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भारतीय रिज़र्व बैंक ने स्वर्ण पर अपने कार्यदल की प्रारूप रिपोर्ट जारी किया

2 जनवरी 2013

भारतीय रिज़र्व बैंक ने स्वर्ण पर अपने कार्यदल की प्रारूप रिपोर्ट जारी किया

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर भारत में गैर-बैकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) द्वारा स्वर्ण और स्वर्ण ऋणों से संबधित मुद्दों के अध्ययन के लिए कार्यदल (अध्यक्ष श्री के.यू.बीराव, परामर्शदाता, आर्थिक और नीति अनुसंधान विभाग) की प्रारूप रिपोर्ट जारी किया। रिज़र्व बैंक ने स्टेकधारकों और आम जनता से इस प्रारूप रिपोर्ट पर अभिमत मांगा है। ये अभिमत शुक्रवार 18 जनवरी 2013 तक को मेल किए जा सकते हैं।

इस कार्यदल को यह अध्ययन करने का कार्य सौंपा गया था कि क्या भारत के भारी स्वर्ण आयात बाहरी स्थिरता के लिए खतरा हैं। कार्यदल से अन्य बातों के साथ-साथ यह भी कहा गया था कि वह भारी स्वर्ण ऋण वाली गैर-बैकिंग वित्तीय कंनियों द्वारा प्रदान किए गए स्वर्ण ऋणों में हाल की प्रवृत्ति का अध्ययन करें और यह देखें कि क्या कोई प्रणालीगत स्थिरता मुद्दे हैं जो बैंकों तथा स्वर्ण ऋण वाली गैर-बैकिंग वित्तीय कंपनियों के बीच अतर-संबद्धता के कारण उत्पन्न हो रहे हैं। कार्यदल ने विभिन्‍न संबधित आर्थिक चर-वस्‍तुओं का अध्ययन करने तथा संबधित विचारों को सुदृढ़  करने के लिए सभी स्टेकधारकों के साथ गहन बातचीत के माध्यम से सर्वेक्षण आयोजित करने के लिए तकनीकी कार्य शुरू करने वालों के द्वारा सौंपे गए विचारणीय विषयों का समाधान करने हेतु एक उदार दृष्टिकोण अपनाया था। गैर-बैकिंग वित्तीय कंपनियों - जमाराशि स्वीकार नहीं करने वाली (एनडी)-प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण (एसआई) क्षेत्र से संबधित विद्यमान विनियमों की समीक्षा की गई तथा अनुशंसाएं प्रस्तुत की गई।

कार्यदल कीरिपोर्ट का सारांश:

समष्टि मुद्दे

भारी स्वर्ण आयात प्रतिकूल ढंग से चालू खाता घाटे को प्रभावित कर रहे हैं। स्वर्ण आयातों की मांग में नरमी की ज़रूरत है क्योंकि बाह्य क्षेत्र की स्थिरता सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। यह ज्ञात करना आवश्यक है कि भारत में स्वर्ण की मांग पूरी तरह नीति परिवर्तनों के लिए उत्तरदायी नहीं है तथा विभिन्न कारणों से कीमतों के लिए लचीला नहीं है। स्वर्ण आयातों को एजेंसियों के माध्‍यम से करने में बैंकों की भूमिका महत्वपूर्ण है लकिन इसमें कई वर्षों से गिरावट हो रही है। स्‍वर्ण आयात पर कार्रवाई के लिए बैंकों को उपलब्‍ध वर्तमान प्रोत्‍साहनों की समीक्षा के लिए संभावना है। स्‍वर्ण की बढ़ती हुई मांग के संदर्भ में यह महत्‍वपूर्ण है कि विभिन्‍न वित्तीय बचत उत्‍पादों के माध्‍यम से निवेशकों को वास्‍तविक प्रतिलाभ सुनिश्चित किया जाए ताकि कम-से-कम आंशिक रूप में स्‍वर्ण की ओर से उनका ध्‍यान हटाया जा सके। बैंकों के लिए आवश्‍यक है कि वे एक नया स्‍वर्ण समर्थित वित्तीय उत्‍पाद लागू करें ताकि इससे स्‍वर्ण आयात की मांग को कम अथवा स्‍थगित किया जा सके। स्‍वर्ण समर्थित वित्तीय उत्‍पादों में निवेशकों क्रमबद्ध करने के संदर्भ में निवेशकों को जागरूक और शिक्षित करना आवश्‍यक है। कार्यदल का विश्‍वास है कि वैकल्पिक लिखतों के माध्‍यम से निवेशकों को प्रतिलाभ की वास्‍तविक दर उपलब्‍ध कराना ही स्‍वर्ण की अत्‍यधिक मांग को कम करने का मुख्‍य साधन है। इस बीच उत्‍पादक प्रयोजनों के लिए अर्थव्‍यवस्‍था में बेकार पड़े स्‍वर्ण भंडार के मौद्रिककरण को बढ़ाने की भी जरूरत है। उत्‍पादक प्रयोजनों के लिए स्‍वर्ण की संपार्श्विकता के बदले ऋण को प्रोत्‍साहित करना ऐसा करने का एक माध्‍यम बन सकता है।

