भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने सामयिक पेपर का शरदकालीन 2009 अंक जारी किया - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने सामयिक पेपर का शरदकालीन 2009 अंक जारी किया
16 अगस्त 2010 भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने सामयिक पेपर का शरदकालीन 2009 अंक जारी किया भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने सामयिक पेपर का शरदकालीन 2009 अंक जारी किया। सामयिक पेपर रिज़र्व बैंक की एक अनुसंधान पत्रिका है और इसमें बैंक के स्टाफ का योगदान है तथा यह इसके लेखकों के विचारों को दर्शाता है। इसे कुछ महत्त्वपूर्ण विषयों के अनुसार तैयार किया गया है जो नीति चर्चा के प्रमुख विषय रहे हैं। इसमें आलेख, विशेष नोट और पुस्तक समीक्षाएं शामिल है। इस अंक में जया मोहंती द्वारा तैयार किया गया ‘अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और सीविल सोसायटी संगठन : एक वार्ता’ शीर्षक पेपर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) और सीविल सोसायटी संगठन (सीएसओ) के बीच संबंधों पर प्रकाश डालता है। केंद्रीय बैंकरों और सरकारी अधिकारियों का एक विशिष्ट क्लब अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एशियाई संकट के बाद वर्ष 1990 के दशक में बढ़ती हुई सार्वजनिक आलोचना का एक उद्देश्य बन गया था। हाल के आर्थिक संकट ने प्राय: संसाधनों की प्रारंभिक वृद्धि के साथ वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में अपनी भूमिका को दुहराया है। इसकी नीतियाँ भी सहायता की माँग करनेवाले देशों की आर्थिक अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए अनुकूल बनाई गई दिखाई देती हैं। अभिशासन मामलों पर सीविल सोसायटी संगठन के विचारों को जानने के लिए पहली बार अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने प्रयास किए हैं। इस प्रक्रिया को अन्य तीन स्तंभों (i) मई 2008 में आइइओ द्वारा प्रस्तुत अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का अभिशासन, (ii) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष कंपनी अभिशासन पर कार्यदल की रिपोर्ट और (iii) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष अभिशासन सुधार पर विख्यात व्यक्तियों की समिति के इनपुट के साथ ‘चतुर्थ स्तंभ’ नाम दिया गया है। लेकिन इन दोनों संस्थाओं का स्वभाव ही उनके कार्य की सीमा निर्धारित करता है। इस सीमा के होते हुए भी वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक नए और उच्चतर वृद्धि पथ पर अंतरण को सुविधा प्रदान करने के लिए एक जारी क्रियाशीलता आवश्यक है। सुनील कुमार और एस.एम.लोकारे द्वारा ‘भारत में बाह्य क्षेत्र खुलापन और क्रय शक्ति समानता : एक व्याख्या’ पर एक पेपर तैयार किया गया है। साहित्य में विनिमय दर प्रतिदर्श यह मानता है कि क्रय शक्ति समानता (पीपीपी) खुले बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में क्रियाशील रहती है। क्रय शक्ति समानता की स्थिति न केवल विनिमय दर प्रतिदर्शों में सांकेतिक और वास्तविक आधार की प्रकृति को समझने में सहायता करती है बल्कि वास्तविक विनिमय दर (आरइआर) विषमता की गणना करने में भी नीति निर्माताओं और अनुसंधानकर्ताओं की सहायता