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भारतीय रिज़र्व बैंक ने कृषि ऋण की प्रक्रिया और संसाधन की जाँच के लिए कार्यदल की रिपोर्ट पर अभिमत आमंत्रित किया

23 अगस्त 2007

भारतीय रिज़र्व बैंक ने कृषि ऋण की प्रक्रिया और संसाधन की
जाँच के लिए कार्यदल की रिपोर्ट पर अभिमत आमंत्रित किया

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर विशेषतः लघु और सीमान्त किसानों के लिए कृषि ऋण की प्रक्रियाओं एवं संसाधन को और सरल बनाने हेतु उपाय सुझाए जाने के लिए गठित कार्यदल की रिपोर्ट जारी की। जबकि भारतीय रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2007-08 के लिए अपनी वार्षिक नीति के इस कार्यदल की कुछ अनुशंसाएँ पहले ही कार्यान्वित कर ली हैं, इसने कार्यदल की रिपोर्ट को अभिमत के लिए यह व्यक्त करते हुए जारी किया है कि कार्यदल की अन्य अनुशंसाएँ किसानों, बैंकों, राज्य सरकारों और कंप्यूटरीकरण तथा फसल योजना सेवाओं आदि के लिए भी प्रौद्योगिकी सेवाप्रदाताओं सहित स्टेक धारकों की विभिन्न श्रेणियों के लिए संगत हैं। प्रतिसूचना, मुख्य महाप्रबंधक, ग्रामीण आयोजना और ऋण विभाग, केंद्रीय कार्यालय, मुबई को अधिक-से-अधिक 21 सितंबर 2007 तक भेजी जाए।

यह स्मरण होगा कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्रक्रियाओं और संसाधन के और सरलीकरण के द्वारा विशेषत: लघु और सीमांत किसानों द्वारा कृषि ऋण प्राप्त करने के लिए लागत और समय में कमी करने हेतु उपाय सुझाने के लिए श्री सी.पी.स्वर्णकार, अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, सिंडिकेट बैंक की अध्यक्षता में एक कार्यदल का गठन किया था। इस कार्यदल की रिपोर्ट अप्रैल 2007 में प्रस्तुत की गई थी तथा रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2007-08 के लिए अपनी वार्षिक नीति में इस दल की निम्नलिखित अनुशंसाओं को पहले ही कार्यान्वित कर चुका है:

  • बैंकों को सूचित किया गया है कि वे लघु और सीमान्त किसानों, बँटाइदारों के लिए 50,000 रुपए तक के लघु ऋण और इसी प्रकार के अन्य ऋण के लिए "अदेयता" प्रमाणपत्र की अपेक्षा का शीघ्र पालन करें और बदले में उधारकर्ता से स्व-घोषणा प्राप्त करें।
  • इसके अतिरिक्त, बैंकों को सूचित किया गया है कि वे भूमिहीन मजदूरों, बँटाईदारों और मौखिक रूप से पट्टे लेनेवालों को ऋण के मामले में फसलों की खेती से संबंधित स्थानीय प्रशासन/पंचायती राज संस्थाओं द्वारा उपलब्ध कराए गए प्रमाणपत्र स्वीकार करें। इससे भूमिहीन मजदूरों, बँटाईदारों और मौखिक रूप से पट्टे लेनेवालों को उनके परिचय और स्थिति के सत्यापन हेतु दस्तावेजों के अभाव में ऋण देने में बैंकों द्वारा सामना की जा रही समस्या को दूर करने में सहायता मिलेगी।
  • कृषि ऋण की मात्रा और गुणवत्ता को बढ़ाने के प्रति वित्तीय/ऋण परामर्श की भूमिका की पहचान किए जाने के लिए प्रत्येक राज्य स्तरीय बैंकर समिति संयोजक से कहा गया है कि वे एक प्रायोगिक केंद्र के रूप में एक जिले में एक ऋण-परामर्श केंद्र स्थापित करें और यथासमय इसका विस्तार अन्य जिलों में करें।

जी. रघुराज
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2007-2008/275

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