भारतीय रिज़र्व बैंक पेपर सं. 2/2018 अरैखीय, असममितिक और समय भिन्नता वाली विनिमय दर पास-थ्रूः भारत से हाल के साक्ष्य - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक पेपर सं. 2/2018 अरैखीय, असममितिक और समय भिन्नता वाली विनिमय दर पास-थ्रूः भारत से हाल के साक्ष्य
13 मार्च 2018 भारतीय रिज़र्व बैंक पेपर सं. 2/2018 भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला के अंतर्गत ‘अरैखीय, असममितिक और भिन्नकालिक विनिमय दर पास-थ्रूः भारत से हाल के साक्ष्य’ शीर्षक से एक वर्किंग पेपर उपलब्ध कराया है। यह पेपर माइकल देबब्रत पात्र, जीवन कुमार खुंडरकपम और जॉइस जोन द्वारा लिखा गया है। मौद्रिक नीति बनाने के लिए उपभोक्ता मूल्य मामलों की तुलना में विनिमय दर पास-थ्रू (ईआरपीटी) जो नीति निर्माता को उस सीमा के बारे में जानकारी देता है जिस सीमा तक घरेलू मुद्रास्फीति आयातित प्रभावों के प्रति बंधक है। अप्रैल 2005 से मार्च 2016 तक की अवधि के लिए अरैखिकताओं और समय भिन्नताओं को तलाशते हुए यह पेपर निष्कर्ष निकालता है कि भारत में ईआरपीटी वर्ष 2014 तक बढ़ रहा था किंतु तब से इसमें कमी आ रही है, जो लचीले मुद्रास्फीति लक्ष्य ढांचे के अंतर्गत मुद्रास्फीति में कमी और विनिमय दर अस्थिरता दर्शाता है, इस ढांचे को वस्तुतः 2015 से और कानूनी तौर पर वर्ष 2016 से अपनाया गया है। खुलेपन के स्तर में संरचनात्मक बदलाव और पण्य-वस्तु कीमतों में परिवर्तन अन्य प्रभावी कारक है जो भारत में ईआरपीटी के आकार का निर्धारण करते हैं। अरैखीय और समय-भिन्नता वाली ईआरपीटी के नीतिगत निहितार्थ की समष्टि-आर्थिक सामान्य संतुलन ढांचे में जांच की गई है और परिणाम दर्शाते हैं कि मौद्रिक नीति अंतरण लघु मूल्यह्रास की अवधि के दौरान सबसे मजबूत रहा है। तथापि, घरेलू मुद्रास्फीति में इन विनिमय दर बदलावों का अंतरण भी मजबूत होगा जो असंभाव्य दुविधा को तेज कर देगा। * रिज़र्व बैंक ने आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला की शुरुआत मार्च 2011 में की थी। ये पेपर रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों द्वारा किए जा रहे अनुसंधान प्रस्तुत करते हैं और अभिमत प्राप्त करने और चर्चा के लिए इन्हें प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के होते हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं होते हैं। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम स्वरूप का ध्यान रखा जाए। जोस जे. कट्टूर प्रेस प्रकाशनी: 2017-2018/2433 |