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भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर द्वारा वर्ष 2002-2003 के लिए

भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर द्वारा वर्ष 2002-2003 के लिए
मौद्रिक और ऋण नीति की घोषणा
खास-खास बातें

29 अप्रैल 2002

  • वर्ष 2002-2003 के लिए वृद्धि दर 6.0 से 6.5 प्रतिशत रखी गई। स्फीति दर कम बनी रहेगी।
  • मौद्रिक स्थितियां और चलनिधि स्थिति बहुत अधिक सुविधाजनक।
  • ऋण बढ़ोतरी को पूरा करने और निवेश की मांग को सहायता देने के लिए रिज़र्व बैंक पर्याप्त चलनिधि प्रदान करेगा।
  • ब्याज दर की सरल व्यवस्था बरकरार रहेगी और मध्यम अवधि में ब्याज दर ढांचे में और अधिक लोच लायी जाएगी।
  • सीआरआर में 50 आधार अंकों की और कटौती।
  • मौद्रिक गतिविधियों के आधार पर बैंक दर में 50 आधार अंकों तक कटौती हो सकती है - अभी तक समय निर्धारित नहीं।
  • बचत खातों में ब्याज दर में परिवर्तन नहीं।
  • विदेशी मुद्रा में दिये गये निर्यात ऋण पर ब्याज दर को कम किया गया।
  • सहकारी बैंकों के लिए कर्ज़ देने की न्यूनतम दर को समाप्त किया गया।
  • कर्ज़ देने की अधिकतम और न्यूनतम दरों की घोषणा बैंकों को करनी होगी।
  • विभिन्न अवधि समाप्ति वाली जमाराशियों पर ब्याज दरों और प्रभावी वार्षिक प्रतिलाभ की सूचना बैंकों द्वारा अपने जमाकर्ताओं को दी जाए।
  • लघु उद्योगों के लिए सुविधाओं को उदार बनाया गया।
  • प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों को ऋण बांटने की क्रियाविधि सुधारने के लिए और उपाय।
  • आवास क्षेत्र को ऋण देने में सुधार लाने के उपाय।
  • सरकारी प्रतिभूति बाज़ार को विकसित करने के लिए और उपाय।
  • मांग मुद्रा बाज़ार तक पहुंच को नियंत्रित करना।
  • जमा प्रमाणपत्रों को डी-मैट रूप में जारी किया जाएगा।
  • वित्तीय स्थिरता लाने के लिए और विवेकपूर्ण उपाय
  • टैक्नोलॉजी में सुधार के लिए उपाय - ईएफटी सुविधाएं बढ़ायी जायेगी।
  • रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट सिस्टम - एक वर्ष के समय में टेस्टिंग के लिए तैयार।
  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा विवरणियां प्रस्तुत करना - विलंब के लिए रिज़र्व बैंक दण्ड लगायेगा।

भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर द्वारा वर्ष 2002-2003 के लिए
मौद्रिक और ऋण नीति की घोषणा

प्रमुख वाणिज्यिक बैंको के मुख्य कार्यपालकों के साथ हुई बैठक में भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर डॉ. विमल जालान ने 2002-2003 के लिए वाणिज्य मौद्रिक और ऋण नीति प्रस्तुत की। इस विवरण में समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों, मौद्रिक नीति के रुख और वित्तीय प्रणाली को सुदृढ़ बनाने के उपायों तथा बाजारों और संस्थागत संरचना को विकसित करने के लिए व्यापक पैकेज की समीक्षा शामिल थी। गवर्नर महोदय ने कुछ विश्लेषण परक और व्यावहारिक विषयों का भी उल्लेख किया जिनका सम्बन्ध मौद्रिक नीति, विनिमय दर और आरक्षित निधियों के प्रबन्धन से है।

स्वदेशी गतिविधिया

2. गवर्नर महोदय ने बताया कि कृषि के बेहतर कार्य निष्पादन और सेवा क्षेत्र में पर्याप्त बढ़ोतरी की बदौलत वर्ष 201-2002 के लिए केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन ने सकल घरेलू उत्पाद की दर 5.4 प्रतिशत रखी है, जोकि पिछले वर्ष 4.0 प्रतिशत थी। वर्ष 2001-2002 के दौरान 1.4 प्रतिशत की वार्षिक स्फीति दर पिछले वर्ष के 4.9 प्रतिशत की तुलना में अत्यधिक अनुकूल ही रही।

3. वर्ष 2001-2002 के दौरान मौद्रिक गतिविधियों का उल्लेख करते हुए गवर्नर महोदय ने बताया कि मुद्रा आपूर्ति की बढ़ोतरी ठीक उसी पथ पर चली जैसी कल्पना की गई थी, और यह एक वर्ष पहले की 16.8 प्रतिशत से काफी कम रही। गवर्नर महोदय ने उल्लेख किया कि वर्ष 2001-2002 के दौरान आरक्षित निधि में 11.4 प्रतिशत (34,514 करोड़ रुपये) की बढ़ोतरी पिछले वर्ष के 8.1 प्रतिशत (22,757 करोड़ रुपये) से अधिक ही रही। आरक्षित मुद्रा में इस बढ़ोतरी का श्रेय पूरी तरह से रिज़र्व बैंक की विदेशी मुद्रा परिसम्पत्तियों में बढ़ोतरी को जाता है। गैर-खाद्य ऋणों में 12.8 प्रतिशत (60.411 करोड़ रुपये) की संवृृद्धि कम ही रही क्योंकि पिछले वर्ष इसमें 14.9 प्रतिशत (61,176 करोड़ रुपये) की बढ़ोतरी रही थी; यह स्थिति औद्योगिक उत्पादन में मंदी को दर्शाती है।

4. गवर्नर महोदय ने कहा कि केन्द्र और राज्यों द्वारा बाजार से उधार लेने के कार्यक्रम में संयुक्त रूप से गिरावट रही लेकिन इससे ब्याज दर पर अनपेक्षित दबाव नहीं पड़ा क्योंकि चलनिधि की उपलब्धता पर्याप्त मात्रा में थी और ऋण की माँग कम थी, उन्होंने पुन: कहा कि राजकोषीय घाटे पर लगाम लगाने की तत्काल जरूरत है, जैसा कि 2002-2003 की बज़ट घोषणा में भी कहा गया है। उन्होंने कहा कि इससे मध्यम अवधि के नजरिये से मौद्रिक और ऋण प्रबन्धन के कार्य में सुधार आएगा। राजकोषीय घाटे में कमी होगी तो ब्याज दर व्यवस्था में लोचशीलता आएगी और बदले में सरकारी संसाधनों का प्रयोग भौतिक और सामाजिक अवसंरचना में निवेश के लिए हो सकेगा, जिसकी जरूरत कहीं अधिक है। राजकोषीय समसंकलन से अर्थव्यवस्था की स्फीतिकारी अपेक्षाओं पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।

