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भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2006-07 के लिए मौद्रिक नीति

31 जनवरी 2007

भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2006-07 के लिए मौद्रिक नीति
के संबंध में वार्षिक वक्तव्य की तीसरी तिमाही समीक्षा की घोषणा की

डॉ. वाइ.वेणुगोपाल रेड्डी, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज वर्ष 2006-07 के लिए मौद्रिक नीति के संबंध में वार्षिक वक्तव्य की तीसरी तिमाही समीक्षा प्रस्तुत की।

मुख्य-मुख्य बातें

  • रिपो दर को 7.25 प्रतिशत से बढ़ाकर 7.50 प्रतिशत किया गया।
  • प्रत्यावर्तनीय रेपो दर , बैंक दर और आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) अपरिवर्तित रखी गयी हैं।
  • चलनिधि समायोजना सुविधा (एलएफए) के अंतर्गत निविदा (निविदाओं ) को पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से स्वीकार अथवा अस्वीकार करने के अधिकार सहित रातभर (ओवरनाइट) के रिपो अथवा लंबी अवधि के रिपो की लोचकता बनाये रखी गयी है।
  • वर्ष 2006-07 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 8.5 - 9.0 प्रतिशत की वृद्धि अनुमानित है।
  • मुद्रास्फीति के 5.0 प्रतिशत की सीमा के मध्यावधि लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए मुद्रास्फीति को यथाशीघ्र यथासंभव 5.0 - 5.5 प्रतिशत के करीब नीचे लाना है।
  • स्थावर संपदा क्षेत्र, बकाया क्रेडिट कार्ड प्राप्तियों,पूंजी बाजार जोखिम और व्यक्तिगत ऋणों के रूप में समझे जाने वाले ऋण और अग्रिमों (आवासीय आवास ऋणों को छोड़कर) में मानक परिसंपत्तियों के प्रावधानीकरण धआवश्यकता को दो प्रतिशत से बढ़ाया गया।
  • प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को लेकर गैर जमा के मानक परिसंपत्ति संवर्ग में बैंकों के जोखिमों के लिए प्रावधानीकरण आवश्यकता को दो प्रतिशत से बढ़ाया गया।
  • प्रणालीगत रुप से महत्वपूर्ण गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनीयों को लेकर गैर जमा के बैंकों के जोखिम के लिए जोखिम भार को 125 प्रतिशत सेबढ़ाया गया।
  • अनिवासी विदेशी खाता जमाराशियों पर ब्याज दर सीमा को तदनुरूपी परिपक्वता के अमरीकी डालर के लिए लिबोर / स्वैप दरों के ऊपर 100 आधार बिंदु से घटाकर 50 आधार बिंदु किया गया ।
  • विदेशी मुद्रा अनिवासी खाता (बैंक) जमाराशियों पर ब्याज दर की सीमा को अलग-अलग मुद्रा / परिपक्वता अवधियों के लिए लिबोर / स्वैप दरों के नीचे लिबोर / स्वैप दरों को 25 आधार बिंदु से घटाया गया।
  • बैंकों को अनिवासी विदेशी खाता और विदेशी मुद्रा अनिवासी खाता (बैंक) जमाराशियों पर 20 लाख रुपये से अधिक नये ऋण प्रदान करने से रोका जा रहा है और उन्हें सूचित किया जा रहा है कि ऋण राशि को सीमा के भीतर रखने के लिये उसके कृत्रिम हिस्से ना करे।
  • वर्ष की शेष अवधि में, चलनिधि के प्रबंधन को नीतिगत पदानुक्रम में प्राथमिकता मिलेगी। बाज़ार की चलनिधि में कमी के परिणामस्वरुप मौद्रिक नीति का प्रभाव पहले से भी मज़बूत होने की संभावना है।
  • उत्पन्न परिस्थिति की प्रतिक्रिया में चलनिधि के उचित नियमन को सुनिश्चित करने के लिये रिज़र्व बैंक द्वारा आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) सहित सभी नीतिगत साधनों का उपयोग किया जाएगा।
  • रिज़र्व बैंक सुनिश्चित करेगा कि प्रणाली में उचित चलनिधि रखी जाती है ताकि ऋण सभी वैध आवश्यकताएं, विशेषकर मूल्य और वित्तीय स्थिरता के उद्देश्य के सामजंस्य से उत्पादक प्रयोजनों के लिये ऋण मुहैया करायी जाती है। यहां पर रिज़र्व बैंक खुले बाजार परिचालनों के माध्यम से बाजार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस), चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) और आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) सहित चलनिधि के सक्रिय मांग प्रबंधन की अपनी नीति और स्थिति की आवश्यकतानुसार अपने सभी नीतिगत साधनों के उपयोग को जारी रखेगा।
  • अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में किसी प्रतिकूल और अप्रत्याशित गतिविधियों के पैदा होने को छोड़कर और मुद्रास्फीति के दृष्टिकोण सहित अर्थव्यवस्था के चालू मूल्यांकन को ध्यान में रखते हुए आगे की अवधि में मौद्रिक नीति का समग्र दृष्टिकोण इस प्रकार होगा :
    • निर्यात तथा निवेश की माँग का एक मौद्रिक तथा ब्याज दर वातावरण सुनिश्चित करते समय मूल्य स्थिरता तथा सुनियोजित मुद्रास्फीति अपेक्षाओं पर दबाव डाला जाना, जो अर्थव्यवस्था में निर्यात तथा निवेश की माँग में इस प्रकार सहायता प्रदान करती है ताकि विकास की गति को जारी रखा जा सके।
    • भारी मात्रा में ऋण उपलब्ध कराने और वित्तीय समावेशन का साथ-साथ अनुसरण करते समय समष्टि आर्थिक और विशेषतः वित्तीय स्थिरता प्राप्त करने के लिए ऋण समानता और वित्तीय बाजारों में सुव्यवस्थित स्थिति पर पुनः जोर डाला जाना।
    • विकसित हो रही वैश्विक और मुद्रास्फीति अपेक्षाओं से बाहर की घरेलू स्थितियों तथा विकास की गति के लिए समुचित सभी संभावित उपायों के साथ तेजी से अनुकूल होना।

