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भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्रथम वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट जारी की जिसके अनुसार वित्तीय स्थिरता पर सीमित जोखिम है लेकिन निरंतर आधार पर निगरानी आवश्यक है

25 मार्च 2010

भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्रथम वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट जारी की जिसके अनुसार
वित्तीय स्थिरता पर सीमित जोखिम है लेकिन निरंतर आधार पर निगरानी आवश्यक है

अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में की गई घोषणा के अनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक ने अगस्त 2009 में वित्तीय स्थिरता इकाई की स्थापना की। अक्टूबर 2009 में मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही समीक्षा में वित्तीय प्रणाली में पारदर्शिता लाने तथा विश्वास बढ़ाने में भारत की आवधिक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) का विशेष उल्लेख किया गया था। आज प्रकाशित वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) इन रिपोर्टों की पहली रिपोर्ट है और निहित ज्ञान को संस्थागत रूप से तैयार करने और वित्तीय स्थिरता को नीति ढाँचे का एक आंतरिक चालक बनाने का एक प्रयास है।

सामान्य रूप से वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट जोखिमों का स्वरूप, उसकी मात्रा और उसके प्रभाव की समीक्षा पर ध्यान केंद्रित करेगा जो समष्टि आर्थिक वातावरण, वित्तीय संस्थाओं, बाज़ारों और मूलभूत सुविधाओं को प्रभावित करता है। यह रिपोर्ट तनाव जाँच के माध्यम से वित्तीय क्षेत्र में लचीलेपन का मूल्यांकन भी करेगा। यह आशा है कि वित्तीय स्थिरता रिपोर्टें वित्तीय प्रणाली में जोखिमों को कम करने के लिए पूर्व निर्धारित नीति प्रतिक्रियाओं को निदेश देने में एक प्रमुख उपाय के रूप में उभरेगी।

वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट आनेवाले महीनों में उभर रहे संस्थागत व्यवस्थाओं के लिए मुख्य अनुपूरक होगी। प्रस्तावित वित्तीय स्थिरता और विकास समिति (एफएसडीसी) के विशिष्ट घटक और उसकी भूमिका अभी तय करनी बाकी है। किंतु वित्तीय स्थिरता के संबंध में भविष्य की किसी भी व्यवस्था में रिज़र्व बैंक की भूमिका की प्रमुखता जारी रहेगी।

यह प्रथम रिपोर्ट भारत में मौजूदा वित्तीय प्रणाली की विस्तृत जानकारी देती है तथा पूर्व में किए गए वित्तीय स्थिरता के प्रयासों पर एक पृष्ठभूमि भी देती है।

वैश्विक दृष्टिकोण

संकट के संबंध में मज़बूत और समेकित वैश्विक नीति प्रतिक्रियाओं ने वैश्विक बाज़ारों के संबंधित स्थिरीकरण को सुविधा प्रदान की है और वित्तीय संकट के बाद खासकर 2009 की दूसरी छमाही में ऋण जोखिम की चिंताओं को कम किया है। तथापि, विकास की संभावनाओं तथा वित्तीय स्थिरता के बारे में अभी भी अनिश्चितता बनी हुई है। असमान वैश्विक सुधार ने इस अनिश्चितता को बढ़ा दिया है। साथ ही, ग्रीस और कुछ अन्य यूरा क्षेत्र के राष्ट्रों के राजकोषीय संकट के कारण देश पर ही आए ऋण जोखिम की चिंताओं को और अधिक बढ़ा दिया है।

जबकि वित्तीय संकट के दौरान विकसित अर्थव्यवस्थाओं में माँग की कमी के कारण वैश्विक असंतुलन में कुछ कमी आयी किंतु असंतुलन से जुड़ी ढाँचागत समस्याएं बनी हुई है। आर्थिक सुधार के साथ इन संतुलन का पुन: आने के कुछ संकेत हैं जो संकट के दिनों से पहले के दिनों की याद दिलाते हैं और यह एक चिंता का विषय बन सकता है। हालांकि, अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में भारतीय वित्तीय प्रणाली का एक्सपोज़र सामान्यत: कम है फिर भी भारतीय वित्तीय क्षेत्र पर वैश्विक समष्टि अर्थव्यवस्था के झटकों का संक्रिय प्रभाव पड़ सकता है।