व्‍यष्टि मुद्दे

स्‍वर्ण ऋण वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के वित्तीय कार्य निष्‍पादन तथा बैंकिंग प्रणाली से उनके उधार के वर्तमान स्‍तर उल्‍लेखनीय विषय नहीं है। ऐसा लगता है कि स्‍वर्ण ऋण वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और बैंकिंग प्रणाली की अंतर-संबद्धता के कारण घरेलू वित्तीय स्थिरता के मामले में कोई तत्‍कालिक प्रणालीगत प्रभाव नहीं है। बैंक तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां स्‍वर्ण जेवरात ऋण देना जारी रख सकती हैं जो देश में स्‍वर्ण का मौद्रिकरण करेगा। हाल के वर्षों में स्‍वर्ण ऋण बाज़ार अच्‍छी तरह विकसित हुए हैं। यह समय है कि स्‍वर्ण ऋण वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का परिचालन समेकित किया जाए। स्‍वर्ण ऋण वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को शिकायत विहीन संस्‍थाओं में स्‍वयं को रूपांतरित करने, विवेकसम्‍मत ब्‍याज दर संरचना के साथ उचित अभिलेखन और नीलामी प्रक्रियाओं तथा पूरी तरह सुरक्षित और अभिरक्षित एक शाखा नेटवर्क की जरूरत है।

मुख्‍य अनुशंसाएं

इस कार्यदल की मुख्‍य अनुशंसाएं इस प्रकार हैं:

  • चालू खाता घाटे पर इसके प्रभाव पर विचार करते हुए स्‍वर्ण आयातों की मांग में कमी करने की ज़रूरत है।

  • स्‍वर्ण आयात में कमी के लिए राजकोषीय उपायों की समीक्षा की जाए।

  • बैंकों को नवोन्‍मेषी वित्तीय लिखतों का अभिकल्‍प तैयार करने की ज़रूरत है जो निवेशकों को वास्‍तविक प्रतिलाभ उपलब्‍ध करा सकता है।

  • स्‍वर्ण के लिए ग्रामीण और शहरी दोनों मांग को स्‍वर्ण के अभौतिकरण के माध्‍यम से स्‍वर्ण समर्थित वित्तीय लिखतों में निवेश के रूप में परिवर्तित करने की ज़रूरत है।

  • लिखतों पर कर-प्रोत्‍साहन लागू करने पर विचार किया जा सकता है जो बेकार पड़े स्‍वर्ण को अवरूद्ध कर सकता है।

  • घरेलू बेकार स्‍वर्ण के पुनरावर्तन की ज़रूरत है।

  • यदि आत्‍यंतिक स्थितियों के अंतर्गत अपेक्षित हो तो बैंकों द्वारा आयातित स्‍वर्ण की मात्रा और मूल्‍य को सीमाबद्ध किया जाए।

  • थोक स्‍वर्ण आयातकों पर निर्यात देयता लागू करने पर विचार किया जाए।

  • बैंक, बेकार पड़े स्‍वर्ण भंडार का मौद्रीकरण करने के लिए अपने स्‍वर्ण जेवरात ऋण पोर्टफोलियो का विस्‍तार कर सकते हैं।

  • एक स्‍वर्ण बैंक की स्‍थापना पर चर्चा की समीक्षा की जा सकती है।

  • बैंक, स्‍वर्ण आयात में नामित एजेंसियों के रूप में अपनी भूमिका जारी रख सकते हैं।

  • स्‍वर्ण आयातों के लिए बैंकिंग सेवाओं और वित्त के विभेदक मूल्‍यांकन पर विचार किया जा सकता है।

  • स्‍वर्ण बुलियन खरीदने के लिए बैंक वित्त को प्रतिबंधित किया जा सकता है।

  • व्‍यक्तियों द्वारा स्‍वर्ण जेवरात और स्‍वर्ण के सिक्‍कों के बदले अग्रिमों पर कोई रोक अथवा सीमा नहीं होनी चाहिए।

  • बैंक अपनी छोटी मात्रा को देखते हुए स्‍वर्ण के सिक्‍कों की खुदरा बिक्री जारी रख रकते हैं।