5. गवर्नर महोदय ने कहा कि वर्ष 2001-2002 के दौरान सरकारी ऋण कार्यक्रमों के उच्च स्तर के बावजूद वाणिज्य क्षेत्र से ऋण की कम माँग के कारण, यह सम्भव रहा कि पर्याप्त चलनिधि उपलब्ध रही और ब्याज दर का परिवेश सरल बना रहा, जैसा कि परिपक्वता स्पेक्ट्रम में प्रतिलाभ में अनुमानित परिवर्तन से स्पष्ट है, जिससे अर्थव्यवस्था में स्फीतिकारी स्थितियों की उत्पत्ति नहीं हुई।

6. सरल चलनिधि स्थितियों और ब्याज दर के सरल परिवेश ने वर्तमान मौद्रिक नीति को पर्याप्त सहज बना दिया है, इसका उल्लेख करते हुए गवर्नर महोदय ने कहा कि फिर भी हमे सजग रहना होगा, क्योंकि हाल ही के वर्षों के अनुभव से यह पुष्टि हो जाती है कि समूचे विश्व के वित्तीय बाजारों के एकीकरण, वित्तीय प्रतिलाभ में आभासी बढ़ोतरी, अर्थव्यवस्था के उदारीकरण, और विश्व के सभी वित्तीय बाजारों में अनपेक्षित घरेलू और अन्तरराष्ट्रीय संकटों का नई प्रौद्योगिकी के कारण तेजी से प्रचारित हो जाने के कारण मौद्रिक प्रबन्धन अब अधिक जटिल हो गया है।

7. इस बात पर जोर देना महत्त्वपूर्ण है कि आर्थिक परिस्थितियों में परिवर्तनों के कारण समुचित मौद्रिक उपाय करना जरूरी हो सकता है, जो वर्तमान में चलनिधि की सरल स्थिति के अनुरूप नहीं भी हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस असलियत को ध्यान में रखते हुए बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के लिए यह विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है कि वे अपनी व्यावहारिक योजनाओं में अदृश्य आकस्मिकताओं से निपटने के लिए पर्याप्त प्रावधान बनाए रखें, और अपने-अपने परिचालनों पर मौद्रिक और विदेशी परिवेश के निहितार्थों तथा इनके असर पर पूरी निगाह रखें।

विदेशी गतिविधियाँ

8. गवर्नर महोदय ने कहा कि विदेशों में प्रतिकूल गतिविधियों के बावजूद, भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधियों में 2001-2002 के दौरान पर्याप्त बढ़ोतरी दर्ज हुई, पूंजी तथा अन्य निधियों का सुदृढ़ प्रवाह रहा। विदेशी मुद्रा भण्डार मार्च 2002 के अन्त में 54.1 बिलियन अमरीकी डालर था, जो मार्च 2001 के अन्त में 42.3 बिलियन अमरीकी डालर था, कुल मिलाकर यह बढ़ोतरी 11.8 मिलियन अमरीकी डालर की रही। इसमें विदेशी परिसम्पत्तियों का योगदान 11.5 बिलियन अमरीकी डालर रहा। किसी एक वर्ष के दौरान यह सर्वाधिक बढ़ोतरी थी और यह इस बात का प्रमाण था कि 1991 के बाद की अवधि में भारत ने अपने भुगतान संतुलन के प्रबंधन में स्वदेशी और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर दृढ इच्छा शक्ति दिखाई है। उन्होंने कहा कि आपूर्ति की सहज स्थिति के कारण वर्ष 2001-2002 के दौरान विदेशी मुद्रा बाज़ार ने सामान्यतया स्थिरता दिखाई है, बाज्ॉार की संवदेनशीलता में यदाकदा अनिश्चितता के कारण परिवर्तन के कुछ अवसरों को छोड़ा जा सकता है।

9. गवर्नर महोदय ने कहा कि आरक्षित निधियों के भण्डार के प्रबन्धन के लिए भारत की नीति तर्कसंगत रूप से बनाई गई थी, जिसके निर्माण का आधार अभिनिर्धारण योग्य घटक और अन्य आकस्मिक स्थितियाँ रहीं, जिनमें अन्य के साथ-साथ चालू खाते में घाटे का आकार; लघु अवधि देयताओं का आभार (दीर्घावधि ऋणाें पर चुकौती के वर्तमान दायित्वों सहित); पोर्टफोलियो निवेश और दूसरे प्रकार के पूंजी प्रवाहों में सम्भव परिवर्तनशीलता; विदेशी आघातों के कारण भुगतान संतुलन पर अनपेक्षित दबाव (जैसे कि 1997-98 में पूर्वी एशियाई संकट का प्रभाव या 1999-2001 में तेल की कीमतों में बढ़ोतरी) और अनिवासी भारतीयों की विदेशी मुद्रा में जमाराशियों में से प्रतिप्रेषणीयता गतिविधियों का भी प्रभाव रहता है। मुद्रा भण्डार का पर्याप्त उच्च स्तर जरूरी है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यदि अनिश्चितता की लम्बी अवधि में भी, इस भण्डार की मदद से "जोखिम गत चलनिधि" की व्यवस्था हो सके।

10. नए बाजारों में परिवर्तनीय विदेशी मुद्रा दर की कार्यनीति पर हाल ही में अन्तरराष्ट्रीय शोध हुए हैं; इस पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा गया कि इससे भारत द्वारा अपनाई गई विदेशी मुद्रा विनिमय नीति को पर्याप्त मदद मिली है, गवर्नर महोदय ने कहा कि अब कई देश (पूर्वी एशियाई देशों सहित) ऐसी ही नीति अपना रहे हैं।

