती है तो उनको दी जानेवाली पुनर्वित्त सुविधा में भी तदनुसार वृद्धि होगी।

 

(ख) नकदी समायोजन सुविधा को परिचालित

करने संबंधी प्रक्रिया में परिवर्तन

29. नकदी समायोजन सुविधा प्रक्रिया संबंधी उपाय नीचे दिए गए हैं :

 

 

 

 

 

 

  • नकदी समायोजन सुविधा का न्यूनतम बोली की मात्रा को 10 करोड़ रुपये से घटाकर 5 करोड़ रुपये कर दिया गया है।
  • नकदी समायोजन सुविधा की बोलियों की प्राप्ति के लिए परिणाम की घोषणा के लिए अवधि को 30 मिनट बढ़ाया जा रहा है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक के पास रखे गए अनुसूचित बैंकों के सकल नकदी शेष के संबंध में बाज़ार को सूचना।
  • रेपोज़ में स्विच-ओवर करने का अतिरिक्त विकल्प होगा; किंतु इस विकल्प के उपयोग किए जाने की बहुत कम संभावना है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक को यह भी स्वनिर्णय करने का अधिकार होगा कि जब कभी आवश्यक हो, वह 14 दिनों की अवधि के दीर्घकालीन रेपो की शुरूआत करे।
  • प्रायोगिक आधार पर बहुविध कीमतों पर नीलामी की शुरुआत।

 

(ग) निर्यात ऋण संबंधी ब्याज दरों का औचित्यीकरण

30. बैंकों द्वारा दिये जानेवाले निर्यात ऋण संबंधी ब्याज दर की सभी श्रेणियों के मामले में उच्चतम दर के रूप में उल्लिखित किया जाये ताकि बैंकों द्वारा लगायी गयी ब्याज दर वस्तुत: निर्धारित दर से कम हो। यह आशा की जाती है कि इससे स्वस्थ प्रतियोगिता की शुरूआत होगी और निर्यातकों को ब्याज दर, सेवा की उत्तमता और कारोबार लागत की दृष्टि से बैंकिंग सेवाओं के उपयोग के लिए बेहतर विकल्प उपलब्ध होंगे। प्रमुख सरकारी क्षेत्र के बैंकों के 180 दिन तक के मौजूदा पीएलआर के आधार पर इस बात की संभावना है कि ब्याज दर में 1.0-1.5 प्रतिशत बिंदु की कमी आये। बैंक निर्यात ऋण के लिए पीएलआर में से 15 प्रतिशत दर घटाते हुए निचली दर का भी प्रस्ताव कर सकते हैं।

 

(घ) मुद्रा और सरकारी प्रतिभूति बाजारों से संबद्ध पूरक उपाय

 

  • मुद्रा और सरकारी प्रतिभूति बाज़ारों के संबंध में

निम्नलिखित पूरक और संबद्ध उपाय घोषित किये गये हैं :

 

 

  1. शुद्ध अंतर-बैंक मांग मुद्रा बाज़ार की ओर अग्रसर

 

 

 

  • कंपनियों (कार्पोरेट) को प्राथमिक व्यापारियों के माध्यम से अपने मांग कारोबार करने की अनुमति 30 जून, 2001 तक होगी ।
  • मांग/सूचना मुद्रा बाज़ार में कार्य करने के लिए अन्य गैर-बैंक संस्थाओं (वित्तीय संस्थाओं (वित्तीय संस्थाओं, म्युचुअल फंड एवं बीमा कंपनियों सहित) की पहुंच को धीरे-धीरे चार चरणों में कम किया जाएगा :

 

- चरण I में, वर्ष 2000-01 के दौरान गैर-बैंकों को 5 मई 2001 से मांग बाजार में अपने औसत दैनिक उधार का 85.0 प्रतिशत उधार देने की अनुमति होगी।

 

- चरण II में, वर्ष 2000-01 के दौरान गैर-बैंकों को समाशोधन निगम के परिचालन में असने की तारीख से मांग बाजार में अपने औसत दैनिक उधार का 70.0 प्रतिशत उधार देने की अनुमति होगी।

- चरण -III में, वर्ष 2000-01 के दौरान चरण II के तीन महीने बाद की तारीख से गैर-बैंकों की मांग/सूचना मुद्रा में बाजार में पहुंच मांग बाज़ार में उनके औसत दैनिक उधार के 40.0 प्रतिशत के बराबर होगी।

- चरण IV में, वर्ष 2000-01 के दौरान चरण III के तीन महीने बाद की तारीख से गैर-बैंकों की मांग/सूचना मुद्रा बाज़ार में पहुंच मांग बाजार में उनके औसत दैनिक उधार के 10.0 प्रतिशत के बराबर होगी।