ब्योरे

घरेलू गतिविधियाँ

  • वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि वर्ष 2005-06 की पहली छमाही के 8.5 प्रतिशत से वर्ष 2006-07 की पहली छमाही में 9.1 प्रतिशत पर स्थिर रही।
  • वर्ष -दर - वर्ष (वाई-ओ-वाई) आधार पर थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) में उतार-चढ़ाव के द्वारा मापी गई मुद्रास्फीति 13 जनवरी 2007 तक सीमान्त रूप से घटकर 6.0 प्रतिशत होने के पहले मार्च 2006 के अंत के स्तर 4.1 प्रतिशत से बढ़कर 6 जनवरी 2007 को आंतर-वर्ष की ऊँचाई पर 6.1 प्रतिशत हो गई।
  • प्राथमिक वस्तुओं के मूल्य में एक वर्ष पूर्व 5.6 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में 13 जनवरी 2007 को वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि 9.1 प्रतिशत दर्ज की गई।
  • विनिर्माण मुद्रास्फीति वर्तमान वित्तीय वर्ष के प्रारंभ में 1.9 प्रतिशत तथा एक वर्ष पूर्व के 2.2 प्रतिशत से बढ़कर 13 जनवरी 2007 तक वर्ष-दर-वर्ष बढ़कर 5.6 प्रतिशत हो गई।
  • शहरी श्रमिक कर्मचारियों, कृषि मजदूरों और ग्रामीण मजदूरों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में उतार-चढ़ाव के द्वारा मापी गई मुद्रास्फीति एक वर्ष पूर्व 5.7 प्रतिशत, 4.7 प्रतिशत और 4.9 प्रतिशत से वर्ष-दर-वर्ष तीव्र वृद्धि दर्शाते हुए दिसंबर 2006 में क्रमशः 6.9 प्रतिशत, 8.9. प्रतिशत और 8.3 प्रतिशत हो गई।
  • औद्योगिक कामगारों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में उतार-चढ़ाव के द्वारा मापी गई वर्ष-दर-वर्ष मुद्रास्फीति नवंबर 2006 में 6.3 प्रतिशत रही जो एक वर्ष पूर्व के 5.3 प्रतिशत से अधिक थी।
  • अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल के "भारतीय बास्केट" का औसत मूल्य जुलाई-सितंबर 2006 में 67.9 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल से घटकर 25 जनवरी 2007 तक 51.0 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल हो गया।
  • मुद्रा आपूर्ति (एम 3) में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि 5 जनवरी 2007 को 20.4 प्रतिशत थी जो एक वर्ष पूर्व के 16.0 प्रतिशत से अधिक तथा वर्ष 2006-07 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य में उल्लिखित 15.0 प्रतिशत की अनुमानित स्वीकार्य सीमा से ऊपर थी।
  • सकल जमाराशियों में वर्ष -दर-वर्ष वृद्धि 4,38,037 करोड़ रुपये (17.2 प्रतिशत) रही जो एक वर्ष पूर्व 2,85,182 करोड़ रुपये (17.2 प्रतिशत) से अधिक तथा तुलनात्मक आधार पर वर्ष 1993-94 से अधिकतम भी थी।
