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भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों/वित्तीय संस्‍थाओं द्वारा अग्रिमों की पुनर्संरचना पर विद्यमान विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों की समीक्षा के लिए कार्यदल की रिपोर्ट जारी किया

20 जुलाई 2012

भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों/वित्तीय संस्‍थाओं द्वारा अग्रिमों की पुनर्संरचना पर
विद्यमान विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों की समीक्षा के लिए कार्यदल की रिपोर्ट जारी किया

भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआइ) ने आज अपनी वेबसाईट पर बैंकों/वित्तीय संस्‍थाओं द्वारा अग्रिमों की पुनर्संरचना पर विद्यमान विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों की समीक्षा के लिए कार्यदल (डब्‍ल्‍यूजी) की रिपोर्ट (अध्‍यक्ष: श्री बी. महापात्रा) जारी किया। इस रिपोर्ट पर अभिमत 21 अगस्‍त 2012 तक प्रभारी मुख्‍य महाप्रबंधक, बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, केंद्रीय कार्यालय, मुंबई-400001 को ई-मेल किए जा सकते थे अथवा भेजे जा सकते थे।

इस कार्यदल ने इस परिप्रेक्ष्‍य में इसे दिए गए अधिदेश का अनुसरण किया कि अग्रिमों की पुनर्संरचना एक उपयोगी सामाजिक प्रयोजन का कार्य करती है क्‍योंकि यह अर्थव्‍यवस्‍था की उत्‍पादक आस्तियों की रक्षा करती है। इसने इस परिप्रेक्ष्‍य में भी इस मुद्दे का अनुसरण किया कि किसी खाते की अंतर्राष्‍ट्रीय रूप से पुनर्संरचना को एक सुधार के कार्य के रूप में समझा जाता है जो इस बात से निरपेक्ष है कि किसी खातें की आस्ति वर्गीकरण स्थिति को कम करके आंका गया है अथवा नहीं। तथापि, कार्यदल ने एक क्रमिक और समायोजित दृष्टिकोण प्रस्‍तावित किया है।

इस कार्यदल की मुख्‍य अनुशंसाएं इस प्रकार हैं :

  • भारतीय रिज़र्व बैंक अंतर्राष्‍ट्रीय  विवेकपूर्ण उपायों के अनुरूप ऋणों और अग्रिमों की पुनर्संरचना पर आस्ति वर्गीकरण, प्रावधानीकरण और पूँजी पर्याप्‍तता से संबंधित विनियामक सहिष्‍णुता को समाप्‍त कर सकता है। तथापि, वर्तमान घरेलू समष्टिआर्थिक स्थिति के साथ-साथ वैश्विक स्थिति की दृष्टि से इस उपाय पर ऐसा कहें तो दो वर्षों की एक अवधि के बाद विचार किया जा सकता है। (पैरा 6.9)

  • पुनर्संरचना (स्‍टाफ) पर मानक के रूप में वर्गीकृत विद्यमान आस्तियों में निहित जोखिमों की विवेकपूर्ण ढंग से पहचान के लिए इस सहिघ्‍णुता में ऐसे खातों पर प्रावधानी अपेक्षा दो वर्षों की अवधि के दौरान चरणबद्ध रूप में वर्तमान के 2 प्रतिशत से बढ़ाकर 5 प्रतिशत अर्थात् पहले वर्ष में 3.5 प्रतिशत और दूसरे वर्ष में 5 प्रतिशत की जाए। तथापि, मानक आस्ति (प्रवाह) की नई पुनर्संरचना के मामले में 5 प्रतिशत के प्रावधान तात्‍कालिक प्रभाव से किए जाएं। (पैरा 6.10)

  • पुनर्संरचना पर आस्ति वर्गीकरण हितलाभ को क्रमिक रूप से समाप्‍त करने के लिए अनुशंसा के बावजूद कार्यदल ने महसूस किया कि मूलभूत सुविधा परियोजना ऋणों के वाणिज्यिक परिचालन के प्रारंभ की तारीख (डीसीसीओ) के परिवर्तन के मामले में विद्यमान आस्ति वर्गीकरण हितलाभों को विभिन्‍न प्राधिकारियों से स्‍वीकृति प्राप्‍त करने में शामिल अनिश्चितताओं तथा राष्‍ट्रीय वृद्धि और विकास में क्षेत्र के महत्‍व की दृष्टि से कुछ और समय तक जारी रहने की अनुमति दी जाए। (पैरा 6.1.1)