11. गवर्नर महोदय ने अप्रैल 2001 में वार्षिक नीति घोषणा का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी बाहरी स्वतन्त्र एजेंसी से एक सर्वेक्षण कराया गया ताकि निर्यात ऋण के वितरण के लिए रिज़र्व बैंक की क्रियाविधि के सरलीकरण और बैंक की सेवाओं से निर्यातकों की संतुष्टि का फीडबैक प्राप्त किया जा सके। इस सर्वेक्षण के परिणामों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इनमें रिज़र्व बैंक के प्रयासों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दिखाई देती है कि निर्यातकों को ऋण वितरित करने के प्रयास सार्थक हुए हैं। उन्होंने कहा कि निर्यात ऋण वितरण से सम्बन्धित बैंक सेवाओं से तीन चौथाई निर्यातक संतुष्ट हैं और लगभग एक चौथाई निर्यातकों ने इस व्यवस्था को "उत्कृष्ट" का दर्जा दिया है और आधे से ज्यादा ने इन्हें "अच्छा" कहा है। गवर्नर महोदय ने कहा कि इस रिपोर्ट में कुछ सुझाव भी हैं कि निर्यातकों को ऋण वितरण में कैसे सुधार किया जाए, रिज़र्व बैंक इन पर विचार कर रहा है।

II. 2002-2003 की मौद्रिक नीति का रुख

12. गवर्नर महोदय ने कहा कि यद्यपि 2001-2002 में मौद्रिक प्रबन्ध बड़े पैमाने पर अप्रैल 2001 में घोषित वार्षिक नीति में मौद्रिक नीति रुख के अनुरूप था जिनका पुन: उल्लेख किया गया अक्तूबर 2001 में मध्यावधि समीक्षा के दौरान। इसे कई चुनौतियाें का भी सामना करना पड़ा, जैसे कि चलनिधि का अधिक समय तक फंसे रहना, विश्वव्यापी मंदी, सितम्बर के बाद विदेशी गतिविधियाँ और सीमाओं पर तनाव की स्थितियाँ।

13. गवर्नर महोदय ने कहा कि अक्तूबर 2001 की मध्यावधि समीक्षा में कहे अनुसार, रिज़र्व बैंक ने समूचे वर्ष ब्याज दर की स्थिर व्यवस्था बनाए रखी, जिसमें ब्याज दरों को और भी सरल बनाने की पक्षधरता थी, जैसा कि गौण बाज्ॉार में सरकारी प्रतिभूतियों से प्रतिलाभ की स्थिति से भी स्पष्ट है, जो वित्तीय वर्ष के प्रारम्भ में दिए जा रहे प्रतिलाभ से काफी कम थीं। उन्होंने कहा कि सामान्य ब्याज दरों पर बेवजह प्रभाव डाले बिना सरकार द्वारा बाज्ॉार से उधार लेने के बड़े कार्यक्रम कुछ कम लागत पर पूरे किए जा सकते हैं।

14. गवर्नर महोदय ने संकेत दिया कि समूचे वर्ष के लिए मौद्रिक नीति के निरूपण के प्रयोजन से 2002-2003 में स.घ.उ. की वास्तविक वृद्धि दर को 6.0 - 6.5 प्रतिशत और स्फीति की दर को 4.0 से थोड़ा कम रखा गया हैं। गैर-खाद्य ऋण (निवेश के लिए समायोजित) के लिए 15.0-15.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी मानी गई है, जो अर्थव्यवस्था के सभी उत्पादक क्षेत्रों की ऋण जरूरतों को पर्याप्त रूप से पूरा करेगी। यद्यपि कुछ राज्यों के संबंध में बाज़ार से उधार लेने के कार्यक्रम पर काफी दबाव रहा है तथापि उन्होंने कहा कि रिज़र्व बैंक को यह उम्मीद है कि समग्र चलनिधि स्थिति और ब्याज दरों पर कोई गंभीर दबाव डाले बिना ऋण का प्रबंधन किया जा सकेगा।

15. गवर्नर महोदय ने कहा कि यदि परिस्थितियां अचानक ही न बदल जाएं तो रिज़र्व बैंक मध्यावधि के लिए नरम ब्याज दर दायरे की तरफ झुकाव रखते हुए मौजूदा ब्याज दर परिवेश बरकरार रखेगा। सरकारी और निजी क्षेत्र, दोनों के मामले में दीर्घावधि लक्ष्य यही रहेगा कि ऋण विलेखों के सभी प्रकारों के लिए ब्याज दरों को एक सीमित बैंड में एक सीध में लाया जाए।

16. गवर्नर महोदय ने संकेत दिया कि सामान्य स्थितियों में और अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में किसी प्रतिकूल और अनपेक्षित गतिविधियों के उभर आने को छोड़ कर 2002-2003 के लिए मौद्रिक नीति का समग्र रुख (र्एूीहम) इस रूप में रहेगा :

  • मूल्य स्तर में गतिविधियों पर लगातार निगरानी रखते हुए अर्थव्यवस्था में ऋण वृद्धि को पूरा करने और निवेश मांग को समर्थन देने के लिए पर्याप्त चलनिधि का प्रावधान।
  • ऊपर बताये गये अनुसार नरम ब्याज दरों के लिए वरीयता सहित ब्याज दरों के मौजूदा रुख को जारी रखना।
  • मध्यावधि के ब्याज दर ढांचे को और अधिक लचीलापन प्रदान करना।

III. वित्तीय क्षेत्र सुधार और मौद्रिक नीति उपाय

गवर्नर महोदय ने वित्तीय प्रणाली के विभिन्न अंगों के कामकाज को मज़बूत करने और उसे युक्तिसंगत बनाने के लिए कतिपय ढांचागत और अन्य नीतिगत उपायों की घोषणा की।

मौद्रिक उपाय

(क) चलनिधि प्रारक्षित अनुपात को युक्तिसंगत बनाना और कम करना

17. चलनिधि प्रारक्षित अनुपात को 3.0 प्रतिशत के सांविधिक न्यूनतम स्तर पर लाने के अपने मध्यकालिक लक्ष्य के अनुरूप रिज़र्व बैंक ने चलनिधि प्रारक्षित अनुपात को क्रमिक रूप से अगस्त 1998 के 11.0 प्रतिशत से कम करके मई 2001 में 7.5 प्रतिशत कर दिया। चलनिधि समायोजन सुविधा को जारी रखते हुए और बेहतर विवेकशील मानक अपनाते हुए चलनिधि प्रारक्षित अनुपात को कम करने के मध्यकालिक लक्ष्य की दिशा में एक और उपाय के रूप में यह प्रस्ताव है कि :

