17 जून 2011 भारतीय रिज़र्व बैंक ने ''भारतीय विनिर्माण क्षेत्र की उत्पादकता, क्षमता और प्रतिस्पर्धा'' पर विकास अनुसंधान समूह अध्ययन जारी किया भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज ''भारतीय विनिर्माण क्षेत्र की उत्पादकता, क्षमता और प्रतिस्पर्धा'' पर विकास अनुसंधान समूह अध्ययन जारी किया। यह अध्ययन प्रो. पुष्पा त्रिवेदी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बाम्बे) तथा रिज़र्व बैंक के श्री एल. लक्ष्मणन (सहायक परामर्शदाता, आंतरिक ऋण प्रबंध विभाग), डॉ. राजीव जैन (सहायक परामर्शदाता, आर्थिक और नीति अनुसंधान विभाग) और डॉ. योगेश कुमार गुप्ता (सहायक परामर्शदाता, सांख्यिकीय और सूचना प्रबंध विभाग) द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किया गया है। यह अध्ययन भारत के विनिर्माण क्षेत्र की उत्पादकता और क्षमता पर ध्यान केंद्रित करता है। इस अध्ययन में समग्र संगठित विनिर्माण क्षेत्र के मामले में वर्ष 1980-81 से वर्ष 2007-08 तक समयावधि शामिल की गई है। यह भारत के 18 राज्यों (क्षेत्रीय आयामों पर प्रकाश डालने के लिए); विनिर्माण क्षेत्र के भीतर छह प्रमुख संघटक उद्योगों; विनिर्माण क्षेत्र के संगठित बनाम असंगठित खण्डों आदि के लिए अलग-अलग विश्लेषण प्रस्तुत करता है। अनुभवजन्य अभ्यास वर्ष 1980-81 से वर्ष 2003-04 की अवधि के लिए किया गया है। 'चयनित सार्वजनिक लिमिटेड विनिर्माण कंपनियों' की उत्पादकता और क्षमता भी वर्ष 1993-94 से वर्ष 2004-05 की अवधि के लिए मापी गई है। इस अध्ययन में प्रयुक्त पद्धति में मानदण्डीय और गैर-मानदण्डीय दोनों दृष्टिकोण शामिल किए गए हैं। इस अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष संक्षिप्त रूप में नीचे दिए जा रहे हैं:
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वर्ष 1980-81 से वर्ष 2003-04 की अवधि के लिए संगठित विनिर्माण क्षेत्र हेतु कुल कारक उत्पादकता वृद्धि (टीएफपीजी) को वृद्धि लेखांकन दृष्टिकोण (जीएए) द्वारा 0.92 प्रतिशत प्रति वर्ष (पीसीपीए) आकलित किया गया है जो उत्पादन कार्य दृष्टिकोण (पीएफए) का प्राय: आधा अर्थात् 1.81 प्रतिशत प्रति वर्ष है। अत: इन दोनों दृष्टिकोणों द्वारा उत्पादन के वृद्धि के लिए टीएफपीजी का योगदान 13 से 25 प्रतिशत के बीच है। सार्वजनिक लिमिटेड कंपनियों पर भारतीय रिज़र्व बैंक के डेटासेट पर आधारित लगभग 1.5 प्रतिशत प्रति वर्ष का टीएपीजी वर्ष 1993-94 से वर्ष 2004-05 की अवधि के लिए आकलित किया गया है।
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जहाँ तक संगठित विनिर्माण क्षेत्र (जीएए द्वारा मापा गया), खाद्य, मादक पेय और तम्बाकू (एफबीटी) और उसके बाद वस्त्रोद्योग (टेक्स) का उद्योग-वार टीएफपीजी कार्यनिष्पादन का संबंध है वे सबसे खराब कार्यनिष्पादक रहे हैं जबकि मशीनरी और परिवहन उपकरण (एमटीई) तथा रसायन (सीएचइएम) उद्योग अच्छे कार्य करने वाले उद्योग हैं। टीएफपीजी-0.41 (एफबीटी के लिए) और 1.47 प्रतिशत प्रति वर्ष (एमटीई के लिए) के बीच बदलता रहता है। पीएफए आकलन हमें वॉटद्योग के लिए 3.05 और चर्मोद्योग (एलइएटीएच) के लिए 0.97 प्रतिशत प्रतिवर्ष की टीएफपीजी की सीमा उपलब्ध कराता है।
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संगठित विनिर्माण क्षेत्र (जीएए द्वारा मापा गया) के टीएफपीजी का अंतर-राज्य कार्यनिष्पादन यह उल्लेख करता है कि बिहार (झारखण्ड सहित), राजस्थान और आंध्र प्रदेश सर्वोत्तम कार्यनिष्पादक के रूप में सामने आते हैं जबकि सबसे खराब कार्यनिष्पादक तमिलनाडु, गुजरात और पंजाब राज्य हैं। बिहार सर्वोच्च टीएफपीजी प्रदर्शित करता है जबकि तमिलनाडु निम्नतम टीएफपीजी दर्शाता है। यह इस बात के ठीक विपरीत है कि तद्नुरूपी राष्ट्रीय परिदृश्य की तुलना में बिहार ने रोजगार की नकारात्मक वृद्धि दर देखी है और तमिलनाडु ने रोजगार की उल्लेखनीय उच्चतर वृद्धि दर देखी है
