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वृद्धि और निवेश पर वास्‍तविक ब्‍याज दरों के प्रभाव पर भारतीय रिज़र्व बैंक का अध्‍ययन

8 अगस्त 2013

वृद्धि और निवेश पर वास्तविक ब्याज दरों के प्रभाव पर भारतीय रिज़र्व बैंक का अध्ययन

जबकि न्यूनतर ब्याज दरें वृद्धि और निवेश को तेज कर सकती हैं, केंद्रीय बैंक वास्तविक ब्याज दरों को कम करने के उपाय के रूप में उच्चतर मुद्रास्फीति को सहने की नीति स्वीकार नहीं कर सकता है क्योंकि एक प्रारंभिक सीमा के बाद वृद्धि पर मुद्रास्फीति का नकारात्मक प्रभाव न्यूनतर वास्तविक ब्याज दर के माध्यम से इसके सकारात्मक प्रभाव को दबा देता है। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा शुरू किए गए अध्ययन का यह निष्कर्ष है।

''निवेश और वृद्धि पर वास्तविक ब्याज दर का प्रभाव - भारत के लिए अनुभवजन्य प्रमाण क्या सुझाव देते हैं?'' शीर्षक अध्ययन उस प्रश्न की जांच करता है कि उच्चतर मुद्रास्फीति सहनशीलता वास्तविक ब्याज दर को कम करने का सुविधाजनक साधन है लेकिन क्या किसी केंद्रीय बैंक को यह मार्ग अपनाना चाहिए? यह अध्ययन वर्ष 2012-13 में वृद्धि मुद्रास्फीति मिश्रण का सामना करने वाली कठिनाई की पृष्ठभूमि में शुरू किया गया था जब निरंतर उच्च मुद्रास्फीति एक ओर मौद्रिक नीति के संचालन में मुद्रास्फीतिकारी विरोध के दबाव का समाधान करने के लिए अपेक्षित थी और दूसरी ओर मंद वृद्धि आघातों ने पर्याप्त तथा स्पष्ट मौद्रिक नीति प्रोत्साहनों को आवश्यक बनाया था।

मौद्रिक नीति से अक्सर यह आशा की जाती है कि वह मुद्रास्फीति और बाह्य संतुलन स्थिति की लगातार जोखिमों के होते हुए भी वृद्धि और मंद निवेश गतिविधियों में व्याप्त मंदी के चरण में अनुकूल वृद्धि रुझान को स्वीकार करे चूँकि वास्तविक ब्याज दरों में परिवर्तन के लिए वास्तविक गतिविधियों को संवेदनशील माना जाता है, किसी केंद्रीय बैंक से यह आशा की जाती है कि वह एक कम सांकेतिक ब्याज दर की अपेक्षा एक कम वास्तविक ब्याज दर सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखे जब वे प्राथमिक रूप से मुद्रास्फीतिकारी विरोधी नीति पर ध्यान केंद्रित करने की अपेक्षा प्राथमिक रूप से वृद्धि अनुकूल नीति के संतुलन का बदलाव करे।

इस अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार है:

  • समष्टि आर्थिक स्तर पर वृद्धि और निवेश के निर्धारण के लिए वास्तविक ब्याज दर अधिक प्रासंगिक है यद्यपि सांकेतिक ब्याज दर फर्म बूत स्तर पर निवेश आयोजना के लिए महत्वपूर्ण है।

  • बढ़ते हुए वृद्धिशील पूँजी उत्पादन अनुपात के साथ समष्टि आर्थिक स्तर पर पूँजी की सीमांत उत्पादकता पिछले दो वर्षों की क्रमिक तिमाहियों के दौरान घटी है जो यह दर्शाती है कि केवल कम ब्याज दर वृद्धि को तेज़ नहीं कर सकती है।

  • फर्म स्तर पर किसी निवेश परियोजना से प्रत्याशित सांकेतिक नकदी प्रवाह तथा एक सांकेतिक त्वरित दर दोनों अनिवार्य रूप से कुछ अंतरनिहित मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं का संकेत देगी लेकिन न तो नकदी प्रवाह और न अवरोधक दर का स्पष्ट रूप से वास्तविक अर्थ में मूल्यांकन किया जा सकता है।

  • कारोबारी विभिन्न चक्रों के दौरान प्रतिलाभ की आंतरिक दर (आरआर) तथा अवरोधक दर परिवर्तन और इस प्रकार सांकेतिक ब्याज दर की आईआरआर के साथ तुलना यह आकलन करने के लिए विगत में व्याप्त स्तर के सापेक्षत: नहीं की जा सकती कि ब्याज दर वातारवरण वृद्धि समर्थक है।

  • किसी मंद निवेश वातावरण में फर्मों का आईआरआर लगातार दबाव में बना रह सकता है क्योंकि मंद मांग स्थितियों, कमज़ोर मूल्य निर्धारण शक्ति, उच्च इनपुट लागते, पूर्णता के विभिन्न स्तरों पर रूकी हुई परियोजनाएं तथा अदेशों की सुपुर्दगी के बाद प्राप्तियों के संग्रह में देरी के कारण कंपनियों को नकदी प्रवाहों की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आईआरआर के गिरते हुए चरण में ब्याज दर यह सुनिश्चित करने के लिए उल्लेखनीय रूप से अवश्य घटेगी कि अवरोधक दर निवेश और वृद्धि को पुनर्ज्जीवित करने में सहायता हेतु गिरती हुई आरआर से नीचे बनी रहेगी।

  • कोई केंद्रीय बैंक वित्तीय दबाव/सुधार और मुद्रास्फीति के प्रति आवधिक मौद्रिक नीति कार्रवाई के माध्यम से वास्तविक ब्याज दरों को प्रभावित कर सकता है। वास्तविक ब्याज दर एक वास्तविक परिदृश्य है लेकिन इस बात पर निर्भर रहते हुए अल्पावधि में यह बदल सकता है कि किस प्रकार मौद्रिक नीति मुद्रास्फीति और मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाओं के प्रति कार्रवाई करती है।

  • अनुभवजन्य आकलन फर्म स्तर और समष्टि आर्थिक आंकड़े दोनों तथा वैकल्पिक पद्धतियां जैसेकि पैनल प्रतिगमन, वीएआर, क्वांटाईल प्रतिगमन और साधारण ओएलएस का उपयोग करते हुए यह प्रस्तावित करते हैं कि वास्तविक ब्याज दर में 100 अंकों की बढ़ोतरी से निवेश दर में लगभग 50 आधार अंकों तक गिरावट हो सकती है तथा सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि लगभग 20 आधार अंकों तक सुधर सकती है।

अल्पना किल्लावाला
प्रधान मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2013-2014/277

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