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भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2007-08 के लिए मौद्रिक नीति पर वार्षिक वक्तव्य की तीसरी तिमाही समीक्षा घोषित की

29 जनवरी 2008

भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2007-08 के लिए मौद्रिक नीति पर
वार्षिक वक्तव्य की तीसरी तिमाही समीक्षा घोषित की

डॉ. वाइ. वेणुगोपाल रेड्डी, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज वर्ष 2007-08 के लिए मौद्रिक नीति पर वार्षिक वक्तव्य की तीसरी तिमाही समीक्षा प्रस्तुत की।

मुख्य-मुख्य बातें

  • बैंक दर, प्रत्यावर्तनीय रिपो दर, रिपो दर और आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को अपरिवर्तित रखा गया।
  • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत पूर्णत: या अंशत: रूप से निविदाओं को स्वीकार करने अथवा अस्वीकार करने के अधिकार-सहित रातभर के लिए अथवा दीर्घावधि रिपो संचालित करने के लचीलेपन को जारी रखा गया।
  • वर्ष 2007-08 के लिए समग्र वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि अनुमान को लगभग 8.5 प्रतिशत पर बनाए रखा गया।
  • नीति प्रयास यह होगा कि प्रत्याशाओं को 4.0 - 4.5 प्रतिशत की सीमा तक रखते समय वर्ष 2007-08 में मुद्रास्फीति को 5.0 प्रतिशत के आस-पास रखा जाए।
  • जबकि खाद्येतर ऋणों में कमी आई है, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की मुद्रा आपूर्ति और सकल जमा राशियों में सांकेतिक अनुमानों से अधिक बढ़ोतरी जारी रही है।
  • प्रारक्षित मुद्रा में उच्चतर वृद्धि भारतीय रिज़र्व बैंक के निवल विदेशी मुद्रा आस्तियों में भारी वृद्धि के कारण हुई है।
  • चलनिधि प्रबंध को समुचित और सामयिक कार्रवाईयों के माध्यम से मौद्रिक नीति के संचालन में प्राथमिकता प्राप्त होगी।
  • अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिकूल और अप्रत्याशित गतिविधियों के उत्पन्न होने को छोड़कर तथा वृद्धि और मुद्रास्फीति की संभावना सहित अर्थव्यवस्था के वर्तमान आकलन की दृष्टि से आगे आनेवाली अवधि में मौद्रिक नीति का समग्र रूझान व्यापक रूप से निम्न प्रकार जारी होगा:
    • वृद्धि की गति और वित्तीय बाज़ारों में व्यवस्थित स्थितियों के जारी रहने के अनुकूल एक मौद्रिक और ब्याज दर वातावरण को सुनिश्चित करते समय मूल्य स्थिरता और सु-नियोजित मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं पर पुन: जोर डालना।
    • वित्तीय समावेशन का अनुपालन करते समय विशेष रूप से रोजगार-संवेदी क्षेत्रों में ऋण गुणवत्ता के साथ-साथ ऋण वितरण पर जोर डालना।
    • यथोचित रूप से पारंपरिक और गैर-पारंपरिक उपाय दोनों के साथ तेजी से कार्रवाई करने के लिए मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं, वित्तीय स्थिरता और वृद्धि की गति को प्रभावित करनेवाली विकसित होती हुई उच्चतर वैश्विक अनिश्चितता और घरेलू स्थिति की निगरानी करना।

विवरण

डॉ. वाइ.वेणुगोपाल रेड्डी, गवर्नर ने आज 2007-08 के लिए मौद्रिक नीति संबंधी वार्षिक वक्तव्य की तीसरी तिमाही की समीक्षा की घोषणा की। इस समीक्षा के तीन भाग हैं : I. समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों का मूल्यांकन ; II. मौद्रिक नीति का दृष्टिकोण और III. मौद्रिक उपाय।

