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भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंक प्रभारों का औचित्य सुनिश्चित करने के लिए योजना तैयार करने हेतु कार्य दल की रिपोर्ट जारी की

15 सितम्बर 2006

भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंक प्रभारों का औचित्य सुनिश्चित करने के लिए योजना तैयार करने हेतु कार्य दल की रिपोर्ट जारी की

भारतीय रिज़र्व बैंक ने विचारों/सुझावों हेतु उक्त कार्यदल की रिपोर्ट आज अपनी वेबसाइट (/en/web/rbi) पर रखी। उक्त कार्यदल की सिफारिशों के संबंध में विचार/सुझाव रिज़र्व बैंक को ई-मेल से mailto:kazasudhakar@rbi.org.in या 022-22630482 पर फैक्स किए जा सकते हैं।

सदस्य बैंकों की ओर से बेंचमार्क सेवा प्रभार तय करने की भारतीय बैंक संघ की प्रथा 1999 में ही तोड़ दी गई थी और सेवा प्रभार निर्धारित करने का निर्णय बैंकों के निदेशक मंडल के विवेक पर छोड़ दिया गया था। तब बैंकों से कहा गया था कि वे यह सुनिश्चित करें कि प्रभार औचित्यपूर्ण हों तथा सेवा देने की औसत लागत सीध से बाहर न हों एवं कम गतिविधियों वाले ग्राहकों को इसका दण्ड न भोगना पड़े। तथापि, रिज़र्व बैंक को जनता से सेवा प्रभारों के आतर्किक और अपारदर्शी होने के संबंध में अभ्यावेदन लगातार मिल रहे हैं। हमें प्राप्त ढेर सारी शिकायतें दर्शाती हैं कि बैंकों द्वारा सेवा प्रभार निर्धारित करने में औचित्य के मुद्दे की जांच जरूरी है।

तदनुसार, वर्ष 2006-07 के अपने वार्षिक नीति वक्तव्य के अनुसार रिज़र्व बैंक ने बैंक प्रभारों का औचित्य सुनिश्चित करने हेतु एक योजना तैयार करने और उसे निष्पक्ष व्यवहार संहिता में शामिल करने, जिसकी निगरानी भारतीय बैंकिंग संहिता और मानक बोर्ड (बीसीएसबीआइ) द्वारा की जाएगी, के लिए एक कार्यदल गठित किया। इस कार्यदल के अध्यक्ष श्री एन.सदाशिवन, बैंकिंग लोकपाल, महाराष्ट्र और गोवा हैं तथा दल के अन्य सदस्य हैं श्री एच.एन.सिनोर, मुख्य कार्यपालक अधिकारी, भारतीय बैंक संघ तथा श्री एस.दिवाकर, संयुक्त सचिव, आल इंडिया बैंक डिपाज़िटर्स एसोसिएशन तथा सदस्य, प्रबंध परिषद, भारतीय बैंकिंग संहिता और मानक बोर्ड।

इस कार्यदल ने ग्राहकों को दी जानेवाली मौलिक बैंकिंग/वित्तीय सेवाओं, प्रभार निर्धारित करने और ऐसे प्रभारों का औचित्य ठहराने के लिए बैंकों द्वारा अपनायी जानेवाली पद्धति जैसे मुद्दों की जांच की। इसने निष्पक्ष व्यवहार संहिता में इस संबंध में उपयुक्त बातें जोड़ने और भारतीय बैंकिंग संहिता और मानक बोर्ड द्वारा उसके अनुपालन की निगरानी करने के लिए उपायों में व्यवस्था बनाने के पहलुओं की जांच की है।

