भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर सं. 03/2019: क्या भारत में वित्तीय चक्र मौजूद है? - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर सं. 03/2019: क्या भारत में वित्तीय चक्र मौजूद है?
3 जुलाई 2019 भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर सं. 03/2019: भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला* के अंतर्गत “क्या भारत में वित्तीय चक्र मौजूद है?” शीर्षक से वर्किंग पेपर उपलब्ध कराया है। यह पेपर हरेंद्र बेहेरा और सौरभ शर्मा द्वारा लिखा गया है। पेपर का उद्देश्य बैंक ऋण, इक्विटी कीमतों, घरों की कीमतों और वास्तविक विनिमय दर पर विचार करते हुए भारतीय संदर्भ में पहली बार वित्तीय चक्र का एक समग्र परिमाण प्रदान करना है। वित्तीय चक्र के अस्तित्व की पहचान करने के लिए वित्तीय चर के चक्रीय गुणों की जांच की जाती है। समग्र विश्लेषण से पता चलता है कि भारत में एक अच्छा परिभाषित वित्तीय चक्र और वित्तीय चक्र के विस्तारक चरण, विशेष रूप से शिखर है जो बैंकिंग क्षेत्र में बढ़ते दबाव और भविष्य में आर्थिक गतिविधि के कमजोर होने की एक प्रारंभिक चेतावनी देते हैं । विश्लेषण से यह भी संकेत मिलता है कि वित्तीय चक्र में चलनेवाली गिरावट 2018 की चौथी तिमाही तक न्यूनतम तक पहुंच सकती है। पेपर 12 वर्ष की औसत अवधि के साथ लंबी अवधिवाले वित्तीय चक्र, साथ ही साथ 5 वर्ष की औसत अवधि के साथ कम अवधिवाले वित्तीय चक्र का अन्वेषण करता है। 1990 के दशक के मध्य से वित्तीय उदारीकरण की गति में वृद्धि के साथ वित्तीय चर के समग्र परिवर्तन में मध्यम अवधि के चक्रों का वर्चस्व बढ़ा है। जबकि भारत में क्रेडिट और इक्विटी दोनों मूल्य वित्तीय चक्र चलाते हैं, 2000 दशक के मध्य से आवासीय कीमतों का योगदान बढ़ गया है। पेपर बताता है कि व्यापक अंतराल और वित्तीय स्थिरता को बढ़ाने के लिए एक नियमित अंतराल पर वित्तीय चक्र की करीबी निगरानी आवश्यक है। * रिज़र्व बैंक ने आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला की शुरुआत मार्च 2011 में की थी। ये पेपर रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों द्वारा किए जा रहे अनुसंधान प्रस्तुत करते हैं और अभिमत प्राप्त करने और इस पर अधिक चर्चा के लिए इन्हें प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के होते हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं होते हैं। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम स्वरूप का ध्यान रखा जाए। योगेश दयाल प्रेस प्रकाशनी : 2019-2020/41 |