  • वर्ष-दर-वर्ष आधार पर खाद्येतर ऋण बढ़कर 5 जनवरी 2007 तक 4,07,735 करोड़ रुपये (31.2 प्रतिशत) हो गया जो एक वर्ष पूर्व 3,11,013 करोड़ रुपये (31.2 प्रतिशत) की वृद्धि के मुकाबले शीर्ष पर था।
  • सरकारी तथा अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में बैंकों की धारिता घटकर 5 जनवरी 2007 को अपनी निवल माँग और तिमाही देयताओं का 28.6 प्रतिशत हो गई जो एक वर्ष पूर्व 32.6 प्रतिशत थी।
  • चलनिधि समायोजन सुविधा, बाजार स्थिरीकरण योजना और केंद्र के अतिरिक्त नकदी शेष के अंतर्गत औसत चलनिधि बकाया जो अप्रैल-जून 2006 में 89.786 करोड़ रुपये और जुलाई-सितंबर 2006 में 92,354 करोड़ रुपये था, अक्तूबर-दिसंबर 2006 में घटकर 84,312 करोड़ रुपये और प्नः जनवरी (23 जनवरी 2007 तक) में 79,221 करोड़ रुपये हो गया।
  • वित्तीय बजारों में की स्थिर तथा सुव्यवस्थित स्थितियों में प्रायः सभी क्षेत्रों में ब्याज दरों के सुदृढ़ होने के साथ नवंबर के पहले पखवाड़े और दिसंबर के दूसरे पखवाड़े में ओवरनाइट अल्पकालिक प्रसंगों द्वारा बाधा पहुँची।
  • बैंक जमा दरें जो अप्रैल 2006 के मुकाबले, विशेषतः दीर्घावधि सीमा के लिए अक्तूबर में 25-175 आधार बिंदुओं और जनवरी 2007 में विभिन्न परिपक्वता राशियों के लिए 25-125 आधार बिंदुओं तक और बढ़ गईं।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की भारित औसत न्यूनतम मूल्य उधार दरें (बीपीएलआर) मार्च 2006 में 10.71 प्रतिशत से बढ़कर जून 2006 में 11.18 प्रतिशत और पुनः दिसंबर 2006 में 11.58 प्रतिशत हो गईं।
  • निजी क्षेत्र के बैंकों की भारित औसत न्यूनतम मूल उधार दरें (बीपी एलआर) भी मार्च में 12.37 प्रतिशत से बढ़कर जून में 12.80 प्रतिशत तथा दिसंबर में 13.22 प्रतिशत हो गईं। विदेशी बैंकों की भारित औसत मूल उधार दरें उस अवधि में 12.67 प्रतिशत से बढ़कर 12.72 प्रतिशत हो गईं।
  • 25 जनवरी 2007 तक 14,283 की ऊँचाई तक पहुँचने के लिए मुंबई शेयर बाजार सेन्सेक्स में कई अंतरालों पर सुधार करना जारी रहा।
  • अब तक वर्ष 2006-07 (22 जनवरी 2007 तक) के दौरान दिनांकित प्रतिभूतियों के माध्यम से केंद्र सरकार का सकल उधार 1,25,000 करोड़ रुपये (एक वर्ष पूर्व 1,15,000 करोड़ रुपये था जो बजट आकलन (बीई) का 83.1 प्रतिशत था जबकि निवल बाजार उधार 91,432 करोड़ रुपये (एक वर्ष पूर्ण 83.079 करोड़ रुपये) था जो बजट आकलन का 80.4 प्रतिशत था।