घरेलू गतिविधियां

  • वास्तविक सकल देशी उत्पाद वृद्धि 2006-07 की पहली छमाही के 9.9 प्रतिशत की तुलना में 2007-08 की पहली छमाही में कम होकर 9.1 प्रतिशत रह गई।
  • वर्ष-दर-वर्ष आधार पर थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) में घटबढ़ पर आधारित मुद्रास्फीति एक वर्ष पहले के 6.2 प्रतिशत और वित्तीय वर्ष के प्रारंभ में रहे 6.4 प्रतिशत के शीर्ष स्तर से घटकर 12 जनवरी 2008 को 3.8 प्रतिशत हो गई।
  • प्राथमिक वस्तुओं के मूल्यों में एक वर्ष पहले के 9.5 प्रतिशत की तुलना में 12 जनवरी 2008 को 3.9 प्रतिशत की वर्ष-दर-वर्ष आधार पर मूल्य वृद्धि दर्ज की गई।
  • विनिर्माण क्षेत्र की मुद्रास्फीति 12 जनवरी 2008 की स्थिति के अनुसार सुगम होकर 3.9 प्रतिशत हो गई जबकि एक वर्ष पूर्व यह 5.8 प्रतिशत थी।
  • अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की भारतीय बास्केट का मूल्य 2007-08 के दौरान निरंतर बढ़ता रहा और यह अप्रैल-जून में 66.4 अमरीकी डालर, जुलाई-सितंबर में 72.7 अमरीकी डालर, अक्तूबर-दिसंबर 2007 में 85.7 अमरीकी डालर से बढ़ते हुए 25 जनवरी 2008 को 88.9 अमरीकी डालर प्रति बैरल हो गया।
  • औद्योगिक कामगारों (आइडब्ल्यू) के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआइ) पर आधारित मुद्रा स्फीति वर्ष-दर-वर्ष आधार पर एक वर्ष पहले के 6.3 प्रतिशत से कम होकर नवंबर 2007 में 5.5 प्रतिशत हो गई।
  • शहरी श्रमेतर कर्मचारी (यूएनएमई), खेतिहर मज़दूर (एएल) और ग्रामीण मजदूरों (आरएल) के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक एक वर्ष पहले के क्रमशः 6.9 प्रतिशत, 8.9 प्रतिशत और 8.3 प्रतिशत की तुलना में कम होकर दिसंबर 2007 में क्रमशः 5.1 प्रतिशत, 5.9 प्रतिशत और 5.6 प्रतिशत पर आ गया।
  • वर्ष-दर-वर्ष आधार पर मुद्रा आपूर्ति (एम3) बढ़कर 4 जनवरी 2008 को 22.4 प्रतिशत हो गई जो एक वर्ष पहले 20.8 प्रतिशत से अधिक और 2007-08 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में दर्शायी गयी 17.0 - 17.05 प्रतिशत के पूर्वानुमानित सीमा से काफी उपर थी।
  • आरक्षित मुद्रा वर्ष-दर-वर्ष आधार पर एक वर्ष पहले 20.0 प्रतिशत थी बढ़कर 30.6 प्रतिशत हो गई।
  • चालू वित्तीय वर्ष में, वर्ष-दर-वर्ष आधार पर अनुसूचित वाणिज्य बैंकी (एससीबी) की सकल जमाराशियों में वृद्धि 6,00,761 करोड़ रुपए (25.2 प्रतिशत) रही जो एक वर्ष पहले के 4,44,241 करोड़ रुपए (22.9 प्रतिमाह) से अधिक है।
  • अनुसूचित वाणिज्य बैंकों का खाद्येतर ऋण वर्ष-दर-वर्ष आधार पर एक वर्ष पहले की 4,16,418 करोड़ रुपए (31.9 प्रतिशत) की शीर्ष वृद्धि से अधिक होकर 4 जनवरी 2008 को 3,82,155 करोड़ रुपए (22.2 प्रतिशत) हो गया।
  • अनुसूचित वाणिज्य बैंकों से औद्योगिक क्षेत्र को होनेवाले कुल संसाधन प्रवाह में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर वृद्धि एक वर्ष पहले की 30.1 प्रतिशत की तुलना में 21.7 प्रतिशत रही।
  • सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों की बैंकों की धारिताएं उनकी निवल मांग और मीयादी देयताओं के एक वर्ष पहले के 28.6 प्रतिशत की तुलना में 4 जनवरी 2008 को 29.1 प्रतिशत रहीं।
  • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ), बाजार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) और केंद्र सरकार के नकद शेष में दर्शाया गया चलनिधि की अवरूद्धता मार्च 2007 के अंत को 85,770 करोड़ रुपए से बढ़कर 24 जनवरी 2008 को 2,32,809 करोड़ रुपए होने से पहले 17 जनवरी 2008 को 2,58,187 करोड़ रुपए था।
  • वर्ष 2007-08 की तीसरी तिमाही के दौरान मुद्रा, ऋण और विदेशी मुद्रा बाजार चलनिधि स्थितियों में भारी उतार-चढ़ाव के बावजूद सामान्यतः स्थिर रहे।
  • विदेशी मुद्रा बाज़ार के टर्नओवर में तेज वृद्धि हाजिर वायदा बाज़ार में भारी बेशी स्थितियों के चलते तेज वृद्धि बनी रही क्योंकि औसत टर्नओवर पिछले वर्ष की तदनुरुप तिमाही के 27.6 बिलियन अमरीकी डालर से बढ़कर दिसंबर 2007 को समाप्त तिमाही में 50.1 बिलियन अमरीकी डालर हो गया।

