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मुद्रा के अंतर्राष्ट्रीयकरण पर भारतीय रिज़र्व बैंक के स्टाफ द्वारा अध्ययन: भारतीय रुपया और चीनी रेमिन्बी का मामला

18 मई 2010

मुद्रा के अंतर्राष्ट्रीयकरण पर भारतीय रिज़र्व बैंक के स्टाफ द्वारा अध्ययनः
भारतीय रुपया और चीनी रेमिन्बी का मामला

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज ‘मुद्रा का अंतर्राष्ट्रीयकरणः भारतीय रुपया और चीनी रेमिन्बी का मामला’ शीर्षक स्टाफ द्वारा अध्ययन जारी किया। डॉ. राजीव रंजन और श्री आनन्द प्रकाश द्वारा तैयार किया गया यह अध्ययन चीनी रेमिन्बी और भारतीय रुपया के विशिष्ट मामलों के साथ मुद्रा के अंतर्राष्ट्रीयकरण से ज़ुड़ी लागतों और लाभ की जाँच करता है। यह अध्ययन यह जाँच भी करता है कि क्या भारतीय रुपया अंतर्राष्ट्रीयकरण का उम्मीदवार हो सकता है।

संदर्भ

हाल की वैश्विक आर्थिक मंदी और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अमरीकी डॉलर की कमजोरी ने एक नई वैश्विक प्रारक्षित मुद्रा की आवश्यकता पर एक व्यापक चर्चा को प्रोत्साहित किया है। इसकी पूरी संभावना है कि आने वाले समय में वैश्विक प्रारक्षित मुद्रा के रूप में डॉलर अपना आधिपत्य खो देगा। तथापि अमरीकी अर्थव्यवस्था यदि उल्लेखनीय वापसी नहीं करती है और वैश्विक प्रारक्षित मुद्रा के रूप में अमरीकी डॉलर अनिवार्यतः अपनी निरंतरता बनाए रखने में कमजोर हो जाता है तो वर्तमान संकट ने एक नई वैश्विक प्रारक्षित मुद्रा की आवश्यकता पर चर्चा के द्वार खोल दिए हैं।

एक नई वैश्विक प्रारक्षित मुद्रा के मामले ने हाल के समय में संपूर्ण विश्व के नीति निर्माताओं का ध्यान आकर्षित किया है। इस मामले ने भारतीय रिज़र्व बैंक सहित एशियाई केंद्रीय बैंकों के लिए महत्व प्राप्त कर लिया है जिन्होंने डॉलर अधिशासित आस्तियों में अपनी प्रारक्षित निधि के उल्लेखनीय भाग का निवेश किया है। डॉलर के मूल्य में कोई तीव्र अवमूल्यन इन केंद्रीय बैंकों के लिए उल्लेखनीय क्षति प्रदान करेगा। तथापि, विवादास्पद प्रश्न यह है कि मध्यावधि से दीर्घावधि में अमरीकी डॉलर को हटाने में कौन सी मुद्रा समर्थ है। चीन ने पहले ही रेमिन्बी के अंतर्राष्ट्रीयकरण की ओर प्रयास शुरु कर दिया है।

यह अध्ययन विवरणात्मक और विश्लेषणात्मक स्वरूप का है और विशेषत: चीनी रेमिन्बी के संदर्भ में मुद्रा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के मुद्दे पर हाल में विभिन्न अध्ययन किए गए हैं। इस प्रकार यह अध्ययन चीनी रेमिन्बी तथा भारतीय रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण से संबंधित विभिन्न मुद्दों का गहन विश्लेषण उपलब्ध कराता है।

चीनी रेमिन्बी का मामला

चीनी रेमिन्बी और भारतीय रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण से संबंधित विभिन्न मुद्दों का विस्तृत विवरण देते हुए अध्ययन यह तर्क देता है कि उभरती हुई बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में रेमिन्बी और भारतीय रुपया किसी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा स्थिति के लिए स्वाभाविक उम्मीदवार हैं। यह इन देशों की बढ़ती हुई आर्थिक व्यापकता तथा सापेक्षत: पूरी सहजता के साथ वैश्विक वित्तीय संकट के प्रतिकूल प्रभाव को सहने की उनकी सामर्थ्य के कारण है। अध्ययन यह नोट करता है कि चीनी प्राधिकारियों ने रेमिन्बी के व्यापक अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए कई उपाय किए हैं जो इसकी पड़ोसी अर्थव्यवस्थाओं के साथ लेनदेन में पहले से ही दिखाई देता है। उदाहरण के लिए चीन ने अनिवासियों को तथाकथित पंडा बॉण्ड्स को चीनी बाज़ार में जारी करने की अनुमति देते समय अंतर्राष्ट्रीय विकास संस्थाओं द्वारा रेमिन्बी मूल्यवर्गांकित बॉण्डों के निर्गम को नियंत्रित करनेवाले अनंतिम नियमो की घोषणा की है। पीपल्स बैंक ऑफ चाइना (पीबीओसी) ने द्विपक्षीय मुद्रा स्वैप करारों की एक श्रृंखला पर हस्ताक्षर किए हैं जिसके द्वारा पीपल्स बैंक ऑफ चाइना (पीबीओसी) और केंद्रीय बैंक रेमिन्बी (अमरीकी डॉलर नहीं) का संबंधित प्रतिपक्षी मुद्राओं के साथ विनिमय पर सहमत हैं जो मुख्यत: इन देशों के बीच कारोबारी सहायता के लिए है। हाँगकाँग लगातार एक समुद्रापारीय रेमिन्बी कारोबारी केंद्र बनता जा रहा है और चीनी सरकार इस व्यवहार का पूरा समर्थन करती है।

