भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट : दिसंबर 2011 जारी की - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट : दिसंबर 2011 जारी की
22 दिसंबर 2011 भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट : दिसंबर 2011 जारी की भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) में भारत के वित्तीय क्षेत्र की स्थिति का छमाही आकलन प्रस्तुत किया है। वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में वित्तीय क्षेत्र की स्थिरता में निहित जोखिमों के अपने आकलन का प्रसार करने के रिज़र्व बैंक के निरंतर प्रयास को दर्शाया गया है। वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट पहली बार मार्च 2010 में जारी की गई थी और उसके पश्चात् दिसंबर 2010 और जून 2011 में जारी की गई। वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट प्रणालीगत परिप्रेक्ष्य से भारत की वित्तीय क्षेत्र के सुगम मदों का आकलन करती है। इसमें संमष्टि रूप से आर्थिक वातावरण, वित्तीय बाज़ार और संस्थाओं तथा विनियामक और अन्य मूलभूत सुविधाओं से उभरे प्रमुख जोखिमों को मोटे तौर से दर्शाया गया है। यह वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट पहली रिपोर्टों से दो मायनों में भिन्न है। यह जोखिम से प्रणालीगत स्थिरता पर वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (एफएसडीसी) की उप समिति के समेकित अभिमतों को दर्शाती है और इसीलिए वित्तीय स्थिरता के आकलन को अधिक संपूर्णता प्रदान करती है। वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट नए अध्यायों के माध्यम से प्रणालीगत जोखिम की पहचान करने और उसको मापने के द्वारा अपने संसाधनों के निरंतर उन्नयन करने के रिज़र्व बैंक के प्रयासों को भी उजागर करती है। इसके अतिरिक्त, हर भाग के लिए स्थिरता मैप और संकेतक भी तैयार किए गए हैं ताकि पूर्व अवधि के दौरान विभिन्न भागों में जोखिमों का आकलन और उसके विकास का अवलोकन प्रस्तुत किया जा सके। मुख्य-मुख्य बातें • दिसंबर 2011 की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में यह दर्शाया गया है कि घरेलू वित्तीय प्रणाली मज़बूत बनी हुई है। • यह बात प्रणालीगत जोखिम सर्वेक्षण की प्रतिक्रिया में दिखाए गए वित्तीय प्रणाली में विश्वास को साबित करती है
• समष्टि रूप से वित्तीय तनाव की कई जॉंच की गई जो प्रतिकूल समष्टि तौर से आर्थिक विकास को बैंकिंग प्रणाली के लचीलेपन का आकलन करते हैं। इसमें यह पाया गया कि बैंक की पूँजी पर्याप्तता अत्यधिक तनाव में भी विनियामक आवश्यकताओं के ऊपर बनी रही। • वित्तीय स्थिरता मैप और संकेतक - संपूर्ण वित्तीय प्रणाली को प्रभावित करने वाले जोखिम में गति का माप करने के लिए तैयार किए गए मात्रात्मक उपकरण - तथापि जोखिमों के बढ़ने का संकेत देते हैं। समष्टि तौर से आर्थिक वातावरण • घरेलू मॉंग (निजी और सरकारी, उपभोग और निवेश) सभी घटकों में कमी आयी है। • कई कारकों के कारण मुद्रास्फीति दबाव उच्च बना हुआ है। • विदेशी मुद्रा दर के मूल्यह्रास का प्रभाव मुद्रास्फीति पर पड़ा है। पेट्रोल और डिज़ल के मूल्य और न्यूनतम सहायक मूल्य में वृद्धि मौद्रिक नीति उपायों के मॉंग कम करने को प्रभावहिन कर रहे हैं। • आयात उच्च बने रहने के कारण बाह्य क्षेत्र की जोखिम बढ़ गई है जबकि निर्यातों में कुछ कमी आयी है। • राजकोषीय स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। अनुपूरक