  • 15 जून 2002 से शुरू होनेवाले पखवाड़े से चलनिधि प्रारक्षित अनुपात को 5.5 प्रतिशत से और कम करके 5.0 प्रतिशत कर दिया जाए।

तारीख 15 जून 2002 से शुरू होनेवाले पखवाड़े से प्रभावी की जानेवाली चलनिधि प्रारक्षित अनुपात में प्रस्तावित कटौती को बैंकिंग प्रणाली में मौजूदा अतिरिक्त चलनिधि को देखते हुए किया जा रहा है जैसा कि मांग मुद्रा बाज़ार में बढ़े हुए प्रतिलाभ और रिज़र्व बैंक के रेपो में औसत से अधिक निर्भरता से देखा जा सकता है। अलबत्ता रिज़र्व बैंक चलनिधि स्थितियों में किसी अनपेक्षित परिवर्तन के मामले में उपर्युक्त घोषित तारीख से पहले कटौती प्रभावी तारीख ला सकता है।

(ख) बैंक दर

18. गवर्नर महोदय ने कहा कि प्रणाली में काफी मात्रा में अधिक नकदी है जो रिज़र्व बैंक द्वारा प्राप्त होने वाली पर्याप्त रेपो राशियों, नियत आय प्रतिभूतियों पर अपेक्षाकृत कम प्रतिफलों और जमाराशियों तथा उधार दरों में कटौती के रूप में देखी जा सकती है। तुलना करके देखें तो इन परिस्थितियों में यह वांछनीय समझा गया कि बैंक दर से कोई छेड़छाड़ न की जाए। अलबत्ता, उन्होंने आगे कहा कि इस मामले की लगातार समीक्षा की जाती रहेगी। समग्र चलनिधि तथा ऋण स्थिति यदि इस बात की जरूरत पैदा करती है और मुद्रा स्फीति दर नीची बनी रहती है तो जब भी आवश्यक हुआ रिज़र्व बैंक द्वारा बैंक दर में आधा प्रतिशत अंक (50 आधार अंक) की कटौती पर विचार करेगा।

ब्याज दर नीति

(क) ब्याज दरों में लचीलापन

19. गवर्नर महोदय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि मध्यकालिक नज़रिये से यह आवश्यक है कि भारत में ब्याज दर ढांचे को और अधिक लचीला बनाया जाए और मौजूदा मुद्रास्फीतिगत स्थिति को दर्शाने लायक बनाने के लिए उपाय शुरू किये जाने चाहिए। गवर्नर महोदय ने कहा कि जितनी जल्दी हो सके निम्नलिखित उपायों पर विचार किये जाने की जरूरत है :

  • सभी नयी जमाराशियों के लिए लचीली ब्याज दर प्रणाली की शुरुआत को प्रोत्साहित करना और उसे छमाही अंतराल पर नये सिरे से सेट करना। साथ ही साथ नियत दर विकल्प भी जमाकर्ताओं को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, छमाही के लिए सेट की गयी स्थितियों पर बैंक दीर्घावधि जमाराशियों का प्रस्ताव दे सकते हैं और साथ ही साथ उतनी ही अवधि के लिए नियत दर का भी प्रस्ताव कर सकते हैं जिन पर ब्याज दर जमाराशि की अवधि और लंबी अवधि के लिए ब्याज दर नज़रिये और मुद्रास्फीति के संबंध में बैंकों के सोच को ध्यान में रखते हुए ऊंची या नीची हो सकती है।
  • इस तरह की योजना तैयार करना कि जमाकर्ता अपनी मौजूदा दीर्घावधि नियत दर पिछली जमाराशियों को चल-दर जमाराशियों में परिवर्तित करने के लिए प्रोत्साहित हो सके। वाणिज्यिक बैंक पहले से ही चल रही जमाराशि अवधि के लिए करार की गयी दर पर जमाकर्ताओं को ब्याज देने पर विचार कर सकते हैं और यदि वही जमाराशि चल-दर पर नवीकृत की जाती है और अवधि समाप्ति से पूर्व आहरण किया जाता है तो दण्ड को माफ करने का विचार कर सकते हैं।

(ख) प्रमुख उधार दर और उसका लाभ-दायरा

20. उपलब्ध अद्यतन जानकारी के अनुसार कुछ बैंकों के उपर्युक्त प्रमुख उधार दरों के लाभ-दायरे बहुत अधिक हैं। मौजूदा ब्याज दर परिवेश में यह उचित नहीं है कि प्रमुख उधार दर के बहुत ऊंचे लाभ-दायरे रखे जाएं। अतएव, बैंकों से आग्रह किया जाता है कि वे प्रमुख ब्याज दर के मौजूदा अधिकतम लाभ-दायरे की समीक्षा करें और जहां कहीं भी वे अनुचित रूप से बहुत ऊंचे हों, वहां उन्हें कम करें ताकि उधारकर्ताओं को उचित ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध हो सकें। इसके अलावा बैंकों को चाहिए कि वे अपनी प्रमुख ब्याज दरों की घोषणा करने के साथ ही जनता के लिए प्रमुख ब्याज दरों के अधिकतम लाभ-दायरे की भी घोषणा करें।

21. ग्राहक सुरक्षा के हित में और साथ ही सार्थक प्रतिस्पर्धा में यह आवश्यक है कि जमाकर्ताओं और साथ ही साथ उधारकर्ताओं के लिए भी वास्तविक ब्याज दरों के संबंध में और अधिक पारदर्शिता लायी जाए। इस दिशा में निम्नलिखित उपायों का प्रस्ताव है :

  • बैंकों के चाहिए कि वे जमाकर्ताओं को विविध अवधि समाप्ति वाली जमा दरों पर और प्रभावी वार्षिक प्रतिफल पर सूचना उपलब्ध करायें। रिज़र्व बैंक अपनी वेबसाइट पर समेकित सूचना उपलब्ध करायेगा।
  • बैंकों को चाहिए कि वे अपने उधारकर्ताओं से वसूल की जानेवाली अधिकतम तथा न्यूनतम ब्याज दरों पर सूचना उपलब्ध करायें। सूचना पब्लिक डोमेन पर उपलबध करायी जाएं।
  • बैंकों से आग्रह किया गया कि वे ग्राहकों के लिए ‘समस्त लागत’ की धारणा अपनाएं और इसके लिए ग्राहकों से वसूल किये जाने वाले प्रोसेसिंग प्रभार, सेवा प्रभार आदि की स्पष्ट रूप से घोषणा करें और उन्हें सार्वजनिक रूप से प्रसारित भी करें।

