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भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिए वित्तीय क्षेत्र योजना पर समिति की रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी

21 अगस्त 2006

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिए वित्तीय क्षेत्र योजना पर समिति की रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी

यह ज्ञात होगा कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने 25 जनवरी 2006 को बृहद् वित्तीय समावेशन प्राप्त करने और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र (एनइआर) में वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराने तथा क्षेत्र के लिए यथोचित राज्य विशिष्ट निगरानी-युक्त कार्ययोजना तैयार करने हेतु समिति का गठन किया था। श्रीमती उषा थोरात, उप गवर्नर समिति की अध्यक्षा थी। समिति ने अब अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है जो भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाईट पर उपलब्ध है।

समिति ने क्षेत्र के सभी सात राज्यों में विभिन्न शेयरधारकों के साथ विस्तृत चर्चा की। बैठक में मूल विचार यह रहा कि बैंकिंग संस्कृति को स्थानीय परिस्थितियों को अपनाने की आवश्यकता है। इस बात पर ज़ोर दिया जाना चाहिए कि बैंकों को लोगों से व्यवहार्य रूप से जुड़ना चाहिए और ना कि ग्राहकों के आने की राह देखनी चाहिए।

समिति ने मूल रूप से यह दृष्टिकोण अपनाया कि आपूर्ति अंतर को कम किया जाए क्योंकि इस क्षेत्र में यह अंतर है। अनुसंधान ने भी यह प्रमाणित किया है कि अधिक कार्यक्षम वित्तीय मध्यस्था से ही विकास हो सकता है। समिति ने वर्तमान परिचालनगत संरचना/प्रक्रियाओं की सीमाओं तथा बैंकिंग संगठनों में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) और सहकारी बैंकों सहित विभिन्न अपर्याप्तताओं को देखा। साथ ही, बैंकिंग प्रक्रिया को प्रौद्योगिकी के साथ जोड़ने की अनिवार्यता पर जोर दिया। इसके अलावा मानव संसाधन प्रबंधन के विषय को भी संबोधित किया। समिति ने विशेषत: मूलभूत सुविधाओं को सुधारने की आवश्यकता, उपयुक्त निवेश वातावरण तैयार करने और विकास के लिए लाभप्रद योजना के कुछ क्षेत्रों पर ध्यान आकर्षित करने और यथोचित ऋण संस्कृति को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। इस संबंध में राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए मुख्य भूमिका निभानी होगी कि वित्तीय क्षेत्र का विकास आर्थिक वृद्धि और विकास द्वारा किया जाता है।

समिति द्वारा की गई प्रमुख सिफारिशें निम्नानुसार है -

(i) बृहद् वित्तीय समावेशन प्राप्त करने और राष्ट्रीय औसत तक पहुंचने के लिए बैंकों को उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में अगले चार वर्षों में प्रति माह प्रति शाखा में कम-से-कम 50 नये घरों को जमाखाता उपलब्ध कराने (घरों को यह विकल्प देते हुए कि ऐसा खाता वे "नो फ्रिल्स" खाता के रूप में खोल सकते हैं) के लिए कार्ययोजना तैयार करनी चाहिए। ऐसे खातों में एक अवधि तक रखी गई जमा राशि को ध्यान में रखते हुए बैंक ऐसे खातों को छोटे ओवरड्राफ्ट अथवा सामान्य क्रेडिट कार्ड तथा रिज़र्व बैंक के वर्तमान दिशानिर्देशों के अंतर्गत अन्य सुविधा दे सकते हैं ताकि इस क्षेत्र में बैंकिंग कि आदत को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया जा सके। इसके लिए इस क्षेत्र में व्यापक जागरूकता अभियान चलाना चाहिए और स्टाफ तथा ग्राहक को सुग्राही बनाना चाहिए। साथ ही पर्याप्त बुनियादी कार्य करना चाहिए।

 

(ii) स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इसका दायरा बढ़ाने हेतु बैंक/स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) लींक कार्यक्रम, कारोबारी संपर्ककर्ता/कारोबारी सुविधाकर्ता नमूने तथा सूचना प्रौद्योगिकी आधारित समाधान का व्यापक प्रयोग का आश्रय लेना चाहिए। ज़िला सलाहकार समिति द्वारा अनुमोदित स्थानीय सामुदायिक संगठनों का प्रयोग कारोबारी संपर्ककर्ता/सुविधाकर्ता के रूप में किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त डाकघरों का भी कारोबारी संपर्ककर्ता के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

(iii) इस क्षेत्र में मोबाइल संपर्क में सुधार को देखते हुए इसका दायरा बढ़ाने के लिए गैर-शाखा स्थलों से बैंकिंग लेन-देन करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी आधारित समाधान, जैसे स्मार्ट कार्ड भुगतान तथा मोबाईल भुगतान को अपनाना चाहिए। बैंकिंग प्रौद्योगिकी विकास और अनुसंधान संस्थान (आइडीआरबीटी) द्वारा दिसंबर 2006 तक उत्तर पूर्वी क्षेत्र के चयनित क्षेत्र में परिक्षण के लिए प्रमुख परियोजना तैयार की जाए और उससे प्राप्त अनुभव के आधार पर इस परियोजना को अन्य जगहों पर भी लागू किया जाए।

