लघु वित्त संस्थाओं को ऋण सहायता प्रदान करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के उपाय - आरबीआई - Reserve Bank of India
लघु वित्त संस्थाओं को ऋण सहायता प्रदान करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के उपाय
19 जनवरी 2011 लघु वित्त संस्थाओं को ऋण सहायता प्रदान करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के उपाय भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज लघु वित्त संस्थाओं (एमएफआइ) को ऋण सहायता प्रदान करने के लिए अपने मौजूदा पुर्नसंरचना के दिशानिर्देशों में बैंकों को दी गई कतिपय छूट के बारे में सूचित किया। भारतीय रिज़र्व बैंक ने कहा है कि यह छूट संपूर्णत: अस्थायी उपाय है और 31 मार्च 2011 तक बैंकों द्वारा पुर्नसंरचित लघु वित्त संस्थानों पर लागू होगी। प्रदान की गई छूट रिज़र्व बैंक ने बैंकों को पुर्नसंरचित लघु वित्त संस्थानों के मानक खातों को पूर्णत:बेजमानती होने पर भी विनियामक आस्ति वर्गीकरण की सुविधा प्रदान करने के लिए कहा है। यह छूट इस बात को ध्यान में रखते हुए दी गई है कि लघु वित्त संस्था क्षेत्र की समस्याएं आवश्यक रूप से ऋण की कमी के कारण नहीं है बल्कि मुख्य रूप से वातावरण के घटकों के कारण है। रिज़र्व बैंक के इन उपायों से बैंकों द्वारा लघु वित्त संस्थानों को कुछ चलनिधि सहायता प्राप्त होने की अपेक्षा है। साथ ही, इससे मालेगाम समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने तक कुछ समय के लिए ''धारण करना'' परिचालन तथा लघु वित्त संस्थानों की कार्यपद्ध्ति में दीर्घावधि और ढॉंचागत परिवर्तन करने के उपाय करने तक सुविधा देने की अपेक्षा है। रिज़र्व बैंक ने बैंकों को यह भी सूचित किया है कि उनको लघु वित्त संस्थानों के संग्रहण को पुन: चालित करने के प्रयास करने चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अपेक्षित ''धारण करना'' परिचालन सफल हो। पृष्टभूमि भारतीय रिज़र्व बेंक ने ऑंध्र प्रदेश और अन्य राज्यों में लघु वित्त क्षेत्र की आधार स्तर की परिस्थिति के संबंध में एक आकलन करने और किसी अस्थायी उपायों की आवश्यकता को जानने के लिए 22 दिसंबर 2010 को चयनित बैंकों के साथ चर्चा की थी। बैंकों ने सूचित किया कि ऑंध्र प्रदेश में लघु वित्त संस्थाओ द्वारा वसूली काफी कम हो गई है तथा दूसरे राज्यों में इस संक्रमण के फैलने के कुछ आरंभिक संकेत हैं। उसके बाद बैंकों से प्राप्त प्रतिसूचना के आधार पर भारतीय बैंक संघ (आइबीए) ने प्रस्ताव रखा कि लघु वित्त संस्था क्षेत्र के लिए रिज़र्व बैंक की पुर्नसंरचना दिशानिर्देशों में कतिपय छूट देने की आवश्यकता है। उसने यह पाया कि लघु वित्त संस्थाओं के बैंक ऋण अधिकतर बेज़मानती थे किन्तु रिज़र्व बैंक के मौजूदा पुर्नसंरचना दिशानिर्देशों के अंतर्गत विनियामक आस्ति वर्गीकरण के लाभों को प्राप्त करने के लिए खातों को संपूर्णत: जमानती होना चाहिए। बैंकों ने एक अंतरिम प्रबंध पर कार्य करने की ज़रूरत पर भी ज़ोर डाला जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ लघु वित्त संस्थाओं द्वारा उनकी सुविधा और वृध्दि अनुमानों में कमी जैसे कतिपय नियमों के अधीन लघु वित्त संस्थाओं के प्रति एक्सपोज़र का पुनर्निधारण शामिल है। आर. आर. सिन्हा प्रेस प्रकाशनी : 2010-2011/1029 |