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भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विकास हेतु प्रोत्साहन

6 दिसंबर 2008

6 दिसंबर 2008

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विकास हेतु प्रोत्साहन

वैश्विक आर्थिक संभावनाओं में पिछले दो महीनों के दौरान तेजी से कमी हुई है। अक्तूबर की शुरूआत में प्रकाशित अपनी विश्व आर्थिक संभावना में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने वर्ष 2008 में 3.9 प्रतिशत और वर्ष 2009 में 3.0 प्रतिशत की वैश्विक वृद्धि की संभावना जताई थी। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने उसके बाद वैश्विक वृद्धि के लिए अपनी संभावना को संशोधित करते हुए इसे वर्ष 2008 के लिए 3.7 प्रतिशत और वर्ष 2009 के लिए 2.2 प्रतिशत बताया है। कई अर्थव्यवस्थाएं अब 1970 के दशक के बाद से सबसे खराब वैश्विक मंदी की संभावना व्यक्त कर रही हैं। कई देशों, उल्लेखनीय रूप से संयुक्त राज्य, यू.के., यूरो क्षेत्र और जापान ने आधिकारिक रूप से मंदी जताई है। सबसे चिंताजनक वर्तमान संकेत यह है कि यह मंदी और गहराएगी और पहले से प्रत्याशित अवधि की अपेक्षा इससे उबरने में देरी होगी।

2. वैश्विक ऋण बाज़ारों में विश्वास लगातार कम हो रहा है और ऋण व्यवस्थाओं में ठहराव आ गया है। ऋण बाज़ारों में कड़ी और असमंजस भरी स्थितियाँ माँग में कमी को उत्पन्न कर रही हैं जो बदले में मंदी - अवमूल्यन के गलत चक्र को पुष्ट कर रहा है। विश्व भर के केंद्रीय बैंक इन गतिविधियों के प्रति आक्रमकता तथा गैर पारंपरिक रूप से चलनिधि डाले जाने, मौद्रिक सहजता, वित्तीय संस्थाओं में उधार देने के लिए संपार्श्विक मानदण्डों तथा पात्रता मानदण्डों में रियायात के द्वारा इन गतिविधियों के प्रति कार्रवाई कर रहे हैं।

3. पूर्व प्रत्याशाओं के विपरीत कि उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं केवल सीमांत रूप से प्रभावित होंगी, उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि संभावनाओं को अति निश्चित रूप में अक्सर सभी देशों में व्यापक परिवर्तन के साथ जारी संकट के समय अनदेखी की गई है। उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में अंतरण व्यापार और वित्तीय दोनों माध्यम से हो रहा है। इस सकंट की संक्रामकता को प्रतिबिंबित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वर्ष 2009 के लिए उभरती हुई अर्थव्यवस्था हेतु अपनी वृद्धि संभावना को अपने पूर्व के अक्तूबर के 6.1 प्रतिशत के आँकड़े से कम करते हुए 5.1 प्रतिशत रखा है।

4. भारत के लिए आगे बढ़ती हुई संभावना मिश्रित रूप की है। आर्थिक गतिविधि के नीचे उतरने के संकेत हैं। वर्ष 2008-09 की पहली छमाही में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि में सुधार हुआ है। औद्योगिक गतिविधि विशेषकर विनिर्माण और मूलभूत सुविधा क्षेत्रों ह्रासोन्मुख हैं। सेवा क्षेत्र में भी जो पिछले पाँच वर्षों में हमारी सर्वोच्च वृद्धि का यंत्र रहा वहाँ मुख्य रूप से निर्माण, परिवहन और संचार, व्यापार, होटल और रेस्तराँ उपक्षेत्रों में कमी हो रही है। 7 वर्षों में पहली बार निर्पेक्ष रूप से अक्तूबर में निर्यात में गिरावट हुई है। हाल के आँकड़े यह संकेत देते हैं कि बैंक ऋण के लिए माँग में सुविधाजनक चलनिधि होने के बावजूद कमी आ रही है। उच्चतर इनपुट लागत और माँग में होती हुई कमी ने कंपनी मार्जिन को प्रभावित किया है जबकि चारों ओर व्याप्त संकट की अनिश्चितता ने कारोबारी विश्वास को प्रभावित किया है।

