भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति एवंप्रगति पर रिपोर्ट - 2002-03 जारी की - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति एवंप्रगति पर रिपोर्ट - 2002-03 जारी की
भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति एवं
प्रगति पर रिपोर्ट - 2002-03 जारी की
17 नवम्बर 2003
भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति एवं प्रगति पर रिपोर्ट, 2002-03 जारी की। यह रिपोर्ट वर्ष 2002-03 के दौरान वाणिज्यिक बैंकों, सहकारी बैंकों, वित्तीय संस्थाओं तथा गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के संबंध में उनके कार्यनिष्पादन तथा नीतिगत गतिविधियों पर विस्तृत विवरण प्रस्तुत करती है। यह रिपोर्ट सात अध्यायों में विभक्त है तथा इसमें बैंकों एवं वित्तीय संस्थाओं के लिए विभिन्न मानदंडों पर विस्तृत सांख्यिकीय सारणियां दी गयी हैं।
समीक्षा
"समीक्षा" शीर्षक वाले प्रथम अध्याय में वर्ष 2002-2003 के दौरान समष्टि आर्थिक गतिविधियों तथा विभिन्न प्रकार की वित्तीय मध्यस्थ संस्थाओं के कार्यनिष्पादन पर संक्षिप्त दृष्टि डाली गई है। यह पाया गया है कि भारतीय बैंकिंग प्रणाली ने वर्ष 2002-2003 की अवधि में सुदृढ़ कार्यनिष्पादन दर्ज किया। वित्तीय क्षेत्र के अन्य खण्डों, अर्थात् सहकारी बैंकों, वित्तीय संस्थाओं, तथा गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के वित्तीय कार्यनिष्पादन कम संतोषप्रद रहे।
वाणिज्यिक बैंकिंग में नीतिगत गतिविधियाँ
"वाणिज्यिक बैंकों में नीतिगत गतिविधियों" पर दूसरे अध्याय में वर्ष 2002-2003 की अवधि में बैंकिंग क्षेत्र में किये गये नीतिगत उपायों की समीक्षा दी गई है।प्रौद्योगिकी विकास तथा विधिक सुधारों सहित विनियामक एवं पर्यवेक्षी परिवर्तनों को भी इस अध्याय में शामिल किया गया है। बढ़ती हुई बाजार उन्मुख अर्थव्यवस्था के अनुरूप रिज़र्व बैंक ने पर्यवेक्षी ढाँचे को सुदृढ़ करना जारी रखा। पर्यवेक्षी उपायों में समेकित पर्यवेक्षण के लिए दिशनिर्देश जारी करना तथा जोखिम आधारित पर्यवेक्षण एवं त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई के क्रमिक कार्यान्वयन, ऋण तथा बाजार जोखिम प्रबंधन तथा देश जोखिम के लिए मार्गदर्शी नोटों के माध्यम से जोखिम प्रबंधन को सुदृढ़ करना तथा उधारदताओं के लिए निष्पक्ष आचार संहिता तैयार करना शामिल है। इसे, लेखा मानकों में अभिवृद्धि तथा कंपनी नियंत्रण को मजबूत बनाने के लिए कई उपायों द्वारा और सहज बनाया गया। प्रतिभूतिकरण और वित्तीय आस्तियों के पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम (सिक्यूरिटाइज़ेशन एंड रिकन्स्ट्रक्शन ऑफ फाइनांशियल एस्सेट्स एण्ड एन्फोर्समेंट ऑफ सिक्युरिटी इन्टरेस्ट), 2002 बैंकों को गैर-निष्पादक आस्तियों के निपटान के लिए अवसर प्रदान कर सकता है।
वाणिज्यिक बैंकों में गतिविधियाँ
" वाणिज्यिक बैंकों में गतिविधियाँ" पर तीसरा अध्याय अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के वित्तीय कार्यनिष्पादन को सकल रूप में मुख्य बैंकिंग समूहों, यथा, महत्वपूर्ण वित्तीय संकेतकों जैसे कि आय, व्यय, लाभ, विस्तार (स्प्रेड) गैर निष्पादक आस्तियाँ तथा जोखिम भारित आस्ति अनुपात के लिए पूँजी के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, निजी क्षेत्र के नए और पुराने बैंकों तथा विदेशी बैंकों के अलग-अलग वित्तीय कार्य निष्पादन का विश्लेषण भी उपलब्ध कराता है। इसके अतिरिक्त इस अध्याय में वाणिज्यिक बैंकों के आय-व्यय विवरण के भिन्न-भिन्न आँकड़े भी दिये गये हैं। प्रतिभूतिकरण और वित्तीय आस्तियों के पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम (एसएआरएफएइएसआई), 2002 के अंतर्गत प्रगति को भी इस अध्याय में प्रस्तुत किया गया है। प्राधिकृत व्यापारियों के रूप में बैंकों की भूमिका तथा उनकी विदेशी आस्तियों की संरचना की जाँच भी की गई है।