- चरण IV के प्रारंभ हो जाने के बाद भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अधिसूचित तारीख से गैर-बैंकों को मांग/सूचना मुद्रा बाजार में उधार देने की अनुमति नहीं होगी। उपर्युक्त उपायों से बाजार-सहभागियों को बाजार में बिना किसी रुकावट के अपने संविभाग (पोर्टफोलियो) के दोनों पक्षों उधार देना व उधार लेने को समायोजित करने के लिए पर्याप्त समय होगा।

 

(ii) मीयादी जमाराशियों की परिपक्वता अवधि कम करना

 

  • यह निर्णय किया गया है कि 15 लाख रुपये और उससे अधिक की थोक जमाराशि की न्यूनतम परिपक्वता अवधि वर्तमान 15 दिन से कम करके 7 दिन कर दी जाए।

 

 

  1. दैनिक न्यूनतम आरक्षित नकदी निधि

अनुपात बनाए रखने की अपेक्षा में छूट

 

  • 11 अगस्त, 2001 से शुरू होने वाले पखवाड़े से रिपोर्टिंग पखवाड़े के पहले सात दिनों के लिए दैनिक न्यूनतम अपेक्षा 65.0 प्रतिशत से घटाकर 50.0 प्रतिशत कर दी गयी है। 65.0 प्रतिशत की न्यूनतम अपेक्षा रिपोर्टिंग शुक्रवार सहित बिना किसी अपवाद के सभी सातों दिन के लिए लागू होगी।

 

  1. आरक्षित नकदी निधि अनुपात के
    अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक में धारित नकदी शेष पर ब्याज
  •  

    • हालांकि मध्यकालिक लक्ष्य यह होगा कि प्रारक्षित नकदी अनुपात सांविधिक न्यूनतम तक लाया जाये, एक मध्यकालिक उपाय के रूप में पात्र शेष राशियों पर ब्याज दर को दो चरणों में बैंक दर पर लाया जाये। 21 अप्रैल 2001 से शुरू होनेवाले पखवाड़े से ब्याज दर बढ़ा कर 6 प्रतिशत कर दिया जायेगा।
  1. न्यूनतम नकदी प्रारक्षित अपेक्षा से अंतर बैंक मीयादी देयता से छूट
  •  

    • 15 दिन और उससे अधिक की अंतर बैंक मीयादी देयताओं की अवधि समाप्ति से 3 प्रतिशत की सांविधिक नकदी अनुपात की न्यूनतम अपेक्षा से छूट है।

(vi) खजाना बिल बाजार

  •  

    • मौजूदा 14 दिवसीय खजाना बिल और 182 दिवसीय खजाना बिल नीलामियाँ समाप्त की जा रही हैं और 91 दिवसीय खजाना बिल नीलामियाँ बढ़ाकर 250 रुपये की जा रही हैं। 91 दिवसीय और 364 दिवसीय बिल आदान प्रदान योग्य स्टॉक का रूप ले लेंगे ताकि गौण बाजार गतिशील हो सके।

(vii) एसजीएल द्वारा निपटाये लेनदेनों के लिए
टी + एक समायोजन

  •  

    • 2 जून 2001 के प्रभावी प्रस्तावित नेगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम के लिए बाज़ार प्रतिभागी खुद को तैयार कर सकें, इसके लिए रिज़र्व बैंक के डीवीपी प्रणाली के ज़रिये निपटाये गये सभी लेनदेन टी +1 आधार पर होंगे।

 

ब्याज दर नीति

 

(क) न्यूनतम उधार संबंधी मानदंडों की समीक्षा

 

 

 

  • अन्तर्राष्ट्रीय प्रथा और वाणिज्य बैंकों को अपनी उधार दरें निश्चित करने में और आगे परिचालनगत लचीलापन उपलब्ध कराने को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि 2 लाख से अधिक के ऋणों के लिए आधार दर के रूप में न्यूनतम उधार दर की आवश्यकता को शिथिल किया जाए। बैंक, अपने-अपने बोर्डों द्वारा अनुमोदित पारदर्शिता तथा उद्देश्यता नीति के समान ही सरकारी उद्यमों सहित निर्यातकर्ताओं तथा अन्य भरोसेमंद उधारकर्ताओं को न्यूनतम उधार दर से कम दर पर ऋण दे सकेंगे।

 

(ख) वरिष्ठ नागरिकों के लिए जमा योजना

 

  • बैंकों को अनुमति दी गयी है कि वे किसी भी आकार की सामान्य जमाराशियों की तुलना में उच्चतम संगठनों तथा नियत ब्याज दर ऑफर करते हुए विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिको के लिए बनी नियत जमा योजनाओं को निरूपित कर सकते हैं।

 

(ग) मीयादी जमाराशियां - बैंकों के लिए लचीलापन

 

 

