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भारतीय रिज़र्व बैंक ने दिसंबर 2015 का मासिक बुलेटिन जारी किया

10 दिसंबर 2015

भारतीय रिज़र्व बैंक ने दिसंबर 2015 का मासिक बुलेटिन जारी किया

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने मासिक बुलेटिन का दिसंबर 2015 अंक जारी किया। इस बुलेटिन अंक में वर्ष 2015-16 का पांचवां द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य शामिल है। इस अंक में एनडीटीवी पर 5 नवंबर 2015 को इकोनॉमी अनप्लग्डः गवर्नर रघुराम जी. राजन और सीईए अरविंद सुब्रमणियन की डॉ. प्रणव रॉय के साथ बाचतीत की असंपादित लिखित प्रतिलिपि को भी प्रकाशित किया गया है।

इसके अतिरिक्त, इस बुलेटिन में शीर्ष प्रबंध तंत्र के भाषण, वर्तमान सांख्यिकी और दो आलेख अर्थात (1) भारतीय अर्थव्यवस्था के निधि प्रवाह लेखेः 2013-14 और (2) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कंपनियों की वित्तीय स्थिति: 2013-14 शामिल हैं।

वर्ष 2015 के लिए बुलेटिन के इस अंतिम अंक में ‘बुलेटिन आलेखों के लिए सांकेतिक कैलेंडर, 2016’ भी है।

इस अंक में शामिल दो आलेखों के मुख्य निष्कर्षों को नीचे दिया गया है।

1. भारतीय अर्थव्यवस्था के निधि प्रवाह लेखेः 2013-14

भारतीय रिज़र्व बैंक निधि प्रवाह लेखों को संकलित करता है जो ‘किससे किसको आधार’ पर भारतीय अर्थव्यवस्था में वित्तीय लिखतों में सभी लेनदेनों को दर्शाते हैं। अर्थव्यवस्था के छह प्रमुख क्षेत्रों अर्थात बैंकिंग, अन्य वित्तीय संस्थाएं (ओएफआई), निजी कॉर्पोरेट कारोबार (पीसीबी), सरकार, शेष विश्व (आरओडब्ल्यू) और परिवार पर विचार किया जाता है। वित्तीय लिखतों के प्रमुख नौ शीर्षों अर्थात मुद्रा और जमाराशियां, निवेश, ऋण और अग्रिम, लघु बचत, जीवन निधि, भविष्य निधि, व्यापार ऋण, और कहीं वर्गीकृत नहीं होने वाले विदेशी दावे (एनईसी) तथा अन्य दावे जो और कहीं वर्गीकृत नहीं हैं, के तहत लेनदेनों की सूचना दी जाती है।

यह आलेख वर्ष 2012-13 के लिए संशोधित/अद्यतित आंकड़ों के साथ वर्ष 2013-14 के लिए निधि प्रवाह लेखों का विश्लेषण प्रस्तुत करता है।

प्रमुख निष्कर्ष:

  • बचत निवेश अंतराल द्वारा मापित और चालू खाता घाटे (सीएडी) में प्रतिबिंबित अर्थव्यवस्था के समग्र संसाधन संतुलन में पिछले दो वर्षों की तुलना में वर्ष 2013-14 में काफी सुधार हुआ। इस समेकन के चलते निजी गैर-वित्तीय निगमों के निवल संसाधन अंतराल में काफी कमी आई और वर्ष 2012-13 के अंत में कर तथा प्रशासनिक प्रतिबंध लगाने से मूल्यवान वस्तुओं (मुख्य रूप से स्वर्ण) के निवेश में महत्वपूर्ण कमी आई।

  • सार्वजनिक क्षेत्र के बजट के निरंतर दबाव के बावजूद वित्तीय संसाधन जुटाने में वर्ष 2013-14 में लगातार तीसरे वर्ष गिरावट आई जैसाकि सभी क्षेत्रों द्वारा जारी समग्र दावों में सामान्य गिरावट में दिखाई दिया।

  • वर्ष 2013-14 के कुल दावों में बैंकिंग क्षेत्र की प्रमख हिस्सेदारी जारी रही। सरकारी क्षेत्र जिसका वित्तपोषण मुख्य रूप से बैंकिंग क्षेत्र द्वारा किया जाता है, ने ओएफआई क्षेत्र पर अपनी निर्भरता बढ़ाई।

  • बैंकिंग और ओएफआई क्षेत्र परिवार क्षेत्र के संसाधनों के मुख्य प्राप्तकर्ता रहे जो बदले में वित्तीय अधिशेष का प्रमुख आपूर्तिकर्ता रहा।

  • वर्ष 2013-14 में निवेश सबसे अधिक पसंदीदा लिखत बन गया। मुद्रा और जमाराशियों की हिस्सेदारी में वृद्धि जारी रही जिसका कारण वर्ष 2013-14 के दौरान एफसीएनआर (बी) जमाराशियों में अत्यधिक बढ़ोतरी था।