  • पुनर्संरचना पर अनर्जक आस्तियों के रूप में वर्गीकृत खाते वर्तमान में 'विशिष्‍ट अवधि' के दौरान 'संतोषप्रद कार्यनिष्‍पादन' के पाए जाने के बाद 'मानक' श्रेणी में उन्‍नयन के लिए पात्र हैं। विाशिष्‍ट अवधि को उस तारीख से एक वर्ष की अवधि के रूप में पारिभाषित किया गया है जब पुनर्संरचना पैकेज की शर्तों के अंतर्गत ब्‍याज अथवा मूलधन के किस्‍त की पहली चुकौती बकाया होती है। कार्यदल ने अनुशंसा की है कि मुहलत की अधिकतम अवधि वाली ऋण सुविधा पर 'विशिष्‍ट अवधि को एकाधिक ऋण सुविधाओं के साथ पुनर्संरचना के मामले में ब्‍याज अथवा मूलधन का पहला भुगतान जो भी बाद में हो की शुरूआत से 'एक वर्ष' के रूप में पुन: पारिभाषित किया जाए। (पैरा 6.19)

  • अधिमान शेयरों के रूप में ऋण का परिवर्तन केवल अंतिम उपाय के रूप में किया जाए। इक्विटी/अधिमान शेयरों में ऋण का परिवर्तन भी एक उच्‍च्‍तम सीमा (जैसाकि पुनर्संरचित ऋण का 10 प्रतिशत) तक प्रतिबंधित किया जाए। इसके अतिरिक्‍त ईक्विटी में ऋण का परिवर्तन केवल सूचीबद्ध कंपनियों के मामले में ही किया जाए। (पैरा 6.52 और 6.53)

  • सीडीआर व्‍यवस्‍था के अंतर्गत भारी निवेशों की पुनर्संरचना के मामले में प्रवर्तकों के त्‍याग की एक उच्‍चतर राशि पर विचार किए जाने की ज़रूरत है। इसके अलावा प्रवर्तकों के योगदान को पुनर्संरचित खातें के उचित मूल्‍य के ह्रास के न्‍यूनतम 15 प्रतिशत तक अथवा पुनर्संरचित ऋण का 2 प्रतिशत जो भी अधिक हो निर्धारित किया जाए। (पैरा 6.50)

  • चूँकि वैयक्तिक गारंटी का निर्धारण ''इस खेल आवरण'' अथवा प्रवर्तकों की वैयक्तिक गारंटी प्राप्‍त करते हुए पुनर्संरचित पैकेज के लिए प्रतिबद्धता को सुनिश्चित करेगा जिसे पुरर्संरचना के सभी मामलो में अर्थात् अर्थव्‍यवस्‍था और उद्योग से संबंधित बाह्य कारकों के कारण यदि पुनर्संरचना आवश्‍यक हो, अनिवार्य अपेक्षा बनाई जाए। इसके अतिरिक्‍त कंपनी गारंटी को प्रवर्तक की वैयक्तिक गारंटी के लिए स्‍थानापन्‍न के रूप में विचार नहीं किया जाए। (पैरा 6.66 और 6.67)

  • भारतीय रिज़र्व बैंक सीडीआर कक्ष द्वारा उपयोग में लाए गए मानदण्‍डों पर आधारित अर्थक्षम मानदण्‍ड के लिए व्‍यापक बेंचमार्क निर्धारित कर सकता है तथा बैंक उपयुक्‍त ढंग से समुचित समायो‍जनों यदि हों, सहित विशिष्‍ट क्षेत्रों के लिए स्‍वीकार कर सकते हैं। कार्यदल ने यह भी भी महसूस किया कि गैर-मूलभूत सुविधा उधार खातों के लिए निर्धारित 7 वर्षों का समय विस्‍तार और पुनर्संरचना पर अर्थक्षम होने के लिए मूलभूत सुविधा खातों हेतु 10 वर्षों का निर्धारित समय-विस्‍तार बहुत अधिक है और बैंकों को इसे एक बाहरी सीमा के रूप में लेना चाहिए। अत: कार्यदल ने अनुशंसा की है कि वैसे समय में जब अर्थव्‍यवस्‍था में कोई सामान्‍य गिरावट नहीं है, अर्थक्षम समय-विस्‍तार गैर मूलभूत सुविधा मामलों में 5 वर्ष तथा मूलभूत सुविधा मामलों में 8 वर्ष से अधिक नहीं होना चाहिए। (पैरा 6.24 और 6.25)

  • वर्तमान दिशानिर्देशों के अनुसार बैंकों से यह अपेक्षित है कि वे वार्षिक रूप से संचयी आधार पर अपनी बहियों में सभी पुनर्संरचित खातों का प्रकटन करें यद्यपि उनमें से कई ने बाद में एक पर्याप्‍त दीर्घ अवधि के दौरान संतोषप्रद कार्यनिष्‍पादन दर्शाया होगा। अत: कार्यदल ने अनुशंसा की है कि पुनर्संरचित अग्रिमों पर एक बार उच्‍चतर प्रावधान और जोखिम भार (यदि लागू करने योग्‍य हों) निर्धारित अवधि के भीतर संतोषप्रद कार्यनिष्‍पादन के कारण सामान्‍य स्‍तर पर वापस लौटते हैं तो ऐसे अग्रिमों को बैंकों द्वारा अपने वार्षिक तुलनपत्रों में ''लेखे पर टिप्‍पणी'' में पुनर्संरचित लेखे के रूप में प्रकट करना आगे अपेक्षित नहीं होगा। (पैरा 6.28)

