भारतीय रिज़र्व बैंक स्टाफ अध्ययन - बहुपक्षीय करोबारी वार्ता का दोहा दौर : भारत से संबंधित व्यापार विकास में महत्त्वपूर्ण मुद्दे - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक स्टाफ अध्ययन - बहुपक्षीय करोबारी वार्ता का दोहा दौर : भारत से संबंधित व्यापार विकास में महत्त्वपूर्ण मुद्दे
24 मई 2010 भारतीय रिज़र्व बैंक स्टाफ अध्ययन - बहुपक्षीय करोबारी वार्ता का दोहा दौर : भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज ‘बहुपक्षीय कारोबारी वार्ता का दोहा दौर : भारत से संबंधित व्यापार विकास में महत्त्वपूर्ण मुद्दे’ शीर्षक अपना स्टाफ अध्ययन प्रकाशित किया। इस स्टाफ अध्ययन की लेखिका श्रीमती मोनिका कथुरिया उन प्रमुख मुद्दों की जाँच करती हैं जो दोहा दौर के निष्कर्ष में देरी कर रहे हैं तथा विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशां खासकर भारत का उन मुद्दों पर असहमति के विचार हैं। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के प्रत्येक सदस्य को यह सुनिश्चित करना होता है कि घरेलू कीमतें उन करारों के अनुरूप तैयार की जानी चाहिए जिनपर इन्होंने हस्ताक्षर किए हैं और विश्व व्यापार संगठन में अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है। अत: यह आवश्यक है कि करारों पर हस्ताक्षर करने से पहले कार्यसूची, मदों के प्रभाव और जटिलताओं को समझा जाए। वर्तमान अध्ययन विश्व व्यापार संगठन के कार्यकलाप तथा दोहा दौरा की वार्ताओं में शामिल महत्त्वपूर्ण मुद्दों की सामान्य समझ उपलब्ध कराता है। इस संदर्भ में यह अध्ययन नीति निर्माताओं, अनुसंधानकर्ताओं, शिक्षाविदों और सामान्य जनता के लिए प्रासंगिक है। यह अध्ययन उस नियम आधारित बहुपक्षीय कारोबार प्रणाली की स्थापना के पीछे एक सैद्धांतिक औचित्य प्रस्तुत करता है जो एक ऐसे वातावरण सृजित करने का लक्ष्य रखता है जहाँ यथासंभव मुक्त और निष्पक्ष रूप से अंतर्राष्ट्रीय कारोबार किया जा सकता है। इसके बाद विश्व व्यापार संगठन के कार्यकलाप के एक संक्षिप्त विवरण के साथ इसके विकास और संरचना तथा प्रशुल्क और व्यापार संबंधी सामान्य करार (जीएटीटी) तथा विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत आयोजित कारोबारी वार्ताओं के विभिन्न दौर की एक संक्षिप्त झांकी प्रस्तुत की गई है। इस अध्ययन का प्रारंभिक ध्यान दोहा दौर पर है जिसने विश्व व्यापार संगठन में विकासशील सदस्य देशों खासकर उनमें से कम विकसित देशों की विशेष जरूरतों और हितों पर ध्यान आकर्षित करते हुए एक उल्लेखनीय नीति बदलाव का संकेत किया है। इस दौर से इन सदस्य देशों के लिए एक विकासात्मक भूमिका अदा करने की आशा की जाती है। तथापि, इसमें पहले ही आठ वर्षों से अधिक का समय लग चुका है और इसने विकासशील सदस्य देशों के कड़े प्रतिरोध का सामना किया है। यह अध्ययन इसके लिए कारणों का विश्लेषण करता है और यह बताता है कि असंतुलित समझौता शक्ति, विकासशील देशों में तकनीकी निपुणता का अभाव, प्रस्तुतकर्ता में बारंबार परिवर्तन जैसी कमज़ोरियाँ विश्व व्यापार संगठन में वार्ताओं को प्रभावित करती हैं। यह तर्क देते हुए कि प्रयासों का लक्ष्य यथाशीघ्र दोहा दौर होना चाहिए और यह कि इसे विकासात्मक पहलू की कीमत पर नहीं होना चाहिए, यह अध्ययन निम्नलिखित नीति रुझानों की अनुशंसा करता है:
अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2009-2010/1585 |