बाह्य क्षेत्र

  • निर्यात (अमरीकी डॉलर के अनुसार) में अप्रैल-दिसंबर 2006 के दौरान 22.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई जो वर्ष 2005 में उसी अवधि के दौरान 29.9 थी। आयात में एक वर्ष पूर्व के 37.8 प्रतिशत की तुलना में उसी अवधि में 24.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
  • जबकि पेट्रोलियम , तेल और लुब्रिकेंट्स (पीओएल) आयात में अप्रैल-दिसंबर 2006 (एक वर्ष पूर्व 46.9 प्रतिशत) के दौरान 39.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई तेल से इतर वस्तुओं के आयात में वृद्धि एक वर्ष पूर्व के 34.3 से गिरकर 18.7 प्रतिशत हो गई।
  • विदेशी मुद्रा प्रारक्षित निधि मार्च 2006 के अंत के 151.6 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर 19 जनवरी 2007 तक 178.1 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गई।
  • रुपये का अब तक वर्तमान वित्तीय वर्ष में (25 जनवरी 2007 तक) अमरीकी डॉलर की तुलना में 0.8 प्रतिशत तथा जापानी येन की तुलना में 3.4 प्रतिशत अधिमूल्यन किया गया जबकि यूरो के मुकाबले 5.5. प्रतिशत तथा पाउण्ड स्टर्लिंग के मुकाबले 10.5 प्रतिशत अवमूल्यन किया गया।

