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भारतीय रिज़र्व बैंक सामयिक पेपर खण्‍ड 32 संख्‍या 2 : मानसून 2011

31 अक्‍टूबर 2012

भारतीय रिज़र्व बैंक सामयिक पेपर खण्‍ड 32 संख्‍या 2 :
मानसून 2011

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने सामयिक पेपर का मानसून 2011 अंक जारी किया। रिज़र्व बैंक की एक अनुसंधान प्रत्रिका सामयिक पेपर में इसके स्‍टाफ का योगदान शामिल है तथा यह लेखकों के विचारों को दर्शाता है। यह अंक कुछ महत्‍वपूर्ण विषयों के इर्द-गिर्द तैयार किया गया है जो नीति चर्चाओं के अग्रणी बिंदु रहे हैं।  इस अंक में निम्‍नलिखित आलेख, विशेष टिप्‍पणियां और पुस्‍तक समीक्षाएं शामिल हैं।

किस प्रकार भारत में मौद्रिक नीति अंतरण वित्तीय बाज़ारों के अनुरूप नहीं है?

भूपाल सिंह द्वारा लिखित "किस प्रकार भारत में मौद्रिक नीति अंतरण वित्तीय बाज़ारों के अनुरूप नहीं है?" शीर्षक यह पेपर वित्तीय बाज़ारों में मौद्रिक नीति के अंतरण में असमानताओं के अस्तित्‍व से संबंधित एक मुख्‍य प्रश्‍न की जांच करता है। लेखक यह चर्चा करता है कि किस प्रकार नीति दर परिवर्तन का असमान परिमाण नीति चक्र के विभिन्‍न चरणों, भिन्‍न-भिन्‍न चलनिधि स्थितियों तथा परिपक्‍वता के संपूर्ण परिदृश्‍य के दौरान वित्तीय आस्ति कीमतों पर भिन्‍न-भिन्‍न प्रभाव डालता है। 2001:एम3 से 2012:एम6 की प्रतिदर्श अवधि का उपयोग करते हुए गतिशील ढांचे में लेखक एक देशिक स्‍वत: संचालित (वीएआर) प्रतिदर्श के प्रयोग द्वारा नीति आघातों के प्रति विभिन्‍न आस्ति कीमतों की प्रतिक्रियाओं का आकलन करता है। अनुभवजन्‍य आकलन यह प्रस्‍तावित करते हैं कि वित्तीय बाज़ारों की अल्‍पकालिक स्थिति मौद्रिक नीति दरों में प्रतिशत अंक परिवर्तन की प्रतिक्रिया में 40 से 75 आधार अंकों के बीच एक उल्‍लेखनीय और समकालीन (तात्‍कालिक) पास-थ्रू प्रदर्शित करता है। तथापि, समकालीन के साथ-साथ पास-थ्रू अंतराल के परिमाण वित्तीय बाज़ारों के साथ-साथ मौद्रिक नीति के चक्र में भी चलनिधि स्थितियों के हालात पर उल्‍लेखनीय रूप से आधारित होकर अलग-अलग होते हैं। खासकर यह प्रस्‍तावित करते हुए कि उपर्युक्‍त चलनिधि वातावरण बनाए रखना प्रतिफल वाले उन्‍नत पास-थ्रू के लिए महत्‍वपूर्ण है, वित्तीय बाज़ारों की अल्‍पावधि में अधिशेष और घाटेवाली चलनिधि स्थितियों के बीच नीति अंतरण में उल्‍लेखनीय असमानता देखी गई है। मौद्रिक नीति की कड़ाई अथवा आसान चक्रों के आधार पर वित्तीय बाज़ारों में मौद्रिक नीति के अंतरण में भी भारी असमानता देखी गई है जो यह प्रस्‍तावित करती है कि प्रत्‍येक चक्र के अंतर्गत नीति दरों के लिए एक प्रारंभिक स्‍तर प्राप्‍त करने के महत्‍व हेतु वित्तीय बाज़ारों के परिदृश्‍य पर वांछित पास-थ्रू प्रभाव होना चाहिए।

भारत में मौद्रिक अंतरण व्‍यवस्‍था के औद्योगिक प्रभाव : उपयोग आधारित उद्योगों का एक अनुभवजन्‍य विश्‍लेषण