(ग) बचत खाते पर ब्याज दर - कोई परिवर्तन नहीं

22. हालांकि बचत खाते पर सांकेतिक ब्याज दर 4.0 प्रतिशत वार्षिक है, प्रतिफल केवल 3.4 प्रतिशत वार्षिक ही आता है क्योंकि ब्याज प्रत्येक माह के दसवें दिन और अंतिम दिन के बीच न्यूनतम शेष राशि पर ही अदा किया जाता है। गवर्नर महोदय ने कहा कि हालांकि ब्याज खाते पर भी ब्याज दरों को विनियम के दायरे से बाहर लाने का सीधा सादा मामला है, चूंकि लगभग इस तरह की बचत जमाराशियों का 4/5 हिस्सा घरेलू

बचतों से आता है जिनमें ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्र के घरेलू क्षेत्र भी शामिल हैं। कुल मिला कर यह आवश्यक नहीं समझा गया कि वर्तमान के लिए बचत खातों पर ब्याज दर को विनियमित करने का यह सही समय है।

(घ) निर्यात ऋणों पर ब्याज दर

23. ब्याज दर को और अधिक प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के उद्देश्य से बैंकों द्वारा भारतीय निर्यातकों के लिए निर्यात ऋण पर विदेशी मुद्रा ऋणों पर अधिकतम दर कम करके वर्तमान के लिबोर +1.0 प्रतिशत अंक से कम करके लिबोर +0.75 प्रतिशत अंक की जा रही है।

(ङ) मान लिये गये (डीम्ड) निर्यात

24. इन प्रतिवेदनों को देखते हुए कि कुछ निर्यातक अभी भी मान लिये गये निर्यातों के संबंध में रियायती ब्याज दर का लाभ नहीं उठा पाते, गवर्नर महोदय ने बैंकों से अनुरोध कि वे मान लिये गये निर्यातों पर दी जानेवाली रियायतों का पर्याप्त प्रचार करें और इन्हें पात्र निर्यातकों को भी उपलब्ध करायें।

(च) सरकारी बैंकों के लिए न्यूनतम उधार दर समाप्त करना

25. प्रतिस्पर्धी परिवेश में सहकारी बैंकों को और अधिक लचीलापन लाने के लिए यह प्रस्ताव है कि :

  • सभी सहकारी बैंकों के लिए एमएलआर के अनुदेशों को तत्काल प्रभाव से समाप्त करना ताकि वे अपनी उधार दरों को निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र हो सकें।
  • सहकारी बैंकों द्वारा वसूली जा रही ब्याज दरों में पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के लिए बैंकों से अनुरोध किया गया है कि वे वसूली जा रही अधिकतम और न्यूनतम ब्याज दरों को प्रकाशित करें और प्रत्येक शाखा में इसे प्रदर्शित भी करें।

(छ) एफसीएनआर (बी) जमाराशियों के अंतर्गत इकठ्ठा
की गयी निधियों के निवेश मानदंडों का उदारीकरण

  1. एफसीएनआर (बी) जमाराशियों के फैलाव के लिए बैंकों पर लगाये गये प्रतिबंधों को कम करने तथा आस्ति-देयताओं के असंतुलन से बचने के लिए बैंकों को इस बात की अनुमति दी गयी है कि वे मुद्रा बाजार लिखतों के लिए निर्धारित यथोचित दर निर्धारण के साथ अपनी एफसीएनआर(बी) जमाराशियों का दीर्घावधि मीयादी आय लिखतों में निवेश कर सकते हैं।
  2. (ज) एफसीएनआर(बी) जमाराशियों पर ब्याज दर

  3. एफसीएनआर (बी) जमाराशियों की उच्चतम दर अनुवर्ती परिपक्वता अवधि के लिए लिबोर/स्वैप दरों तक कम की गयी है तथा लिबोर/स्वैप दर से 25 आधार अंकों से कम की गयी है।
  4. (झ) बैंकों द्वारा उधार पर रियायत और विदेशी बाजार में निवेश

  5. बैंकों को बेहतर परिचालनगत लचीलापन प्रदान करने के लिए निम्नलिखित उपाय घोषित किये गये हैं।
    • बैंकों को अपनी ‘खुली स्थिति सीमा (ओपन पोज़िशन लिमिट) और परिपक्वता आस्तियों और देयताओं की असंतुलन सीमा (गैप लिमिट्स) के अंतर्गत विदेशी बाज़ार से (अनइम्पेयरड़) टियर I पूंजी के 25 प्रतिशत तक उधार की अनुमति दी गयी है, जिसके लिए विस्तृत दिशार्निदेश जारी किये जायेंगे।
    • विदेशी बाज़ार में निवेश के लिए अनइम्पेयड़ टियर I पूंजी की मौजूदा 15 प्रतिशत की सीमा अनइम्पेयड़ टियर I पूंजी के 25प्रतिशत तक बढ़ायी गयी है।

    (ञ) बाह्य वाणिज्यिक उधारों की परिणति (क्रिस्टलाइज़ेशन)

    1. बैंकों को चयनित मामलों में विदेशी मुद्रा देयताओं को रुपये में परिवर्तित करना आसान बनाने तथा उनके निधि प्रबंधन में उन्हें बेहतर स्वतंत्रता और लचीलापन देने की दृष्टि से यह प्रस्ताव किया गया है कि जहाँ पर बैंक ऐसा करना आवश्यक समझें उन्हें यथोचित सुरक्षा के साथ बाह्य वाणिज्यिक उधारों को रुपया ऋण में परिणत करने की अनुमति दी जाए।
    2. ऋण वितरण प्रणाली

      (क) प्राथमिकता क्षेत्र को उधार

    3. प्राथमिकता क्षेत्र को विशेषत: कृषि क्षेत्र को दी जानेवाली ऋण वितरण प्रणाली में और सुधार लाने के लिए निम्नलिखित उपाय प्रस्तावित हैं :-
      • प्राथमिकता क्षेत्र के अंतर्गत संबद्ध गतिविधियों के लिए निवेश वस्तुओं के वितरण के वित्तपोषण की सीमाएँ मौजूदा 15 लाख रुपये से बढ़ाकर 25 लाख रुपये कर दी गयी।
      • कृषकों के लिए फसल गिरवी रखकर वित्तपोषण के विपणन के लिए ऋण सीमा एक लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दी गयी और ऐसे ऋण की चुकौती अनुसूची वर्तमान 6 माह से बढ़ाकर 12 माह कर दी गयी।
      • दोहरी गणना से बचने के लिए प्रायोजक बैंकों को कहा गया कि वे क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को प्राथमिकता क्षेत्र को आगे उधार देने के लिए दिये गये निधियों को, लक्ष्य प्राप्ति को पूरा करते समय छोड़कर गणना करें।