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भारतीय रिज़र्व बैंक के डेटासेट का उपयोग करते हुए वर्ष 1993-94 से वर्ष 2004-05 की अवधि के लिए 449 कंपनियों की कार्यक्षमता का आकलन आँकड़ा आवरणबद्धता (डीइए) और संभाव्य चयनित सीमांत उत्पान कार्य (एसएफपीएफ) दृष्टिकोण दोनों को नियोजित करते हुए इस अध्ययन में किया गया है। वैकल्पिक अनुमानों के अंतर्गत आकलित माध्यमिक क्षमता स्तर इस तथ्य पर प्रकाश डालते हैं कि भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में सुधार के भारी अवसर विद्यमान हैं। एसएफपीएफ दृष्टिकोण खाद्य, मादक पेय और तम्बाकू (एफबीटी) और वस्त्र-उद्योग (टेक्स) के निम्नतम मध्यमान पर प्रकाश डालता है तथा इसके द्वारा जीएए से उत्पन्न टीएफपीजी की माप को वैध बनाता है। इसके अतिरिक्त इस डेटासेट के लिए माल्मक्विस्ट सूचकांक का उपयोग करते हुए मापा गया टीएफपीजी भी एफबीटी और टेक्स की सबसे खराब कार्यनिष्पादकों के रूप में पहचान करता है जबकि शीर्षतम कार्यनिष्पादक एमटीई और धातु उद्योग हैं। यह इस बात पर कुछ प्रकाश डालता है कि क्यों वॉटद्योग निर्यात मंच पर सबसे खराब कार्यनिष्पादक रहा है और क्यों धातु एवं अभियंत्रण वस्तु उद्योग शीर्षतम कार्यनिष्पादक रहे हैं।
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असंगठित क्षेत्र के लिए टीएफपीजी का आकलन पूँजी स्टॉक श्रृंखलाओं के निर्माण के अनुसार आँकड़ा सीमाओं के कारण बाधित हुआ। इस दृष्टि से असंगठित क्षेत्र के लिए श्रम उत्पादकता का आकलन किया गया है और उसकी तुलना संगठित विनिर्माण क्षेत्र के लिए की गई है। यह पाया गया है कि असंगठित क्षेत्र में श्रम उत्पादकता में बढ़ोतरी कमोबेश अध्ययन के अंतर्गत की अवधि के दौरान संगठित क्षेत्र में वृद्धि के अनुरूप है। तथापि, संगठित और असंगठित क्षेत्रों के बीच श्रम उत्पादकता के 'स्तरों' में वृद्धि अपेक्षाकृत तीव्र और स्थिर है। संगठित विनिर्माण क्षेत्र के पास क्रमशः वर्ष 1989-90, 1994-95 और वर्ष 2000-01 में इसके असंगठित विनिर्माण क्षेत्र में देखी गई श्रम उत्पादकता से 13,14 और 15 गुनी श्रम उत्पादकता है।
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यह जाँच करते समय कि क्या संगठित विनिर्माण क्षेत्र के लिए टीएफपीजी उदारीकरण के बाद की अवधि के दौरान विभिन्न उद्योगों और राज्यों के लिए उच्चतर अथवा निम्नतर रही है, यह पाया गया है कि जीएए के अनुसार सारे उद्योगों (धातु उद्योग को छोड़कर) और समस्त राज्यों (पश्चिम बंगाल और हरियाणा को छोड़कर) में टीएफपीजी ने या तो गिरावट अथवा कोई बढ़ोतरी नहीं देखी है। उत्पादन कार्य दृष्टिकोण में नीति प्रतिरूप केवल महाराष्ट्र के लिए उत्पादन कार्य में बदलाव का उल्लेख करता है। तथापि, यदि अल्पकालिक अवधियों के दौरान टीएफपीजी का औसत लिया जाए तो नब्बे के बाद के दशकों में टीएफपीजी का पुनर्जीवन दिखाई देता है।
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सुधारों के बाद की अवधि में व्यापार प्रतिरोध (आयात शुल्क से आयात भुगतान के अनुपात के प्रतिनिधित्व में) एक नकारात्मक संकेत के साथ यह उल्लेख करते हुए संगठित विनिर्माण क्षेत्र की टीएफपीजी के एक महत्वपूर्ण संघटक के रूप में सामने आते हैं कि व्यापार प्रतिरोधों को समाप्त करने से टीएफपीजी पर एक सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। विनिर्माण क्षेत्र के बढ़ते हुए खुलेपन (निर्यात में वृद्धि से उपलब्ध) भी संगठित विनिर्माण क्षेत्र की टीएफपीजी के साथ सकारात्मक रूप से जुड़े हुए दिखाई देते हैं।
आर. आर. सिन्हा उप महाप्रबंधक प्रेस प्रकाशनी : 2010-2011/1833 |