5. सकारात्मक रूप में हेडलाइन मुद्रास्फीति जिसे थोक मूल्य सूचकांक द्वारा मापा जाता है, में तेजी से गिरावट हुई है और यह गिरावट मुद्रास्फीति में प्रत्याशित गिरावट से अधिक तेजी का संकेत देते हुए पिछले चार सप्ताहों में बनी रही है। स्पष्ट रूप से गिरती हुई पण्य वस्तु कीमतें इस अवस्फीति के पीछे का मुख्य संचालक रही हैं तथापि, कम होती हुई घरेलू माँग से ही कुछ सहयोग मिला है। पिछली रात घोषित की गई पेट्रोल और डीज़ल की कमी से मुद्रास्फीतिकारी दबावों में और सुधार होगा। निश्चयात्मक रूप से सितंबर और अक्तूबर महीनों की उपभोक्ता मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी हुई है। संभवत: यह खाद्य वस्तु मुद्रास्फीति में सुदृढ प्रवृत्ति और उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति के रूप में खाद्य वस्तुओं के अधिक महत्त्व के कारण हुई है। ऐतिहासिक रूप से थोक और उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति के बीच एक पारस्परिक संबंध रहा है और इस पारस्परिक संबंध को देखते हुए उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति में भी आनेवाले महीनों में नरमी की आशा की जा सकती है।

6. उभरती हुई वैश्विक और घरेलू गतिविधियों की प्रतिक्रिया में रिज़र्व बैंक ने सितंबर 2008 के मध्य से ही कई उपाय किए हैं। इन उपायों का लक्ष्य घरेलू और विदेशी मुद्रा चलनिधि को बढ़ाना तथा ऋण गुणवत्ता बरकरार रखते हुए उत्पादक प्रयोजनों के लिए ऋण देने हेतु बैंकों को समर्थ बनाना था ताकि वृद्धि की गति को कायम रखा जा सके।

7. रुपया चलनिधि में विस्तार के लक्ष्य से किए गए उपायों में आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में उल्लेखनीय कमी, सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) में कमी, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफएसी), आवास वित्त कंपनियों (एचएफसी) को ऋण देने हेतु बैंकों के लिए चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत एक विशेष रिपो सुविधा तथा एक विशेष पुनर्वित्त सुविधा शामिल थी जिस तक बैंक बिना संपार्श्विकता के पहुँच स्थापित कर सकते हैं। रिज़र्व बैंक भी चलनिधि के प्रबंध हेतु सरकारी उधार कार्यक्रम को मोटे तौर पर अनुकुल ढंग से बाज़ार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) प्रतिभूतियों को पुन: कार्यान्वित कर रहा है।

8. चलनिधि प्रबंध के लक्ष्य के साथ किए गए उपायों में विदेशी मुद्रा अनिवासी (बैंक) डएफसीएनआरबी और अनिवासी (बाह्य) रुपया खाता डएनआर(इ)आरए जमाराशियों पर आवश्यक रूप से बाह्य वाणिज्यिक उधार (इसीबी) व्यवस्था में रियायत देते हुए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों/आवास वित्त कंपनियों को विदेशी उधार तक पहुँच की अनुमति देते हुए तथा कंपनियों को प्रचलित मंदी वाले वैश्विक बाज़ारों में छूट का लाभ लेने हेतु विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बाँड (एफसीसीबी) की पुनर्खरीद की अनुमति देते हुए ब्याज दर सीमा में उर्ध्वमुखी समायोजन शामिल था। रिज़र्व बैंक ने भी समुद्रापारीय शाखाओं के साथ बैंकों के लिए एक रुपया-डॉलर स्वैप सुविधा लागू की है जिसे उन्हें अपनी अल्पावधि निधीयन आवश्यकताओं का प्रबंध करने में सुविधा होगी।

