23 मई 2011 भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारत में वित्तीय धारिता कंपनी संरचना को लागू करने पर कार्यदल की रिपोर्ट जारी की भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपनी वेबसाइट पर भारत में वित्तीय धारिता कंपनी संरचना (अध्यक्ष: श्रीमती श्यामला गोपीनाथ) को लागू करने पर कार्यदल की रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट पर अभिमत जून 2011 के अंत तक इ-मेल किए जा सकते हैं अथवा प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक, बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, केंद्रीय कार्यालय, मुंबई-400001 को भेजे जा सकते हैं। इस कार्यदल की मुख्य अनुशंसाएं इस प्रकार हैं :
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वित्तीय धारिता कंपनी (एफएचसी) प्रतिदर्श को भारत में वित्तीय क्षेत्र के लिए एक पसंदीदा प्रतिदर्श के रूप में माना जाना चाहिए।
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एफएचसी प्रतिदर्श सभी बड़े वित्तीय समूहों को इस बात से निरपेक्ष लागू किया जाएगा कि चाहे उनके पास कोई बैंक हो अथवा न हो। अत: कोई बैंक और गैर-बैंकिंग एफएचसी का नियंत्रण करनेवाली बैंकिंग वित्तीय धारिता कंपनी (एफएचसी) हो सकती है जिसके पास समूह में कोई बैंक नहीं हो।
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वित्तीय धारिता कंपनियों के लिए एक अलग विनियामक ढॉंचा होना चाहिए।
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वित्तीय धारिता कंपनियों के विनियमन के लिए अलग से एक नया अधिनियम बनाया जाना चाहिए।
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सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अभिशासित करनेवाली अन्य संविधियों/अधिनियमों, कंपनी अधिनियम और अन्य के लिए जहॉं कहीं आवश्यक हो इसके साथ-साथ संशोधन भी किया जाना चाहिए। वैकल्पिक रूप में सभी अलग नियमों के संशोधन के लिए अलग विधायीकरण से बचने हेतु एफएचसी के लिए नए अधिनियम के प्रावधान में अलग-अलग अधिनियमों के सभी संगत प्रावधानों के संशोधन का अधिकार होना चाहिए और किसी भी विचारभिन्नता की स्थिति में अन्य अधिनियमों पर प्रभावी अधिकार होना चाहिए।
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वित्तीय धारिता कंपनियों के लिए रिज़र्व बैंक को विनियामक के रूप में पदनामित किया जाए।
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एफएचसी विनियमन का कार्य रिज़र्व बैंक के साथ-साथ अन्य विनियामकों से लिए गए स्टाफ के साथ रिज़र्व बैंक के भीतर एक अलग इकाई द्वारा शुरू किया जाए।
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नया एफएचसी विनियामक ढॉंचा विनियामकों के बीच समझौता ज्ञापन के माध्यम से एक समेकित पर्यवेक्षण व्यवस्था का निर्माण भी करे।
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एफएचसी के भीतर मध्यवर्ती धारिता कंपनियों को संगठनात्मक संरचना में अस्पष्टता और जटिलता के प्रति उनके योगदान के कारण अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
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एफएचसी प्रारंभिक रूप से एक गैर-परिचालन संस्था होनी चाहिए तथा उसे रिज़र्व बैंक द्वारा यथानिर्धारित सीमित सुविधा की अनुमति होनी चाहिए। तथापि वह ऐसी गतिविधियॉं संचालित कर सकती है जो एफएचसी के रूप में इसके कार्यकलाप के लिए आवश्यक हों।
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एफएचसी को सहायक कंपनियों के माध्यम से सभी वित्तीय गतिविधियॉं संचालित करने की अनुमति होनी चाहिए। वे गतिविधियॉं जिनमें एफएचसी शामिल न हो अथवा केवल एक सीमा तक उदाहरणार्थ वाणिज्यिक गतिविधियॉं में शामिल हों इसे रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित होने चाहिए।
