भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण घरेलू बैंकों (डी-एसआईबी) पर कार्रवाई हेतु रूपरेखा जारी किया - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण घरेलू बैंकों (डी-एसआईबी) पर कार्रवाई हेतु रूपरेखा जारी किया
22 जुलाई 2014 भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण घरेलू बैंकों (डी-एसआईबी) भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण घरेलू बैंकों (डी-एसआईबी) पर कासर्रवाई हेतु रूपरेखा जारी की। हाल के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान यह देखा गया कि कुछ बड़ी और व्यापक रूप से अंत:संबद्ध वित्तीय संस्थाओं द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं ने वित्तीय प्रणाली की व्यवस्थित कार्यप्रणाली में बाधा उत्पन्न की जिसके परिणामस्वरूप वास्तविक अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। वित्तीय स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए कई क्षेत्राधिकारों में सरकारी हस्तक्षेप आवश्यक समझा गया। सार्वजनिक क्षेत्र के हस्तक्षेप की लागत और नैतिक जोखिम में परिणामी वृद्धि के लिए आवश्यक है कि भविष्य की विनियामक नीति का लक्ष्य प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण बैंकों (एसआईबी) की असफलता की संभावना और इन बैंकों की असफलता के प्रभाव को कम करना होना चाहिए। अक्टूबर 2010 में वित्तीय स्थिरता बोर्ड (एफएसबी) ने सिफारिश की थी कि सभी सदस्य देशों को अपने-अपने क्षेत्राधिकारों में प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण वित्तीय संस्थाओं (एसआईएफआई) के जोखिमों को कम करने के लिए एक रूपरेखा शुरू करने की आवश्यकता है। बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासल समिति ने वैश्विक प्रणालीगत महत्वपूर्ण बैंकों (जी-एसआईबी) और इन वैश्विक प्रणालीगत महत्वपूर्ण बैंकों के लिए लागू अतिरिक्त हानि अवशोषक पूंजी आवश्यकताओं के आकार की पहचान करने के लिए नवंबर 2011 में एक रूपरेखा तैयार की थी। बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासल समिति ने इसके अतिरिक्त सभी सदस्य बैंकों से अपेक्षा की कि वे प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण घरेलू बैंकों (डी-एसआईबी) के लेनदेन के लिए एक विनियामक रूपरेखा अपनाएं। आज जारी रूपरेखा प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण घरेलू बैंकों की पहचान करने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा अपनाई जाने वाली पद्धति और उन अतिरिक्त विनियामक/पर्यवेक्षी नीतियों पर चर्चा की गई जिसके अधीन प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण घरेलू बैंक होंगे । भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अपनाई गई आकलन पद्धति एक बैंक के घरेलू महत्व को प्राप्त करने के लिए उचित संशोधनों के साथ वैश्विक प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण बैंकों की पहचान करने के लिए मुख्य रूप से बीसीबीएस पद्धति पर आधारित है। आकलन के लिए प्रयोग किए जाने वाले सूचक हैं: आकार, अंत:संबद्धता, प्रतिस्थापन और जटिलता। प्रणालीगत महत्व के परिकलन के लिए चुने गए बैंकों के नमूने के आधार पर बैंकों के तुलनात्मक संयुक्त प्रणालीगत महत्व की लब्धि का परिकलन किया जाएगा। भारतीय रिज़र्व बैंक एक कट-ऑफ स्कोर निर्धारित करेगा जिससे ऊपर बैंकों को प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण घरेलू बैंक माना जाएगा। आरोही क्रम में बैंकों के प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण स्कोर के आधार पर बैंकों को चार विभिन्न समूहों में रखा जाएगा और उन्हें अपने-अपने समूहों के आधार पर जोखिम भारित आस्तियों की 0.20% से 0.80% तक सामान्य इक्विटी टीयर 1 पूंजी आवश्यकता रखना जरूरी होगा। 31 मार्च 2013 के आंकड़ों के आधार पर यह अपेक्षा की जाती है कि विभिन्न समूहों के अंतर्गत लगभग 4 से 6 बैंकों को घरेलू प्रणालीगत महत्वपूर्ण बैंकों के रूप में पदनामित किया जाएगा। प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण घरेलू बैंक वित्तीय प्रणाली के जोखिमों के आधार पर अलग-अलग पर्यवेक्षी आवश्यकताओं तथा उच्चतर पर्यवेक्षण सघनता के अधीन होंगे। प्रणालीगत रूप से लब्धि के महत्व की गणना वार्षिक अंतराल पर की जाएगी। घरेलू प्रणालीगत महत्वपूर्ण बैंकों के रूप में वर्गीकृत बैंकों के नाम वर्ष 2015 से शुरू कर प्रत्येक वर्ष अगस्त माह में प्रकट किए जाएंगे। पृष्ठभूमि प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण घरेलू बैंकों पर कार्रवाई के लिए प्रारूप रूपरेखा को विचारों और टिप्पणियों के लिए 2 दिसंबर 2013 को रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर डाला गया था। प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण घरेलू बैंकों पर कार्रवाई के लिए प्रारूप रूपरेखा को अंतिम रूप देते समय प्रारूप रूपरेखा पर प्राप्त विचारों और टिप्पणियों को ध्यान में रखा गया है। 1 अप्रैल 2014 को जारी प्रथम द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य में घोषणा की गई थी कि प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण घरेलू बैंकों के निपटान के लिए प्रारूप रूपरेखा पर प्राप्त टिप्पणियों/प्रतिसूचना के आधार पर अंतिम रूपरेखा मई 2014 के अंत में जारी की जाएगी। अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2014-2015/155 |