  • मार्च 2007 - जनवरी 2008 के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र (पीएसबी) के वे बैंक जो पूर्व में दीर्घावधि जमाराशियों पर उच्चतर ब्याज का भुगतान कर रहे थे, ने अपनी ब्याज दरों को 25-50 आधार बिन्दु कम करने के द्वारा पुन: उन्हें समायोजित किया जबकि पूर्व में ऐसी ही परिपक्वता के लिए न्यूनतर जमाराशि दर देनेवाले बैंकों ने अपनी जमाराशि की दरें 50-75 आधार बिन्दु से बढ़ा दीं।
  • मार्च 2007 - जनवरी 2008 के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र (पीएसबी) के बैंकों की बेंचमार्क मूल उधार दरें (बीपीएलआर) 12.25-12.75 प्रतिशत की सीमा से 2575 आधार बिन्दु बढ़कर 12.50-13.50 प्रतिशत हो गई।
  • मुंबई शेयर बाज़ार सूचकांक (बीएसई) मार्च 2007 के अंत के 13,072 अंक से बढ़कर मार्च 2007 के अंत के बाद 40.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 25 जनवरी 2008 को 18,362 अंक हो गया।
  • वर्ष 2007-08 के दौरान अब तक (25 जनवरी 2008) दिनांकित प्रतिभूतियों के माध्यम से केंद्र सरकार का सकल बाज़ार उधार 1,47,000 करोड़ रुपए (एक वर्ष पूर्व के 1,30,000 करोड़ रुपए) पर रहते हुए बज़ट अनुमान (बीई) का 94.6 प्रतिशत था जबकि 1,03,092 करोड रुपए पर निवल बाज़ार उधार (एक वर्ष पूर्व 91,432 करोड़ रुपए) बज़ट अनुमान (बीई) का 94.1 प्रतिशत था।

बाह्य गतिविधियां

  • अप्रैल-नवंबर 2007 के दौरान पण्य निर्यात में अमरीकी डालर में पिछले वर्ष की तदनुरुपी अवधि में 26.2 प्रतिशत की तुलना में 21.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई। आयात वृद्धि भी पिछले वर्ष की 27.4 प्रतिशत की तुलना में 26.9 प्रतिशत पर कम रही। पण्य व्यापार घाटे में पिछले वर्ष के 38.5 बिलियन अमरीकी डालर से 52.8 बिलियन अमरीकी डालर की वृद्धि हुई।
  • जबकि तेल आयातों ने पिछला वर्ष के 42.0 प्रतिशत की तुलना में 9.8 प्रतिशत पर कम वृद्धि दर्ज की, तेल से इतर आयातों में पिछले वर्ष की 21.3 प्रतिशत की तुलना में 35.3 प्रतिशत की वञिद्ध हुई।
  • विदेशी मुद्रा प्रारक्षित निधि में चालू वित्तीय वर्ष के दौरान अब तक 85.7 बिलियन अमरीकी डालर की वञिद्ध हुई और 18 जनवरी 2008 को 284.0 बिलियन अमरीकी डालर थी।
  • मार्च 2007 के अंत तक रुपए में अमरीकी डालर की तुलना में 9.61 प्रतिशत, पाउंड स्टर्लिंग की तुलना में 8.85 प्रतिशत और जापानी येन की तुलना में 0.95 प्रतिशत की मूल्य वृद्धि हुई किंतु 25 जनवरी 2008 को यूरो की तुलना में अपरिवर्तित रही।