  • आधार दर निर्धारणों से धातुगत स्‍वर्ण ऋण को अलग रखने का कोई मज़बूत मामला नहीं है।

  • अर्थव्‍यवस्‍था में बेकार पड़े स्‍वर्ण में छिपे हुए आर्थिक मूल्‍य को खोलने के लिए नए स्‍वर्ण समर्थित वित्तीय उत्‍पादों को लागू करने पर विचार करना अति आवश्‍यक है।

  • स्‍वर्ण संचयी योजना, स्‍वर्ण सहबद्ध खाता, आशोधित स्‍वर्ण जमा और स्‍वर्ण पेंशन उत्‍पाद जैसे उत्‍पादों को लागू करने पर विचार किया जाए।

  • प्रत्‍येक प्रस्‍तावित स्‍वर्ण समर्थित उत्‍पाद का सावधानी से मूल्‍यांकन महत्‍वपूर्ण है।

  • स्‍वर्ण ऋण वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की आस्तियों, उधार और शाखा नेटवर्क की तेज़ी से वृद्धि पर लगातार निगरानी की ज़रूरत है।

  • स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों की औपचारिक वित्तीय प्रणाली के साथ अंतर-संपर्कता को धीरे-धीरे कम करने की आवश्यकता है।

  • पूंजी पर्याप्तता अनुपात कम करना – स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों की पूंजी में सुधार करने की आवश्यकता है।

  • स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा एनसीडी के माध्यम से संसाधन बढ़ाने से संबंधित वर्तमान शर्तों की समीक्षा करने की आवश्यकता है।

  • “जमा” की परिभाषा से सुरक्षित डिबेंचरों के लिए उपलब्ध छूट की समीक्षा की जा सकती है

  • स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों और अनिगमित निकायों के बीच लेन-देन की निगरानी की आवश्यकता है।

  • यद्यपि, वर्तमान समय में, स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों का लिवरेज चिंता का कारण नहीं है, फिर भी गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों की स्व अधिकृत निधियों में सुधार करने की आवश्यकता है।

  • स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रचालनरत प्रथाओं की पूरी तरह से समीक्षा करने की आवश्यकता है।

  • स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा ऋण शर्तों का पारदर्शी संप्रेषण सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

  • स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा ग्राहक शिकायत और शिकायत निपटान प्रणाली संस्थान महत्वपूर्ण है।

  • स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा नीलामी कार्यविधियों की समीक्षा करने की आवश्यकता है।

  • नीलामियों का स्थान वही तालुक होना चाहिए जहां उधारकृता अवस्थित है।

  • स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा नीलामी के बाद अपनाए जाने वाले  रक्षा उपाय।

  • स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा अपनाए जाने वाले बेहतर प्रकटन (डिसक्लोजर) मानक।

  • उचित प्रथा कोड के कार्यान्वयन की निगरानी।

  • स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा अपनाए जाने वाला मानक प्रलेखन।

  • बड़े स्वर्ण ऋण लेनदेनों के लिए पैन कार्ड का उपयोग।

  • बड़े स्वर्ण ऋण लेनदेनों के लिए चेक से भुगतान।

  • इस समय, बैंकों के पास स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों के लिए लेवल प्लेयिंग फील्ड की स्वीकृति का कोई मामला नहीं है।

  • मौजूदा “मूल्य अनुपात में ऋण” की समीक्षा का मामला है।

  • उचित “मूल्य अनुपात में ऋण” निर्धारित करने के लिए मीयादी मूल्य की स्पष्ट रूप से परिभाषित और मानकीकृत अवधारणा की आवश्यकता है।

  • बड़ी स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा शाखाओं की अनियंत्रित वृद्धि को संतुलित करने की आवश्यकता है।

  • स्वर्ण ऋण उधारकर्ताओं की शिकायतों के निपटान के लिए एक लोकपाल की आवश्यकता है

  • स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा ब्याज दर ढ़ांचे का तार्किकीकरण।

प्रमुख निष्कर्ष

  • स्वर्ण ऋणों का स्वर्ण आयातों पर कारणात्मक प्रभाव होता है, जो स्वर्ण धारण करने के लिए चलनिधि मंशा के उद्भव को प्रमाणित करता है।

  • अंतर्राष्ट्रीय स्वर्ण कीमतें और विनिमय दर भारत में स्वर्ण कीमतों पर महत्वपूर्ण और सकारात्मक प्रभाव डालती हैं।

