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भारतीय रिज़र्व बैंक ने गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र में मुद्दों और चिंताओं पर कार्यदल की रिपोर्ट जारी किया

29 अगस्‍त 2011

भारतीय रिज़र्व बैंक ने गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र में मुद्दों और
चिंताओं पर कार्यदल की रिपोर्ट जारी किया

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर श्रीमती उषा थोरात, निदेशक, उन्‍नत वित्तीय अनुसंधान और शिक्षण केंद्र (सीएएफआरएएल) की अध्‍यक्षता वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र में मुद्दों और चिंताओं पर कार्यदल की रिपोर्ट जारी किया। इस दल के अन्‍य सदस्‍यों में संजय लाब्रू, राजीव लाल, भरत दोशी, प्रतीप कार और उमा सुब्रमणियम (सदस्‍य सचिव) शामिल थे। इस रिपोर्ट पर अभिमत कृपया को ई-मेल किए जा सकते हैं अथवा अथवा सितंबर 2011 के अंत तक प्रभारी मुख्‍य महाप्रबंधक, गैर-बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, केंद्रीय कार्यालय, विश्‍व व्‍यापार केंद्र, कफ परेड, मुंबई-400005 को भेजे जा सकते हैं।

यह स्‍मरण होगा कि इस कार्यदल का गठन गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के विद्यमान विनियामक और पर्यवेक्षी ढॉंचे की इस क्षेत्र में जोखिमों पर विशेष ध्‍यान केंद्रित करते हुए समीक्षा के लिए किया गया था। इस कार्यदल को देश की सब प्रकार से आर्थिक वृद्धि के लिए महत्‍वपूर्ण एक मज़बूत और अनुकूल वित्तीय क्षेत्र के सृजन के लक्ष्‍य के साथ इन जोखिमों का समाधान करने हेतु समुचित विनियामक और पर्यवेक्षी उपाय अनुशंसित करना भी था।

इस कार्यदल के दृष्टिकोण में निहित मौलिक विचार इस प्रकार थे :

  1. यह पहचान करना कि भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के रूप में पंजीकरण ऋणदाताओं और निवेशकों के लिए सुविधा उपलब्‍ध कराता है तथा सार्वजनिक निधियों को लिवरेज प्रदान करता है;

  2. विनियमन और पंजीकरण के क्षेत्र का सरलीकरण और उसे विवेकसम्‍मत बनाया जाना ताकि जमाराशि स्‍वीकार नहीं करने वाली संस्‍थाओं के जोखिम आधारित विनियमन पर ध्‍यान केंद्रित किया जा सके क्‍योंकि जमाराशि स्‍वीकार करने वाली संस्‍थाओं के कारण जोखिम पर पूर्व में व्‍यापक रूप से कार्रवाई की जा चुकी है;

  3. (ए) कारोबारी प्रतिदर्श में अंतर्निहित संकेंद्रण और निधियन ढॉंचा तथा (बी) संवेदनशील क्षेत्रों को एक्‍सपोज़र के कारण सुविधा जोखिम के प्रति बफर प्रस्‍तुत करते समय उत्‍पादक क्षेत्रों में शामिल गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की नवोन्‍मेषी प्रकृति को बनाये रखना

  4. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए पूर्णत: बैंक जैसी नीतियों और विनियमन की अनुशंसा नहीं करते समय विनियामक अधिनिर्णय पर कार्रवाई करना;  और

  5. यह सुनिश्चित करने के लिए अभिशासन, प्रकटन और पर्यवेक्षण को मज़बूत बनाना कि अनुसंशित परिवर्तनों से गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में वहॉं न्‍यूनतम अवरोध पैदा हो जहॉं विशिष्‍ट रूप से उल्‍लेख हो उसे छोड़कर अनुसंशाओं के अनुपालन हेतु पर्याप्‍त अंतरण समय उपलब्‍ध कराया गया हो।

इस कार्यदल की मुख्‍य अनुशंसाएं इस प्रकार हैं :

  1. रिज़र्व बैंक के पास पंजीकरण कराने के लिए इच्‍छुक सभी नई गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए अपेक्षित न्‍यूनतम निवल स्‍वाधिकृत निधि (एनओएफ) वर्तमान में दो करोड़ रुपये तक तब तक बनाए रखा जाए जब तक भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम संशोधित नहीं हो जाता है। तथापि, भारतीय रिज़र्व बैंक को किसी नई गैर-बैंकिंग वित्तीय कंप‍नी का पंजीकरण करने के लिए न्‍यूनतम 50 करोड़ रुपए से अधिक की आस्ति आकार पर आग्रह करना चाहिए। इस सीमा से नीचे की विद्यमान गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को गैर-पंजीकृत किया जाए अथवा दो वर्ष की समाप्ति पर एक नया पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्‍त करने के लिए कहा जाए।

  2. सार्वजनिक निधियों तक पहुँच नहीं बनाने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को पंजीकरण से छूट प्रदान की जाए बशर्तें उनकी आस्तियॉं 1000 करोड़ रुपए से कम हों।

  3. प्रत्‍यक्ष अथवा अप्रत्‍यक्ष रूप से 25 प्रतिशत और उससे अधिक की शेयरधारिता का कोई अंतरण, नियंत्रण में परिवर्तन, किसी पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी का विलय अथवा अधिग्रहण के लिए रिज़र्व बैंक का पूर्व अनुमोदन होना चाहिए।

