भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट - दिसंबर -2013 जारी किया - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट - दिसंबर -2013 जारी किया
30 दिसंबर 2013 भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट - दिसंबर -2013 जारी किया रिज़र्व बैंक ने आज वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर)- दिसंबर 2013 जारी किया। इस श्रृंखला की आठवीं कड़ी में दिसंबर 2013 की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट को जनवरी 2014 से अमरीकी फेडरल रिजर्व द्वारा बांड खरीद की सुविधा को धीरे-धीरे कम करने के कार्यक्रम की घोषणा से बाजार पर कुछ सकारात्मक प्रतिक्रिया की पृष्ठभूमि में जारी किया जा रहा है। इस सुविधा में कमी की शुरुआत से वैश्विक बाजारों में सामान्य चलनिधि और ऋण स्थितियों एवं जोखिम के बेहतर मूल्य निर्धारण में भी एक समायोजित प्रतिलाभ का संकेत प्राप्त होगा। इसका मतलब परिणामी अस्थिरता के साथ कुछ आस्तियों का पुनर्मूल्यन होगा। पिछले कुछ महीनों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था को चलनिधि की अत्यधिक वापसी के प्रति अधिक लचीला बनाने और वृद्धि के लिए अस्थिर बाहरी पूंजी पर निर्भरता को कम करने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। प्रत्येक छह माह पर प्रकाशित होनेवाली एफएलआर का लक्ष्य वित्तीय प्रणाली की अतिसंवेदनशीलताओं के प्रति सतर्कता निर्माण करना, वित्तीय संस्थाओं को तनावों से उबरने के संबंध में जानकारी प्रदान करना और वित्तीय प्रणाली सुदृढ़ता की सामान्य रूप से जांच करना। रिपोर्ट में वित्तीय स्थिरता के प्रति जोखिमों पर वित्तीय स्थिरता और विकास समिति (एफएसडीसी) की उप-समिति के सामूहिक अनुमान दर्शाए गए हैं। मुख्य मुख्य बातें • यू एस फेडरल रिज़र्व ने जनवरी 2014 से शुरू होने वाले अपने बांड खरीद कार्यक्रम से बहिर्गमन तथा बांडों की खरीद में कमी एवं अनिश्चितता की समयावधि पर अब विराम लगा दिया है। तथापि वित्तीय बाज़ार अस्थिरता को आगे जाकर सुविधाओं में कमी के माध्यम से व्यवस्थित किया जा सकेगा। (पैरा 1.1-1.2, अध्याय I) • उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) और उभरते बाज़ारों तथा विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईएमडीईज़) के बीच वैश्विक वृद्धि के साथ-साथ मुद्रास्फीतिकारी विभिन्नता की समरूपता, विनिमय पर अस्थिरता का संभावित स्रोत है तथा इसके परिणामस्वरूप जोखिम के प्रत्येक पुनर्मूल्यन के साथ अंतर्राष्ट्रीय प्रवाह हो सकते हैं। (पैरा 1.4-1.5, अध्याय I) • बांडों की कम खरीद की शुरुआत में होनेवाले विलंब से भारत को चालू खाता घाटा (सीएडी) को समायोजित करने और अपने विदेशी मुद्रा भंडार की कमी को पूरा करने के द्वारा बफर तैयार करने का अवसर मिला है। तथापि धीमी वृद्धि के बीच उच्च मुद्रा-स्फीति के रहते हुए समष्टि आर्थिक समायोजन पूर्णता से काफी दूर है। घरेलू बचत में कमी और उच्च राजकोषीय घाटा भारत के लिए चिंता के अन्य विषय हैं। (पैरा 1.8 -1.23, अध्याय I) • आस्ति संरचना को वित्तीय निवेश की ओर बदलाव के बीच उछाल अवधि के विस्तार और अत्यधिक क्षमताओं द्वारा कंपनी कार्यनिष्पादन को कम आंकना जारी है। (पैरा 1.24 -1.27, अध्याय I) • आवास की कीमतें तथा आवास वित्त कंपनियों द्वारा आवास के लिए बकाया ऋण पिछले कुछ वर्षों के दौरान अपेक्षाकृत तेज़ गति से बढ़े हैं। (पैरा 1.32, अध्याय I) • बदलती हुई जनसांख्यिकी की पृष्ठभूमि के समक्ष भारत में अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा व्यापकता राजकोषीय बाध्यताओं को देखते हुए पेंशन प्रणाली के विस्तार के लिए चुनौतियां खड़ी करेंगी। राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) का