  • बैंकों को यह स्वतंत्रता दी जायेगी कि बैंक एकल और हिंदु अविभक्त परिवारों से इतर तत्वों द्वारा रखी गई अत्यधिक जमाराशियों के असामयिक आहरण को अस्वीकार करने के अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र होंगे।
  • परिपक्वता अवधि में प्रचलित ब्याज दर पर अतिदेय जमाराशियों का नवीकरण केवल 14 दिवसीय अतिदेय अवधि के लिए ही अनुमत हो।

 

(घ) विदेशी मुद्रा अनिवासी (बैंक) जमाराशियों पर ब्याज दर

 

 

  • लंदन अंतर-बैंक प्रस्तुत दर/ स्वैप दर अधिक पचास आधार पाइंट की उच्चतम सीमा को संशोधित करके अधोमुखी उच्चतम सीमा को लेबोर/स्वैप में पुनरीक्षित किया जाए।

सरकारी प्रतिभूति बाज़ार की गतिविधियां

 

32. केंद्र सरकार के 2001-02 के बजट में की गई घोषणा के बाद समाशोधन निगम तथा एक इलैक्ट्रानिक नेगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम इसमें शामिल होंगे। इस निगम से मुद्रा, सरकारी प्रतिभूतियों और विदेशी मुद्रा लेनदेनों के शुरू होने की संभावना है।

 

 

  • व्यक्तियों और भविष्य निधियों को भी प्राथमिक व्यापारियों और अनुषंगी व्यापारियों के ही माध्यम से गैर प्रतिस्पर्धात्मक आधार पर इसमें सहभागिता की अनुमति दी जायेगी।
  • चुनिंदा और प्रायोगिक आधार पर दिनांकित प्रतिभूतियों की नीलामियों के लिए इस फार्मेट को लागू करने का प्रस्ताव है।

 

ऋण प्रबंधन को अलग करने की दिशा में हुई प्रगति

 

33. गवर्नर ने उल्लेख किया कि हालांकि मौद्रिक प्रबंधन से ऋण प्रबंधन को अलग करने के संबंध में नवंबर 1997 में भारतीय रिज़र्व बैंक में गठित कार्यकारी दल ने दिसंबर 1997 में अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी। किंतु दोनों कार्यों को अलग करना तीन पूर्व शर्तों अर्थात् वित्तीय बाज़ारों के विकास, राजकोषीय घाटे पर संपूर्ण नियंत्रण और आवश्यक वैधानिक परिवर्तनों को पूरा करने पर निर्भर था और बाद की गतिविधियों से सभी स्तरों पर पर्याप्त प्रगति हुई है :

 

 

  • प्रतिभूति संविदा (विनियम) अधिनियम संशोधन से वित्तीय बाजारों पर भारतीय रिज़र्व बैंक और सेबी की विनियामक भूमिकाएं अलग-अलग तय की गई।

 

 

  • वित्त मंत्री ने मौद्रिक नीति तैयार करने और वित्तीय प्रणाली के विनियमन के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक को अधिक परिचालनगत सहूलियत देने की आवश्यकता पर बल।

 

 

  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारतीय रिज़र्व बैंक के अधिनियम में संशोधन का तथा राजकोषीय घाटे पर यथोचित नियंत्रण लाने के लिए राजकोषीय उत्तरदाायित्व विधेयक लाने का प्रस्ताव।
  • समाशोधन निगम का गठन तथा स्वयंपूर्ण नकदी समायोजन सुविधा की शुरूआत।

 

गवर्नर ने उल्लेख किया कि वैधानिक कार्रवाई पूरी होने पर भारतीय रिज़र्व बैंक से सरकारी ऋण प्रबंध को अलग करने की संभाव्यता और इस बारे में आगे और कदम उठाने के लिए सरकार के साथ मामला उठाने का प्रस्ताव है।

 

विवेकपूर्ण उपाय

(क) ऋण को अनर्जक के रूप में मानने के लिए 90 दिन का मानदंड अपनाना

अंतर्राष्ट्रीय रूप से बेहतर प्रथाओं को अपनाने की दिशा में कदम उठाने और अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दृष्टि से 31 मार्च 2004 को समाप्त वर्ष से इसके लिए 90 दिन के मानदंड को अपनाने का निर्णय लिया गया है, लेकिन उसके लिए प्रावधान 31 मार्च 2002 से किए जाने होंगें।

(ख) वित्तीय संस्थाओं के लिए विवेकशील उपाय

34. वित्तीय संस्थाओं के लिए विवेकपूर्ण मानदण्ड किसी वित्तीय संस्था की आस्तियां अनर्जक आस्ति के रूप में मान ली जायेंगी जब उस पर ब्याज और/या मूल धन वर्तमान के 365 दिन के बजाय 180 दिन के लिए अतिदेय हो जाये। यह व्यवस्था 31 मार्च 2002 को समाप्त होनेवाले वर्ष से प्रभावी होगी।