वैश्विक गतिविधियाँ

  • सितंबर 2006 के अंतर्राष्ट्यी मुद्रा कोष के विश्व आर्थिक दृष्टिकोण के अनुसार, क्रय शक्ति समानता सीमा में वैश्विक वास्तविक सकल घरेलू उत्पादन में वृद्धि वर्ष 2005 के 4.9 प्रतिशत से वर्ष 2006 में 5.1 प्रतिशत तक बढ़ने की आशा की गई थी लेकिन वर्ष 2007 में कम होकर 4.9 प्रतिशत हो जाएगी ।
  • अमेरिका में वास्तविक सकल घरेलू उत्पादन में वृद्धि पहली ओर दूसरी तिमाही में क्रमशः 5.6 प्रतिशत और 2.6 प्रतिशत की तुलना में तीसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में 2.0 प्रतिशत थी। इस गिरावट का मुख्य कारण अल्प आवासीय निर्धारित निवेश था।
  • वैश्विक वृद्धि लगातार मजबूत हो रही है लेकिन यह मिश्रित स्वरूप को प्रदर्शित करती है। अनाजों की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में उछाल आई है। जबकि हेडलाइन मुद्रास्फीति मुख्यतः अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के कारण संतुलित रही है, महत्वपूर्ण मुद्रास्फीति सामान्यतः सुदृढ़ रही है।
  • वैश्विक वित्त बाजार में जोखिमों में और अधिक विविधता आई है। डो जोन्स इंडस्ट्रियल औसत 24 जनवरी 2007 को अपने समय के सर्वाधिक उच्च आंतर दिवस पर था।
  • कई केंद्रीय बैंकों जिनमें युनाइटेड किंगडम, यूरो एरिया, ऑस्ट्रेलिया, चायना, कोरिया, टर्की, सऊदी अरबिया और आइसलैंड भी शामिल हैं, ने अपनी पॉलिसी दरों में वृद्धि की है। सरकार और पीपल्स बैंक ऑफ चायना (पीबीसी) ने वृद्धि को और अधिक सहनीय स्तर तक कम करने और संवेदनशील क्षेत्रों में संभावित मुद्रा स्फीति के दबाव को कम करने के लिए कई तरह के उपाय किए हैं।
  • कुछ केंद्रीय बैंकों जिनमें अमरीका, कनाडा, जपान, मलेशिया और मैक्सिको प्रमुख प्रमुख हैं, अपनी नीति साइकल को अल्प विराम दिया है।

