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भारतीय रिज़र्व बैंक स्टाफ अध्ययन - 5/2010 भारत में मुद्रास्फीति का मापन : मौद्रिक नीति के संचालन के लिए मुद्दे और उससे जुड़ी चुनौतियाँ

2 सितंबर 2010

भारतीय रिज़र्व बैंक स्टाफ अध्ययन - 5/2010
भारत में मुद्रास्फीति का मापन :
मौद्रिक नीति के संचालन के लिए मुद्दे और उससे जुड़ी चुनौतियाँ

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज भारत में मुद्रास्फीति का मापनःमौद्रिक नीति के संचालन के लिए मुद्दे और उससे जुड़ी चुनौतियाँ शीर्षक एक स्टाफ अध्ययन जारी किया।यह स्टाफ अध्ययन आर्थिक विश्लेषण और नीति विभाग के श्री जी. वी. नादनील और शितिकंठ पटनायक द्वारा तैयार किया गया है। इस आलेख में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और वे भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों को नहीं दर्शाते हैं।

यह अध्ययन वर्तमान संदर्भ में भारत की मुद्रास्फीति आँकड़ों से संबंधित मुख्य मुद्दे दर्शाता है; जबकि यह व्याख्या भी करता है कि मौद्रिक नीति के संचालन के लिए संगत विश्लेषण किस प्रकार अस्पष्ट रह सकते हैं यदि ऐसे विश्लेषण में प्रयुक्त आँकड़ों की गंभीर सीमाएँ हों।

भारत में मूल्य आँकड़ों की सांख्यिकीय सीमाएं नीति चर्चाओं में लगातार ध्यान आकर्षित कर रही हैं। यह विगत के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक और थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति प्रवृत्तियों के बीच भारी विभिन्नता, थोक मूल्य सूचकांक के भीतर संपूर्ण वस्तु समूहों में मुद्रास्फीति का व्यापक प्रसार, अर्थव्यवस्था के आकार और संरचना से संबंधित मूल्य सूचकांकों की कमज़ोर प्रतिनिधित्व प्रकृति तथा आपूर्ति आघातों के कारण हेडलाइन थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय उतार-चढ़ाव के कारण है।

यह अध्ययन मुद्रास्फीति में मापन मुद्दों को दर्ज करता है तथा उन्नत और विकासशील दोनों देशों में मुद्रास्फीति आँकड़ों में कमियों को दर्शाता है। यह कुछ कमियों का समाधान करने के लिए भारत में शुरू किए गए प्रमुख प्रयासों की रूपरेखा भी प्रस्तुत करता है। यह अध्ययन मुद्रास्फीति मापन पर आधार वर्ष को अद्यतन नहीं किए जाने के प्रभाव, विभिन्न मुद्रास्फीति संकेतकों और सकल घरेलू उत्पाद में संकुचन के साथ-साथ पण्य वस्तु बास्केट के भीतर मुद्रास्फीति को वितरित करता है। मौद्रिक नीति के संचालन के लिए हेडलाइन मुद्रास्फीति (माह-दर-माह मौसमी रूप से समायोजित मुद्रास्फीति) के संबंध में अन्य मुद्रास्फीतिकारी संकेतकों की स्थिरता की भी जाँच की गई है।

इस अध्ययन के मुख्य विचार और निष्कर्ष इस प्रकार हैं :

  • मुद्रास्फीति में मापन मुद्दों का समाधान मौद्रिक नीति के प्रभावी संचालन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि मूल्य आँकड़ों में सीमाएं आर्थिक विश्लेषण और अर्थमीतिक आकलनों के प्रति शोरगुल के जोखिम को भी लाती है।

  • मूल्यों पर आँकड़ों की सीमाएं मौद्रिक माँग, मौद्रिक नीति अंतरण, नीति कार्रवाई संबंधी कार्य पास-थ्रू प्रभावों तथा वास्तविक प्रभावी विनिमय दर के विश्लेषण से उत्पन्न भ्रामक अनुभवजन्य आकलन प्रस्तुत करेंगे। ये सभी मौद्रिक और समष्टि आर्थिक नीतियों के संचालन हेतु महत्त्वपूर्ण हैं।

  • भारत में मूल्य सांख्यिकी में सुधार विशेषत: उपभोक्ता मूल्य सूचकांक - शहरी और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक - ग्रामीण पर आँकड़े तैयार करने और संपूर्ण कालावधि के रूप में देश के लिए एक प्रतिनिधि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक तैयार करने के संबंध में हाल के प्रयास भारत में एक प्रमुख आँकड़ा अंतराल का समाधान करेंगे।

  • चूँकि कुल लेनदेन में इंधन और धातु जैसी उल्लेखनीय रूप से अस्थिर मदों के हिस्से समय के दौरान बढ़ते गए हैं अत्यंत हाल की अवधि के लिए थोक मूल्य सूचकांक के आधार वर्ष को अद्यतन किए जाने से वर्ष 2008-10 के दौरान मुद्रास्फीति में भारी अस्थिरता आएगी।

  • थोक मूल्य सूचकांक के भीतर संपूर्ण विभिन्न वस्तुओं में मुद्रास्फीति का वितरण आपूर्ति आघातों के अवधि के दौरान भारी परिवर्तनों को दर्शाता है, पण्य वस्तु बास्केट के भीतर परिवर्तनीयता को समझना अंतर्निहित मूल्य दबावों का विश्लेषण करने और समुचित नीति कार्रवाई के साथ कार्रवाई करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

  • भारतीय संदर्भ में माह-दर-माह मौसमी रूप से समायोजित मुद्रास्फीति और मुख्य मुद्रास्फीति जैसे मुद्रास्फीति के वैकल्पिक उपाय मौद्रिक नीति में मुख्य संदर्भ संकेतक बनने के लिए वांछनीय गुण प्रदर्शित नहीं करते हैं क्योंकि वे हेडलाइन मुद्रास्फीति की तरह उल्लेखनीय रूप से अस्थिर होते हैं।

अल्पना किल्लावाला
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2010-2011/330

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