9. उन क्षेत्रों को जो दबाव के अंतर्गत आते हैं ऋण प्रवाह में प्रोत्साहन के लिए उपायों में निर्यात हेतु लदानपूर्व और लदानोत्तर ऋण की अवधि का विस्तार, निर्यात के लिए पुर्नवित्त सुविधा का विस्तार, सभी प्रकार की मानक आस्तियों (कृषि और लघु एवं मध्यम उद्यमों के लिए प्रत्यक्ष लाभ के मामलों को छोड़कर जो 0.2 प्रतिशत बने हुए हैं) के लिए प्रावधानीकरण का प्रति-चक्रीय समायोजन तथा कतिपय क्षेत्र जो पूर्व में प्रति-चक्रीय रूप में बढ़े हुए थे में बैंकों के निवेश पर जोखिम भार तथा भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (एसआइडीबीआइ) और राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी) के लिए उपलब्ध उधारयोग्य संसाधनों का विस्तार शामिल है।

10. व्यवहार्य लागतों पर उत्पादक क्षेत्रों के लिए ऋण प्रवाह में सुधार करने के लिए ताकि वृद्धि की गति को कायम रखा जा सके, रिज़र्व बैंक ने 19 अक्तूबर को अपनी मुख्य नीति रिपो दर में 150 आधार बिंदुओं तक कमी के द्वारा इसे 9 प्रतिशत से घटाकर 3 नवंबर 2008 को 7.5 प्रतिशत करते हुए अपनी ब्याज दर संरचना में कमी का एक संकेत दिया।

11. सितंबर 2008 के मध्य से लागू किए गए सभी उपायों ने यह सुनिश्चित किया है कि भारतीय वित्तीय बाज़ार एक व्यवस्थित तरीके से कार्य करना जारी रखे हुए हैं। इन उपायों के माध्यम से वित्तीय प्रणाली में उपलब्ध कराई गई प्राथमिक चलनिधि की संचयी राशि 300,000 करोड़ रुपए से अधिक है इस भारी सुविधा ने नवंबर 2008 के मध्य की शुरूआत से एक सुविधाजनक चलनिधि स्थिति को सुनिश्चित किया है जिसे कई संकेतकों द्वारा देखा गया है। 18 नवंबर से चलनिधि समायोजन सुविधा विण्डो व्यापक रूप से आमेलन स्वरूप में रहा है। भारित औसत माँग मुद्रा दर 10 अक्तूबर को 19.7 प्रतिशत की हाल ही की उच्च दर से 5 दिसंबर को 6.1 प्रतिशत कम हुई। ओवर-नाइट मुद्रा बाज़ार दर 3 नवंबर से चलनिधि समायोजन सुविधा की सीमा (6.0 प्रतिशत से 7.5 प्रतिशत तक) के भीतर बनी रही। 10 वर्षीय बेंचमार्क वाली सरकारी प्रतिभूतियों पर प्रतिलाभ 29 सितंबर को 8.6 प्रतिशत से 5 दिसंबर को 6.8 प्रतिशत तक कम हुआ। रिपो दर को घटाने से मिले संकेत से शीर्ष पाँच सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों ने अपनी बेंचमार्क मूल उधार दर (बीपीएलआर) को 1 अक्तूबर की 13.75-14.00 प्रतिशत से वर्तमान के 13.00-13.50 प्रतिशत तक घटाया है।

12. रिज़र्व बैंक ने उभरती समष्टि आर्थिक और मौद्रिक/चलनिधि परिस्थितियों की समीक्षा की और निम्नलिखित आगे और अधिक उपाय करने का निर्णय लिया :