समग्र मूल्यांकन

  • वैश्विक वृद्धि के पैटर्न में परिवर्तन का क्रम जारी है यद्यपि वर्तमान में मुद्रा स्फीति संभावनाएं स्थिर रही हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों को लेकर चल रही अनिश्चितताओं के संबंध में चिंताजनक स्थिति है।यद्यपि हाल ही में कच्चे तेल की कीमतों में आशा के अनुरूप सुधार हुआ है,तथापि भौगोलिक-राजनीतिक जोखिम विद्यमान हैं। आम तौर पर केंद्रीय बैंकों के द्वारा मौद्रिक निभाव को दूर रखा जा रहा है।
  • यद्यपि अमरीकी गृह ऋण बाजार में संकुचन, खाद्यानों और धातु की बढ़ती हुई कीमतों से उभरे परिदृश्य में जोखिम बरकरार है तथापि, वैश्विक वित्त बाजार अभी भी अपेक्षाओं में अचानक बदलाव और कीमतों की अस्थिरता के प्रति असुरक्षित बना हुआ है।
  • स्वयं वैश्विक कारक, प्रतीत होता है, नीति प्रतिक्रिया नहीं चाहते; तथापि कार्पोरेट्स और वित्तीय मध्यस्थों को चाहिए कि वे वैश्विक बाजार की भावना में आने वाले अचानक विपरीत बहाव, जो आर्थिक आधारभूत तत्वों से जुड़े नहीं होते अपितु विशेष रूप से भूमंडलीय कारकों से उपजे होते हैं, के प्रति सजग रहें। अत: बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे अपने निवेशों को सुरक्षित करें और करेंसी तथा ब्याज दर जोखिमों के प्रति अपने तुलनपत्रों को बेअसर रखने के लिए पूर्व उपाय करना सुनिश्चित करें।
  • भारत में हालही की गतिविधियों, विशेषकर उच्च वृद्धि और स्थिर होती हुई मुद्रास्फीति के साथ, आस्ति की कीमतों में वृद्धि और मूलभूत संरचनाओं की रुकावटों ने मौद्रिक नीति के संचालन को काफी उलझा दिया है।
  • मौद्रिक नीति के संचयी और विलंबकारी प्रभावों के परिणामस्वरूप रिज़र्व बैंक ने 2003 के मध्य में निभाव को क्रमश: कम करना प्रारंभ किया बावजूद इस बात के मुद्रा स्फीति अपनी सहनीय सीमा में थी। सितंबर 2004 से रिपो/रिवर्स रिपो दरें 125/150 आधार बिंदु बढ़ाया गया है, आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) 100 आधार बिंदु बढ़ाया गया, गृह निर्माण ऋणों के लिए जोखिम भार 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत किया गया, वाणिज्य स्थावर संपत्ति के लिए जोखिम भार को 100 प्रतिशत से बढ़ाकर 150 प्रतिशत और ग्राहक ऋण के लिए जोखिम भार को 100 से बढ़ाकर 125 प्रतिशत किया गया है। विशेष क्षेत्रों में मानक अग्रिमों के लिए प्रावधानीकरण अपेक्षा को बढ़ाकर 1.0 प्रतिशत किया गया है।
  • मौद्रिक नीति का रुझान बराबरी से मूल्य स्थिरता के साथ-साथ वृद्धि पर था जो क्रमिक रूप से हटते-हटते मूल्य स्थिरता के साथ-साथ तात्कालिक मौद्रिक उपायों को मजबूत करने तथा उभरती परिस्थितियों से निपटने के लिए सभी संभावित उपाय शीघ्रता से करने की ओर हो गया।
  • उच्च मुद्रा और ऋण वृद्धि के माहौल में बढ़ती हुई मुद्रा स्फीति से प्राप्त पूर्व चेतावनी संकेतों से पता चलता है कि मौद्रिक नीति अभी भी निभावकारी है तथा मांग के दबावों को हलका करने के लिए ब्याज दरों में की गई सटीक वृद्धि के अनुसरण में नीति परिवर्तन की आवश्यकता को दर्शाता है।
  • लगातार बढ़ती वृद्धि दर और ऋण की गुणवत्ता में होने वाले संभावित क्षरण भी निश्चित रूप से चिंताजनक विषय हैं, अत: आवश्यक है कि बैंकों के तुलनपत्रों के होशियारीपूर्वक प्रावधानीकरण के द्वारा दोषयुक्त ऋणों के जमाव के विरुद्ध सुरक्षित किया जाए और विशिष्ट क्षेत्रों, जिनमें बैंकों के निवेश तेजी से पनप रहे हैं, के अग्रिमों को आबंटित जोखिम भार को बढ़ाकर विद्यमान जोखिमों के प्रति अधिक संवेदनशील रहा जाए।
  • इस बात के भी संकेत हैं कि पूंजी अंतर्वाह विस्तारक प्रभावों के साथ जारी रहें जिसके कारण संभावित स्फीतिकारक दबाव और मौद्रिक तथा तरलता प्रबंधन में आवश्यक परिवर्तन करने पड़ सकते हैं। अत: आवश्यक है कि अनिवासी जमा योजना में अंतर्वाह, जो वर्ष के दौरान काफी बड़ी मात्रा में जमा हो चुका है, को व्यवस्थित किया जाए ताकि प्रभावी तरलता प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके।