  • स्वर्ण कीमतों में वृद्धि एक ऐसा कारक प्रतीत होता है जो स्वर्ण ऋण बकाया में वृद्धि करता है।

  • स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा दिए जाने वाले स्वर्ण ऋण में वृद्धि करना और बैंक भारत में स्वर्ण कीमतों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित नहीं करते हैं।

  • स्वर्ण कीमतों में अस्थिरता के अनुभवजन्य विश्लेषण के आधार पर स्वर्ण की भावी कीमतों का अनुमान लगाना कठिन है।

  • विगत प्रवृत्तियों को देखते हुए स्वर्ण कीमतों में 30 से 40 प्रतिशत तक तेज अचानक गिरावट की कम संभावना है, जो स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों की वित्तीय निराशा का कारण है।

  • यदि स्वर्ण की कीमतों में 10 प्रतिशत तक की गिरावट होती है, तो मूल्य अनुपात में ऋण (एलटीवी) के मौजूदा अनुपात से उचित जोखिम कवर उपलब्ध कराया जाना चाहिए।

  • वर्तमान समय में कुल उधार जोखिम और स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों की पूंजी पर्याप्तता के प्रतिशत के रूप में आस्ति गुणवत्ता, गैर-निष्पादनीय आस्तियां चिंता का कारण नहीं हैं।

  • स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों की निधियों के स्रोत चिंता का तत्काल कारण प्रतीत नहीं होता है, जो सघन उधार जोखिम को बढ़ावा दे रहा है।

  • स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों के कारोबार का महत्वपूर्ण विकास यह अधिकृत करता है कि इनके परिचालनों की निकट से निगरानी की जाए।

  • कुछ स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियां चोरी से अनिगमित निकायों के माध्यम से सार्वजनिक जमा बढ़ा रही है, जिससे चिंता बढ़ रही है।

  • बैंकिंग क्षेत्र का अपने वैयक्तिक स्वर्ण ऋणों के रूप में मौजूदा ऋण जोखिम लघु प्रतीत होता है और इससे वर्तमान में बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता को महत्वपूर्ण प्रतिघात नहीं हो सकता है।

  • स्वर्ण ऋण बाजार को प्रभावित करने वाली स्वर्ण कीमतों में अस्थिरता की संभाव्यता कम है

  • स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियां विवेकपूर्ण विनियमन और रिपोर्टिंग आवश्यकताओं के अधीन हैं।

  • स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियां सामाजिक रूप से उपयोगी कार्य कर रही हैं और यह इन स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों के कार्याकलापों के ध्यानपूर्ण विनियमन के लिए ठोस तर्क प्रदान करता है।

  • स्वर्ण ऋण वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों के कार्यकरण पर हाल में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उठाए गए विनियामक उपायों को मध्यम और दीर्घावधि में क्षेत्र का अच्छा विकास सुनिश्चित करने के लिए जारी रखा जा सकता है।

पृष्‍ठभूमि

यह स्‍मरण होगा कि 17 अप्रैल 2012 को घोषित मौद्रिक नीति वक्‍तव्‍य 2012-13 में भारत में स्‍वर्ण ऋण बाज़ार जिसने हाल के वर्षों में तेज़ी दर्शाई है का अध्‍ययन करने के लिए एक कार्यदल के गठन का प्रस्‍ताव किया गया था। स्‍वर्ण ऋण कारोबार में भारी वृद्धि, स्‍वर्ण ऋण वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के शाखा नेटवर्क, वितरित किए गए ऋणों की मात्रा तथा बैंक ऋणों की मात्रा ने कुछ विनियामक चिंताएं उत्‍पन्‍न की थीं। बाह्य क्षेत्र स्थिरता पर भारी स्‍वर्ण आयातों के प्रभाव जैसे कुछ समष्टि आर्थिक मुद्दे भी थे। तदनुसार, श्री के.यू.बी.राव, परामर्शदाता, आर्थिक और नीति अनुसंधान विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक की अध्‍यक्षता में एक कार्यदल का गठन किया गया था। इस कार्यदल में विभिन्‍न विभागों जैसेकि आर्थिक और  नीति अनुसंधान विभाग, गैर-बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग, बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग, सांख्यिकी और सूचना प्रबंध विभाग तथा वित्तीय स्थिरता इकाई के आंतरिक सदस्‍य थे। इस प्रारूप रिपोर्ट में वित्तीय बाज़ार समिति सदस्‍यों से आंतरिक रूप में तथा एफएसडीसी उप सदस्‍यों से प्राप्‍त अभिमतों पर विचार किया गया है।

अल्‍पना किल्‍लावाला
मुख्‍य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/1120

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