  • यह निर्णय लिया गया कि 8 दिसंबर 2008 से चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत रिपो दर को 100 आधार बिंदुओं से घटाते हुए 7.5 प्रतिशत से 6.5 प्रतिशत किया जाए और प्रत्यावर्तनीय रिपो दर को 100 आधार बिंदुओं से घटाते हुए 6.0 प्रतिशत से 5.0 प्रतिशत किया जाए।
  • सूक्ष्म और लघु उद्यम (एमएसइ) के रोज़गार उन्मुख क्षेत्रों में सुपुर्दगी को बढ़ाने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया कि भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 की धारा 17(4एच) के प्रावधानों के अंतर्गत भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सीडबी) को 7000 करोड़ रुपए की राशि का पुनर्वित्त उपलब्ध कराया जाए। यह पुनर्वित्त उन्हें निम्नलिखित के बदले उपलब्ध कराया जाएगा (i) सूक्ष्म और लघु उद्यम को सीडबी का वृद्धियुक्त प्रत्यक्ष उधार; और (ii) सूक्ष्म और लघु उद्यमों को राज्य वित्त निगमों के वृद्धियुक्त ऋण और अग्रिम के बदले बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और राज्य वित्त निगमों (एसएफसी) को सीडबी के ऋण। वृद्धियुक्त ऋणों और अग्रिमों की गणना 30 सितंबर 2008 को बकाया के अनुरूप होगी। यह सुविधा 90 दिन की अवधि के लिए चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत मौजूदा रिपो दर पर उपलब्ध होगी। इस 90 दिन की अवधि के दौरान राशि का आहरण और चुकौती लचीलेपन से की जा सकती है। 90 दिन की अवधि के अंत में आहरण को रोल ओवर भी किया जा सकता है। यह पुनर्वित्त सुविधा 31 मार्च 2010 तक उपलब्ध होगी। निधियों का उपयोग सिडबी के बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति द्वारा संचालित किया जाएगा।
  • हम 4000 करोड़ रुपए की राशि के लिए राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी) के लिए इसी प्रकार की पुनर्वित्त सुविधा पर कार्य कर रहे है। इसकी विस्तृत जानकारी की घोषणा हम अगले सप्ताह में होनेवाली रिज़र्व बैंक की केंद्रीय बोर्ड की बैठक में किए जानेवाले प्रस्ताव पर विचार करने के बाद करेंगे।
  • 15 नवंबर 2008 को रिज़र्व बैंक ने घोषित किया था कि विदेशी मद्रा परिवर्तनीय बाँडों (एफसीसीबी) की परिपक्वता पूर्व पुनर्खरीद के लिए भारतीय कंपनियों के प्रस्तावों पर अनुमोदन मार्ग के अंतर्गत विचार किया जाएगा बशर्तें इस पुनर्खरीद का वित्तपोषण भारत अथवा विदेश में धारित कंपनी की विदेशी मुद्रा ॉााटतों से किया गया हो और/अथवा बाह्य वाणिज्यिक उधारों के लिए वर्तमान मानदण्डों के अनुरूप नए बाह्य वाणिज्यिक उधार (इसीबी) से उगाहा गया हो। संबंधित परिपक्वता के लिए वर्तमान संपूर्ण लागत पर एफसीसीबी को बढ़ाने की भी अनुमति दी गई थी। समीक्षा करने पर अब यह निर्णय लिया गया है कि प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंकों को अपने ग्राहकों से एफसीसीबी की परिपक्वता पूर्व पुनर्खरीद के लिए आवेदनों पर विचार करने की अनुमति दी जाए जहाँ पुनर्खरीद के लिए निधियों का ॉााटत निम्नलिखित हो : (i) भारत में (इइएफसी खातों में धारित निधियों सहित) अथवा विदेशी में धारित विदेशी मुद्रा ॉााटत हो और/अथवा (ii) मौजूदा बाह्य वाणिज्यिक उधार मानदण्डों के अनुरूप नए बाह्य वाणिज्यिक उधार से उगाहा गया हो बशर्ते एफसीसीबी के बही खाते में 15 प्रतिशत की न्यूनतम छूट हो। इसके अतिरिक्त रिज़र्व बैंक रुपया स्त्राटतों से एफसीसीबी की पुनर्खरीद के लिए आवेदनों पर विचार करेगा बशर्तें : (i) बही मूल्य पर 25 प्रतिशत की न्यूनतम छूट हो; (ii) पुनर्खरीद की राशि प्रति कंपनी मोचन मूल्य के 50 मिलियन अमरीकी डॉलर तक सीमित हो; और (iii) पुनर्खरीद के लिए ॉााटत सांविधिक लेखा परीक्षक द्वारा प्रमाणित किए गए अनुसार कंपनी के आंतरिक उपचय से आहरित किया गया हो।

