RbiSearchHeader

Press escape key to go back

पिछली खोज

थीम
थीम
टेक्स्ट का साइज़
टेक्स्ट का साइज़
S1

Press Releases Marquee

आरबीआई की घोषणाएं
आरबीआई की घोषणाएं

RbiAnnouncementWeb

RBI Announcements
RBI Announcements

असेट प्रकाशक

81312842

भारतीय रिज़र्व बैंक स्टाफ अध्ययन - बहुपक्षीय करोबारी वार्ता का दोहा दौर : भारत से संबंधित व्यापार विकास में महत्त्वपूर्ण मुद्दे

24 मई 2010

भारतीय रिज़र्व बैंक स्टाफ अध्ययन - बहुपक्षीय करोबारी वार्ता का दोहा दौर :
भारत से संबंधित व्यापार विकास में महत्त्वपूर्ण मुद्दे

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज ‘बहुपक्षीय कारोबारी वार्ता का दोहा दौर : भारत से संबंधित व्यापार विकास में महत्त्वपूर्ण मुद्दे’ शीर्षक अपना स्टाफ अध्ययन प्रकाशित किया। इस स्टाफ अध्ययन की लेखिका श्रीमती मोनिका कथुरिया उन प्रमुख मुद्दों की जाँच करती हैं जो दोहा दौर के निष्कर्ष में देरी कर रहे हैं तथा विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशां खासकर भारत का उन मुद्दों पर असहमति के विचार हैं।

विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के प्रत्येक सदस्य को यह सुनिश्चित करना होता है कि घरेलू कीमतें उन करारों के अनुरूप तैयार की जानी चाहिए जिनपर इन्होंने हस्ताक्षर किए हैं और विश्व व्यापार संगठन में अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है। अत: यह आवश्यक है कि करारों पर हस्ताक्षर करने से पहले कार्यसूची, मदों के प्रभाव और जटिलताओं को समझा जाए। वर्तमान अध्ययन विश्व व्यापार संगठन के कार्यकलाप तथा दोहा दौरा की वार्ताओं में शामिल महत्त्वपूर्ण मुद्दों की सामान्य समझ उपलब्ध कराता है। इस संदर्भ में यह अध्ययन नीति निर्माताओं, अनुसंधानकर्ताओं, शिक्षाविदों और सामान्य जनता के लिए प्रासंगिक है।

यह अध्ययन उस नियम आधारित बहुपक्षीय कारोबार प्रणाली की स्थापना के पीछे एक सैद्धांतिक औचित्य प्रस्तुत करता है जो एक ऐसे वातावरण सृजित करने का लक्ष्य रखता है जहाँ यथासंभव मुक्त और निष्पक्ष रूप से अंतर्राष्ट्रीय कारोबार किया जा सकता है। इसके बाद विश्व व्यापार संगठन के कार्यकलाप के एक संक्षिप्त विवरण के साथ इसके विकास और संरचना तथा प्रशुल्क और व्यापार संबंधी सामान्य करार (जीएटीटी) तथा विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत आयोजित कारोबारी वार्ताओं के विभिन्न दौर की एक संक्षिप्त झांकी प्रस्तुत की गई है।

इस अध्ययन का प्रारंभिक ध्यान दोहा दौर पर है जिसने विश्व व्यापार संगठन में विकासशील सदस्य देशों खासकर उनमें से कम विकसित देशों की विशेष जरूरतों और हितों पर ध्यान आकर्षित करते हुए एक उल्लेखनीय नीति बदलाव का संकेत किया है। इस दौर से इन सदस्य देशों के लिए एक विकासात्मक भूमिका अदा करने की आशा की जाती है। तथापि, इसमें पहले ही आठ वर्षों से अधिक का समय लग चुका है और इसने विकासशील सदस्य देशों के कड़े प्रतिरोध का सामना किया है। यह अध्ययन इसके लिए कारणों का विश्लेषण करता है और यह बताता है कि असंतुलित समझौता शक्ति, विकासशील देशों में तकनीकी निपुणता का अभाव, प्रस्तुतकर्ता में बारंबार परिवर्तन जैसी कमज़ोरियाँ विश्व व्यापार संगठन में वार्ताओं को प्रभावित करती हैं।