      (ख) लघु उद्योगों के लिए ऋण सुविधाएं

      1. लघु उद्योग इकाइयों के लिए ऋण सुविधाओं में और ढील दी गयी है तथा बैंकों को यह अनुमति दी गयी है कि वे इकाइयों के पिछले अच्छे रिकाड़ और लघु उद्योग इकाइयों की वित्तीय स्थिति के अधार पर मौजूदा 5 लाख से 15 लाख तक के ऋणों के लिए संपार्श्विक अपेक्षाओं की छूट की सीमा को बढ़ा सकते हैं।
      2. (ग) आवास वित्त के लिए जमानत और जोखिम भारिताएं

        32. आवास क्षेत्र को ऋण की उपलब्धता में और सुधार लाने के लिए, बैंकों द्वारा आवास वित्त की विवेकसम्मत अपेक्षाओं तथा आवास वित्त कंपनियों के प्रतिभूतिकृत ऋण दस्तावेज़ों में निम्नानुसार ढील दी गयी है :

        • अब से पूर्व निर्धारित 100 प्रतिशत की तुलना में रिहायशी आवासीय संपत्तियों पर जोखिम भारिता 50 प्रतिशत।
        • राष्ट्रीय आवास बैंक द्वारा पर्यवेक्षित आवास वित्त कंपनियों द्वारा रिहायशी आस्तियों की बंधक आधारित प्रतिभूतियों में निवेशों के लिए पूंजी पर्याप्तता के प्रयोजन के लिए जाखिम भारिता 50 प्रतिशत। बैंकों द्वारा ऐसी जिन रिहायशी आस्तियों की बंधक आधारित प्रतिभूतियों में निवेश किया जाएगा जिनमें वाणिज्यिक संपत्तियां शामिल हों, उन पर 100 प्रतिशत जोखिम भारिता लगायी जाएगी।
        • बैंकों द्वारा बंधक आधारित निवेशों को 3.0 प्रतिशत के निर्धारित आवंटन में शामिल किये जाने को मान्यता (राष्ट्रीय आवास बैंक द्वारा पर्यवेक्षित आवास वित्त कंपनियों द्वारा)।

        (घ) ग्रामीण ढांचागत विकास निधि

        33. केंद्रीय बजट में की गयी घोषणा के अनुसरण मे, ग्रामीण ढांचागत विकास निधि-VIII के तहत स्वीकृत निधियों को बढ़ाकर 5,500 करोड़ रुपये कर दिया गया है और ग्रामीण ढांचागत विकास निधि से राज्यों को दिये जाने वाले ऋणों की ब्याज दर को बैंक दर से जोड़ दिया गया है।

        (ङ) व्यक्ति स्तर पर ऋण

        1. अनुसूचित वाणिज्य बैंक और नाबाड़ देश-भर के स्वयं सहायता समूहों से जुड़ने के लिए तत्काल क़दम उठायेंगे ताकि 2002-03 के लिए 1.25 लाख व्यक्तियों के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।
        2. मुद्रा बाज़ार

          (क) साफ-सुथरे अंत: मांग मुद्रा बाज़ार की दिशा में बढ़ना

          35. जिस तारीख को एनडीएस/सीसीआइएल पूरी तरह से काम करना शुरू कर देंगे, उसे ध्यान में रखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक उस तारीख की घोषणा करेगा जिसको द्वितीय चरण की ओर बढ़ा जाएगा; इस चरण में बैंकों से इतर सहभागियों को इस बात की अनुमति होगी कि वे रिपोर्ट किये जाने वाले पखवाड़े में, औसतन, 2000-01 के दौरान मांग बाजांर में अपने औसत उधार-निधि का 75 प्रतिशत तक उधार दे सकेंगे।

          (ख) मांग / सूचना मुद्रा बाज़ार पर निर्भरता

          36. मांग बाज़ार में और सुधार लाये जाने के लिए निम्नलिखित क़दम उठाये जाने का प्रस्ताव है :

          • मांग / सूचना मुद्रा बाज़ार में अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के दैनिक उधार की निधि पिछले वित्तीय वर्ष के मार्च के अंत में उनकी स्वामित्व वाली निधियों के 25 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।
          • मांग / सूचना मुद्रा बाज़ार में अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की दैनिक उधार निधियां उनके स्वामित्व वाली निधियों अथवा पिछले वित्तीय वर्ष के मार्च के अंत में उनकी कुल जमाराशियों के के 2.0 प्रतिशत, जो भीं अधिक हो, से अधिक नहीं होंगी।
          • मौजूदा उधार लेने और उधार देने वालों को विवेकसम्मत सीमाओं से बढ़ी हुई स्थितियों का अगस्त 2002 तक खुलासा करने की अनुमति है ।
          • मांग / सूचना मुद्रा बाजाॉर में राज्य सहकारी बैंकों और ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंकों की दैनिक उधार निधियां पिछले वित्तीय वर्ष के मार्च के अंत की उनकी कुल जमा राशियों के 2.0 प्रतिशत से अधिक नहीं होंगी।
          • जिन किन्हीं बैंकों का तालमेल न बैठ पा रहा हो, उनके द्वारा अनुरोध किये जाने पर भारतीय रिज़र्व बैंक मांग / सूचना मुद्रा बाज़ार का अस्थायी तौर पर सहारा लेने की अनुमति देने पर विचार कर सकता है। निर्धारित मानदंडों से अधिक सहारा और अधिक अवधि के लिए लेने की अनुमति भारतीय रिज़र्व बैंक उन बैंकों को दे सकता है जिनमें ए एल एम पूरी तरह से कार्यरत हो और भारतीय रिज़र्व बैंक उससे संतुष्ट हो।
          • पात्र संस्थाओं के प्रतिनिधियों से गठित कार्यदल 30 जून 2002 तक मांग/ सूचना बाज़ार के प्राथमिक व्यापारियों के लिए सीमाएं तय करने के लिए सिफारिशें करेगा और मांग मुद्रा बाज़ार से बाहर निकलने के उपायों का ख्ॉाका सुझायेगा।