वैश्विक गतिविधियां

  • अक्तूबर 2007 में जारी अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक नीधि के वैश्विक आर्थिक आउटलुक (डब्लूईओ) पत्रिका के अनुसार क्रय शक्ति समता आधार के मामले में वास्तविक वैश्विक सकल देशी उत्पाद वृद्धि का पूर्वानुमान वर्ष 2006 मे रहे 5.4 प्रतिशत की तुलना मे वर्ष 2007 में 5.2 प्रतिशत पर रहा तथा अनुमान है कि वर्ष 2008 में और ज्यादा गिरकर 4.8 प्रतिशत हो जाएगा।
  • अमेरिका में वास्तविक सकल देशी उत्पाद वृद्धि 2007 की चौथी तिमाही से धीमे होना अनुमानित है क्योंकि संघनित, आवासीय बाजार तथा वित्तीय बाजार की हलचलें वृद्धि पर कठोरता पूर्वक प्रतिबंध लगाएंगी, हालांकि निर्यात इन मामलों में उदार भूमिका निभाएगा।
  • विश्वव्यापी रूप से, स्फीतिकारी दबाव वैश्विक वृद्धि के लिए प्रमुख जोखिम के रूप में उभरा है। मुद्रा स्फीति कसाव ने अमेरिका, यूके, यूरो क्षेत्र तथा उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों यथा चीन, मलयेशिया, इंडोनेशिया तथा चिली में चिंता की लहर पैदा की है।
  • खाद्य पदार्थ में लगातार उच्चतर दर, तेल कीमतों में उच्चतर दर एवं अन्य पण्यों की लगातार बढ़ती दरें वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए उल्लेखनीय मुद्रास्फीति जोखिम की ओर इशारा करती है तथा पूरे विश्व की मौद्रिक नीति को चुनौती देती है।
  • जुलाई 2007 से अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाज़ार में आयी अव्यवस्था को अमरीकी सब-प्राइम बंधक बाजार की चूक ने और बढ़ाया जो अगले महीनों में और बढ़ गई। इन असामान्य गतिविध्ंायिों ने बढ़ती अनिश्चितताओं की ओर इशारा किया तथा मौद्रिक नीति खासकर उभरती अर्थव्यवस्था के संचालन को चुनौती दी।
  • अर्थव्यवस्थाओं की शुरुआत होते ही उन्नत अर्थव्यवस्था वाले केंद्रीय बैंकों ने पालिसी दरों (अमेरिकी फोडेरल रिज़र्व) में कटौती करते हुए वृहद मौद्रिक नीति को अपनाया तथा वित्तीय बाज़ारों को अतिरिक्त चलनिधि उपलब्ध कराई।
  • कुछ केंद्रीय बैंकों यथा अमेरिका फेडेरल रिज़र्व बैंक आफ इंग्लैंड तथा बैंक आफ कनाडा ने अर्थव्यवस्थाओं से वित्तीय बाज़ार के उल्लेखनीय रुप से प्रभावित होने के बाद वर्ष 2007 की तीसरी एवं चौथी तिमाही के दौरान पालिसी दरों में कटौती की।
  • यूरो क्षेत्र, न्यूजीलैंड, जापान, कोरिया, मलयेशिया, थाइलैंड तथा ब्राज़ील सहित कुछ देशों के केंद्रीय बैंकों ने वर्ष 2007 की अंतिम तिमाही के दौरान अपने दरों में परिवर्तन नहीं किया।
  • हाल के महीनों में रिज़र्व बैंक आफ आस्ट्रिया, दी पीप्लस बैंक आफ चाइना, दी बैंकों सेंट्रल डी चिली तथा बैंकों डी मैक्सिको सहित कुछ केंद्रीय बैंकों ने अपनी पालिसी दरों को और कडा किया।
  • कई केंद्रीय बैंकों ने अस्थिर और भारी पूंजी प्रवाह का सामना किया तथा पूंजी आधिक्य, मौद्रिक मूल्य वृद्धि तथा पूंजी प्रवाह में तीव्र बदलाव से आयी आर्थिक अस्थिरता को कम करने के लिए एवं इस प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए कई उपाय किए।
  • इनमें से बहुतों द्वारा अपनाया गया सामान्य उपाय मौद्रिक कसाव का रहा जो पालिसी दरों को बढ़ाने अथवा आरक्षित पूंजी अपेक्षाओं को बढ़ाने अथवा दोनों को बढ़ाने का रहा।
  • पूँजी प्रवाह प्रबंध को सीधे लक्ष्य करते हुए किए गए उपाय बहुत सी उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में भी लक्षित होते हैं।