यह तर्क देते हुए कि प्रयासों का लक्ष्य यथाशीघ्र दोहा दौर होना चाहिए और यह कि इसे विकासात्मक पहलू की कीमत पर नहीं होना चाहिए, यह अध्ययन निम्नलिखित नीति रुझानों की अनुशंसा करता है:

  • कृषिगत आर्थिक सहायता के मामले में विकसित देशों को कुल ओटीडीएस के बदले अपने निर्धारित प्रति व्यक्ति समग्र कारोबार विरुपण घरेलू सहायता (ओटीडीएस) में कमी करनी चाहिए क्योंकि प्रति व्यक्ति ओटीडीएस का उपयोग विकसित और विकासशील देशों में व्याप्त आर्थिक सहायता प्रावधानों को संकेंद्रित करने के एक उपाय के रूप में किया जा सकता है। इन दोनों के संकेंद्रण में आर्थिक सहायता प्रावधानों में प्रभावी कमी निहित है।

  • जहाँ तक खाद्य सुरक्षा और गरीब किसानों की जीविका का संबंध है भारत को कम-से-कम उस समय तक विशेष अभिरक्षा उपायों (एसएसएम) पर समझौता नहीं करना चाहिए जब तक कृषि के लिए विशेष अभिरक्षा के प्रावधान विकासशील देशों को उपलब्ध हैं।

  • औद्योगिक क्षेत्र के लिए विकसित देशों से कहा जाना चाहिए कि वे कम-से-कम निर्यात के लिए प्रभावी बाज़ार पहुँच उपलब्ध कराने हेतु विकासशील देशों के संभावित निर्यात के 98 प्रतिशत को शामिल करने वाले प्रशुल्क स्तर हेतु प्रशुल्क दरों को नगण्य स्तरों तक उनके अधिकतम अनुमत स्तर में कमी करने के लिए कहा जाए। विकासशील देशां को विकास के उनके न्यूनतम स्तर को देखते हुए इस संबंध में रियायत उपलब्ध कराई जाए।

  • सेवाओं के लिए विकसित और विकासशील दोनों देश विदेशों में आपूर्ति, विदेश में उपभोग, विदेश में वाणिज्यिक उपस्थिति और मूल व्यक्तियों की आवाजाही के लिए अपने बाज़ार खोलने हेतु प्रतिबद्ध रहना चाहिए। भारत को मूल व्यक्तियों की आवाजाही हेतु व्यापक और प्रभावी बाज़ार पहुँच की अपनी माँग बनाए रखनी चाहिए।

  • विकासशील देशों को वृद्धि संवर्धक निवेश परियोजनाओं और योजनाओं के लिए नीति स्थान दिया जाना चाहिए क्योंकि निवेश नीति दीर्घावधि विकास लक्ष्य प्राप्त करने में सहायता कर सकती है।

  • विकसित से विकासशील देशां को प्रौद्योगिकी अंतरण विश्व व्यापार संगठन स्तर पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। विकासशील देशों को विभिन्न क्षेत्रों में विकसित देशां के अन्वेषणों और नवोन्मेषणों तक पहुँच प्रदान की जानी चाहिए। विकासशील देशां में न्यूनतर उत्पादकता द्वारा पारिभाषित क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास के प्रोत्साहन हेतु विश्व व्यापार संगठन स्तर पर प्रावधान बनाए जाने चाहिए।

अजीत प्रसाद
प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2009-2010/1585

RbiTtsCommonUtility

प्ले हो रहा है
सुनें

संबंधित एसेट

आरबीआई-इंस्टॉल-आरबीआई-सामग्री-वैश्विक

RbiSocialMediaUtility

आरबीआई मोबाइल एप्लीकेशन इंस्टॉल करें और लेटेस्ट न्यूज़ का तुरंत एक्सेस पाएं!

Scan Your QR code to Install our app

RbiWasItHelpfulUtility

क्या यह पेज उपयोगी था?