  • यह निर्णय लिया गया है कि रिहाइशी इकाइयों की खरीद/निर्माण के लिए एकल व्यक्तियों को ऋण उपलब्ध कराने के लिए आवासीय वित्त कंपनियों (एचएफसी) को बैंकों द्वारा प्रदान किए जानेवाले ऋणों को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र में वर्गीकृत किया जाए बशर्तें आवासीय वित्त कंपनियों द्वारा प्रदान किए गए आवासीय ऋण प्रति परिवार प्रति रिहायशी इकाई 20 लाख रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिए। तथापि, इस उपाय के अंतर्गत पात्रता यह है कि प्रत्येक बैंक की सकल प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र उधार 5 प्रतिशत से अधिक न हो। यह विशेष संवितरण 31 मार्च 2010 तक एचएफसी को बैंकों द्वारा प्रदान किए गए ऋणों पर लागू होगा।
  • मौजूदा दिशानिर्देशों के अंतर्गत वाणिज्यिक संपदा में निवेश, पूँजी बाज़ार निवेश और व्यक्तिगत/उपभोक्ता ऋण मानक श्रेणी में पुनर्रचित मानक खातों के आस्ति वर्गीकरण को बनाए रखने के लिए विशिष्ट नियंत्रक व्यवहार के लिए पात्र नहीं है। चूँकि संपदा क्षेत्र को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है यह निर्णय लिया गया है कि वाणिज्यिक संपदा निवेश जो 30 जून 2009 तक पुनर्रचित है को विशिष्ट माना जाए/छूट प्रदान की जाए।
  • मौजूदा आर्थिक मंदी के कारण ऐसे कई उदाहरण हो सकते है कि व्यवहार्य इकाईयों को भी अस्थायी रूप से नकद प्रवाह की समस्या से ज़ुझना पड़े। इस समस्या के समाधान के लिए एक बारगी उपाय के रूप में यह निर्णय लिया गया है कि 30 जून 2009 तक निवेशों को (वाणिज्यिक संपदा निवेश, पूँजी बाज़ार निवेश और व्यक्तिगत/उपभोक्ता ऋण निवेश को छोड़कर) बैंकों द्वारा दुबारा की गई पुनर्रचना को भी विशिष्ट नियंत्रक व्यवहार के लिए पात्र माना जाए।
  • बाह्य माँग के कमज़ोर होने के कारण निर्यातकों को हो रही समस्या को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि 180 दिन तक के पोतलदानोत्तर रुपया निर्यात ऋण पर ब्याज दर 2.5 प्रतिशत बिंदुओं से कम बीपीएलआर से अधिक नहीं होगी। अतिदेय बिलों के संबंध में बैंकों को देय तारीख से अधिक की अवधि के लिए निर्यात ऋण अन्यथा विशेषीकृत नहीं (इसीएनओएस) के लिए निर्धारित दरों पर प्रभार लागू करने की अनुमति दी गई। अब यह निर्णय लिया गया है कि पोतलदानोत्तर रुपया निर्यात ऋण पर लागू निर्धारित ब्याज दर (2.5 प्रतिशत बिंदुओं से कम बीपीएलआर से अधिक नहीं) को अग्रिम की तारीख से 180 दिनों तक के अतिदेय बिलों पर भी लागू किया जाए।