शरत ढाल द्वारा तैयार किया गया "भारत में मौद्रिक अंतरण व्‍यवस्‍था के औद्योगिक प्रभाव : उपयोग आधारित उद्योगों का एक अनुभवजन्‍य  विश्‍लेषण" शीर्षक पेपर अलग-अलग मौद्रिक अंतरण व्‍यवस्‍थाओं पर मौद्रिक नीति के औद्योगिक प्रभावों का मूल्‍यांकन करता है।  यह अध्‍ययन देशिक स्‍वत: संचालित प्रतिदर्श तथा पांच उपयोग आधारित उद्योगों के उत्‍पाद वृद्धि से संबंधित वर्ष 1993 से वर्ष 2011 तक के मासिक आंकड़े, मांग मुद्रा दर और थोक  मूल्‍य सूचकांक मुद्रास्‍फीति का उपयोग अंतरण व्‍यवस्‍था के मूल्‍यांकन के लिए करता है। अनुभवजन्‍य विश्‍लेषण यह दर्शाते हैं कि एक कड़े मौद्रिक नीति आघात के बाद उत्‍पादन वृद्धि मौलिक मध्‍यवर्ती और उपभोक्‍ता गैर-स्‍थायी वस्‍तुओं की अपेक्षा उपभोक्‍ता स्‍थायी वस्‍तुओं और पूंजीगत वस्‍तुओं के लिए बहुत अधिक प्रभावित हो सकती है। एक कड़ी नीति के बाद उत्‍पादन वृद्धि में संचयी सुधार पूंजीगत वस्‍तुओं, उपभोक्‍ता स्‍थायी वस्‍तुओं और मौलिक वस्‍तुओं के लिए 2 से 5 वर्षों तक विस्‍तारित हो सकता है। मध्‍यवर्ती तथा उपभोक्‍ता गैर-स्‍थायी वस्‍तुएं सापेक्षिक  रूप से एक नरम अंतरणशील प्रतिक्रिया दर्शा सकती हैं और अंतरण अंतराल केवल उपभोक्‍ता गैर-स्‍थायी वस्‍तुओं के लिए ही प्रत्‍यक्ष हो सकता है।

भारतीय पूंजी बाज़ार में निष्‍पादित ऐतिहासिक प्रोत्‍साहन का उपयोग करते हुए जोखिम मूल्‍य आकलन

इंद्रजीत राय द्वारा तैयार किया गया "भारतीय पूंजी बाज़ार में निष्‍पादित ऐतिहासिक प्रोत्‍साहन का उपयोग करते हुए जोखिम मूल्‍य आकलन" शीर्षक पेपर निष्‍पादित ऐतिहासिक प्रोत्‍साहन (एफएचएस) का उपयोग करते हुए भारतीय पूंजी बाज़ार के दैनिक प्रतिलाभ (सेंसेक्‍स / निफ्टी) का जोखिम मूल्‍य (वीएआर) आकलन करता है। जनवरी 2003 से दिसंबर 2009 की अवधि को शामिल करते हुए लेखक प्रतिलाभों पर उमडती हुई अस्थिरता को नमूनाबद्ध करने के लिए जीएआरसीएच ढांचे का उपयोग करता है तथा मध्‍य समीकरण की विशिष्‍टता में वैश्विक वित्तीय स्थिति के प्रतिनिधित्‍व के रूप में प्रतिलाभ के अंतराल मूल्‍यों (एसएण्‍डपी500, आईएनआर-यूरो, आईएनआर-यूएसडी विनिमय दर, स्‍वर्ण मूल्‍य) पर विचार करने की उपयोगिता की जांच करता है। वीएआर का आकलन दो दृष्टिकोणों पर आधारित है। प्रथम दृष्टिकोण में भारतीय पूंजी बाज़ार में दैनिक प्रतिलाभ का मध्‍य समीकरण इसके अपने अंतराल तथा एसएण्‍डपी500, आईएनआर-यूरो, आईएनआर-यूएसडी विनिमय दर, तथा  स्‍वर्ण मूल्‍य द्वारा प्राप्‍त किया जाता है अबकि अस्थिरता को जीएआरसीएच प्रतिदर्श द्वारा नमूनाबद्ध किया जाता है और अंत में वीएआर का आकलन एफएचएस के माध्‍यम से किया जाता है। यह पाया गया है कि जीएआरसीएच का उपयोग करते हुए उपयुक्‍त मध्‍य विशिष्‍टता के साथ आकलित वीएआर, एआरएमए-जीएआरसीएच पद्धति पर आकलित वीएआर से अधिक उत्‍कृष्‍ट है।