गठन सरकारी कर्मचारियों और निजी क्षेत्रों के कामगारों की सेवा के लिए किया गया था। (पैरा 1.35 -1.37, अध्याय I) • बैंक क्षेत्र के प्रति जोखिम इस वर्ष जून में पूर्ववर्ती वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद से और बढ़ गए हैं। बैंकिंग स्थिरता संकेतक में शामिल सभी प्रमुख जोखिम आयाम बैंकिंग क्षेत्र में अति संवेदनशीलता में बढ़ोतरी दर्शाते हैं। (पैरा 2.1, अध्याय II) • नेटवर्क उपकरणों का उपयोग ऋण में कमी के जोखिम के कारण संक्रामक प्रभाव के आकलन के लिए किया गया है। किसी प्रमुख कंपनी अथवा किसी प्रमुख कंपनी समूह की असफलता ऐसी कंपनियों के प्रति बैंकों की भारी संख्या के एक्स्पोज़र के कारण बैंकिंग प्रणाली में संक्रामकता की शुरूआत कर सकती है। (पैरा 2.4 – 2.17 , अध्याय II) • आस्ति गुणवत्ता अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) के लिए एक प्रमुख चिंता बनी हुई है। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के सकल अनर्जक आस्ति अनुपात के साथ-साथ उनके पुर्नसंरचित मानक अग्रिम अनुपात बढ़े हैं। अत: कुल दबावग्रस्त अग्रिम अनुपात उल्लेखनीय रूप से मार्च 2013 के 9.2 प्रतिशत से सितंबर 2013 के अंत में कुल अग्रिमों के 10.2 प्रतिशत तक बढ़ गए। (पैरा 2.28 – 2.29 , अध्याय II) • पांच क्षेत्र नामत: मूलभूत सुविधा, लौह एवं इस्पात, वस्त्रोद्योग, उड्ययन एवं खनन मिलकर अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के कुल अग्रिमों का 24 प्रतिशत हैं और वे उनके कुल दबावग्रस्त अग्रिमों का लगभग 53 प्रतिशत हैं। (पैरा 2.34 – 2.37, अध्याय II) • ऋण जोखिम पर समष्टि तनाव जांच यह प्रस्तावित करते हैं कि यदि प्रतिकूल समष्टि आर्थिक स्थितियां बनी रहती हैं तो वाणिज्यिक बैंकों के ऋण गुणवत्ता में और कमी आ सकती है। तथापि सुधरी हुई स्थितियों में ऋण गुणवत्ता की वर्तमान प्रवृत्ति वर्ष 2014-15 की दूसरी छमाही के दौरान प्रत्यावर्तित हो सकती है। (पैरा 2.51 – 2.61, अध्याय II) • भारत वैश्विक विनियामक सुधार कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए प्रतिबद्ध है तथा इसने इस मोर्चे पर भारी प्रगति की है। यद्यपि फर्में और बाज़ार जितना बड़ा उतनी असफलता (टीबीटीएफ) को समाप्त करने के प्रति विनियामक दृष्टिकोण के समायोजन की शुरूआत कर रहे हैं, हाल के अनुसंधान ऐसी संस्थाओं को सरकारी सहायता की जारी आशा का संकेत देते हैं। (पैरा 3.1 – 3.5, अध्याय III) • बैंकों के साथ अंतर-शुद्धीकरण के कारण मुद्रा बाज़ार म्युच्युअल फण्डों (एमएमएमएफ) द्वारा चलनिधि का दबाव महसूस किया जाता है जब कभी बैंकों की शोधन अपेक्षाएं अधिक और एक ही समय होती हैं। अंतर-शुद्धीकरण की मात्रा में कमी के लिए विनियामक उपाय प्रणाली में चलनिधि जोखिम की कमी में सफल होते हुए दिखाई देते हैं। (पैरा 3.13 – 3.17, अध्याय III) • ब्याज दर डेरिवेटिव के लिए भारत का घरेलू बाज़ार अभी कुछ आधारभूत निर्माण खंडों के अभाव के कारण शुरू नहीं हुआ है। इन मुद्दों के समाधान के प्रयास जारी हैं। (पैरा 3.22 – 3.26, अध्याय III) • बैंकिंग क्षेत्र, कंपनी बांड बाज़ार और बीमा क्षेत्र के लिए केंद्रीय संग्राहकों के गठन की कार्रवाई शुरू हो चुकी है। इस प्रयास से इन बाज़ारों में सूचना असमानता को दूर करने की आशा की जाती है। (पैरा 3.31 – 3.37, अध्याय III) • यह पाया गया है कि उन कंपनियों के ईक्विटी मूलय जिनमें प्रवर्तकों ने अपने शेयरों के उल्लेखनीय अंश गिरवी रखे हैं वे सापेक्षिक रूप से शुद्धीकरण के अवसरों के दौरान व्यापक बाज़ारों की अपेक्षा अधिक अस्थिर हैं। (पैरा 3.51 – 3.55, अध्याय III) अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2013-2014/1294 |