इस अध्ययन के लेखकों के अनुसार चीन के लिए रेमिन्बी के राष्ट्रीयकरण में सर्वाधिक लाभ यह है कि चीनी उद्यमों के लिए विदेशी मुद्रा जोखिम कम हो जाती है। रेमिन्बी अंतर्राष्ट्रीयकरण चीनी वित्तीय संस्थाओं की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा को भी बढ़ाएगा। इसके अतिरिक्त, जब रेमिन्बी को एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में व्यापक श्रेणी की स्वीकृति प्राप्त होगी, चीन को सिक्का ढलाई मुनाफे का अतिरिक्त लाभ भी प्राप्त होगा। दूसरी होर रेमिन्बी के अंतर्राष्ट्रीयकरण की एक प्रमुख कमी अंतर्राष्ट्रीय रूप में अति शीघ्र चलायमान मुद्रा के अंतर्वाह और बर्हिवाह के प्रति बढ़ी हुई अतिसंवेदनशीलता होगी।

लेखकों के विचार से रेमिन्बी इस क्षण प्रारक्षित मुद्रा की स्थिति प्राप्त करने के लिए अभी बिल्कुल तैयार नहीं है। रेमिन्बी के अंतर्राष्ट्रीयकरण की ओर प्रगति केवल चीन के स्वयं के लागत-और-लाभ की गणना पर ही निर्भर नहीं है बल्कि विश्व अर्थव्यवस्था में चीन की भागीदारी, वैश्विक बाजारों के विश्वास और चीन में वित्तीय बाजार के अच्छे कार्यकलाप पर भी निर्भर करती है। रेमिन्बी के संपूर्ण रूप से परिवर्तनीय होने से पहले समुद्रपारीय रेमिन्बी बाजार लागू करना होगा। लेखकों का कहना है कि आर्थिक पहलुओं के अलावा रेमिन्बी अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए राजनीतिक तत्व भी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। अध्ययन का निष्कर्ष है कि एक अंतर्राष्ट्रीय प्रारक्षित मुद्रा के रूप में स्वीकृति प्राप्त करने के पूर्व चीन के बढ़ते हुए कारोबार के कारण रेमिन्बी के एक क्षेत्रीय मुद्रा बनने की संभावना है।

भारतीय रुपए का मामला

लेखकों की दृष्टि में भारत को पूर्व-सक्रियता के साथ इस क्षेत्र में भारतीय रुपए की भूमिका को बढ़ाने के उपाय करने की ज़रूरत है। उन्होंने यह नोट करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि हाल के महीनों में भारतीय रुपए द्वारा प्रदर्शित उल्लेखनीय मज़बूती और भारतीय अर्थव्यवस्था के निरंतर अच्छे कार्यनिष्पादन ने भारतीय रुपए के व्यापक अंतर्राष्ट्रीयकरण का मुद्दा उठाया है। भारत ने अब तक पूँजी खाता उदारीकरण के प्रति समायोजित दृष्टिकोण का पालन किया है। वर्तमान में नेपाल और भूटान को छोड़कर भारत रुपए के अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन के लिए आधिकारिक उपयोग की अनुमति नहीं देता है यद्यपि इस बात के संकेत हैं कि भारतीय रुपए को अन्य देशों में स्वीकृति मिल रही है। तथापि, रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के साथ समस्याएँ जुड़ी हैं क्योंकि इससे इसके विनिमय दर में उतार-चढ़ाव बढ़ सकता है। अल्पावधि निधियों की वापसी और अनिवासियों द्वारा संविभाग निवेश भी भारतीय रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के एक प्रमुख संभावित जोखिम बन सकते हैं। चीन के विपरीत जो भारी चालू खाता अधिशेष परिचालित करता है, भारत सामान्यतः उल्लेखनीय व्यापार और चालू खाता घाटा परिचालित करता है। भारतीय रुपया कभी-कभी ही अंतर्राष्ट्रीय कारोबार के बीजक के रूप में प्रयुक्त होता है। इसके अतिरिक्त रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के मामले पर आगे बढ़ने के पूर्व सभी आवश्यक पूर्वशर्तों को लागू करने की जरूरत है।

जी. रघुराज
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2009-2010/1554

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