13. उपर्युक्त उपायों को शामिल करनेवाले परिचालनगत अनुदेशों को अलग से जारी किया जाएगा।

14. आज के पैकेज के उपाय और पूर्व में किए गए उपायों का संचयी प्रभाव यह होना चाहिए कि माँग बढ़े और विकास बना रहे। विशेषकर रिपो/प्रत्यावर्तनीय रिपो को घटाने से बेंकों की निधियों की सीमांत लागत में कटौती होनी चाहिए और व्यवहार्य तर्ज़ पर अर्थव्यवस्था के उत्पादन क्षेत्रों के ऋण प्रवाह में सुधार होना चाहिए। पुनर्वित्त व्यवस्था के अंतर्गत सीडबी को उपलब्ध कराई गई चलनिधि सहायता से यह अपेक्षित है कि सूक्ष्म और लघु उद्यमों के सामने आ रहा ऋण तनाव/उधार परिस्थितियों के जकड़ाव से मुक्ति मिलेगी और विकास के इन रोज़गार उन्मुख संचालकों की क्रियाविधि को गति प्राप्त होगी। एफसीसीबी के परिपक्वता पूर्व पुनर्खरीद की सुविधा से भारतीय कंपनियों को मौजूदा छूट दरों जिस पर उनके एफसीसीबी व्यापार कर रहे है का लाभ लेने में सहायता मिलेगी। आवासीय वित्त कंपनियों को ऋण के लिए विशेष संवितरण को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र उधार में मानने से आवासीय क्षेत्र के उधार को बढ़ावा मिलेगा। निवेशों की पुनर्रचना की सुविधाओं से मौजूदा वातावरण में वाणिज्यिक संपदा क्षेत्र और अन्य क्षेत्रों के दबावों को कम करने में सहायता मिलेगी। निर्यातकों को उपलब्ध निर्यात बिलों की मूल परिपक्वता को ध्यान में लिए बिना 180 दिनों तक के लिए ब्याज के रियायती दर के लाभ से उन निर्यातकों को लाभ मिलेगा जिन्होंने अल्प परिपक्वता के लिए बिल आहरित किए हैं और बाह्य समस्याओं के कारण देय तारीख को बिल को उगाहने में समस्या हो रही है।

15. वैश्विक संकट की अनिश्चितता के दृष्टिकोण के परिप्रेक्ष्य में प्रत्येक गतिविधि पर अनुमान लगाना आसान नहीं है। रिज़र्व बैंक वैश्विक और घरेलू वित्तीय बाज़ारों की गतिविधियों की नज़दीकी से निगरानी रखना जारी रखेगा और उपयुक्त तरीके से त्वरित और प्रभावी कार्रवाई करेगा। रिज़र्व बैंक की नीति का प्रयास संकट के नकारात्मक प्रभाव को कम करना और सही ताल-मेल सुनिश्चित करना होगा। खासकर, हम सुगम चलनिधि स्थिति को बनाए रखने का प्रयास करेंगे, यह देखेंगे कि भारित औसत ओवर-नाइट मुद्रा बाज़ार दर को रिपो-प्रत्यावर्तनीय रिपो सीमा के भीतर बनाए रखा जाए और ऐसी स्थिति सुनिश्चित करना कि वह उत्पाद क्षेत्रों को खासकर, तनाव-युक्त निर्यात और लघु और मध्यम उद्योग क्षेत्र ऋण प्रवाह के अनुरूप हो।

16. हमारी अर्थव्यवस्था का मूल आधार मज़बूत है। एक बार हम इस सकंट से बाहर निकल आते है और वैश्विक बाज़ारों में संयम और विश्वास लौट आता है तब भारत में आर्थिक गतिविधि तेज़ी से बढ़ेगी। किंतु यह दर्दनीय समझौते का समय अपरिहार्य है।

अजीत प्रसाद
प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2008-2009/842

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