इस कार्यदल ने मौलिक बैंकिंग सेवाओं के रूप में जमा खातों, उधार खातों, विप्रेषण सुविधाओं तथा चेक वसूली से संबंधित सत्ताईस सेवाएं वर्णित की हैं तथा चेक वसूली और विप्रेषण के लिए प्रत्येक मामलों में रु.10,000 तक तथा विदेशी मुद्रा लेनदेनों के लिए 500 अमरीकी डालर तक के कम मूल्य वाले लेनदेन परिभाषित किए हैं। इस कार्यदल का निष्कर्ष यह है कि बैंकों के सेवा प्रभारों के औचित्य को, सामान्यत:, लागत के आधार पर नहीं परखा जा सकता क्योंकि बैंक अपने प्रभार तय करते समय लागत को आधार नहीं बना रहे हैं। मूल्यन पद्धति के रूप में लागत केवल थोड़े से बैंकों तक ही सीमित रह गई है जो बैंकिंग कारोबार के महत्त्वपूर्ण हिस्से का प्रतिनिधित्व नहीं करते। कुछ बैंक जो ‘लागत’ को आधार बना रहे हैं उनका झुकाव ’समूहित’ उत्पाद (वर्धित सेवा युक्त खाते) देने पर रहता है जिसके लिए खाते में औसत न्यूनतम शेषराशि का स्तर ऊंचा रखना जरूरी है और इस पद्धति में वित्तीय निष्कासन का तत्व रहता है (हालांकि यह डिजाइन की वज़ह से नहीं होता)। तदनुसार, इस कार्यदल ने सिफारिश की है कि रिज़र्व बैंक मौलिक बैंकिंग सेवाएं देने के लिए बैंकों के लिए लागत निर्धारण और मूल्यांकन हेतु कदम उठाए।

कार्यदल ने बैंक प्रभारों के औचित्य से संबंधित व्यापक सिद्धांत प्रतिपादित किए हैं। व्यक्तियों को पेश किए गए प्रभारों के लिए बैंक उच्चतम सीमा के अधीन यथामूल्य प्रभार लगाएंगे। कार्यदल ने व्यक्तियों से इतर खाता धारकों की तुलना में व्यक्तियों के लिए अपेक्षाकृत कम दरें, वरिष्ठ नागरिकों, ग्रामीण ग्राहकों, पेंशनभोगियों, आदि जैसे लोगों के विशेष वर्ग के लिए कम दरें तय करने की सिफारिश की है।

कार्यदल ने यह भी सिफारिश की है कि बैंक व्यक्तिश: ग्राहकों को मौलिक सेवाओं के लिए लागू सभी प्रभारों के संबंध में पूरी सूचना दें तथा प्रभारों में प्रस्तावित परिवर्तन की सूचना समयोचित ढंग से दी जाए। बैंकों को सेवा प्रभारों की वसूली के लिए ग्राहकों को यथोचित ढंग से सूचित करना होगा। जब बैंक द्वारा स्वयं कोई लेनदेन करने पर अपेक्षित न्यूनतम शेषराशि कम हो जाए या कम होने की संभावना हो तो ऐसे सभी मामलों में बैंकों को ग्राहकों को सूचित करना होगा।

जहां तक बैंक द्वारा व्यवहार संहिता के अनुपालन की निगरानी का संबंध है, कार्यदल ने यह सिफाारिश की है कि भारतीय बैंकिंग संहिता और मानक बोर्ड सेवा प्रभारों संबंधी शिकायतों के ब्यौरे सदस्य बैंकों से प्राप्त कर सकता है। कार्यदल ने यह भी सुझाव दिया है कि असामान्य वृद्धियों का पता लगाने के लिए भारतीय बैंकिंग संहिता और मानक बोर्ड सेवा प्रभारों के स्तरों में परिवर्तन पर नज़र रख सकता है। भारतीय बैंकिंग संहिता और मानक बोर्ड महत्वपूर्ण अनुपालन के क्षेत्रों का पता लगाने के लिए उपभोक्ता संगठनों और ग्राहक सर्वेक्षणों से भी प्रतिसूचना (फीडबैक) प्राप्त कर सकता है।

विनय प्रकाश श्रीवास्तव

प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2006-2007/381

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