समग्र मूल्यांकन

  • अप्रैल-सितंबर 2006 की तुलना में वर्ष 2007-08 की प्रथम छमाही में कृषि और कृषि संबंधी गतिविधियों की वास्तविक सकल देशी उत्पाद में वृद्धि हुई और उसके बाद की गतिविधियाँ कृषि में सकारात्मक दृष्टिकोण की पुष्टि करती हैं।

  • यह मानते हुए कि वैश्विक या घरेलू स्तर पर कोई बाहरी आघात नहीं होगा, 2007-08 की शेष अवधि में इस समय औद्योगिक क्षेत्र के लिए संभावनाएं पर्याप्त रूप से सकारात्मक ही रहेंगी।
  • जहाँ एक ओर इस समय सेवाओं के लिए संभावनाएं सकारात्मक नज़र आ रही हैं वहीं दूसरी ओर उभर रही वैश्विक गतिविधियों की अनिश्चितताएं इस परिदृश्य को प्रभावित भी कर सकती हैं।
  • घरेलू क्रियाकलाप निवेशोन्मुख बने रहे और इन्हें बाह्य मांग का समर्थन भी मिला। नई और निवर्तमान दोनों ही आपूर्ति क्षमताओं का सुदृढ़ निर्माण चल रहा है और घरेलू तथा आयातित पूंजी माल की अनवरत मांग से यह प्रदर्शित भी होता है।
  • आसन्न-अवधि समेत स्थायी सकल मांग दबाब की तरफ मुख्य संकेतक इशारा करते हैं।
  • आगे आने वाली अवधि में मुद्रास्फीति जोखिम के ऊपर उठने के संकेत मजबूत हो रहे हैं।
  • पहले की तुलना में घरेलू मौद्रिक एवं चलनिधि परिस्थितियों में और विस्तार होगा और वैश्विक कारकों के चलते इसमें और विस्तार होने की संभावना है।
  • 2007-08 की तीसरी तिमाही से चलनिधि की कुल अवरूद्धता में काफी इज़ाफा हुआ। यह रिज़र्व बैंक की निवल विदेशी आस्तियों की बृहद् अभिवृद्धि से उत्पन्न प्राथमिक चलनिधि के पर्याप्त विस्तार को दर्शाता है।
  • विदेशी मुद्रा बाज़ार में, वृहद अंतर्वाह ने रुपए की विनिमय दर पर स्थाई उर्ध्वगामी दबाब बनाए हैं। अमरीकी फेडरल फंड लक्ष्य दर में की गई कटौती के परिप्रेक्ष्य में यह होना ही था।
  • केंद्र सरकार के वित्त में कुछ सुधार हुआ है और सकल राजकोषीय घाटे में आई गिरावट से यह प्रदर्शित भी होता है। इससे पता चलता है कि राजकोषीय जवाबदेही और बज़ट प्रबंध (एफआरबीएम) के नियमों का पालन वर्तमान वित्त वर्ष में सही ढ़ंग से हो रहा है।
  • सर्वसम्मत अनुमान यह संकेत देते हैं कि वर्ष 2007 एवं 2008 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी रहने के आसार हैं एवं अमरीकी सब-प्राइम संकट, खाद्य एवं कच्चे तेल की कीमतें सबसे अधिक जोखिम पैदा करेंगी। इस समय वैश्विक मंदी का खतरा सापेक्षत: कम हो गया है एवं सर्वसम्मत प्रत्याशाएं नरम उधारी को समर्थन देती प्रतीत होती हैं। ऐसी स्थिति में मुद्रास्फीति पर उर्ध्वगामी दबाव पहले की अपेक्षा अधिक सक्षम और वास्तविक बन गए हैं।