भारत के लिए दृष्टिकोण

विकास में सुधार के संकेत दिखाई दे रहे हैं। अत: मौद्रिक नीति की निकासी की प्रक्रिया पहले ही शुरू हो गई है। वित्तीय प्रोत्साहन उपायों से बाहर निकलने का कार्य वर्ष 2010-11 के लिए केंद्रीय बज़ट से शुरू हो गया है जिसमें राजकोषीय समेकन की प्रक्रिया में वापस लौटने की प्रतिबद्धता दर्शाई गई है। घाटा और ऋण स्तरों को कम करने के सरकार के इरादे को ध्यान में रखते हुए तथा घरेलू आर्थिक विकास पर सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ एसएण्डपी ने हालही में भारत पर अपने दृष्टिकोण का ‘नकारात्मक’ से ‘स्थिर’ के रूप में उन्नयन किया है।

तथापि आगे बढ़ते हुए विभिन्न कारक हैं जो मुद्रास्फीतिकारी दबावों और अपेक्षाओं पर, सरकार के उधार कार्यक्रमों के प्रबंधन पर और पूँजी प्रवाहों सहित वित्तीय स्थिरता पर विचार कर सकते हैं।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

बैंकिंग क्षेत्र

  • बैंकिंग क्षेत्र व्यापक रूप से सुदृढ़ बना हुआ है। बैंक उच्चतर मूल पूँजी तथा सहनीय वित्तीय सहायता के साथ विनियामक पूँजी पर्याप्तता अनुपातों के अंतर्गत सुपूँजीकृत बने हुए हैं और इससे वित्तीय स्थिरता बनी हुई है।

  • ऋण और बाज़ार जोखिमों की तनाव जाँच यह दर्शाती है कि बैंक के पास तनाव के असंभव्य स्तरों को झेलने की योग्यता है।

  • ऋण गुणवत्ता मज़बूत बनी हुई है। कुल जमाराशियों में कम लागत के चालू और बचत खाता जमाराशियों का हिस्सा अधिक है। बैंकों को जोखिम रहित सरकारी प्रतिभूतियों में अपने देयताओं का न्यूनतम प्रतिशत धारित करना आवश्यक होता है। इससे काफी हद तक चलनिधि और दिवालीयेपन के मामले को सुलझाया जा सकता है।

  • तनाव जाँच यह संकेत देते हैं कि बैंकिंग क्षेत्र सुगम रूप से लचीला है और यह माना गया है कि बेहद नाजुक स्थिति में भी यदि सभी पुर्नसंगठित मानक अग्रिम अनर्जक आस्तियाँ हो जाती है तब भी तनाव इतना व्यापक नहीं होगा।

  • बैंकों के मार्जिन पर निवेश संविभाग पर मार्क टू मार्केट प्रभाव से, अधिक प्रावधान की अपेक्षा तथा 1 अप्रैल 2010 से दैनिक आधार पर बचत बैंक जमाराशियों पर ब्याज की गणना से दबाव पड़ सकता है।

  • मौजूदा स्थिति में आस्ति देयता प्रबंधन (एएलएम) विश्लेषण कोई विशिष्ट असंतुलन का संकेत नहीं दर्शाता है। तथापि हाल ही के समय में ऋण वृद्धि अधिकतर मूलभूत सुविधा और वाणिज्यिक स्थावर संपदा जैसे क्षेत्रों में हुई है। इन दोनों में ही सावधि निधीयन की आवश्यकता होती है। इसके परिणामस्वरूप आस्ति देयता प्रबंधन असंतुलनों के लिए निरंतर आधार पर सावधानीपूर्वक निगरानी रखनी आवश्यक होगी।

  • कतिपय संस्थान जो उच्च स्तरों पर बने रहते है में थोक जमाराशियों पर अत्यधिक निर्भरता जमाराशि आधार की लागत और स्थिरता पर प्रभाव डाल सकते है। कंपनी क्षेत्र का तेज़ गति से विस्तार और मौजूदा निवेश मानदण्डों के कारण बैंकों को उपलब्ध दायरा कम हो जाता है और इसे संबोधित करना आवश्यक है।

  • जबकि ऋण और ब्याज दर आघातों के प्रति वाणिज्यिक बैंकों की अनुकूलता समय के दौरान उन्नत हुई है। चलनिधि परिदृश्य विश्लेषण कुछ संभावित जोखिम दर्शाते हैं।

पारिवारिक और कंपनी क्षेत्र

  • परिवारों और कंपनियों के तुलनपत्र यह प्रस्तावित करते हैं कि वित्तीय प्रणाली इन क्षेत्रों में व्यापक सुविधा के जोखिम के लिए खुली हुई नहीं है।

  • असुरक्षित कंपनी विदेशी मुद्रा निवेश लेने की तिव्रता बैंकिंग क्षेत्र के प्रति एक संभावित जोखिम के ॉााटत पर निर्माण करती है।