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एफएचसी भली प्रकार से विविधतापूर्ण हो तथा कड़े स्वामित्व और अभिशासन मानदण्ड के अधीन हों। स्वामित्व प्रतिबंध या तो उनके एफएचसी स्तर अथवा इस बात के आधार पर कि प्रवर्तक सहायक कंपनियों में प्रमुखता से नियंत्रण बनाए रखने का अभिप्राय कानून के अनुसार जहॉं कहीं अनुमत हो रखते हैं, लागू किए जा सकते हैं।
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विभिन्न एफएचसी के बीच परस्पर धारिता पर समुचित सीमाएं निर्धारित की जाएं। एक ओर एफएचसी के बीच परस्पर धारिता सीमाएं भी हों तथा दूसरी ओर बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियॉं एवं इस समूह के बाहर अन्य वित्तीय संस्थाओं पर सीमाएं हों। एफएचसी समूह के भीतर वित्तीय संस्थाओं के बीच परस्पर धारिता आंतर-समूह लेनदेन और एक्सपोज़र मानदण्डों के अधीन हो सकती है।
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यह आवश्यक होगा कि धारिता कंपनी संरचना (बैंकिंग एफएचसी) की ओर जाने पर बैंकों द्वारा विद्यमान वित्तीय समूह पर आधिपत्य के बाद गैर-बैंकिंग कारोबार के विस्तार पर कुछ सीमाएं लागू की जाएं ताकि बैंकिंग कारोबार इस समूहों की प्रमुख गतिविधि बना रहे तथा गैर-बैंकिंग कारोबार की वृद्धि के पक्ष में इन समूह द्वारा बैंकिंग की वृद्धि पर कोई समझौता न हो। वर्तमान में बैंकों का अपनी सहायक कंपनियों में कुल निवेश उनकी निवल संपत्ति के 20 प्रतिशत की सीमा में है। एफएचसी संरचना के अंतर्गत बैंकिंग एफएचसी द्वारा गैर-बैंकिंग सहायक कंपनियेां को इक्विटी पूँजी का आबंटन भी रिज़र्व बैंक द्वारा समुचित समझी गई एक सीमा तक निर्धारित किया जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बैंकिंग इस समूह की एक प्रमुख गतिविधि बना रहे।
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यदि धारिता कंपनी अपनी सभी सहायक कंपनियों के लिए पूँजी सहायता हेतु एक आश्रय के रूप में कार्य करती है तो धारिता कंपनी को अपनी सहायक कंपनियों के लिए पूँजी संग्रहण हेतु अपेक्षित स्थान उपलब्ध कराने की जरूरत है। इस संदर्भ में यह परिकल्पना संभव है कि अपनी सभी सहायक कंपनियों के साथ किसी सूचीबद्ध धारिता कंपनी को या तो सूचीबद्ध नहीं रखा जाए अथवा सभी के साथ धारिता कंपनी अथवा इसकी कुछ सहायक कंपनियॉं दोनों को वित्तीय समूह के उद्देश्यों और रणनीति तथा निवेश सीमाओं पर प्रचलित कानूनों और विनियमों के आधार पर सूचीबद्ध रखा जाए। भारत में इन परिस्थितियों को देखते हुए एफएचसी स्तर के साथ-साथ सहायक कंपनी दोनों स्तरों पर उपयुक्त अभिरक्षा तथा समय-समय पर विनियामक/विनियामकों द्वारा निर्धारित अभिशासन/स्वामित्व मानदण्डों के अधीन सूचीकरण किया जा सकता है।
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विभिन्न कराधान प्रावधानों में उपयुक्त संशोधन कराधान तथा स्टॅम्प ड्युटी से निरपेक्ष बैंक सहायक कंपनी प्रतिदर्श से एफएचसी प्रतिदर्श में अंतरण करने के लिए किया जा सकता है।
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एफएचसी को सहायक कंपनी द्वारा भुगतान किए गए लाभांश को इस सीमा तक लाभांश वितरण कर (डीडीटी) से छूट दी जा सकती है कि इन लाभांशों का उपयोग एफएचसी कंपनियों द्वारा अन्य सहायक कंपनियों में निवेश के लिए किया जा सके।
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एफएचसी कंपनी प्रतिदर्श विशिष्ट चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए एक अवधि के दौरान धीरे-धीरे चरणबद्ध रूप में लागू किया जा सकता है। तदनुसार, निम्नलिखित परिचालनात्मक योजना अनुसंशित की गई है:
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एक अलग अधिनियम का विधायीकरण लंबित रहने पर एफएचसी प्रतिदर्श भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम में निहित प्रावधानों के अंतर्गत परिचालित किया जा सकता है। तदनुसार, एफएचसी रिज़र्व बैंक के साथ किसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के रूप में पंजीकृत होगा जो अन्य विनियामकों के परामर्श से एफएचसी के लिए इस रिपोर्ट में यथावर्णित एक उपयुक्त विनियामक ढॉंचा तैयार करेगा।
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इस समूह के भीतर एक बैंक वाले सभी ज्ञात वित्तीय संघों को जो एक बार आवश्यक पूर्वापेक्षाओं के लागू होने पर कर-निरपेक्ष अंतरण करने हेतु एक समयबद्ध तरीके से एफएचसी प्रतिदर्श में बदलने की जरूरत होगी।
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यदि उपर्युक्त संघ एफएचसी में बदलना नहीं चाहते हैं तो उनसे यह अपेक्षित होगा कि वे उन गतिविधियों तक सीमित रहें जो वर्तमान में बैंकों को रिज़र्व बैंक द्वारा विभागीय रूप से शुरू करने की अनुमति दी गई है। इसका अर्थ यह होगा कि ऐसे संघ आवश्यक रूप से अपनी धारिता का अपनी सहायक कंपनियों में विनिवेश करे।
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अन्य सभी बैंकिंग समूह के लिए एफएचसी प्रतिदर्श में परिवर्तन एफएचसी अधिनियम बनाए जाने तक वैकल्पिक हो सकता है।
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सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय संघों को यह विकल्प होगा कि वे एफएचसी प्रतिदर्श में परिवर्तित हो सकें। बीमा कंपनियों वाले वे संघ जो एफएचसी प्रतिदर्श अंगीकृत नहीं करते हैं वे बीमा विनियामक और विकास प्राधिकार (आइआरडीए) द्वारा निर्धारित प्रवर्तकों से संबंधित विद्यमान विनियमों का अनुपालन कर सकते हैं।
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सभी नए बैंक और बीमा कंपनियॉं जब और जैसे लाइसेंस प्राप्त करें उनके लिए यह अधिदेशात्मक जरूरत होगी कि वे एफएचसी ढॉंचे के अंतर्गत परिचालन करें।
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बैंक-सहायक कंपनी प्रतिदर्श से एफएचसी कर-निरपेक्ष प्रतिदर्श में अंतरण करने के लिए विभिन्न कराधान प्रावधानों में संशोधन इस ढॉंचे के परिचालन हेतु एक बाघ्यकारी शर्त होंगे।
पृष्ठभूमि भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआइ) ने श्रीमती श्यामता गोपीनाथ, उप गवर्नर की अध्यक्षता में भारत में वित्तीय धारिता कंपनी संरचना लागू करने की संभावना की जॉंच हेतु जून 2010 में एक कार्यदल का गठन किया था। इस कार्यदल के सदस्य वित्त मंत्रालय, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, बीमा विनियामक विकास प्राधिकार, भारतीय बैंक संघ, बैंक और रिज़र्व बैंक से लिए गए थे। इस कार्यदल को निम्नलिखित विचारणीय विषय सौंपे गए थे:
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वित्तीय क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न धारिता कंपनी संरचनाओं का अध्ययन करना;
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भारत में विद्यमान संरचनाओं की तुलना में भारतीय संदर्भ में विनियामक/पर्यवेक्षी परिप्रेक्ष्य से वित्तीय धारिता कंपनी (एफएचसी) सहित इन संरचनाओं, उनके लाभ और उपयुक्तता की जॉंच करना;
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भारत के लिए एक उपयुक्त धारिता कंपनी ढॉंचा और अपेक्षित विनियामक और पर्यवेक्षी ढॉंचे की अनुशंसा करना;
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अनुशंसित धारिता कंपनी ढॉंचे के अंगीकरण हेतु एक रूपरेखा तैयार करना;
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शामिल विधिक और कराधान मामलों की जॉंच करना तथा विद्यमान संविधियों में संविधियों/संशोधन का विधायीकरण प्रस्तावित करना; और
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किसी अन्य संगत मामले की जॉंच करना।
अजीत प्रसाद सहायक महाप्रबंधक प्रेस प्रकाशनी : 2010-2011/1701 |