  • अमेरिका, यूरो क्षेत्र, जापान और चीन में हेडलाइन मुद्रास्फीति बढ़ गई। समग्रत: 2008 की संभावनाओं हेतु मुद्रास्फीति दबाव अपने असर सहित सुदृढ़ रहेंगे।
  • उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं के लिए वैश्विक वित्तीय बाज़ार की गतिविधयां कई मुद्दे प्रस्तुत करती हैं और इनके असर के संदर्भ में इनकी सावधानीपूर्वक निगरानी करने की आवश्यकता है। पहली बात तो यह है कि चूंकि वित्तीय मध्यस्थता में लंबे समय तक चलने वाले व्यवधान की संभावना से उत्पन्न चिंताओं के कारण अक्तूबर के शुरूआत से ही कंपनी ऋण विस्तार एवं बंधक-समर्थित प्रतिभूतियों में प्रसार हुआ है। दूसरी बात यह है कि हाल ही में वित्तीय बाज़ार में हुई उथल-पुथल का बैंकों पर काफी प्रभाव पड़ा है। उन बैंकों पर ये प्रभाव विशेष रूप से पड़ा है जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अटलांटिक के दोनों ओर सक्रिय हैं। तीसरी बात यह है कि हाल की घटनाओं के प्रति केंद्रीय बैंकों का प्रतिसाद यह दर्शाता है कि कुछ निश्चित परिस्थितियों के अधीन अन्य अधिक सुस्पष्ट अनुसरित लक्ष्यों के प्रति यह अभिभावी महत्त्व ले लेता है।
  • आसन्न-से-मध्यावधि में वैश्विक समष्टिगत संभावनाओं के मद्देनज़र उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाएं कई चुनौतियों का सामना कर रही हैं। पहली बात तो यह है कि वे उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में ऋण मानकों के कठोर होने से उत्पन्न हुए जोखिमों का सामना कर रही हैं। दूसरी बात यह है कि आयातों पर निर्भरता एवं उत्पादन में उच्च शक्ति लगाने से उभरती अर्थयवस्थाएं मुद्रास्फीति जोखिमों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकती हैं। तीसरी बात यह है कि कुछ व्यष्टिगत आर्थिक एवं राजनैतिक गतिविधयों के परिप्रेक्ष्य में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाज़ार उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं के प्रति अलग ढ़ंग से व्यवहार करते हैं। चौथा तथ्य यह है कि उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में वित्तीय बाज़ारों की स्व-सुधारक प्रणाली अपनी क्षमता का उपयोग काफी कम कर पाती है। पांचवा तथ्य यह है कि उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में वास्तविक क्षेत्र का लचीलापन काफी कम हो सकता है। अंत में, उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में वित्तीय बाज़ारों के संदर्भ में लचीलेपन एवं उतार-चढ़ाव के बीच के अंतर को पहचान बाज़ार तथा बाज़ार सहभागियों की तैयारी के आधार पर की जानी चाहिए।