(iv) जमीन का सामुदायिक स्वामित्त्व और गैर-अंतरणीय अधिकार के मद्देनज़र ज़मीन को संपार्शिक के रूप में देने में समस्या होती है। इसको ध्यान में रखते हुए ऋण मंजूरी के लिए सरल विकल्प जैसे ज़मीन कब्ज़ा प्रमाणपत्र, ज़मीन पर खेती के लिए उधारकर्ता के अधिकार के संबंध में समूह/स्थानीय जनजाति निकायों/किसान क्लब/ग्राम विकास बोर्ड का प्रमाणपत्र आदि को स्वीकारना चाहिए। उद्योगों और सेवा-क्षेत्रों के बड़े ऋणों के लिए उनके स्थापित सेवा रिकार्ड, अनुमानित नकदी प्रवाह, आंशिक जोखिम हिस्सेदारी लिखतों के माध्यम से ऋण संवर्धन, राज्य सरकारों द्वारा शर्तों वाली गारंटी आदि मानदण्ड अपनाने चाहिए।

(v) बैंक अधिकारियों के लिए कार्यनिष्पादन आधारित नकदी प्रोत्साहन घटक लागू करने सहित वर्तमान अस्थायी प्रोत्साहन पैकेज़ में संशोधन करना।

(vi) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में स्टाफ को बढ़ाने और मुख्य कार्यपालक अधिकारियों (सीईओ) की बाहर (बाज़ार) से नियुक्ति सहित आरआरबी की पुन: संरचना करने की सिफारिश की गयी।

(vii) म्यूच्युअली एडेड सहकारी सोसाइटियों (एमएसीएस) की तर्ज पर वैक्लपिक विधेयक लागू किया जाए ताकि मूल स्तर के संगठनों के पास एमएसीएस के अंतर्गत सहकारी सोसायटी बनाने का विकल्प हो। वैद्यनाथन समिति को उत्तर पूर्वी क्षेत्रों की स्थिति जानने के लिए पुन: दौरा करना चाहिए ताकि राज्य सरकारों द्वारा पुनरुज्जीवन पैकेज़ के अंतर्गत उपलब्ध संसाधनों को उन राज्यों में स्थानीय समुदाय आधारित संगठनों को उपलब्ध कराने की संभावना का पता लगाया जा सके जहां प्राथमिक सहकारियों की ऋण सेवा उपलब्ध कराने की क्षमता नहीं है। वैकल्पिक रूप से जैसे राज्य विशिष्ट रिपोर्टों में विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा सुझाव दिया गया है, सुस्थापित स्वयं सहायता समूहों को सहकारी सोसायटियों के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।

(viii) प्रत्येक राज्य सरकार द्वारा शहरी सहकारी बैंकों के लिए आरबीआइ विशन प्रलेख में प्रस्ताव किये गये अनुसार रिज़र्व बैंक के साथ समझौता ज्ञापन करना चाहिए और क्षेत्र में एक शहरी सहकारी बैंकों के लिए कार्यदल (टीएएफसीयूबी) का गठन किया जाए जिसमें एक के बाद एक के रूप में कुछ राज्यों का प्रतिनिधित्त्व हो।

(ix) इन क्षेत्रों में जहां आवश्यक हो वहां वर्तमान चेस्टों के नेटवर्क को बढ़ाया जाए और अद्यतन बनाया जाए। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को ऐसे करेंसी चेस्टों की अनुमति दी जाए जिसकी राज्य सरकार और आंशिक लागत भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उठायी जाती है।

(x) सरकारी भुगतानों और रसीदों की सुविधा के लिए सभी राज्यों को राजधानी में सभी समाशोधन गृहों में छह महीनों के भीतर इलैक्ट्रानिक समाशोधन सेवाएं लागू करनी चाहिए। आइडीआरबीटी द्वारा सभी बैंकों द्वारा प्रयोग किये जा सकने वाले खुले मानक स्तर पर स्मार्ट कार्ड/मोबाईल आधारित निवारण लागू करने के लिए योजना तैयार करनी चाहिए और प्रमुख परियोजना का उपयुक्त क्षेत्र में छह महीने के भीतर परिक्षण किया जाना चाहिए।

(xi) ऐसे केंद्रों पर जहां विदेशी मुद्रा विनिमय सुविधाएं नहीं है वहां रिज़र्व बैंक द्वारा आवश्यकता के आधार पर विदेशी मुद्रा विनिमय सुविधा उपलब्ध कराने हेतु विभिन्न शाखाओं को विशिष्ट उत्तरदायित्त्व देना चाहिए और शाखा स्टाफ के लिए विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए।

(xii) कृषि, सहायक क्रियाकलापों और लघु तथा मध्यम उद्यमों (एसएनइ) के क्षेत्र में ऋण प्रवाह में वृद्धि के लिए प्रत्येक सात राज्यों के लिए स्थल विशिष्ट और क्रियाकलाप-वार कार्य योजना लागू की जाए।

(xiii) जहां पहली बार उद्यम के लिए बैंक आवश्यक निधि उपलब्ध कराने के लिए इच्छुक है वहां परियोजना लागत के 25 प्रतिशत तक सह-वित्त उपलब्ध कराने के लिए प्रमुख बैंकों के साथ मिलकर सिडबी द्वारा समर्पित एसएमइ ऋण निधि का गठन करना चाहिए। कृषि संबंधी क्रियाकलापों, कृषि आधारित उद्योगों और लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्रों में निवेश करने के इच्छुक उद्यमियों को प्रोत्साहित करने हेतु उत्तर पूर्वी क्षेत्र की प्रमुख बैंकों की समर्पित शाखाओं की पहचान की जाए। लघु उद्योग के लिए क्रेडिट गारंटी निधि न्यास (सीजीटीएसआइ) की योजना के अंतर्गत देश के बाकी हिस्सों में उपलब्ध 75 प्रतिशत की जोखिम कवर के बदले उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिए अधिकतम रुपये 25 लाख तक 90 प्रतिशत तक जोखिम कवर उपलब्ध कराने के लिए बीमा कवर को बढ़ाया जाए।

बी.वी.राठोड़

प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2006-2007/252

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