भारतीय रिज़र्व बैंक ने "वर्ष 1990 के दशक में भारत में क्षेत्रीय असमानता : प्रवृत्ति और नीति प्रभाव" पर विकास अनुसंधान समूह अध्ययन जारी किया - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक ने "वर्ष 1990 के दशक में भारत में क्षेत्रीय असमानता : प्रवृत्ति और नीति प्रभाव" पर विकास अनुसंधान समूह अध्ययन जारी किया
17 मई 2010 भारतीय रिज़र्व बैंक ने "वर्ष 1990 के दशक में भारत में क्षेत्रीय असमानता : प्रवृत्ति और नीति प्रभाव" पर विकास अनुसंधान समूह अध्ययन जारी किया भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज "वर्ष 1990 के दशक में भारत में क्षेत्रीय असमानता : प्रवृत्ति और नीति प्रभाव" शीर्षक विकास अनुसंधान समूह अध्ययन जारी किया। यह अध्ययन डॉ. निर्विकार सिंह, प्राध्यापक कैलिर्फोनिया विश्वविद्यालय, सांताक्रुज, यूएसए तथा श्री जे.के. केण्डल, विश्व बैंक, श्री आर.के. जैन, निदेशक, आर्थिक विश्लेषण और नीति विभाग तथा डॉ. जय चंदर, सहायक परामर्शदाता, आर्थिक विश्लेषण और नीति विभाग के साथ सम्मिलित रूप में तैयार किया गया है। चिंताएं हैं कि क्षेत्रीय असमानताएं सुधार के बाद की अवधि में और गहरी हो गई हैं। जबकि राज्य स्तर पर आयोजित कई सांख्यिकीय विश्लेषण इस परिकल्पना की पुष्टि करते हैं, उप राज्य क्षेत्रीय असमानता के लिए सीमित प्रणालीगत विश्लेषण/जाँच है। अलग-अलग अध्ययनों ने विशेष रूप से गुणवत्ता अथवा विवरणात्मक सांख्यिकी का विशेष रूप से सहारा लिया है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज "वर्ष 1990 के दशक में भारत में क्षेत्रीय असमानता : प्रवृत्ति और नीति प्रभाव" पर विकास अनुसंधान समूह अध्ययन भारत में क्षेत्रीय असमानता में एक अधिक स्पष्ट विचार और उत्तम समझ उपलब्ध कराने के द्वारा विद्यमान अनुभवजन्य विश्लेषण में अंतराल को पाटने का प्रयास करता है। यह अध्ययन अपने ढंग का यह पहला प्रयास है जो राज्य स्तर से नीचे तक भारतीय आँकड़ों के विस्तृत विश्लेषण का प्रतिनिधित्व करता है। अध्ययन यह पता करता है कि भारतीय राज्य के आकार और वैविध्य को देखते हुए राज्यों में तुलना और वृद्धि ाटांस की नीति संरचना में उपयोगी अंतर्दृष्टि उपलब्ध कराना सीमित प्रतीत होता है। जिले को एक प्रशासनिक इकाई के के रूप में पहचान करने तथा इसका वृद्धि कार्यनिष्पादन और इसके संघटकों की रूपरेखा तैयार करने के द्वारा यह अध्ययन नीति निर्माताओं के लिए अतिरिक्त मार्गदर्शन उपलब्ध कराने की माँग करता है। यह अध्ययन बेहतर आँकड़ा संग्रह की आवश्यकता तथा अनुभवजन्य कार्य शुरू करने पर भी प्रकाश डालता है क्योंकि समावेशित विकास के लिए व्यापक आधारित वृद्धि के मानदण्डों की मौलिक समझ अपेक्षित है। इस अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष इस प्रकार हैं: क्षेत्रीय स्तर पर आर्थिक गतिविधियों के आंशिक उपाय किसी अनुकूल संकेंद्रण अथवा विविधीकरण के किसी मजबूत प्रमाण का संकेत नहीं करते हैं। तथापि, प्रति व्यक्ति उपभोग स्तर में एक अनुकूल संकेंद्रण के स्पष्ट प्रमाण हैं। इन परिणामों में तीन बिन्दु उल्लेखनीय हैं
जिला स्तरीय परिणाम अनुकूल संकेंद्रण का संकेत तो देते हैं लेकिन वे निरपेक्ष नहीं हैं। उपयोग में लाई गई अनुकूल चर वस्तुएँ सड़कों, साक्षरता और ऋण के साधन हैं, अतः ये परिणाम मूलभूत सुविधा और मानव विकास के साथ-साथ वित्त तक पहुंच के महत्व का समर्थन करते हैं। ये परिणाम समग्र विशिष्टताओं के एक व्यापक स्वरूप में पूर्णतः सुदृढ़ हैं तथा उस विकास के एक सुविचारित प्रतिदर्श के अनुरूप हैं जो वृद्धि के नियामकों के रूप में मानव सामर्थ्य और बाजार तक समुचित पहुँच पर जोर देता है। अतः इस अध्ययन का उपयोग उन जिलों की पहचान के लिए किया जा सकता है जिन्हें उपयोग में लाए गए तीन आयामों के साथ-साथ अतिरिक्त नीति हस्तक्षेप की अपेक्षा है तथा जहाँ विकास के उपायों पर अनुकूलन के बाद भी कार्यनिष्पादन औसत से खराब है । उन जिलों में जहाँ कार्यनिष्पादन औसत से खराब है वहाँ सामाजिक पिछड़ापन अथवा नीति कार्यान्वयन की कमी एक समस्या हो सकती है। अनुकूल संकेंद्रण के परिणाम संपूर्ण राज्यों में तथा नमूने के अधिकांश राज्यों के भीतर पाए गए हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि उन जिलों में इन चर वस्तुओं में सुधार पर ध्यान देना जहाँ वे अपेक्षाकृत कम स्तरों पर हैं वृद्धि के रूप में प्रतिफलित हो सकता है। इससे वृद्धि के समावेशन में भी उन्नति हो सकती है जैसाकि सारे भौगोलिक क्षेत्रों में आय स्तरों के संकेंद्रण द्वारा मापा गया है। अल्पना किल्लावाला प्रेस प्रकाशनी : 2009-2010/1547 |