30 जून 2017 भारतीय रिज़र्व बैंक ने जून 2017 की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट जारी की भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) जून 2017 जारी की जो एक छमाही और इस श्रृंखला में 15वां प्रकाशन है। वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट भारत की वित्तीय प्रणाली की स्थिरता के समग्र आकलन और वैश्विक और घरेलू कारकों से उत्पन्न जोखिमों के प्रति इसकी आघात सहनीयता को प्रतिबिंबित करती है। रिपोर्ट में वित्तीय क्षेत्र के विकास और विनियमन से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा की जाती है। एफएसआर-जून 2017 की मुख्य-मुख्य बातें नीचे सारांश में दी गई हैं : प्रणालीगत जोखिमों का समग्र आकलन
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भारत की वित्तीय प्रणाली स्थिर है, चाहे बैंकिंग प्रणाली द्वारा लगातार बड़ी चुनौतियों का सामना किया जा रहा हो। जबकि वैश्विक वृद्धि संभावना और बाजार भावनाओं में सुधार हुआ है, घरेलू मोर्चे पर राजनीतिक स्थिरता से त्वरित सुधारों, समग्र सकारात्मक कारोबारी भावना और समष्टि आर्थिक स्थिरता की संभावना को और बल मिला है।
वैश्विक और घरेलू समष्टि-वित्तीय जोखिम
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सुस्त वृद्धि के कई वर्षों बाद, वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार होना प्रतीत हो रहा है। हालांकि, अनिश्चितताएं बनी हुई हैं, वैश्विक उदार मौद्रिक नीति व्यवस्था से एक सामान्य दर चक्र में स्थिर परिवर्तन की अंतर्निहित भावना इक्विटी और मिश्रित आय बाजारों में देखी जा रही है।
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पिछले कारोबारी चक्रों से भिन्न, जहां क्रेडिट वृद्धि के तेज होने से पहले जीडीपी वृद्धि में बढ़ोतरी हुई, गैर-वित्तीय कॉर्पोरेशनों के लिए निजी क्रेडिट में वृद्धि नियंत्रित है।
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अमेरिकी फेडरल रिज़र्व (फेड) और अन्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) के बीच ‘ब्याज दर संभावना’ में विविधता जो पण्य-वस्तुओं की नरम कीमतों से जुड़ी हुई है, का कुछ पण्य-वस्तु केंद्रिक मुद्राओं पर प्रभाव हो सकता है।
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घरेलू रूप से समष्टि आर्थिक स्थिति स्थिर रही है और त्वरित सुधारों की संभावना तथा राजनीतिक स्थिरता ने समग्र सकारात्मक कारोबारी भावना को और मजबूत किया है। जबकि खुदरा मुद्रास्फीति में हाल की तिमाहियों में काफी गिरावट देखी गई, वास्तविक सकल संवृद्धित मूल्य (जीवीए) वर्ष 2015-16 के 7.9 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2016-17 में कम होकर 6.6 प्रतिशत हो गया।
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आगे, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में सुधार, वस्तु और सेवाकर (जीएसटी) का कार्यान्वयन तथा बाह्य मांग में पुनरुत्थान से बेहतर वृद्धि दृष्टिकोण की संभावना है। पूंजी बाजार के संकेतक उच्चतर हो गए जो इन सकारात्मक भावनाओं को प्रतिलक्षित करते हैं।
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आस्ति गुणवत्ता दबावों के अंतर्गत बैंकों की क्रेडिट मध्यस्थता कम हो गई है और एनबीएफसी और म्यूच्युअल फंडों की मध्यस्थता काफी बढ़ गई है।
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चयनित गैर-सरकारी गैर-वित्तीय (एनजीएनफ) सूचीबद्ध कंपनियों की छमाही स्थिति ने कॉर्पोरेट क्षेत्र के कार्यनिष्पादन, विशेषकर बिक्री वृद्धि में सुधार की ओर संकेत किया है।
वित्तीय संस्थाएं: अच्छी स्थिति और आघात सहनीयता
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वर्ष 2016-17 के दौरान, जबकि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) की जमा में बढ़ोतरी हुई है, क्रेडिट वृद्धि धीमी रही जिसने निवल ब्याज आय (एनआईआई), विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) पर दबाव डाल दिया है।
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जबकि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के लाभप्रदता अनुपातों में थोड़ी सी वृद्धि देखी गई है, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने आस्तियों पर नकारात्मक प्रतिफल दिखाना जारी रखा है।
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बैंकिंग क्षेत्र के सकल अनर्जक अग्रिम (जीएनपीए) बढ़ गए किंतु दबावग्रस्त अग्रिमों का अनुपात सितंबर 2016 और मार्च 2017 के बीच कम हुआ जिसका कारण पुनर्संरचित मानक अग्रिम में गिरावट होना है।