विशेष टिप्‍पणियां

अत्रि मुखर्जी की "भारत को प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश प्रवाहों में क्षेत्रीय असमानता : समस्‍या और संभावनाएं" पर टिप्‍पणी में भारत में एफडीआई प्रवाहों के क्षेत्रीय वितरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख संघटकों की जांच की गई है। वर्ष 2000-01 से 2010-11 की अवधि को शामिल करते हुए पैनल आंकड़ा विश्‍लेषण के आधार पर लेखक यह स्‍पष्‍ट करता है कि किसी राज्‍य में बाजार का आकार, संकुलन प्रभाव तथा विनिर्माण और सेवा आधार का आकार एफडीआई प्रवाहों पर उल्‍लेखनीय सकारात्‍मक प्रभाव डालते हैं। कराधान और श्रम लागत का प्रभाव नकारात्‍मक होता है। जबकि श्रमिक की गुणवत्‍ता का प्रभाव अस्‍पष्‍ट है तथापि मूलभूत सुविधा का एफडीआई प्रवाहों पर उल्‍लेखनीय सकारात्‍मक प्रभाव पड़ता है। एक मज़बूत संकुलन प्रभाव की स्थिति में यह आवश्‍यक हो जाता है कि एफडीआई प्रवाहों के लिए पिछड़े हुए राज्‍यों को अधिक आकर्षक बनाने के लिए राष्‍ट्रीय तथा राज्‍य सरकार स्‍तर पर एक सचेष्‍ट और समेकित प्रयास किया जाए।

संजीव कुमार गुप्‍ता की 'वित्तीय समावेशन - सूचना प्रौद्योगिकी सहायक के रूप में' शीर्षक दूसरी टिप्‍पणी में यह ज़ोर डाला गया है कि प्रौद्योगिकी बैंकिंग सेवाओं खासकर ग्रामीण तथा बैंक-  रहित क्षेत्रों में उपलब्‍ध कराने की परिचालन लागत कम करने में एक महत्‍वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। ऐसी प्रौद्योगिकी हैं जो वृद्धि को वित्तीय समावेशन में संचालित कर सकती हैं। यह टिप्‍पणी उन उपायों को स्‍पष्‍ट करती है जो रिज़र्व बैंक तथा भारत सरकार द्वारा भारतीय समाज के कमज़ोर वर्गों के लिए वित्तीय समावेशन सुलभ बनाने हेतु अब तक किए गए हैं। अब तक इस दिशा में रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए प्रयास, मोबाईल बैंकिंग पर ध्‍यान केद्रित करने के साथ सूचना और संचार प्रौद्योगिकी की भूमिका तथा अंत में विशिष्‍ट पहचान (यूआईडी) संख्‍या पर इस टिप्‍पणी में विस्‍तार से चर्चा की गई है। लेखक का यह तर्क है कि यूआईडी में नामांकन तथा यूआईडी समर्थित बैंक खाता वित्तीय समावेशन योजना की समस्‍त प्रक्रिया में दिशा परिवर्तक बनेगा।

पुस्‍तक समीक्षा

पॉल नाथन द्वारा लिखित और जॉन विलि एण्‍ड सन्‍स, न्‍यू जर्सी, यूएसए द्वारा प्रकाशित ''द न्‍यू गोल्‍ड स्‍टैण्‍डर्ड: रिडिसकवरिंग द पॉवर ऑफ गोल्‍ड टू प्रोटेक्‍ट एण्‍ड ग्रो वेल्‍थ'' शीर्षक पुस्‍तक की समीक्षा एन. सी. प्रधान द्वारा की गई है।