(ग) निजी क्षेत्र के बैंकों के संबंध में सांविधिक केन्द्रीय लेखा परीक्षकों के लिए मानदंड

35. वर्ष 2001-02 से भारतीय निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा उनके यहां सांविधिक लेखा-परीक्षकों के रूप में जिन लेखा-परीक्षा फर्मों की सिफारिश की जाती है, उन्हें इस संबंध में निर्धारित मानकों को पूरा करना होगा जैसे उनका न्यूनतम स्थायित्व (स्टैंडिंग), पूर्णकालिक भागीदारों की न्यूनतम संख्या फर्म के साथ फर्म के लिए ही जुड़े रहे सनदी लेखाकारों की न्यूनतम संख्या, आदि।

(घ) अनर्जक परिसंपत्तियों की वसूली हेतु संशोधित मार्गदर्शी सिद्धांत

36. एक-कालिक आशोधित मार्गदर्शी सिद्धांत जो 31 मार्च, 2000 तक लागू थे, उनकी अवधि जून, 2000 तक बढ़ा दी गई थी। इन आवेदनों/मामलों की प्रोसेसिंग के लिए बैंकों को 30 सितंबर 2001 तक का समय दिया गया है।

 

(ङ) ऋण-राशि जोखिम की गणना की विधि

 

  • समान रूप से राशि-सीमा निर्धारित करने हेतु अन्तर्राष्ट्रीय पूंजी पर्याप्तता मानकों के अंतर्गत यथापरिभाषित पूंजी-निधि के सिद्धांत को 31 मार्च, 2002 से अपनाया जाए।

 

  • गैर निधि-आधारित राशियों की गणना सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय परंपराओं के अनुरूप पहली अप्रैल, 2003 से 100 प्रतिशत पर की जाए और उसके अतिरिक्त बैंक विदेशी विनिमय में वायदा संविदा और अन्य व्युत्पन्न प्रोडक्ट शामिल कर लें।

 

  • 31 मार्च, 2002 से एकल उधारकर्ता के लिए राशि-सीमा का समायोजन वर्तमान 20.0 प्रतिशत से 15.0 प्रतिशत किया जाए। इसी प्रकार से, समूह राशि-सीमा पूंजी-निधि के 40.0 प्रतिशत से समायोजित की जाएगी।

 

(च) ऋण वसूली अधिकरण

 

37. संघीय बजट 2001-02 में यह घोषणा की गई थी कि सरकार विद्यमान 22 ऋण वसूली अधिकरणों एवं 5 अपीलीय अधिकरणों के अतिरिक्त वर्ष 2001-02 के दौरान 7 और ऋण वसूली अधिकरणों की स्थापना करेगी ताकि बैंक, उधारकर्ताओं से अपने बकायों की वसूली तेज़ी से कर सकें। इसके अलावा, सरकार ने कानून लाने का भी प्रस्ताव किया है ताकि चूक होने पर प्रतिभूतियों का मोचन-निषेध (फोर-क्लोजर) तथा प्रवर्तन हो सके और बैंक एवं वित्तीय संस्थाएं अपने बकायों की वसूली कर सकें।

 

(छ) चूककर्ता सूची-कवरेज को व्यापक बनाना

 

38. बैंकिंग विधि में संशोधन होने को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों को सूचित किया है कि वे ऋण-करार में एक शर्त जोड़ें जिसमें उधारकर्ता की यह सहमति प्राप्त की जाएगी कि वे चूककर्ता होने पर अपने नाम बता देंगे। वे बैंक जिन्होंने उधारकर्ताओं की सहमति प्राप्त करने की शर्त नहीं जोड़ी है उन्हें सूचित किया जा रहा है कि वे इस कार्य को 30 सितंबर, 2001 तक पूरा कर लें।

(ज) शेयर बाजार में बैंकों की राशियों (एक्सपोजर)
से संबंधित संशोधित मार्गदर्शी सिद्धांत

 