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कुल मिलाकर, जोखिम भारित आस्तियों की तुलना में पूंजी अनुपात (सीआरएआर) में सितंबर 2016 और मार्च 2017 के बीच 13.4 प्रतिशत से सुधार होकर 13.6 प्रतिशत हो गया।
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अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के कुल ऋण पोर्टफोलियो और जीएनपीए दोनों में बड़े उधारकर्ताओं की हिस्सेदारी में सितंबर 2016 और मार्च 2017 के बीच कमी देखी गई।
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प्रणाली स्तर पर अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों (एसयूसीबी) का सीआरएआर सितंबर 2016 और मार्च 2017 के बीच 13.0 प्रतिशत से बढ़कर 13.6 प्रतिशत हो गया।
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जबकि 2016-17 के दौरान एनबीएफसी क्षेत्र के समग्र तुलन पत्र में 14.5 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई, उनका निवल लाभ 2.9 प्रतिशत तक कम हुआ।
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म्यूच्युअल फंडों की प्रबंध अधीन आस्तियां मार्च 2017 के अंत तक ₹17.5 ट्रिलियन से अधिक हो गई जो हर समय से उच्च स्तर पर थी।
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बड़ी वित्तीय प्रणाली के दृष्टिकोण से अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक प्रबल निवेशक रहे जिनका द्विपक्षीय एक्सपोज़र लगभग 51 प्रतिशत रहा और इसके बाद म्यूच्युअल फंडों का प्रबंध करने वाली आस्ति प्रबंध कंपनियां (एएमसी-एमएफ), गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी), अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाओं (एआईएफआई), बीमा कंपनियों और आवास वित्त कंपनियों (एचएफसी) का एक्सपोज़र रहा।
वित्तीय प्रणाली क्षेत्र: विनियमन और विकास
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भारतीय लेखांकन मानकों में भावी शिफ्टिंग कौशल और प्रावधानीकरण की उच्चतर राशि की अपेक्षा के मामले में भारतीय बैंकों के लिए चुनौतीपूर्ण होगा।
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भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपना प्रकटन और मानक आस्ति प्रावधानीकरण अपेक्षाओं को सख्त किया है जबकि दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान के लिए अधिक अग्र-सक्रिय दृष्टिकोण अपनाया है।
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रिज़र्व बैंक ने शीघ्र सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) ढांचे में सुधार करके और प्रवर्तन विभाग स्थापित करके अपने पर्यवेक्षी और प्रवर्तन ढांचों को भी सख्त बनाया है।
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आवास ऋण में थोड़ी सी हानि और समग्र कमजोर क्रेडिट वृद्धि ने भारतीय रिज़र्व बैंक को जोखिम भारों को कम करने के काउंटर-चक्रीय उपाय करने और व्यक्तिगत आवास ऋणों के लिए मानक आस्ति प्रावधानीकरण करने की सुविधा दी है।
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मसाला बॉन्डों पर विवेकपूर्ण मानदंडों को बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) के साथ व्यापक रूप से अनुरूप बनाया गया है।
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सेबी ने भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्रों (आईएफएससी) में डेरिवेटिव लेनदेनों की अनुमति दी है जबकि शीर्ष सूचीबद्ध संस्थाओं के लिए प्रकटन अपेक्षाओं को अधिक व्यापक बना दिया है। सेबी द्वारा निवेशक संरक्षण उपायों को और बढ़ा दिया गया।
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बाजार इंफ्रास्ट्रक्चर संस्थाओं (एमआईआई) में शिकायत समाधान तंत्र की प्रभावशीलता में वृद्धि करने के लिए सेबी ने शेयर बाजारों और निक्षेपागारों के परामर्श से मौजूदा ढांचे की व्यापक समीक्षा की है।
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पीएफआरडीए ने परिचालन प्रभारों में कमी करने और निवेशकों के लिए दीर्घावधि प्रतिफल बढ़ाने के लिए दूसरी रिकार्ड कीपिंग एजेंसी की अनुमति दी।
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धोखाधड़ी और साइबर प्रहारों से उत्पन्न होने वाली चिंताएं हाल के वैश्विक रैंसमवेयर प्रहारों के साथ उच्च स्तर पर रही हैं। इस संबंध में विनियामकों की विभिन्न प्रतिक्रियाओं में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अंतर-अनुशासकीय स्थायी समिति गठित करना शामिल है।
जोस जे. कट्टूर मुख्य महाप्रबंधक प्रेस प्रकाशनी: 2016-2017/3532 |