मौद्रिक नीति का रूझान

  • यह मानते हुए कि कच्चे तेल की अंतराष्ट्रीय कीमतों में और वृद्धि नहीं होगी और घरेलू और बाहरी आघातों को छोड़कर वर्ष 2007-08 में समग्र वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद के अनुमान को 8.5 प्रतिशत के लगभग बनाए रखा गया।
  • अनुमानों को 4.0-4.5 प्रतिशत के दायरे में रखते हुए वर्ष 2007-08 में यह नीति मुद्रास्फीति को 5.0 प्रतिशत के आसपास रोके रखने का प्रयास करेगी ताकि लगभग 3.0 प्रतिशत की मुद्रास्फीति दर मध्यावधि उद्देश्य बन जाए।
  • रिज़र्व बैंक की विदेशी मुद्रा आस्तियों में अतिवृद्धि हो जाने के कारण मुद्रा आपूर्ति की दर में आरक्षित मुद्रा के उछाल के साथ वृद्धि हुई। व्यष्टि अर्थव्यवस्था और वित्तीय स्थिरता को आगे बढ़ाने के विचार से अप्रैल 2007 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में 17.0-17.5 के प्रतिशत के निर्धारित सूचक अनुमानों के अनरूप मुद्रा आपूर्ति को कम करने के लिए उचित प्रतिसाद आवश्यक होगा।
  • भारी मात्रा में बाह्य देयताओं के साथ कंपनियों के तुलनपत्र को प्रभावित करनेवाली अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय गतिविधयों से संबद्ध जोखिमों की दृष्टि से बैंकों को कहा गया कि वे भारी विदेशी मुद्रा निवेशों की समीक्षा करें और नियमित आधार पर ऐसे गैर-अभिरक्षित निवेशों की निगरानी के लिए एक प्रणाली लागू करें ताकि वर्तमान उच्चतर अनिश्चित स्थितियों के अंतर्गत वित्तीय प्रणाली में अस्थिरता के जोखिमों में कमी की जा सके। बैंकों से यह भी कहा गया कि वे कोषागार/कारोबारी गतिविधि और साथ के अन्य ॉााटतों से संबंधित कंपनी गतिविधि की इस सीमा तक निगरानी करें ताकि अंतर्निहित ऋण/बाज़ार जोखिम बैंक परिसंपत्ति की गुणवत्ता को संभावित क्षति न पहुँचाएं।
  • वर्तमान में और अधिक खुले पूँजी खाते और प्रवाहों के आकार के संदर्भ में और अधिक स्थायी घटकों की प्राथमिकता के साथ पूँजी प्रवाहों के अनुक्रम के लिए सार्वजनिक नीति अधिमानता प्रवाहों की गुणवत्ता में वृद्धि हेतु व्यापक उपायों के साथ क्षेत्रवार विनियमावलियों से संयुक्त होकर एक अधिक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता प्रदान करेगी और प्रवाहों के ॉााटत को पारदर्शी बनाएगी। इस संदर्भ में, सार्वजनिक नीति के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि समुचित और निर्णायक नीति कार्रवाइयों के माध्यम से समष्टि मौलिकता के अनुरूप पूँजी प्रवाहों के प्रबंध हेतु प्रभावी, दर्शायी जाने योग्य और सुस्पष्ट प्रतिबद्धता का संकेत करे।
  • भारत में मौद्रिक नीति बनाना अब जटिल हो गया है। एक तरफ, जहाँ अर्थव्यवस्था के निहित मूलसिद्धांत मज़बूत बने हए हैं, वहीं उसका बाह्य स्वरूप सकारात्मक बना रहा है। उसी समय, जबकि वैश्विक गतिविधयों से भारत की वित्तीय स्थिरता के लिए कोई गोचर या आसन्न संकट नहीं है। तथापि, जोखिमों को यथा संभव कम करने के लिए सामयिक, तत्पर और उचित उपाय करने की तैयारी पर ज़ोर देते हुए निरंतर लेकिन वृद्धिगत सतर्ककता बरतने की आवश्यकता बढ़ गई है।
  • चुनिंदा क्षेत्रों के बीच आपूर्ति और मांग कारकों के तरह-तरह के विश्लेषण से इन क्षेत्रों में से कुछ क्षेत्रों की नियोजन प्रबलता को दृष्टिगत रखते से सही जन नीति प्रतिक्रयाओं को शक्ति मिलेगी। मौद्रिक स्वत: ही सकल मांग से संबंधित समस्याओं का निश्चय ही निवारण कर सकती है लेकिन वित्तीय क्षेत्र से जुड़ी नीतियां एक संभावित सीमा तक ही उभरती परिस्थितियों का जायजा ले सकती हैं जैसा कि तरह-तरह के विश्लेषण में प्रतिबिंबित है। मौज़ूद चलनिधि स्थितियों और बैंकों की सतत लाभप्रदता को देखते हुए जैसा कि निवल ब्याज मार्जिनों में परिलक्षित है, आवश्यकता इस बात की है कि बैंक उन क्षेत्रों जो रोजगार-संवेदी हैं, को ऋण वितरण बढ़ाने के लिए संस्थागत और प्रक्रियात्मक परिवर्तन लाना प्रारंभ करें।
  • आगे आनेवाले दिनों में मौद्रिक नीति संचालन में चलनिधि प्रबंध का सतत प्राथमिकता पाना जारी रहेगा और चलनिधि प्रबंधन के लिए निहितार्थ रखने वाली गतिविधयों पर सटीक और समय पर कार्रवाई जरूरी होगी।