39. भारतीय रिज़र्व बैंक-सेबी तकनीकी समिति की रिपोर्ट जो 12 अप्रैल, 2001 को भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत की गई थी, अभिमतों/सुझावों के लिए उसी दिन जारी कर दी गयी है। यह रिपोर्ट भारतीय रिज़र्व बैंक वेबसाइट पर उपलब्ध है। समिति ने बैंकों के हाल के अनुभवों तथा शेयरों एवं वित्तीय गारंटियों पर अग्रिमों के रूप में ली गई राशियों (एक्सपोजर) को ध्यान में रखा है । समिति ने पाया है कि पूंजी बाज़ार (निधिकृत और गैर-निधिकृत ऋण सुविधाएं, दोनों अर्थों में) में बैंकों की समग्र ऋण राशि संतुलित रूप से नरम बनी रही। तथापि, ऐसा लगता है कि तुलनात्मक रूप से कुछ छोटे बैंकों ने (कुल अग्रिमों में उनके हिस्से के अनुसार) ने यथोचित जोखिम प्रबंध दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया है, विशेष रूप से कुछ शेयर दलाली संस्थाओं (उनकी सहयोगी और अंत: संबद्ध कंपनियों सहित) को गैर-निधिकृत गारंटियों पर शेयरों पर और दिए गए अग्रिमों के मामले में। इन कुछ बैंकों द्वारा केवल कुछ संस्थाओं में जो निवेश केन्द्रित किया गया उसे विवेकपूर्ण आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता और इससे गंभीर नीतिगत चिंताएं बढ़ जाने के अलावा ऐसे अग्रिमों/गारंटियों से संबद्ध जोखिमों में भी भारी वृद्धि हुई।

 

40. तकनीकी समिति की सिफारिशों से यह अपेक्षा की जाती है कि कुछ अंतर-संबद्ध स्टॉक ब्रोकिंग संस्थाओं और कुछ निजी क्षेत्र के और सहकारी बैंकों के प्रवर्तकों/प्रबंधकों के बीच ऐसे अवांछित और अनैतिक ‘संबंध’ उभरने की संभावना कम हो जाएगी। तकनीकी समिति की सिफारिशों के आलोक में, भारतीय रिज़र्व बैंक यह प्रस्ताव रखता है कि शेयरों में बैंकों के निवेशों तथा शेयरों के बदले अग्रिमों और अन्य संबंधित निवेशों के संबंध में पूर्व में नवंबर 2000 में जारी किये गये मार्गदर्शी सिद्धांतों में संशोधन किया जाए। यह प्रस्ताव है कि इस संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक को भविष्य में प्राप्त होने वाले अभिमतों/सुझावों को विचार में लेते हुए अंतिम मार्गदर्शी सिद्धांत मई 2001 के शुरू में जारी किये जाएं।

 

(झ) माँग मुद्रा बाज़ार पर निर्भरता

 

41. हाल ही के एक मूल्यांकन से यह संकेत प्राप्त हुआ है कि कुछ बैंकों ने मांग मुद्रा बाजार पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए स्थायी जमा आधार बनाने, प्रतिबद्ध ऋण-व्यवस्था आदि करने के लिए ठोस कदम उठाये हैं। तथापि, यदि कोई बैंक अपने बैंकिंग परिचालनों के लिए मांग मुद्रा बाजार पर अत्यधिक रूप से निर्भर रहना जारी रखता है तो भारतीय रिज़र्व बैंक उसके साथ विचार-विमर्श के बाद मांग मुद्रा पर उसकी दीर्घकालिक निर्भरता को कम करने के लिए विशेष सीमा निर्धारित करेगा।

 

(ट) वाणिज्यिक पेपर

(i) अमूर्तीकृत धारिता के लिए वरीयता

42. यह निर्णय लिया गया है कि 30 जून, 2001 से बैंकों, वित्तीय संस्थाओं, प्राथमिक व्यापारियों और गौण व्यापारियों को नये निवेश करने के लिए और वाणिज्यिक पेपर को केवल अमूर्तीकृत रूप में रखने के लिए ही अनुमति दी जाए। प्रतिभूति-पत्र के रूप में बकाया निवेशों को भी 31 अक्तूबर, 2001 से अमूर्तीकृत रूप में परिवर्तित किया जाए। साथ ही, यह भी समयोचित समझा गया कि बांडों, डिबेंचरों और ईक्विटियों जैसे अन्य निवेशों को भी अमूर्तीकृत रूप में रखने वे लिए सूचित किया जाए। तदनुसार, 31 अक्तूबर 2001 से वित्तीय संस्थाओं, प्राथमिक व्यापारियों और गौण व्यापारियों को नये निवेश करने के लिए और निजी रूप से अथवा अन्यथा रखे गये बांडों और डिबेंचरों को केवल अमूर्तीकृत फार्म में रखने की अनुमति दी जाएगी। प्रतिभूति-पत्र के रूप में बकाया निवेश जून, 2002 के अंत तक अमूर्तीकृत रूप में परिवर्तित किये जाएं।

 

(ii) प्रलेखीकरण और क्रियाविधि

 

43. वाणिज्यिक पेपर के निर्गम के संबंध में अक्तूबर 2000 में जारी नये मार्गदर्शी सिद्धांतों के एक भाग के रूप मे, ‘फिम्मडा’ को यह कार्य सौंपा गया कि वे अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप सहभागियों द्वारा पालन किये जाने के लिए मानक क्रियाविधि और प्रलेखीकरण निर्धारित करे। इन्हें अंतिम रूप देने से पहले ‘फिम्मडा’ अपने सदस्यों और बाजार के अन्य सहभागियों के बीच इन मार्गदर्शी सिद्धांतों का प्रारूप परिचालित करेगा।