करती है। इस पेपर का मुख्य उद्देश्य वर्ष 1970 से वर्ष 2009 तक के मासिक आँकड़ों का उपयोग करते हुए सुधारपूर्व और सुधार के बाद की अवधियों के दौरान भारत के मामले में क्रय शक्ति समानता स्थिति की वैधता की जाँच करना है। परिणाम यह बताते हैं कि वास्तविक मौलिक सिद्धांत जो क्रय शक्ति समानता स्थिति धारण करने के अवसर व्यापक बाह्य क्षेत्र खुलेपन और समेकन तथा एक बाजार निर्धारित विनिमय दर वाली अर्थव्यवस्था में सुधरते हैं। सौरभ घोष और स्नेहल हरवाडकर द्वारा ‘विदेशी पोर्टफोलियो प्रवाह और भारत में वित्तीय बाज़ारों पर उनका प्रभाव’ शीर्षक पेपर के विशेष नोट वाले भाग में वैश्विक वित्तीय संकट के पहले वाले दशक के दौरान भारतीय वित्तीय बाज़ारों के विभिन्न खण्डों पर पोर्टफोलियो प्रवाह का विश्लेषण किया गया है। परीक्षण के परिणाम यह प्रस्तावित करते हैं कि पोर्टफोलियो प्रवाह इक्विटी मूल्यों के साथ-साथ विनिमय दरों में परिवर्तन लाते हैं। संक्षेप में, निवल विदेशी संस्थागत निवेश प्रवाह के प्रति एक सकारात्मक आघात से इक्विटी मूल्यों, विनिमय दर (आइएनआर/यूएसडी) मूल्यांकन में वृद्धि होती है तथा ब्याज दरों में कमी आती है। इन प्रतिक्रियाओं का परिमाण समय के दौरान गहराता जाता है और एक समतुल्यन मार्ग की ओर संकेंद्रित होता जाता है। दीर्घावधि गुणांक का परिमाण और दिशा सामान्यत: अल्पावधि निष्कर्षों की सहायता करती है। दूसरी ओर नकारात्मक और उल्लेखनीय भूल सुधार अवधि दीर्घावधि समतुल्यन के प्रति गतिविधि और भारतीय वित्तीय बाज़ारों के अनुकूलन का संकेत करती है। राजीव जैन और जे.बी.सिंह द्वारा ‘सार्क देशों में व्यापार ढाँचा : उभरती हुई प्रवृत्तियाँ और मुद्दे’ शीर्षक दूसरा पेपर इस खण्ड में दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) व्यापार का विश्लेषण करता है। यह पेपर सार्क क्षेत्र पण्य वस्तु व्यापार निष्पादन तथा आंतर-सार्क व्यापार में प्रवृत्ति का भी विश्लेषण करने का प्रयत्न करता है। सार्क देशां (भारत, पाकिस्तान, बांगलादेश और श्रीलंका) के कारोबारी बास्केट का संक्षिप्त विश्लेषण दर्शाता है कि प्रमुख सार्क देशों का निर्यात बास्केट उल्लेखनीय रूप से एक जैसा है। वह यह दर्शाता है कि वे अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में एक-दूसरे के प्रतिस्पर्धी हैं। ग्रुबेल-लॉयड सूचकांक सार्क देशों में बढ़ते हुए आंतर-उद्योग कारोबार के अनुभवजन्य प्रमाण उपलब्ध कराता है जो संभवत: उस व्यापार और उद्योग सुधार की एक शाखा है जो हाल के वर्षों में शुरू हुई है। प्रकट तुलनात्मक लाभ सूचकांक की गणना तथा संबद्ध व्यापार तुलनात्मक लाभ (आरटीए) सूचकांक का उपयोग करते हुए विशिष्टता की संरचना की तुलना के द्वारा सार्क क्षेत्र की परस्पर प्रतिस्पर्धा की जाँच करने का भी प्रयास किया गया है। यह पाया गया है कि भारत को अन्य सार्क देशों की अपेक्षा कई भारी उद्योग समूहों में परस्पर तुलनात्मक लाभ हुआ है और यह कि सभी प्रमुख सार्क देशों को वॉााटद्योग क्षेत्र में परस्पर कारोबारी लाभ हुआ है। यह पेपर रेखांकित करता है कि प्रमुख सार्क देशों में उल्लेखनीय कारोबारी चक्र संकेंद्रण के बावजूद व्यापार समेकन एक धीमी गति से बढ़ रहा है। अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2010-2011/251 |