  4. किसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के प्रधान कारोबार निर्धारित करने के लिए आस्ति और आय की जुड़वॉं मानदण्‍ड को क्रमश: कुल आस्ति के 75 प्रतिशत तथा कुल आय के 75 प्रतिशत तक बढ़ाया जाए। तीन वर्षों की एक समयावधि संशोधित प्रधान कारोबार मानदण्‍ड को पूरा करने के लिए दी जाए।

  5. जोखिम भारित आस्तियों की तुलना में पूँजी का अनुपात (सीआरएआर) प्रयोजनों के लिए टीयर I पूँजी को जमाराशि स्‍वीकार करने वाली और जमाराशि स्‍वीकार नहीं करने वाली सभी पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए तीन वर्षों में प्राप्‍त करने के लिए 12 प्रतिशत तक निर्दिष्‍ट किया जाए।

  6. सभी पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए चलनिधि अनुपात जैसेकि नकदी, बैंक शेष अंतरालों को पूरी तरह व्‍याप्‍त करने वाली सरकारी प्रतिभूतियों की धारिता को पहले 30 दिनों में संचयी बर्हिवाह और संचयी अंतर्वाह के बीच किसी को भी लागू किया जाए।

  7. बैंकों की तरह गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए आस्ति वर्गीकरण और प्रापधानीकरण मानदण्‍ड चरणबद्ध तरीके से लाया जाए। बैंकों के समान उपयुक्‍त आय कर कटौती को विनियमों के अंतर्गत किए गए प्रावधानों हेतु अनुमति दी जाए। बैंकों पर लागू लेखांकन मानदण्‍ड गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों पर लागू किया जाए।

  8. बैंकों के समान विनियमों के अंतर्गत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को लाया जाए जब वे शेयर दलालों और व्‍यापारी बैंकों को ऋण दे रही हों तथा मार्जिन वित्तीय सहायता शुरू करते समय भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा यथानिर्दिष्‍ट शेयर दलालों के समान लाया जाए।

  9. वित्तीय संघ दृष्टिकोण को बड़ी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के पर्यवेक्षण हेतु स्‍वीकार किया जाए जिस समूह में शेयर दलाल और व्‍यापारी बैंक हों।

  10. सरकार स्‍वाधिकृत वे संस्‍थाएं जो गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के रूप में अर्हता प्राप्‍त हैं उन्‍हें यथाशीघ्र गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों  के लिए लागू विनियामक ढॉंचे का पालन करना होगा।

  11. भू-संपदा में बैंकों के एक्‍पोज़र के लिए बोर्ड अनुमोदित सीमाओं को संपूर्ण रूप से बैंक समूह के लिए लागू किया जाए जहॉं उस समूह में कोई गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी है। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियॉं जो बैंकों द्वारा प्रायोजित नहीं हैं अथवा जिनके पास समूह के एक भाग के रूप में कोई बैंक नहीं है के लिए जोखिम भार को पूंजी बाज़ार एक्‍सोज़र के लिए 150 प्रतिशत तथा वाणिज्यिक भू-संपदा (सीआरई) एक्‍सपोज़र के लिए 125 प्रतिशत तक बढ़ाया जाए। बैंक प्रायोजित गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों  के मामले में पूँजी बाज़ार एक्‍सपोज़र (सीएमई) तथा सीआरई के लिए जोखिम भार उतना ही रहे जितना बैंकों के लिए निर्दिष्‍ट हैं।

  12. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों  को वित्तीय आस्ति प्रतिभूतिकरण और पुनर्संरचना तथा प्रतिभूति ब्‍याज प्रवर्तन (एसएआरएफएइएसआइ), अधिनियम, 2002 के अंतर्गत लाभ दिया जाए।

  13. सीमित गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियॉं जिनका कारोबारी प्रतिदर्श मुख्‍यत: मूल कंपनी उत्‍पादों को वित्तीय सहायता (90 प्रतिशत और उससे अधि‍क) पर ध्‍यान केंद्रित करना है, वे पंजीकरण के समय से 12 प्रतिशत तक टीयर I पूँजी बनाए रख सकती हैं। ऐसी कंपनियों के पर्यवेक्षी जोखिम आकलन में मूल कंपनी के जोखिम पर भी ध्‍यान दिया जाए।

  14. पंजीकरण और पर्यवेक्षण की प्रयोज्‍यता के प्रयोजन हेतु किसी समूह की सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की कुल आस्तियों को 100 करोड़ रुपए की कट-ऑफ सीमा निर्धारित करने के लिए एक साथ लाया जाए।

  15. 1000 करोड़ रुपए और उससे अधिक की आस्तियों वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों चाहे वे सूचीबद्ध हों अथवा नहीं, उनसे यह अपेक्षित हैं कि वे अधिदेशात्‍मक प्रकटनों सहित सेबी सूचीबद्ध करारों की धारा 49 का पालन करें।

  16. 100 करोड़ रुपए से अधिक की आस्तियों वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों  के लिए प्रकटन में प्रावधान व्‍यापकता अनुपात, चलनिधि अनुपात, आस्ति देयता प्रोफाईल, मूल कंपनी उत्‍पादों को वित्तीय सहायता की सीमा, अनर्जक आस्तियों (एनपीए) का अंतरण, तुलनपत्रेतर एक्‍सपोज़र, संरचित उत्‍पादों तथा प्रतिभू‍तिकरण/सुपुर्दगी शामिल रहे।

  17. 1000 करोड़ रुपए और उससे अधिक की आस्तियों वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों  की उनकी संवेदनशीलता निर्धारित करने के लिए संचालित एक वार्षिक तनाव जॉंच के साथ वार्षिक आधार पर व्‍यापक रूप से जॉंच की जाए।

अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2011-2012/319

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