          (ग) संपार्श्विकीकृत उधार सुविधाएं

          37. वित्तीय प्रणाली में चल-निधि की स्थिति को सहज बनाने में एलएएफ के निहित महत्त्व के कारण, संपार्श्विकीकृत उधार सुविधा को 5 अक्तूबर 2002 से समाप्त कर दिया जाएगा। यदि मौद्रिक परिस्थितियों में परिवर्तन को देखते हुए आवश्यक समझा गया तो संपार्श्विकीकृत उधार सुविधा को भविष्य में बहाल किया जा सकता है।

          (घ) जमा प्रमाणपत्र

          1. 30 जून 2002 से बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से यह अपेक्षा की गयी है कि वे जमा प्रमाणपत्र केवलगैर-कागजी रूप में (डिमटेरियलाइज्ड फार्म) में जारी करें। वर्तमान बकाया जमा प्रमाणपत्र अक्तूबर 2002 तक डिमैट रूप में परिवर्तित कर दिये जाने चाहिए।
          2. सरकारी प्रतिभूतियाँ - वर्तमान गतिविधियों की समीक्षा

            (क) एक-समान मूल्य नीलामी

          3. भारतीय रिज़र्व बैंक प्रयोगात्मक तथा चयनित आधार पर इस कैलेंडर वर्ष के दौरान भी एक-समान मूल्य नीलामी का आश्रय लेना जारी रखेगा क्योंकि यह आवश्यक समझा गया है।
          4. (ख) निगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम

          5. भारतीय रिज़र्व बैंक में एसजीएल खाता रखनेवाली सभी संस्थाओं को यह सूचित किया गया है कि वे 31 मई 2002 तक एनडीएस के सदस्य बन जाये।
          6. (ग) सरकारी प्रतिभूति अधिनियम

          7. वर्तमान लोक ऋण अधिनियम, 1944 के स्थान पर सरकारी प्रतिभूति अधिनियम संसद में प्रस्तुत किया जाये जैसा कि वित्त मंत्री महोदय ने 2002-03 के अपने बजट भाषण में प्रस्तावित किया है।
          8. (घ) सरकारी प्रतिभूतियों की गैर-प्रतियोगी बोली के माध्यम से खुदरा बिक्री

          9. बैंकों को सूचित किया गया है कि वे खुदरा निवेशकों को डिमैट खातों अथवा सीएसजीएल खाता धारकों के माध्यम से अपने काउंटर पर सरकारी प्रतिभूति की बिक्री/खरीद की योजनाओं को प्रोत्साहन प्रदान करें। प्राथमिक विक्रेता तथा बैंक यह सुनिश्चित करने के लिए कि खुदरा निवेशकों को ऐसे निवेशों पर तरलता का विश्वास हो, बिक्री तथा खरीद दोनों सुविधाएँ प्रदान कर सकते हैं। आकर्षक दर पर स्वत: वित्तीयन की सुविधा प्राप्त करने के लिए सरकारी प्रतिभूतियों की खुदरा बिक्री को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
          10. (ङ) अस्थायी दर वाले बांड

          11. अस्थायी दर वाले बांड के लाभ तथा जोखिम दोनों पर विचार करने के पश्चात् चालू वर्ष में और अस्थायी दर वाले बांड जारी करने पर विचार किया जायेगा।
          12. (च) दिनांकित प्रतिभूतियों का कैलेंडर

          13. सरकार द्वारा पहले छह महीनों के लिए कुल अनुमानित बाज़ार उधारियों में से 68,000 करोड़ रुपये की राशि के एक कैलेंडर की पहले ही घोषणा की जा चुकी है। पूर्व के समान ही वर्ष की प्रथम छमाही के लिए शेष बाज़ार उधारियों के कार्यक्रम की घोषणा समय-समय पर सरकार की ज़रूरतों तथा बाज़ार की दशाओं को देखकर की जायेगी।
          14. (छ) सैटेलाइट डीलर सिस्टम

          15. भारतीय प्राथमिक व्यापारी असोसिएशन तथा मुद्रा तथा सरकारी प्रतिभूतियों के संबंध में तकनीकी परामर्शदाता समिति के विचारों को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि कोई नया सैटेलाइट डीलर सिस्टम का लाइसेन्स जारी न किया जाये। वर्तमान सैटेलाइट डीलरों को सैटेलाइट डीलर के रूप में 31 मई 2002 तक अपने परिचालन समाप्त करने के लिए ऐसी नीलामी योजनाएँ तैयार करनी होंगी जिनसे भारतीय रिज़र्व बैंक संतुष्ट हो।
          16. (ज) बीमा कंपनियों तथा अन्य के लिए
            दीर्घावधि बांड जारी करना

          17. ऐसे निवेशकों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए दीर्घावधि बांड जारी करने की भारतीय रिज़र्व बैंक की नीति जारी रखी जाने का प्रस्ताव है।
          18. (झ) स्वत: नामे कार्य प्रणाली

          19. राज्य सरकार की गारंटियों के संबंध में राज्य वित्त सचिवों की तकनीकी समिति की सिफारिशों को तथा ऋण बाज़ार में लोक ऋण घटक की निष्ठा को बनाये रखने की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए अग्रलिखित प्रस्ताव किया जाता है :
            • जहाँ कोई विधिक या अन्य बाध्यताएँ न हों वहाँ भविष्य में एक सामान्य नीति के तौर पर स्वत: नामे प्रणाली को समाप्त करना।
            • जहाँ कानूनी बाध्यताएँ हों वहाँ ऐसे प्रावधानों में संशोधन का सुझाव देना।
            • राज्य सरकारों तथा अन्य संबंधितों से परामर्श करके जहाँ भी संभव हो ऐसे कार्य प्रणाली को समाप्त करने की दृष्टि से समस्त वर्तमान स्वत: नामे व्यवस्थाओं की समीक्षा करना।

            विवेकसम्मत उपाय

            (क) नया बैसेल कैपिटल समझौता

            1. एक आंतरिक समूह चयनित बैंकों के प्रतिनिधियों को संशोधित दृष्टिकोण तथा भावी परिणामात्मक प्रभाव अध्ययन(क्यूआइएस) के संबंध में सामग्री प्रदान करने के लिए आमंत्रित करेगा।बैंकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे नये प्रस्तावों की कार्यप्रणाली तथा इसके संभावित प्रभाव के संबंध में अध्ययन करने के लिए एक आंतरिक विशेषज्ञ दल का गठन करें।
            2. (ख) काउंटरपार्टी और देश जोखिमें