सहकारी बैंकिंग में गतिविधियाँ
नाबाड़ द्वारा अदा की गई भूमिका सहित वर्ष 2002-03 की अवधि में प्रमुख गतिविधियां तथा सहकारी ऋण संस्थाओं के संबंध में किए गए विनियामक उपायों पर "सहकारी बैंकिंग में गतिविधियाँ" वाले चतुर्थ अध्याय में चर्चा की है। इस अध्याय की विशेष चर्चा में व्यष्टि-वित्त से संबंधित मामले शामिल हैं। शहरी सहकारी बैंकों के मामले में, भारतीय रिज़र्व बैंक ने कार्यस्थल से बाहर (ऑफ साइट) प्रतिलाभ उनकी जोखिम भारित आस्ति की तुलना में पूंँंजी का अनुपात (सीआरएआर) के अनुसार क्रम निर्धारण सहित विवेकपूर्ण उपाय शुरू किए हैं तथा वृहतर तुलन पत्र घोषणाओं के माध्यम से पारदर्शिता में वृद्धि की है।
वित्तीय संस्थाएँ
"वित्तीय संस्थाओं"पर पांचवें अध्याय में वित्तीय संस्थाओं द्वारा महसूस की जा रही अड़चनों तथा वित्तीय क्षेत्र के इस भाग में हो रहे संरचनात्मक परिवर्तनों पर चर्चा की गयी है। वित्तीय संस्थाएँ, कंपनियों के लिए वित्त के वैकल्पिक क्षेत्रों की बढ़ती हुई भूमिका के साथ-साथ परियोजना वित्त के लिए माँग में कम तेजी को दर्शाते हुए अपनी संस्वीकृति एवं वितरण के मामले में पुन: एक क्षेत्र के रूप में सिमट गयीं। समीक्षाधीन वर्ष के दौरान चयनित वित्तीय संस्थाओं से संबंधित विनियामक तथा पर्यवेक्षी नीति परिवर्तनों का केन्द्र बिन्दु विवेकपूर्ण मानदंडों को मज़बूत बनाने पर रहा है।
गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ
"गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ" पर छठा अध्याय, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के विभिन्न संघटकों तथा वर्ष के दौरान उनके विनियामक ढाँचे में परिवर्तनों का एक व्यापक नज़रिया प्रस्तुत करता है। इस संदर्भ में, आस्ति पुनर्निर्माण कंपनियों के संबंध में दिशानिर्देश तथा गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए तुलन पत्र घोषणाओं पर चर्चा की गयी है। रिज़र्व बैंक, आस्ति देयता प्रबंधन मानदंडों की परिचालनात्मकता सहित गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए पर्यवेक्षी ढाँचे को सुदृढ़ करता रहा है। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की विभिन्न श्रेणियों के संबंध में आम जनता की जमा राशियों से संबंधित ब्योरे, ब्याजदर, परिपक्वता ढाँचा तथा क्षेत्रीय वितरण एवं वर्ष 2001-2002 के लिए गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के वित्तीय कार्यनिष्पादन पर चर्चा की गई है। इस अध्याय में वर्ष 2002-2003 के दौरान नीतिगत गतिविधियों तथा प्राथमिक व्यापारियों के व्यक्तिगत कार्यनिष्पादन पर भी चर्चा की गई है।
परिदृश्य
"परिदृश्य" पर अंतिम अध्याय में, बैंकिंग प्रणली में विवेकपूर्ण मानदंडों के सुदृढ़ीकरण तथा जारी संरचनात्मक परिवर्तनों को सम्मिलित करते हुए एक मध्यावधि प्रगामी दृष्टिकोण भी प्रस्तुत किया गया है।
यह रिपोर्ट भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट
www.rbi.org.in पर उपलब्ध है।अल्पना किल्लावाला
महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2003-2004/633