भारतीय रिज़र्व बैंक ने जारी की प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार संबंधी मौजूदा दिशानिर्देशों पर विचार करने के लिए गठित आंतरिक कार्य समूह की रिपोर्ट - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक ने जारी की प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार संबंधी मौजूदा दिशानिर्देशों पर विचार करने के लिए गठित आंतरिक कार्य समूह की रिपोर्ट
2 मार्च 2015 भारतीय रिज़र्व बैंक ने जारी की प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार संबंधी भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार संबंधी मौजूदा दिशानिर्देशों पर विचार करने के लिए गठित आंतरिक कार्य समूह (अध्यक्ष : लिली वडेरा, मुख्य महाप्रबंधक, बैंकिंग विनियमन विभाग) की रिपोर्ट आज अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध कराई। रिपोर्ट में की गई सिफारिशों के संबंध में सुझाव/टिप्पणी, यदि कोई हों, प्रधान मुख्य महाप्रबंधक, भारतीय रिज़र्व बैंक, वित्तीय समावेशन और विकास विभाग, केंद्रीय काया्रलय भवन, 10वीं मंजि़ल, एस.बी. मार्ग, मुंबई–400001 को डाक/ई-मेल के माध्यम से 15 मार्च 2015 तक भेजी जा सकती है। पृष्ठभूमि प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार संबंधी दिशानिर्देश को मूर्त रूप दिए जाने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में बदलाव आया। इन दिशानिर्देशों को संवृद्धि और समावेशन एजेंडा के अनुरूप तैयार करना ज़रूरी है। अत: रिज़र्व बैंक ने प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार संबंधी मौजूदा दिशानिर्देशों पर विचार करने तथा राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ-साथ देश के वित्तीय समावेशन के लक्ष्यों के अनुरूप इन दिशानिर्देशों में संशोधन के लिए सुझाव देने के उद्देश्य से एक आंतरिक कार्य समूह का गठन किया। इस उद्देश्य के अंतर्गत प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र से संबंधित लक्ष्यों की कारगर ढंग से हासिल करने तथा प्राथिमकता-प्राप्त क्षेत्र से संबंधित लक्ष्यों को पूरी तरह हासिल नहीं करने के मामले में आवश्यक उपायों के संबंध में सुझाव देना शामिल है। उक्त कार्य समूह ने ऐसे खंडों को दिए जाने वाले उधार को सरणीबद्ध करने पर ध्यान केंद्रित किया है जिनके संबंध में कोई निर्धारित लक्ष्य न होने के कारण क्राउड आउट की स्थिति पैदा हो जाती है। इनके अंतर्गत छोटे एवं सीमांत किसान, सूक्ष्म उद्यम एवं कमज़ोर वर्ग शामिल हैं। साथ ही इसके दायरे को बढ़ाकर राष्ट्रीय प्राथिमकता की दृष्टि से अल्प सेवा-प्राप्त कई वर्गों को शामिल किया गया है, जैसे- कृषि की बुनियादी संरचना, सामाजिक बुनियादी संरचना, नवीकरणीय ऊर्जा, निर्यात और मध्यम आकार के उद्यम। इस रिपोर्ट में निम्नलिखित मुख्य सिफारिशें शामिल हैं : i) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र संबंधी समग्र लक्ष्य : सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के लिए पुन: परिभाषित प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र का लक्ष्य समायोजित निवल बैंक ऋण (एएनबीसी) या तुलनपत्र बाह्य एक्सपोज़र के समतुल्य ऋण (सीईओबीई) के 40 प्रतिशत, जो भी अधिक हो, के बराबर समान रूप से जारी रखा गया है। तथापि, सभी विदेशी बैंकों को, जिन्हें इन मानदंडों के अंतर्गत अब लाया गया है, इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समय दिया गया है। ii) कृषि : एएनबीसी के 18 प्रतिशत के लक्ष्य को बरकरार रखा गया है। यह सिफारिश की गई है कि छोटे और सीमांत किसानों के लिए एएनबीसी के 8 प्रतिशत के उप-लक्ष्य को चरणबद्ध तरीके से हासिल किया जाए। कृषि ऋण के समग्र लक्ष्य में शेष बचे 10 प्रतिशत को अन्य किसानों, कृषि की बुनियादी संरचना और उक्त समूह द्वारा परिभाषित सहायक कार्यकलापों को ऋण देने के लिए बैंकों को और लचीलापन दिया जाए। कृषि की बुनियादी संरचना एवं कृषि-प्रसंस्करण को बढ़ावा देने की दृष्टि से इनके लिए दिए जाने वाले ऋणों की कोई उच्चतम सीमा तय नहीं की गई है। iii) एमएसएमई : सूक्ष्म और लघु उद्यमों के अलावा, मध्यम उद्यमों को भी प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार की परिधि में शामिल किया गया है। सूक्ष्म उद्यमों को क्राउड आउट वाली दुर्दशा से बचाने के लिए यह सिफारिश की गई है कि सूक्ष्म उद्यमों के लिए 7.5 प्रतिशत के उप-लक्ष्य निर्धारित किया जाए, जिसे चरणबद्ध तरीके से हासिल किया जाना है। iv) अन्य क्षेत्र : इसके अलावा, स्वच्छता, स्वास्थ्य की देखभाल और पेय जल सुविधाओं तथा नवीकरणीय ऊर्जा को प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के दायरे में शामिल किया जाएगा। साथ ही, निर्यातों के लिए दिए जाने वाले वृद्धिशील ऋणों को कतिपय उच्चतम सीमाओं के साथ इसके दायरे में शामिल किया जाएगा। v) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार संबंधी प्रमाण-पत्र : उक्त कार्य समूह ने प्राथमकता-प्राप्त क्षेत्र उधार संबंधी प्रमाण-पत्रों (पीएसएलसी) की शुरुआत करने की सिफारिश की है, जिससे बैंक ऋण देने में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ का लीवरेज करते हुए प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार संबंधी अपेक्षाओं को पूरा करने में सक्षम बन सकते हैं। अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2014-2015/1835 |