              49. भारतीय रिज़र्व बैंक शीघ्र ही बैंकों, भारतीय बैंक संघ और अन्य बाजार सहभागियों के साथ परामर्श करके देश जोखिम प्रबंधन और उसके लिए प्रावधान पर प्रारूप दिशानिर्देश जारी करेगा।

              50. बैंकों को सूचित किया गया कि वे बाजार जोखिम के लिए पूंजी पर बेसेल फ्रेमवर्क का अध्ययन करें जैसा कि बाजार जोखिमों का समावेश करने के लिए पूंजी समझैते में आशोधन में उल्लिखित है जो बीसीबीएस द्वारा जनवरी 1996 में प्रकाशित किया गया तथा स्वयं को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा घोषित की जानेवाली उचित तारीख को इस संबंध में अंतरराष्ट्रीय पद्धातियों के अनुनालन के लिए तैयार करें।

              (ग) काले धन को बैध बनाने पर प्रतिबंध

              51. भारतीय रिज़र्व बैंक इस संबंध में शीघ्र ही बैंकों द्वारा अपेक्षित नीति, प्रक्रियाएं और नियंत्रण निश्चित करने वाला मास्टरर परिपत्र जारी करेगा।

              (घ) अवमानक परिसंपत्ति को संदिग्ध श्रेणी में डालने
              के लिए संक्रमण अवधि में कटौती

              1. नरसिंहम समिति II द्वारा की गयी सिफ़ारिशों से सामंजस्य रखते हुए तथा अंतरराष्ट्रीय उत्कृष्ट पद्धतियों के नज़दीक जाने की दृष्टि से यह प्रस्ताव है कि:-
                • 31 मार्च 2005 से यदि कोई परिसंपत्ति 12 महीने के लिए अवमानक श्रेणी में रहती है तो उसे संदेहात्मक परिसंपत्ति माना जाएगा बैंकों को हर वर्ष न्यूनतम 20 प्रतिशत की दर से चार वर्षों की अवधि में परिणामस्वरूप अतिरिक्त प्रावधान करने की अनुमति दी गयी है।

                (ङ) निकाय ऋण पुनर्विन्यास (सीडीआर)

                53. भारतीय रिज़र्व बैंक ने सीडीआर योजना के परिचालनों की समीक्षा तथा योजना के सरल कार्यान्वयन में परिचालनगत कठिनाइयां, यदि कोई हों, की पहचान करने तथा योजना को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए उपाय सुझाने के लिए उच्च स्तरीय दल (अध्यक्ष: श्री वेपा कामेसम, उप गवर्नर) का गठन किया। एक अंतरिम उपाय के रूप में तथा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा गठित उच्च स्तरीय दल की लंबित सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया कि यदि उधारदाता संघटित बैंक और वित्तीय संस्था के न्यूनतम 75 प्रतिशत (मूल्य द्वारा) सीडीआर के लिए सहमत हैं, तो सीडीआर मुख्य समूह की विशिष्ट सिफ़ारिशों के आधार पर बैंकों/वित्तीय संस्थाओं की परिसंपत्तियों के वर्गीकरण की भिन्नताओं के बावजूद, भारतीय रिज़र्व बैंक ऋण पुनर्विन्यास की अनुमति देगा।

                (च) निवेश उतार-चढ़ाव आरक्षित निधि (आइएफआर)

                1. प्राप्त प्रतिसूचना के आधार पर यह निर्णय लिया गया है कि निवेश के संदर्भ में निवेश उतार-चढ़ाव आरक्षित निधि(आइएफआर) की गणना इन दो वर्गों में की जाएं अर्थात् "व्यापार के लिए धारित " तथा "बिक्री के लिए उपलब्ध "। आइएफआर की गणना के लिए "परिपक्वता के लिए धारित" वर्ग की प्रतिभूतियों की गणना आवश्यक नहीं होगी जोकि व्यापार के लिए नहीं है।
                2. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी)

                  (क) एनबीएफसी क्षेत्र के लिए एसआरओ का निर्माण

                3. एनबीएफसी असोसिएशनों के प्रतिनिधियों ने शीघ्र ही एसआरओ गठित करने के लिए सहमति दी है ।
                4.    (ख) एनबीएफसी द्वारा विवरणियों का प्रस्तुतीकरण

                  1. विवरणियों की प्रस्तुति न किये जाने पर भारतीय रिज़र्व बैंक 50 करोड़ रुपये तथा उससे अधिक सार्वजनिक जमा वाले एनबीएफसी के सीओआर को अस्वीकार/निरस्त पर विचार करने के साथ-साथ भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 में दिये गये अनुसार दंड लगाने के साथ-साथ न्यायालयीन कार्यवाही भी प्रारंभ करेगा। एनबीएफसी के आकार से संबंधित शर्त में कालांतर में उत्तरोत्तर कमी की जायेगी।
                  2. रिज़र्व बैंक के पास चालू खाता सुविधा को तर्कसंगत बनाना

                  3. चालू खाता सुविधा केवल अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों तथा अनुसूचित सहकारी बैंकों तथा प्राथमिक व्यापारियों को ही प्रदान की जायेगी। उपर्युक्त दर्शायी गयी संस्थाओं के अलावा अन्य संस्थाओं के लिए इस सुविधा को कालांतर में क्रमबद्ध रूप से बंद किया जाएगा।
                  4. अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय मानक तथा संहिता

                  5. स्थायी समिति समस्त सलाहकार समूहों के अभिमतों तथा टिप्पणियों को संश्लेषित करने की प्रक्रिया में लगी हुई है और अंतिम रिपोर्ट को व्यापक प्रसार तथा उचित अनुवर्ती कार्रवाई के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के समक्ष रखा जाएगा।
                  6. मध्यावधि समीक्षा

                  7. चालू वर्ष की पहली छमाही में ऋण तथा मौद्रिक गतिविधियों की समीक्षा अक्तूबर 2002 में की जायेगी।
                  8. अल्पना किल्लावाला
                    महाप्रबंधक

                    प्रेस प्रकाशनी : 2001-2002/1196

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