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भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 4/2013 जब मौद्रिक प्रणाली घाटे के स्‍वरूप में होती है तब मौद्रिक नीति अंतरण अधिक तेज होता है

8 मई 2013

भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 4/2013
जब मौद्रिक प्रणाली घाटे के स्‍वरूप में होती है तब मौद्रिक नीति अंतरण अधिक तेज होता है

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला के अंतर्गत “संपूर्ण वित्तीय बाजारों में वित्तीय विकास और मौद्रिक नीति अंतरणः भारत के बारे में दैनिक आंकड़े क्या कहते हैं?” शीर्षक वर्किंग पेपर डाला है। यह पेपर डॉ. पार्थ रे और श्री एडविन प्रबु द्वारा लिखा गया है।

मौद्रिक नीति संवेगों के प्रभावी और विश्‍वसनीय अंतरण के लिए विकसित और एकीकृत वित्तीय बाजार पूर्वापेक्षाएं हैं। सभी संभावनाओं में जितने अधिक एकीकृत वित्तीय बाजार होंगे उतना ही वित्तीय बाजारों में मौद्रिक नीति अंतरण सुदृढ़ होगा। ऐसा इस संदर्भ में है कि यह अध्ययन जनवरी 2005 से नवंबर 2012 तक की अवधि के लिए दैनिक आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए बाजार एकीकरण और मौद्रिक नीति के लिए इसके प्रभाव की जांच करता है।

विशेष अर्थ में, यह पेपर दो भिन्न-भिन्न किंतु अंतःसंबंधित मुद्दों: (क) वित्तीय बाजारों के विभिन्न खंडों में एकीकरण की सीमा और (ख) वित्तीय बाजारों पर मौद्रिक नीति के प्रभाव का विश्लेषण करता है। जिन बाजारों पर विचार किया गया है, वे बाजार हैं : (i) मुद्रा बाजार (मांग मुद्रा, संपार्श्विक उधार और ऋण बाध्यता (सीबीएलओ) तथा बाजार रिपो बाजार), (ii) बांड बाजार (सरकारी प्रतिभूतियों और कंपनी बांड बाजार सहित), (iii) विदेशी मुद्रा बाजार (विनिमय दर द्वारा अनुमानित) और (iv) शेयर बाजार (अर्थात् एनएसई निफ्टी)।

संरचनात्मक देशिक स्वप्रतिगामी (एसवीएआर) मॉडल का उपयोग कर और भारतीय वित्तीय बाजारों की व्यवहारिक पद्धतियों की पहचान करने वाले प्रतिबंधों को लागू कर, अध्ययन में पाया गया है कि वित्तीय बाजारों पर मौद्रिक नीति का प्रभाव इस व्यवस्था में चलनिधि स्थिति पर आधारित चार अवधियों में काफी अलग है। मौद्रिक नीति का अंतरण मांग मुद्रा दर में अच्छी तरह से कार्य करता है क्योंकि इसपर इसका तात्कालिक प्रभाव मजबूती से पड़ता है। शेयर बाजार को छोड़कर अन्य वित्तीय बाजार की चर वस्तुओं के संबंध में अध्ययन में मौद्रिक नीति आघातों से अंतरण का साक्ष्य मिल सकता है।

वर्ष 2005-12 की प्रतिदर्श अवधि के अंदर इस अध्ययन में मौद्रिक नीति (अर्थात् चाहे यह विस्तारमूलक हो या संकुचनमूलक हो) के रूझान के आधार पर वित्तीय बाजारों पर मौद्रिक नीति के प्रभाव की एक भिन्न पद्धति का पता चलता है। विशेष रूप से निम्नलिखित परिणामों पर प्रकाश डाला गया है:

  • प्रथम, अंतरण तेज रहा और जून 2010 से नवंबर 2012 की अवधि के लिए निरंतर बना रहा जब चलनिधि घाटे के स्‍वरूप में थी और मौद्रिक नीति कड़ी थी।

  • दूसरा, अंतरण जनवरी 2005 से नवंबर 2006 की अवधि में भी प्रदर्शित हुआ जब चलनिधि अधिशेष के स्‍वरूप में थी किंतु मौद्रिक नीति मुद्रास्फीतिजन्य दबावों के कारण कड़ी थी।

  • तीसरा, अंतरण शायद वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान किए गए उपायों के कारण दिसंबर 2006 से नवंबर 2008 की अवधि और दिसंबर 2008 से मई 2010 की अवधि के लिए आशा के अनुरूप नहीं था।

इस प्रकार साक्ष्य दर्शाता है कि भारत में वित्तीय बाजारों में मौद्रिक नीति का अंतरण विषम है। जब मौद्रिक प्रणाली विस्तारवादी चरण की अपेक्षा घाटे के स्‍वरूप में होती है तब यह तेज और निरंतर रहता है।

भारतीय रिज़र्व बैंक ने मार्च 2011 में आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला शुरू की थी। ये पेपर रिज़र्व बैंक के स्टॉफ सदस्यों की प्रगति में शोध को प्रस्तुत करते हैं और इनका प्रसार स्पष्ट टिप्पणियों और चर्चा के लिए किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं हैं। टिप्पणियां और अवलोकन लेखकों को भेजे जाएं। ऐसे पेपरों के अवतरण और उपयोग में इनके तत्कालिक पहलू का ध्यान रखा जाए।

आर. आर. सिन्‍हा
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/1862

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