अनुदानों के लिए अतिरिक्त मॉंग जोखिमों के गिरावट को दर्शाते हैं। वित्तीय बाज़ार • भारतीय बाज़ार विशेषकर, ईक्विटी और करेंसी बाज़ार प्रतिकूल विदेशी गतिविधियों के कारण समीक्षा के अंतर्गत अवधि के दौरान घट-बढ़ वाली बनी रही। • भारत सहित अन्य उभरती बाज़ार वाले देश जहॉं बाह्य घाटा हैं की तुलना में करेंसी मूल्यह्रास उन देशों में अत्यधिक तेज़ रहा जहॉं पर बाह्य अधिशेष है। विभिन्न माध्यमों से इसका प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा :
• ईक्विटी बाज़ार लघू ढॉंचा खासकर डेरिवेटिवज़ के भाग के कुछ मामलों पर निगरानी की आवश्यकता होगी। वित्तीय संस्थाएं - सुदृढ़ता और लचीलापन • वित्तीय सुदृढ़ता संकेतकों (अर्थात् पूँजी पर्याप्ता और आस्ति गुणवत्ता) में कुछ कमी आयी है, किंतु पूँजी पर्याप्तता विनियामक आवश्यकताओं से उच्च बनी हुई है और आस्ति गुणवत्ता संकेतक अन्य समकक्ष देशों के अनुपातों के साथ अनुकूल तुलना में बने हुए हैं। • आगे चलकर, यदि समग्र घरेलू उत्पाद में कमी आती है तो आस्ति गुणवत्ता पर कुछ कमी का प्रभाव पड़ेगा। साथ ही, बासेल III को लागू करने की बाध्यता, बढ़ती अर्थव्यवस्था (संभाव्य कम होने के दर) और वित्तीय समावेशन के कारण अतिरिक्त पूँजी को उगाहनी की आवश्यकता होगी। • उच्च प्रावधानीकरण आवश्यकताएं (उच्चतर गिरावट के कारण) और ब्याज व्यय में वृद्धि के कारण बैंकिंग क्षेत्र की लाभप्रदता पर असर हुआ है। • शहरी बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों ने भी ऋण जोखिम आघातों पर नरमी दर्शाई है। • बीमा और पेंशन क्षेत्र - उनके 'केवल दीर्घावधि' और दीर्घावधि निवेश शैली वित्तीय बाज़ार की स्थिरता पर अतिरिक्त असर करते हैं। भुगतान और निपटान प्रणाली • वास्तविक समय सकल निपटान (आरटीजीएस प्रणाली) जो बाज़ार सहभागियों को दिन के बाद के समय तक व्यापक समूह एक्सपोज़र • बैंकिंग प्रणाली और वित्तीय क्षेत्र एक दूसरे से जुड़ा है। इसका अर्थ है कि कुछ बैंक और संस्थाएं अन्य की तुलना में अधिक जुड़े हैं और कम जुड़े नेटवर्क की तुलना में व्यापक स्त्रोतों से संक्राकम हो सकते हैं। बैंकिंग प्रणाली (जोकि उधार का प्रमुख हिस्सा है) में किसी भी प्रकार की अशांति का प्रभाव उधारदाता के रूप में बीमा कंपनियों और आस्ति प्रबंधन कंपनियों पर पड़ेगा। बैंकों के बीच विपत्ति में निर्भरता • विभिन्न संकेतकों पर आधारित विपत्ति निर्भरता का आकलन यह दर्शाता है कि वर्तमान में विपत्ति का संयुक्त संभाव्यता कम है हालांकि हाल ही में यह कुछ बढ़ीं है। विस्तृत जानकारी घरेलू वित्तीय प्रणाली कुछ कमियों के बावजूद स्थिर बनी हुई है वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट ने यह पाया है कि अंतराष्ट्रीय प्रतिकूल पृष्टभूमि में भी घरेलू वित्तीय प्रणाली स्थिर बनी हुई है। भारत में बाज़ार सहभागियों और स्टेकधारकों ने घरेलू वित्तीय प्रणाली की स्थिरता में अपना विश्वास बनाए रखा है और कड़े तनाव जॉंच ने प्रणाली में लचीलापन ला दिया है। तथापि, वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में कुछ कमज़ोर मदों को दर्शाया गया है जिनपर आगे चलकर कार्रवाई करना आवश्यक हो जाएगा। कमज़ोर वैश्विक वृद्धि की संभावनाएं और यूरोप के सरकारी ऋण संकट ने बाह्य क्षेत्र की संवेदनशीलता को बढ़ा दिया है। साथ ही, घरेलू विकास कमज़ोर हुआ जबकि मुद्रास्फीति उच्च बनी रही। कच्चे तेल और अन्य आयात माल (जो समग्र उत्पादन