  • कार्यदल ने यह पाया है कि ऐसे मामले हैं जिन्‍हें पुनर्संरचना के पूर्व अर्थक्षम पाया गया है लेकिन अर्थक्षमता बताने वाली धारणा उचित समय पर कार्यान्वित नहीं की गई है। ऐसे भी मामले हैं जहॉं अनुमोदित पुनर्संरचना पैकेज बाहरी कारणों अथवा प्रवर्तकों द्वारा शर्तों के पालन नहीं करने के कारण संतोषप्रद ढंग से कार्यान्वित नहीं किए जा सके हैं। कार्यदल ने अनुशंसा की है कि इन मामलो में बैंकों को पहले ही स्थिति का आकलन करने तथा हानि को न्‍यूनतम बनाने की दृष्टि से बर्हिगत विकल्‍पों के उपयोग करने के लिए सूचित किया जाए। कार्यदल ने यह अनुशंसा भी की है कि पुनर्संरचना की शर्तों में 'पुचकारो और पीटो'' का सिद्धांत निहित रहे अर्थात् पुनर्संरचना अर्थक्षम लेखों के लिए एक प्रोत्‍साहन होते हुए इसमें पुनर्संरचना की शर्तों का पालन नहीं करने और कार्यनिष्‍पादन नहीं किए जाने के लिए फटकार भी होनी चाहिए। (पैरा 6.5)

  • सीडीआर कक्ष द्वारा जारी वर्तमान दिशानिर्देंशों के कारण जिसमें आवर्ती आधार पर पुन: क्षतिपूर्ति की गणना और यह कि इस प्रकार परिगणित पुन: क्षतिपूर्ति का 100 प्रतिशत देय हो, सीडीआर प्रणाली से कंपनियों का बर्हिगमन नहीं हो रहा है। अत: कार्यदल ने अनुशंसा की है कि क्‍या सीडीआर स्‍थायी फोरम/मुख्‍य कार्यदल यह विचार कर सकता है कि 'पुन: क्षतिपूर्ति पर उनकी धारा को सीडीआर कक्ष से उधारकर्ताओं के बर्हिगमन को सुविधा प्रदान करने के लिए कुछ लचीला बनाया जा सकता है। तथापि, इसने यह अनुशंसा भी की है कि किसी भी स्थिति में गणना की गई पुन: क्षतिपूर्ति की राशि के 75 प्रतिशत उधार की वसूली उधारकर्ता से की जाए तथा पुनर्संरचना के उन मामलों में जहॉं आधार दर से कम एक सुविधा स्‍वीकृत की गई है, पुन: क्षतिपूर्ति की राशि के 100 प्रतिशत की वसूली की जाए। कार्यदल ने यह अनुशंसा भी की है कि वर्तमान में 'पुन: क्षतिपूर्ति' धारा  की सिफारशी प्रकृति को गैर-सीडीआर पुनर्संरचना के मामलों में भी अनिवार्य किया जाए। (पैरा 6.63 और 6.64)

पृष्‍ठभूमि

यह स्‍मरण होगा कि 25 अक्‍टूबर 2011 को घोषित मौद्रिक नीति 2011-12 की दूसरी तिमाही समीक्षा में यह प्रस्‍तावित किया था कि बैंकों/वित्तीय स्‍ंस्‍थाओं द्वारा अग्रिमों की संरचना पर विद्यमान विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों की समीक्षा की जाए तथा सर्वोत्‍तम अंतर्राष्‍ट्रीय व्‍यवहारों और लेखांकन मानकों को ध्‍यान में रखते हुए संशोधन प्रस्‍तावित किए जाएं। तदनुसार, 31 जनवरी 2012 को श्री बी. महापात्रा, कार्यपालक निदेशक, भारतीय रिज़र्व बैंक की अध्‍यक्षता में एक कार्यदल गठित किया गया। इस कार्यदल में भारतीय रिज़र्व बैंक, चयनित वाणिज्यिक बैंकों, भारतीय बैंक संघ, सीडीआर कक्ष और एक क्रम निर्धारण एजेंसी का प्रतिनिधित्‍व करने वाले सदस्‍य शामिल थे। इस कार्यदल से यह अपेक्षित था कि वह 31 जुलाई 2012 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्‍तुत कर दे।

अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/108

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