  • वित्तीय अंतर-संबद्धता के उपायों से इस तथ्य की पुष्टि हुई कि बैंकिंग और परिवार क्षेत्र वित्तीय संसाधनों के प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं और इसलिए इन आपूर्ति स्रोतों में अवरोधों से प्रणालीगत प्रभाव पड़ेंगे।

इसके साथ लगाए गए 1 से 9 के विवरणों में प्रत्येक क्षेत्र के लिए लिखत-वार निधि प्रवाह लेखों पर आंकड़े विवरण 1 से 6 में प्रस्तुत किए गए हैं, वार्षिक अंतर-क्षेत्रीय प्रवाहों को वर्ष 2011-12 से 2013-14 के लिए विवरण 7.1 से 7.3 में संक्षेप में दिया गया है, लिखत-वार वित्तीय प्रवाह अलग-अलग प्रत्येक वर्ष के लिए विवरण 8.1 से 8.3 में संक्षेप में दिया गया है और पीसीबी क्षेत्र, सरकारी क्षेत्र और परिवार क्षेत्र के संसाधन अंतराल/वित्तीय अधिशेष के ब्यौरे क्रमशः विवरण 9.1 से 9.3 में दिए गए हैं।

2. प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश कंपनियों की वित्‍तीय स्थिति: 2013-14

इस आलेख में चयनित ऐसी 957 एफडीआई कंपनियों, जिन्‍होंने अप्रैल 2013 से मार्च 2014 की अवधिक के दौरान अपने लेखे बंद किए हों, के लेखापरीक्षित वार्षिक लेखों के आधार पर वर्ष 2013-14 के दौरान गैर-सरकारी गैर-वित्‍तीय प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) कंपनियों के वित्‍तीय कार्यनिष्‍पादन प्रस्‍तुत किया गया है। इस अध्‍ययन में 2011-12 से 2013-14 तक की तीन वर्ष की अवधि के लिए सामान्‍य कंपनियों के संबंध में संकलित आंकड़ों के आधार पर उक्‍त तीन वर्ष का तुलनात्‍मक दृश्‍य प्रस्‍तुत किया गया है।

प्रमुख निष्‍कर्ष:

  • वर्ष 2013-14 में चयनित एफडीआई कंपनियों के उत्‍पादन और परिचालनात्‍मक व्‍ययों के मूल्‍य के साथ ही उनकी बिक्री की वृद्धि दर की गति धीमी हुई। वर्ष 2013-14 में बिक्री दर में 10.2 प्रतिशत की निम्‍नतर वृद्धि दर्ज हुई, जबकि 2012-13 में 14.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी।

  • वर्ष 2013-14 में मुख्‍य रूप से आयात दर में गिरावट और निर्यात दर में वृद्धि के सहारे विनिर्माण व ब्‍याजजन्‍य व्‍ययों में कमी आने की वजह से ब्‍याज, कर, मूल्‍यह्रास और परिशोधन पूर्व अर्जन (ईबीआईटीडीए) तथा निवल लाभों (पीएटी) में वृद्धि दर की स्थिति में सुधार हुआ।

  • आलोच्‍य वर्ष के दौरान चयनित एफडीआई कंपनियों की कुल आस्तियों में मामूली वृद्धि दर्ज हुई। तथापि, पिछले वर्ष की तुलना में 2013-14 में कुल आस्तियों में सकल अचल आस्तियों के हिस्‍से में गिरावट आई। 2013-14 में चयनित एफडीआई कंपनियों की कुल निवल आस्तियों में 13.8 प्रतिशत की मामूली वृद्धि दर्ज हुई, जबकि पिछले वर्ष 11.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।

  • वर्ष 2013-14 में कुल देयताओं में दीर्घावधिक उधारों के हिस्‍से में मामूली वृद्धि हुई, जबकि अल्‍पावधिक उधारों के हिस्‍से में मामूली गिरावट आई, जिसके परिणास्‍वरूप 2012-13 की तुलना में 2013-14 में चयनित एफडीआई कंपनियों के लीवरेज अनुपात में कोई बदलाव नहीं आया।

  • ईबीआईटीडीए मार्जिन द्वारा मापित चयनित एफडीआई कंपनियों के लाभकारिता अनुपातों में मामूली वृद्धि हुई, वहीं पिछले वर्ष की तुलना में वर्ष 2013-14 में आरओई (इक्विटी पर प्रतिफल) में गिरावट आई।

  • चयनित एफडीआई कंपनियां अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए निधियों के बाहरी स्रोतों पर सर्वाधिक निर्भर रहीं; इन निधियों का सर्वाधिक उपयोग अमूर्त आस्तियों और इक्विटी शेयरों में दीर्घावधिक निवेशों के साथ-साथ पूंजीगत चालू कार्य में आस्ति निर्माण के लिए किया गया।

संगीता दास
निदेशक

प्रेस प्रकाशनी : 2015-2016/1370

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