इस पुस्‍तक के लेखक को यह विश्‍वास है कि एक पुनर्जीवित नए स्‍वर्ण मानक के अंतर्गत अंतिम उपाय के रूप में केंद्रीय बैंक की अब कोई ज़रूरत नहीं है। जब तक बाज़ार स्‍वर्ण मानक के नियमों के अंतर्गत परिचालन के लिए स्‍वतंत्र हैं, वह स्थिति जो आज के संसार में हमारे पास अत्‍यधिक लिवरेज के रूप में आई है, वह फिर कभी नहीं आएगी। पुस्‍तक में यह तर्क दिया गया है कि स्‍वर्ण मानक मौद्रिक अथवा आर्थिक संकट को नहीं रोक सकते हैं लेकिन यह ऋण और लिवरेज स्‍तरों के उस स्‍वरूप को रोकता है जिसे हम आज के संसार में देखते हैं। लेखक का तर्क है कि किसी स्‍वर्ण मानक पर चलने के लिए तैयार कि‍सी देश को कई सुधार करने होंगे। उदाहरण के लिए अमरीकी संघीय सरकार को मुद्रास्‍फीति को राकना होगा, अपने बजट को संतुलित करना होगा और उन कल्‍याणकारी कार्यक्रमों का त्‍याग करना होगा जो राजनीतिक रूप से कुछ कठिन है। यह पुस्‍तक इस पर भी मार्गदर्शन उपलब्‍ध कराता है कि किस प्रकार कोई स्‍वर्ण मानक डॉलर को मज़बूत कर सकता है, ऋण में कमी कर सकता है तथा स्‍वर्ण में निवेश के लिए व्‍यवहारिक रणनीति प्रस्‍तावित करते हुए अर्थव्‍यवस्‍था को स्थिरता देने में सहायता कर सकता है

रॉबर्ट गेस्‍ट द्वारा लिखित और पालग्रेव मैकमिलन, न्‍यूयार्क द्वारा प्रकाशित ''बॉर्डरलेस इकानॉमिक्‍स : चाइनिज़ सी टर्टल्‍स, इंडियन फ्रिजेज एण्‍ड न्‍यू फ्रुट्स ऑफ ग्‍लोबल कैपिटलिज्‍म'' शीर्षक  पुस्‍तक की समीक्षा अवधेश कुमार शुक्‍ल द्वारा की गई है।

यह पुस्‍तक वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था की ओर अंतरण के बहुआयामी प्रभावों पर नई अंतरदृष्टि उपलब्‍ध कराती है। पुस्‍तक यह प्रस्‍तावित करती है कि अंतरण का आर्थिक प्रभाव प्रत्‍यक्ष और अधिक प्रभावी है, विदेशी सहायता की तरह नहीं जो अवांछित खुलासों और बरबादियों से अवरूद्ध है। लेखक के अनुसार खासकर चीन और भारत जैसे देशों को उनके समुद्रपारीय जन पलायन के कारण अत्‍यधिक लाभ हुआ है। भारत विप्रेषण आय का सबसे बड़ा प्राप्‍तकर्ता है और चीन में विदेशी प्रत्‍यक्ष निवेश का लगभग तीन-चौ‍थाई चीनी जन-पलायन द्वारा किया जाता है। लेकिन इस पुस्‍तक के अनुसार जन-पलायन के लाभ केवल आर्थिक लाभों तक सीमित नहीं हैं बल्कि वे राजनीतिक और सांस्‍कृतिक पहलुओं तक भी फैले हैं। जहां तक प्रतिभा-पलायन का मुद्दा है इस पुस्‍तक का निष्‍कर्ष है कि उभरती हुई अर्थव्‍यवस्‍थाओं को हानि पहुंचाने की अपेक्षा पतिभा-पलायन ने देशों को वैश्विक गरीबी कम करने में सहायता की है। जहां तक उन्‍नत अर्थव्‍यवस्‍थाओं पर प्रभाव का संबंध है यह पुस्‍तक अमरीकी अर्थव्‍यवस्‍था का एक उदाहरण उलब्‍ध कराती है और यह उल्‍लेख करती है कि पलायन से आबादी की कार्यशील आयु में बढ़ोतरी होगी तथा इससे चीन के विपरीत बूढ़ी उम्रवाली आबादी पर अधिक निर्भरता की समस्‍या से बचा जा सकेगा।

अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/728

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