  • रिज़र्व बैंक आरक्षित नकदी निधि अनुपात के निर्धारण के यथोचित प्रयोग और बाज़ार स्थिरीकरण योजना और चलनिधि समायोजन सुविधा सहित खुला बाज़ार परिचालनों (ओएमओ) के द्वारा तथा जब कभी आवश्यकता हो तब उपलब्ध सभी नीतिगत लिखतों का प्रयोग करते हुए चलनिधि के सक्रिक मांग प्रबंधन करने की अपनी नीति को जारी रखेगा।

  • अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिकूल और अप्रत्याशित गतिविधियों के उत्पन्न होने को छोड़कर तथा वृद्धि और मुद्रास्फीति की संभावना सहित अर्थव्यवस्था के वर्तमान आकलन की दृष्टि से आगे आनेवाली अवधि में मौद्रिक नीति का समग्र रूझान व्यापक रूप से निम्न प्रकार जारी होगा:
    • वृद्धि की गति और वित्तीय बाज़ारों में व्यवस्थित स्थितियों के जारी रहने के अनुकूल एक मौद्रिक और ब्याज दर वातावरण को सुनिश्चित करते समय मूल्य स्थिरता और सुनियोजित मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं पर पुन: जोर डालना।
    • वित्तीय समावेशन का अनुपालन करते समय विशेष रूप से रोजगार-संवेदी क्षेत्रों में ऋण गुणवत्ता के साथ-साथ ऋण वितरण पर जोर डालना।
    • यथोचित रूप से पारंपरिक और गैर-पारंपरिक उपाय दोनों के साथ तेजी से कार्रवाई करने के लिए मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं, वित्तीय स्थिरता और वृद्धि की गति को प्रभावित करनेवाली विकसित होती हुई उच्चतर वैश्विक अनिश्चितता और घरेलू स्थिति की निगरानी करना।

मौद्रिक उपाय

  • बैंक दर को 6.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया।
  • चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत प्रत्यावर्तनीय रिपो दर और रिपो दर क्रमशः 6.0 प्रतिशत और 7.75 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया।
  • रिज़र्व बैंक के पास बाज़ार परिस्थितियों तथा संबंधित कारकों को देखते हुए चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत ओवर-नाइट अथवा दीर्घावधि रिपो/ प्रत्यावर्तनीय रिपो प्रस्तावित करने का विकल्प होगा। रिज़र्व बैंक चलनिधि समायोजन सुविधा के तहत निविदा (निविदाओं) को पूर्णतःअथवा आंशिक रुप से, जैसा उपयुक्त समझा जाए, स्वीकार करने या अस्वीकार करने सहित ऐसे लचीलेपन का प्रयोग जारी रखेगा ताकि दैनिक चलनिधि प्रबंध में चलनिधि समायोजन का सक्षम उपयोग किया जा सके।
  • आरक्षित नकदी निधि अनुपात को 7.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया।

वर्ष 2008-09 के लिए वार्षिक नीतिगत का वक्तव्य 29 अप्रैल 2008 को घोषित किया जाएगा।

जी. रघुराज
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2007-2008/993

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