मौद्रिक नीति का रुझान

  • वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद दर मध्यावधि समीक्षा में परिकल्पित 8.0 प्रतिशत तथा वार्षिक मौद्रिक नीतिगत वक्तव्य और पहली तिमाही समीक्षा में परिकल्पित 7.5-8.0 प्रतिशत की तुलना में 2006-07 के लिए 8.5-9.0 प्रतिशत रहने की संभावना है।
  • वर्तमान समय में किए जा रहे नीतिगत उपायों का उद्देश्य मुद्रा स्फीति को घटा कर 5.0-5.5 प्रतिशत के उल्लिखित दायरें में यथाशीर्घ यथासंभव लाना है तथा मुद्रा स्फीति की 5.0 प्रतिशत की सीमा के मध्यावधि लक्ष्य का भी पीछा करते रहना है।
  • अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल मूल्यों का वर्तमान स्तर के बने रहने की संभावना हैं यद्यपि कुछ भूमंडलीय राजनीतिक जोखिम बने रहेंगे।
  • मौद्रिक नीति के संचालन में मुख्य रूप से तीन बातों का सामना किया जा रहा है: प्रथम, मांग दबाव बढ़ती मुद्रा स्फीति है हो मुद्रा स्फीति, उच्च मुद्रा और ऋण वृद्धि, आस्ति कीमतों में वृद्धि, उपयोगिता क्षमता पर दबाव, पारिश्रमिक दबावों के कुछ संकेतों और व्यापारिक घाटे की फैलाव में प्रतिबिंबित होते हैं। द्वितीय, प्राथमिक सामग्रियों की कीमतों से आपूर्ति पक्ष पर दबाव अधिक होने के प्रमाण मिले हैं और तृतीय मौद्रिक नीति को लगातार निवेश में हो रहे विस्तार में उत्पादक क्षमता और आधारभूत संरचना में निराशाजनक प्रतिक्रिया ही देखने को मिली।
  • लगातार तीसरे वर्ष भी बैंक ऋणों का तेजी से बढ़ना जारी रहा और वृद्धि की दर, हमारे देश में ऋण वितरण के न्यून स्तर और अर्थ व्यवस्था की आधारभूत संरचना में हो रहे बदलावों को भी हिसाब में लेते हुए, स्पष्ट रूप से अत्यधिक रही जो समयानुकूल वृद्धि प्राप्त करने के लिए आवश्यक उपाय करने के संकेत देती है।
  • भू-संपदा क्षेत्र में जारी उच्च ऋण वृद्धि, क्रेडिट कार्ड की बकाया राशियां, पूंजीगत बाजार निवेश के रूप में अग्रिम और व्यक्तिगत ऋण चिंता का विषय हैं। अत: आवश्यक हैं कि इन मानक आस्तियों (आवासीय गृह निर्माण ऋणों को छोड़कर) के लिए एक प्रतिशत प्रावधान को बढ़ाकर दो प्रतिशत किया जाए।
  • इसके अलावा यह निर्णय किया गया है कि महत्त्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को लेकर गैर जमा के मानक आस्ति में बैंकों के जाखिम के लिए प्रावधानीकरण अपेक्षा को 0.4 प्रतिशत से बढ़ाकर दो प्रतिशत और ऐसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) में बैंकों के जोखिम के लिए जोखिम भार को 100 प्रतिशत से बढ़ाकर 125 प्रतिशत किया जाए।
  • बड़ी मात्रा में पूंजी अंतर्वाह से आई तरलता में समयानुकूल परिवर्तन करने में अच्छाई ही है अत: निर्णय किया गया है कि अनिवासी विदेशी खाता जमाराशियों पर ब्याज दर सीमा को तदनुरूपी परिपक्वता के अमरीकी डालर के लिए लिबोर / स्वैप दरों के ऊपर 100 आधार बिंदु से घटाकर 50 आधार बिंदु किया गया और विदेशी मुद्रा अनिवासी खाता (बैंक) जमाराशियों पर ब्याज दर की सीमा को अलग-अलग मुद्रा / परिपक्वता अवधियों के लिए लिबोर / स्वैप दरों के नीचे लिबोर / स्वैप दरों को 25 आधार बिंदु से घटाया गया।
  • इन सुविधाओं के उपयोग के माध्यम से संवेदनशील क्षेत्रााटं में परिसंपत्ती मूल्यों पर उपरी दबाव से बचने के लिए बैंकों को अनिवासी विदेशी खाता और विदेशी मुद्रा अनिवासी खाता (बैंक) जमाराशियों पर 20 लाख रुपये से अधिक नये ऋण प्रदान करने से रोका जा रहा है और उन्हें सूचित किया जा रहा है कि ऋण राशि को सीमा के भीतर रखने के लिये उसके कृत्रिम हिस्से ना करे।