पूँजी खाते का प्रबंधन

  • पूँजी प्रवाहों के संबंध में निश्चितता पूँजी खाते के प्रबंध के लिए एक चुनौती बन सकती है। यद्यपी वर्तमान समय में बहुत कम प्रमाण है कि अंतर्वाहों की मात्रा अर्थव्यवस्था की आमेलन क्षमता से अधिक हुई हो। जबकि इन चुनौतियों पर कार्रवाई करने के लिए नीति विकल्पों की एक सूची है, वैकल्पिक नीति मिश्रण का अर्थव्यवस्था की उभरती हुई विकसित स्थिति तथा वित्तीय स्थिरता अवधारणाओं को ध्यान में रखकर सावधानी से समायोजित प्रयास करना होगा।

गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र

  • यह क्षेत्र कोई प्रणालीगत मुद्दे सृजित किए बिना इस संकट के दबाव का प्रबंध करने में समर्थ था। तथापि, आस्ति देयता प्रबंध (एएलएम) असंतुलन, गुणवत्ता तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और अन्य वित्तीय क्षेत्र संस्थाओं के बिच अंत: संबद्ध प्रवाहों की निकट से निगरानी करनी होगी।

  • गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र के बढ़ते हुए महत्त्व को देखते हुए प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण जमाराशि स्वीकार नहीं करनेवाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए पर्यवेक्षी व्यवस्था को अंतर्निहित जोखिमों की एक और अधिक मज़बूत आकलन के लिए सुदृढ़ करने की आवश्यकता होगी।

वित्तीय संघ

  • प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण वित्तीय संस्थाओं (भारत में वित्तीय संघ (एफसी) कहे जाने वाले) के लिए पहले से ही एक निगरानी और पर्यवेक्षी ढाँचा लागू है जिसे सुदृढ़ किए जाने की आवश्यकता है। अन्य क्षेत्रवार नियंत्रकों के परामर्श से रिज़र्व बैंक वित्तीय संघों के विनियमन और पर्यवेक्षण के लिए एक परिवर्धित ढाँचे के कार्यान्वयन की प्रक्रिया में लगा है।

वित्तीय बाज़ार और मूलभूत सुविधा क्षेत्र

  • भविष्य में वित्तीय बाज़ारों और उत्पाद विकसित करने में वास्तविक चुनौती बैंकिंग प्रणाली से जोखिमों के विकेंद्रीकरण की होगी। भारतीय संदर्भ में बाज़ार को विकसित करते समय मुख्य समस्याओं में से एक बैंकों से मध्यस्थता को दूर करने की प्रक्रिया असली है और दूसरा, जहाँ कभी भी बैंक तथा गैर-बैंक कंपनियाँ शामिल हैं वहाँ यह स्पष्ट है कि एक विवेपूर्ण ढाँचे के भीतर जोखिमों का पारदर्शी नियंत्रण सुनिश्चित करना होगा।

  • केंद्रीय काउंटर पार्टियाँ वित्तीय बाज़ारों के सहज कार्यकलाप के लिए महत्त्वपूर्ण तत्वों के लिए तथा व्युत्पन्नी बाज़ारों द्वारा लाए गए प्रणालीगत जोखिम कम करने के साधन के रूप में उभरी है। ये संस्थाएं लगातार प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण बाज़ार संस्थाएं बन रही हैं और मज़बूत जोखिम प्रबंध प्रणालियों के लिए और सुदृढ़ता के साथ इनका विनियमन किया जाना आवश्यक है। उनकी पूँजी, मार्जिन और संपार्श्विक अपेक्षाओं का एक विवेकपूर्ण और प्रणालीगत की स्थिरता परिप्रेक्ष्य से आकलन किए जाने की आवश्यकता है।

  • कानूनी मामलों के निपटान में देरी भारतीय संदर्भ में खासकर अशोध्य कार्रवाईयों के मामले में एक प्रमुख चिंता है। इस संबंध में विधायी प्रयास अपेक्षित है।

डेटा मामले

  • भारत ने अपने आँकड़ा प्रसारण मानकों को बढ़ाने में उल्लेखनीय प्रयास किया है। वित्तीय संस्थाओं, पारिवारिक ऋण ग्रस्तता की अंत: संबंद्धता के क्षेत्र में ऑंकड़ा अंतरालों को दूर किए जाने तथा वाणिज्यिक वास्तविक भूसंपदा निवेश जैसे कतिपय खण्डों में आस्ति कीमतों पर एक प्रणाली स्तर डेटा बेस तैयार किए जाने की आवश्यकता है।

जी. रघुराज
 उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2009-2010/1285

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