 

(ठ) नया बास्ले पूंजी प्रस्ताव

 

44. भारतीय रिज़र्व बैंक में वर्तमान में एक आंतरिक कार्यकारी दल बासले समिति द्वारा जारी नये प्रस्ताव के निहितार्थों की जांच कर रहा है।

 

(ड) समेकित लेखाकरण और पर्यवेक्षण

45. अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप समेकित लेखाकरण और समेकित पर्यवेक्षण के लिए परिमाणात्मक तकनीकों को प्रारंभ करने के लिए एक बहु-विषयक कार्यकारी दल का गठन किया गया है। आशा है कि यह दल अपनी रिपोर्ट जुलाई 2001 से पूर्व प्रस्तुत कर देगा।

(ढ) जोखिम आधारित पर्यवेक्षण की ओर पहल

46. जोखिम आधारित पर्यवेक्षण दृष्टिकोण के उचित पुनर्विन्यास के सबंध में परामर्श देने के लिए नियुक्त एक अंतर्राष्ट्रीय परामर्शदाता की सिफारिशों के अनुसरण में परियोजना के कार्यान्वयन और प्रबंधन संबंधी गुत्थियों को सुलझाने के लिए रिज़र्व बैंक में एक समर्पित ग्रुप का गठन किया गया है।

(ण) ऋण सूचना ब्यूरो

47. विद्यमान ढांचे में जहां ऋण सूचना ब्यूरो काम कर सकता है, वहीं ब्यूरो की कार्य-प्रणाली को और कारगर बनाने के लिए वैधानिक प्रणाली को और सुदृढ़ करने हेतु ब्यूरो के दायित्वों, सदस्य ऋण संस्थाओं के अधिकारों और कर्तव्यों तथा गोपनीयता के अधिकारों की रक्षा को शामिल करते हुए एक प्रारूप व्यापक विधान (ड्राफ्ट मास्टर लेजिस्लेशन) भारत सरकार को भेजा गया है।

(त) अविलम्ब सुधारात्मक कार्रवाई

48. विलम्ब सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) का एक ढांचा तैयार किया गया था जिसमें पर्यवेक्षकों द्वारा तुरंत प्रतिसाद के लिए विभिन्न कार्रवाई बिंदु थे। प्राप्त सुझावों के आधार पर योजना में संशोधन किया गया है। उक्त योजना को सरकार और बैंकों के परामर्श से अंतिम रूप दिया जायेगा।

(थ) समष्टि विवेकशील संसूचक

49. एक अंतर्विभागीय ग्रुप का गठन किया गया था और मार्च 2000 के अंत समाप्त छमाही के लिए समष्टिगत विवेक सम्मत निदेशकों (एमपीआइ) की एक प्रारंभिक समीक्षा को अंतिम रूप दिया गया और सितंबर 2000 के लिए एक समीक्षा तैयार की गयी है।

शहरी सहकारी बैंक

(i) विवेकपूर्ण मानदंड

 

  • शहरी सहकारी बैंकों के लिए, उनके सदस्यों तथा जमाकर्त्ताओं के हित में विवेकपूर्ण उपाय मजबूत करने के लिए निम्नलिखित उपायों का प्रस्ताव है :

 

 

 

  • तत्काल प्रभाव से, शहरी सहकारी बैंकों को यह सूचित किया जा रहा है कि वे किसी व्यक्ति अथवा अन्य कंपनियों को शेयर की जमानत पर प्रत्यक्षत: अथवा अप्रत्यक्षत: ऋण देने के नये प्रस्ताव प्राप्त न करें। उन्हें यह भी सूचित किया जा रहा है कि शेयर दलालों को दिये गये विद्यमान ऋण या शेयरों में प्रत्यक्ष निवेश जल्द से जल्द वापस ले लिये जाएं।
  • मांग /नोटिस मुद्रा बाज़ार में दैनिक आधार पर उनकी कुल उधारियाँ पिछले वित्तीय वर्ष के मार्च के अंत में उनकी सकल जमाराशियों के 2.0 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  • रक्षोपाय के रूप में शहरी सहकारी बैंकों को सूचित किया जा रहा है कि वे अन्य शहरी सहकारी बैंकों के पास अपनी मीयादी जमाराशियाँ न बढ़ायें।

 