  • वर्ष की शेष अवधि में, चलनिधि के प्रबंधन को नीतिगत पदानुक्रम में प्राथमिकता मिलेगी। बाज़ार की चलनिधि में कमी के परिणामस्वरुप मौद्रिक नीति का प्रभाव पहले से भी मज़बूत होने की संभावना है।
  • उत्पन्न परिस्थिति की प्रतिक्रिया में और मूल्य स्थीरता को बनाए रखने को सुनिश्चित करने हेतु चलनिधि के उचित नियमन को सुनिश्चित करने के लिये रिज़र्व बैंक द्वारा आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) सहित सभी नीतिगत साधनों का उपयोग किया जाएगा।
  • रिज़र्व बैंक सुनिश्चित करेगा कि प्रणाली में उचित चलनिधि रखी जाती है ताकि ऋण सभी वैध आवश्यकताएं, विशेषकर मूल्य और वित्तीय स्थिरता के उद्देश्य के सामजंस्य से उत्पादक प्रयोजनों के लिये ऋण मुहैया करायी जाती है। यहां पर रिज़र्व बैंक खुले बाजार परिचालनों के माध्यम से बाजार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस), चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) और आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) सहित चलनिधि के सक्रिय मांग प्रबंधन की अपनी नीति और स्थिति की आवश्यकतानुसार अपने सभी नीतिगत साधनों के उपयोग को जारी रखेगा।
  • अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में किसी प्रतिकूल और अप्रत्याशित गतिविधियों के पैदा होने को छोड़कर और मुद्रास्फीति के दृष्टिकोण सहित अर्थव्यवस्था के चालू मूल्यांकन को ध्यान में रखते हुए आगे की अवधि में मौद्रिक नीति का समग्र दृष्टिकोण इस प्रकार होगा :
    • निर्यात तथा निवेश की माँग का एक मौद्रिक तथा ब्याज दर वातावरण सुनिश्चित करते समय मूल्य स्थिरता तथा सुनियोजित मुद्रास्फीति अपेक्षाओं पर दबाव डाला जाना, जो अर्थव्यवस्था में निर्यात तथा निवेश की माँग में इस प्रकार सहायता प्रदान करती है ताकि विकास की गति को जारी रखा जा सके।
    • भारी मात्रा में ऋण उपलब्ध कराने और वित्तीय समावेशन का साथ-साथ अनुसरण करते समय समष्टि आर्थिक और विशेषतः वित्तीय स्थिरता प्राप्त करने के लिए ऋण समानता और वित्तीय बाजारों में सुव्यवस्थित स्थिति पर पुनः जोर डाला जाना।
    • विकसित हो रही वैश्विक और मुद्रास्फीति अपेक्षाओं से बाहर की घरेलू स्थितियों तथा विकास की गति के लिए समुचित सभी संभावित उपायों के साथ तेजी से अनुकूल होना।

मौद्रिक उपाय

  • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत रिपो दर को तत्काल प्रभाव से 7.25 प्रतिशत से 25 आधार बिंदु बढ़ाते हुए 7.50 प्रतिशत कर दिया गया है।
  • रिज़र्व बैंक के पास बाज़ार परिस्थितियों एवं अन्य संबंधित कारकों के अनुसार चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत रात भर (ओवरनाइट) के रिपो अथवा लंबी अवधि के रिपो का विकल्प है। रिज़र्व बैंक चलनिधि समायोजना सुविधा (एलएफए) के अंतर्गत निविदा (निविदाओं) को पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से स्वीकार अथवा अस्वीकार करने के अधिकार सहित इस लोचता का प्रयोग करना जारी रखेगा यदि योग्य हो, ताकि दैनिक चलनिधि प्रबंधन में चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) का सक्षम उपयोग कर सके।
  • प्रत्यावर्तनीय रिपो दर और बैंक दर को अपरिवर्तित रखते हुए 6.0 प्रतिशत पर रखा गया है।
  • आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को अपरिवर्तित रखते हुए 5.0 प्रतिशत पर रखा गया है।

वर्ष 2007-08 की वार्षिक नीति वक्तव्य 24 अप्रैल 2007 को घोषित की जाएगी।

अल्पना किल्लावाला
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2006-2007/1028

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