के इनपूट है) में बढ़ोतरी से विदेशी मुद्रा मूल्यह्रास पर मुद्रास्फीतिकारी प्रभाव पड़ता है। पेट्रोल और डि़ज़ल मूल्यों में बढ़ोतरी और न्यूनतम सहायक मूल्यों का संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर प्रपात की तरह गिरता हुआ प्रभाव पड़ता है और मॉंग को बेअसर करता दिखाई देता है जिससे मौद्रिक नीति उपायों का प्रभाव कम हो जाता है। मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाएं जो उच्च बनी हुई है, वो भी मूल्य स्तर के घटनेवाली गति से जुड़ती है। साथ ही राजस्व संग्रहण चालू वर्ष की पहली छमाही में अनुमान से कम रहने के कारण राजकोषीय स्थिति चुनौतिपूर्ण बनी हुई है। वित्तीय बाज़ारों के घट-बढ़ पर निगरानी रखना आवश्यक भारतीय वित्तीय बाज़ारों ने सामान्य स्तर से अधिक घट-बढ़ और अनिश्चितता का अनुभव किया है। घरेलू कंपनियों का विदेशी मुद्रा में वर्गीकृत वित्त के अंतरराष्ट्रीय स्रोतों पर निर्भरता अन्य बातों के साथ-साथ विभेदक ब्याज दर के कारण बढ़ रही है। भारतीय रुपया का हाल का मूल्यह्रास कंपनी क्षेत्र की ऐसी कंपनियों के लचीलेपन की जॉंच करेगा जिनके तुलन-पत्रों में करेंसी का असंतुलन है। इस अवधि के दौरान ईक्विटी बाज़ार भी निम्नतर रहा। उभरते ईक्विटी बाज़ार लघु ढॉंचा खासकर, डेरिवेटिवज़ व्यापार जो उच्चतर नकदी बाज़ार कुल बिक्री के बगैर तेज़ी से बड़ा और डेरिवेटिवज़ हिस्से में स्वामित्ववाले व्यापार के हिस्से में बढ़ोतरी पर निगरानी की जरूरत है। पूँजी पर्याप्तता में साधारण कमी और अनर्जक आस्तियों में बढ़ोतरी के बावजूद भारतीय बैंक मज़बूत वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार हाल ही में खासकर खुदरा, स्थावर संपदा, मूलभूत सुविधा और प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्रों में पूँजी पर्याप्तता में साधारण कमी और अनर्जक आस्तियों के स्तरों में बढ़ोतरी के बावजूद भारतीय बैंक मज़बूत बने हुए हैं। ऊर्जा क्षेत्र को ऋण की वृद्धि दर समग्र बैंकिंग क्षेत्र को ऋण की वृद्धि दर से काफी उच्च हुई है और अत्यधिक आर्थिक मंदी में स्पष्ट हो सकती है। यूरोपीय सरकारी बाण्ड बाज़ारों की संक्रमण अंतरराष्ट्रीय बैंकों पर तेज़ी से बढ़ने के कारण डिलिवरेजि़ग और आगे बढ़ेगी। इससे भारतीय बैंकों और कंपनियों दोनों के लिए विदेशी मुद्रा उधार की लागत बढ़ेगी। घरेलू विकास में कमी के कारण भी बैंकिंग प्रणाली का जोखिम बढ़ेगा। जबकि भारतीय बैंक मज़बूत स्थिति के साथ बासेल III में अंतरित होगी नए मानकों के लिए उधार जुटाने में समायोजन करने की आवश्यकता होगी। संस्थाओं के लचीलेपन का आकलन करने के लिए अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों पर कई तनाव जॉंच किए गए। तनाव जॉंच ने बैंकों की नाजुकता और ऋण केंद्रीकरण, चलनिधि, विदेशी मुद्रा, ब्याज दर तथा ईक्विटी मूल्य जोखिम के लचीलेपन का आकलन किया। प्रणाली स्तर की आस्ति गुणवत्ता पर विभिन्न समष्टि तनाव जॉंच भी की गई। इस वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में पहली बार पैनल रग्रेशन पर आधारित बैंक समूहवार समष्टि तनाव जॉंच और मल्टीवेरिन्ट रेग्रेशन पर आधारित क्षेत्रवार समष्टि तनाव जॉंच की गई है। उक्त कार्य ने यह दर्शाया है कि अत्यधिक ऋण जोखिम तनाव वातावरण के अंतर्गत कुछ एकल बैंकों की पूँजी पर्याप्तता प्रभावित होने के बावजूद बैंक उचित रूप से लचीले रहेंगे। वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट ने यह दर्शाया है कि विनियामक व्यवस्थाऍं मज़बूत बनाई जा रही है जो मौजूदा अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों और उत्कृष्ट प्रणालियों के अनुरूप समेकित दृष्टिकोण पर ज़ोर देते हैं। वित्तीय बाज़ार मूलभूत सुविधाओं ने किसी बड़ी रूकावट के बिना कार्य करना जारी रखा। वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में यह पाया गया कि भुगतान और निपटान प्रणाली सुचारू बने रहे किंतु आंतर-दिवसीय चलनिधि की प्रवृत्ति पर निगरानी की आवश्यकता होगी। जोखिम आकलन के लिए नए संसाधन व्यापक परामर्श के माध्यम से प्रणालीगत जोखिमों के अनुपूरक आकलन के अत्यधिक महत्व को देखते हुए इस वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में जोखिम आकलन के लिए कुछ नए संसाधन लागू किए गए हैं। यह पिछले वर्ष की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में लागू नेटवर्क मॉडल के अतिरिक्त प्रणालीगत जोखिम सर्वेक्षण और प्रणालीगत चलनिधि संकेतक है। बैंकों, वित्तीय संस्थाओं, बीमा कंपनियों, आस्ति प्रबंध कंपनियों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, प्राथमिक व्यापारियों और ब्रोकिंग कंपनियों के चयनित एकल व्यक्तियों का प्रणालीगत जोखिम सर्वेक्षण आयोजित किया गया। सर्वेक्षण में पाया गया कि वित्तीय प्रणाली को अत्यधिक जोखिम बैंकों की आस्ति गुणवत्ता में गिरावट से होता है और उसके बाद विदेशी मुद्रा दर घट-बढ़, वैश्विक जोखिम, उच्च मुद्रास्फीति से जोखिम और उच्च ब्याज दरों सहित अत्यधिक बाज़ार घट-बढ़ से जोखिम होता है। प्रणालीगत चलनिधि संकेतक (एसएलआइ) दर्शाते हैं कि सितंबर और अक्टूबर 2011 में निधियन कठिनाईयों में सामान्य वृद्धि हुई। एक नेटवर्क मॉडल (पिछली वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में लागू) जो शुरूआत में एक सनकी समस्या से उभरी संक्रमक जोखिम जो आगे चलकर व्यापक हो जाती है का विश्लेषण करना चाहा है, उसे इस वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में अपग्रेड किया गया ताकि संपूर्ण वित्तीय प्रणाली में अंतर संबंध का आकलन किया जा सके और बैंकिंग प्रणाली और वित्तीय प्रणाली के नेटवर्क के स्वरूप की और आगे जॉंच की जा सके। विश्लेषण में यह दर्शाया गया है कि भारतीय बैंकिंग प्रणाली एकत्रित बनी हुई है और उल्लेखनीय रूप से टियर समूह वार भी है। उसमें यह भी दर्शाया गया है कि चलनिधि उपलब्धकर्ता होने के नाते बीमा और म्यूचूअल निधि बैंकिंग प्रणाली में किसी भी प्रकार की उथल-पुथल के लिए संवेदनशील है। बैंकों और एकल बैंकों से जुड़े विशिष्ट समूहों के बीच बैंकिंग क्षेत्र में विपत्ति निर्भरता को रोकने के लिए स्थिरता उपायों को भी बढ़ा दिया गया। अंतत: ऋण जोखिम परिस्थितियों का बिगड़ना बैंक जोखिम के अति प्रमुख स्रोतों में से है। इसे ध्यान में रखते हुए वित्तीय प्रणाली पर समष्टि तौर से आर्थिक आघातों के प्रभाव पर ध्यान देने के लिए कई समष्टि वित्तीय तनाव जॉंच की गई है। हाल की अवधि में संपूर्ण बैंकिंग प्रणाली की विपत्ति की संभावना काफी कम दिखाई देती है। साथ ही, यह मानते हुए कि कम-से-कम एक बैंक पर विपत्ति आती है विपत्ति वाले बैंकों की संभाव्य संख्या पिछले एक डेढ़ वर्ष के लिए कम और स्थिर बनी रहेगी। अगली वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट जून 2012 को जारी की जाएगी। अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2011-2012/984 |