  • शहरी सहकारी बैंकों की सभी श्रेणियों के लिए एनडीटीएल के प्रतिशत के रूप में सरकारी तथा अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों के रूप में रखे जाने के लिए अपेक्षित सांविधिक चलनिधि अनुपात बढ़ाया जा रहा है। पहली अप्रैल 2003 से शहरी सहकारी बैंकों को अपनी निवल मांग और मीयादी देयताओं का 25.0 प्रतिशत समस्त सांविधिक चलनिधि आस्तियाँ केवल सरकारी और अनुमोदित प्रतिभूतियों में बनाये रखनी होंगी।

 

  • समस्त अनुसूचित तथा बड़े शहरी सहकारी बैंकों को अपने निवेश केवल रिजॅर्व बैंक के पास रखे एसजीएल खाते में अथवा सरकारी क्षेत्र के बैंकों तथा प्राथमिक व्यापारियों के पास रखे ग्राहक एसजीएल खाते में सरकारी प्रतिभूतियों में ही रखने होंगे।

51. शहरी सहकारी बैंकों पर किसी भी वित्तीय प्रभाव को कम करने के लिए सभी उपाय स्वभावत: ‘संभावनापूर्ण’ हैं अथवा शहरी सहकारी बैंकों को अपने सदस्यों के हित में उन्हें कार्यान्वित करने के लिए काफी समय दिया गया है।

(ii) शहरी सहकारी बैंकों के लिए नयी पर्यवेक्षी संरचना

52. हाल ही के अनुभव के आलोक में कई विकल्पों में से एक विकल्प, जिसे गंभीरता से स्वीकार किया जाना चाहिए, वह है नई शीर्ष पर्यवेक्षी संस्था जो अनुसूचित और गैर-अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों के संबंध में संपूर्ण निरीक्षण/पर्यवेक्षी कार्य करेंगी। यह शीर्ष संस्था केन्द्र सरकार राज्य सरकारों, भारतीय रिजॅर्व बैंक साथ ही विशेषज्ञ वाले एक अलग उच्च-स्तरीय पर्यवेक्षी बोड़ के नियंत्रण के अधीन हो सकती हैं। इसे शहरी सहकारी बैंकों के निरीक्षण और पर्यवेक्षण तथा भारतीय रिजॅर्व बैंक व्दारा प्रस्तुत विवेक पूर्ण, पूंजी पर्याप्तता और जोखिम प्रबंध मानदंडों वाले उनकी अनुपालना को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी दी जा सकती है।

भारतीय रिजॅर्व बैंक के स्वामित्व कार्य

53. भारतीय रिजॅर्व बैंक ने भारतीय स्टेट बैंक, राष्ट्रीय आवास बैंक और नाबाड़ में अपने शेयरों का स्वामित्व केन्द्र सरकार को अंतरित करने की सिफारिश स्वीकार कर ली है और इस संबंध में वह सरकार के संपर्क में है। भारतीय रिजॅर्व बैंक, भविष्य में उपयुक्त समय पर इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फाइनांस कंपनी के संबंध में प्रक्रिया शुरू करने की योजना भी बना रहा है। निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम के संबंध में भारतीय रिजॅर्व बैंक द्वारा वित्तीय क्षेत्र के उदारीकरण के साथ उसे अनुकूल बनाने के लिए नया नियम तैयार करने हेतु सरकार को पहले ही प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया है। भारतीय मितीकाटा और वित्त गृह लि. तथा एस टी सी आइ में अपनी अधिकतर शेयरधारिता का अधिकार पहले ही छोड़ने का निर्णय लिया जा चुका है।

ऋण वितरण व्यवस्था गुजरात के लिए राहत कार्य

 

54. गुजरात के लिए राहत के रूप में कई राहत उपाय किये गये हैं। इन उपायों में निम्नलिखित शामिल हैं :

 

 

 

 

 

  • ऋणों पर ब्याज दर के उद्देश्यों के लिए भारतीय स्टेट बैंक की न्यूनतम उधार दर।
  • प्रभावित निर्यातकर्ताओं के लिए राहत/रियायत में पैकिंग ऋण की अवधि बढ़ाना, उपयुक्त किस्तों में प्रतिदेय अल्पावधि ऋणो में देय राशि का परिवर्तन और अनर्जक परिसम्पत्ति वर्गीकरण मानदंडों में छूट शमिल हैं ।
  • कृषि ऋणों के संबंध, में बैंक प्रभावित किसानों से 7 वर्षों तक के पुनर्व्यवस्था के लिए प्रावधान सहित दो वर्षों के लिए मूलधन अथवा ब्याज की वसूली नहीं करेंगे ।
  • प्रभावित लघु उद्योग, व्यवसाय, व्यापार और उद्योग के लिए अतिरिक्त सीमाओं/वर्तमान सीमा की पुनर्व्यवस्था का प्रावधान ।
  • राष्ट्रीय आवास बैंक से प्राप्त अनुरोध पर भारतीय रिजॅर्व बैंक ने उसे प्रभावित लोगों के लिए मकान आदि का पुनर्निर्माण करने हेतु पुनर्वित्त सहायता के लिए प्रतिवर्ष 6.0 प्रतिशत की ब्याज दर पर 1,000 करोड़ रुपये दीर्घावधि ऋण स्वीकृत किया है ।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां

55. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को यह सूचित किया गया है कि वे जमाराशियां स्वीकार करने संबंधी अपनी शर्तों के अनुसार जनता की जमाराशियां उन्हें वापस कर दें तथा भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के प्रावधानों और समय-समय पर जारी किए गए अन्य दिशा-निर्देशों का पालन करते रहें। गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों से कहा गया है कि वे नियमित अंतरालों पर रिज़र्व बैंक को विवरणियां भेजते रहें भले ही उन्हें कारोबार करने के लिए मंजूरी देनेवाला आवेदनपत्र नामंजूर कर दिया गया हो।

56. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां देश के आर्थिक विकास में कारगर ढंग से अपनी भूमिका निभायें, इसके लिए सरकार ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के जमाकर्ताओं को और अधिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक पृथक कानून का प्रस्ताव किया है। यह विधेयक सरकार के विचाराधीन है।

प्रौद्योगिकी संवर्धन

(क) भुगतान प्रणाली सूचक दस्तावेज

57. रिज़र्व बैंक इन अभिमतों/प्रतिसूचनाओं की जांच कर रहा है और इस प्रदर्शक दस्तावेज का अंतिम स्वरूप जल्दी प्रकाशित होगा।

(ख) चेकों में कमी करने के लिए अग्रगामी अवधारणा

58. वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा गठित कार्यदल परक्राम्य लिखत अधिनियम के अंतर्गत "चेकों में कमी" की वैधानिक अपेक्षाओं की जांच कर रहा है।

(ग) इंटरनेट बैंकिंग

59. विभिन्न बैंकों में प्रौद्योगिकी की प्रचलन के स्तरों पर आधारित व्यापक दृष्टिकोण तैयार किया जा रहा है जिसमें अत्यधिक सुरक्षित वातावरण में इंटरनेट आधारित लेनदेन और समुचित जोखिम नियंत्रण उपाय तथा जोखिम प्रबंध तकनीक शामिल हैं।

विधिक सुधार

60. भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 और बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 में व्यापक संशोधनों के लिए भारत सरकार को अपनी सिफारिशें भेजी हैं जो सरकार के विचाराधीन हैं। भारत सरकार ने परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 के प्रावधानों में परिवर्तन का सुझव देने के लिए एक कार्य दल का गठन किया है ताकि उसे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के समरूप बनाया जा सके और परक्राम्य लिखत अधिनियम की सीमा के अंतर्गत इलेक्ट्रानिक चेक, प्रतिभूतिकृत प्रमाणपत्र तथा अन्य तैयार उत्पादों के निगमन की जांच की जा सके। इस कार्यदल ने अधिनियमन के लिए परिसंपत्ति प्रतिभूतिकरण के लिए एक विधेयक का प्रारूप तैयार किया है और उसे सरकार को भेज दिया गया है।

अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय मानक और संहिताएं

61. परामर्शदात्री समूहों की सात रिपोर्टों को बहस और विचार-विमर्श के लिए आरबीआइ वेबसाइट पर दे दिया गया है। तीन और रिपोर्टें मई 2001 तक मिल जाने की संभावना है। स्थायी समिति की यह भी योजना है कि वह सिफारिशों पर ठोस दृष्टिकोण अपनाने तथा इस संबंध में चेतना जागृत करने के साथ-साथ निजी और सरकारी क्षेत्र दोनों ही के संगठनों, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं और विशेषज्ञों के अभिमत/प्रतिसूचना प्राप्त करने के लिए सेमिनार/ कार्यशालाएं आयोजित करने में इन दलाें की सहायता करे।

विनियम समीक्षा प्राधिकारण

62. यद्यपि विनियम समीक्षा समिति ने काम करना बंद कर दिया है, तथापि इस योजना के संबंध में अनुकूल प्रतिक्रिया को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक ने यह निर्णय लिया है कि ऐसी समीक्षा को वह अपनी आंतरिक प्रणाली का एक अभिन्न हिस्सा बनाये और तदनुसार, पहली अप्रैल 2001 से ऐसे आवेदनों पर विचार करने के लिए एक कार्यपालक निदेशक के प्रभार में एक वैकल्पिक प्रणाली शुरू की गई है।

मध्यावधि समीक्षा

63. चालू वर्ष की पहली छमाही में ऋण और मौद्रिक गतिविधियों की समीक्षा अक्तूबर 2001 में की जायेगी ।

सूरज प्रकाश
प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी - 2000-2001/1433

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