एकरूप मार्ग कोड और खाता संख्या संरचना पर आरबीआई की रिपोर्ट - आरबीआई - Reserve Bank of India
एकरूप मार्ग कोड और खाता संख्या संरचना पर आरबीआई की रिपोर्ट
16 जनवरी, 2013 एकरूप मार्ग कोड और खाता संख्या संरचना पर आरबीआई की रिपोर्ट भारतीय रिजर्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर देश में बैंकों में “एकरूप मार्ग कोड और खाता संख्या संरचना की जांच करने के लिए गठित तकनीकी समिति की रिपोर्ट” जारी की है। समिति का गठन निम्नलिखित की व्यवहार्यता की जांच करने के लिए किया गयाः (ए) भारतीय वित्तीय प्रणाली कोड (आईएफएससी) में शाखा आईडेंटिफायर को रद्द करने, (बी) सभी वित्तीय लेनदेनों के लिए बहु आईडेंटिफायर्स को प्रतिस्थापित कर अंतर्राष्ट्रीय बैंक खाता संख्या (आईबीएएन) को क्रियान्वित करने की इच्छा, (सी) विभिन्न बैंक / शाखा कोड (आईएफएससी/मूल सांख्यिकी नियमावली (बीएसआर) कोड / मैग्नेटिक इंक करैक्टर पहचान (एमसीआईआर) कोड / विश्वव्यापी अंतरबैंक वित्तीय दूरसंचार (स्वीफ्ट) कारोबार पहचानकर्ता कोड (बीआईसी) सोसायटी आदि) को मिलाना। श्री विजय चुग, मुख्य महाप्रबंधक, भुगतान और निपटान प्रणाली विभाग, भारतीय रिजर्व बैंक की अध्यक्षता में इस समिति में बैंकों, भारतीय बैंक संघ, बैंकिंग प्रौद्योगिकी विकास एवं अनुसंधान संस्थान (आईडीआरबीटी) और रिजर्व बैंक के विनियामक विभाग के प्रतिनिधि सदस्यों के रूप में थे। समिति ने विभिन्न पणधारियों के साथ व्यापक परामर्श किए। समिति ने ऐसी सिफारिशें की हैं जिनका बैंकों, भुगतान प्रणालियों के कार्य और बैंकों के साथ ग्राहकों के इंटरफेस पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। मुख्य लाभ जिसका प्रयास किया गया है, वह प्रेषक से केवल एक मापदंड (लाभार्थी का खाता संख्या चाहे पुराना हो) और विभिन्न भुगतान प्रणालियों की योग्यता की आवश्यकता है जिससे कि केवल स्रोत पर ही बैंकिंग प्रणाली में भुगतान अनुदेश की सही प्रदायगी या अस्वीकृति, यदि गलत हो, तो सुनिश्चित हो सके। भारतीय रिजर्व बैंक, भुगतान और निपटान प्रणाली, केन्द्रीय कार्यालय, मुम्बई ने समिति की सिफारिशों के कार्यान्वयन से पहले आम जनता से टिप्पणियां आमंत्रित की हैं। टिप्पणियों को 15 फरवरी, 2013 तक ई-मेल पर भेजा जा सकता है। यह भी याद किया जाए कि 30 अक्तूबर, 2012 को मौद्रिक नीति 2012-13 की दूसरी तिमाही (पैरा 122) में इस समिति के गठन का जिक्र किया गया था। समिति को अपनी रिपोर्ट दिसंबर, 2012 के अंत तक प्रस्तुत करनी थी। आर. आर. सिन्हा प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/1204 |