भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 5/2013 : ग्रामीण भारत में अनौपचारिक ऋण का बने रहना : विनियामक नीतियों को बदलते हुए ग्रामीण परिदृश्य को पहचानने की जरूरत - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 5/2013 : ग्रामीण भारत में अनौपचारिक ऋण का बने रहना : विनियामक नीतियों को बदलते हुए ग्रामीण परिदृश्य को पहचानने की जरूरत
9 मई 2013 भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 5/2013 : भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला के अंतर्गत ‘’ग्रामीण भारत में अनौपचारिक ऋण का बने रहना ‘अखिल भारतीय ऋण और निवेश सर्वेक्षण’ और उसके बाद के साक्ष्य’’ शीर्षक वर्किंग पेपर डाला। यह पेपर डॉ. नारायण चंद्र प्रधान द्वारा लिखा गया है। भारत में ग्रामीण ऋण बाज़ार औपचारिक और अनौपचारिक दोनों स्रोतों के एक साथ बने रहने के द्वारा विशिष्ट हैं तथा बाज़ार बिखरा हुआ है। यह पेपर रिज़र्व बैंक द्वारा ‘अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण 1951-52’ (आरबीआई, 1954) तथा ‘अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण और निवेश सर्वेक्षण 1961-62’ (आरबीआई, 1965) और 1971-72 से 2002-03 तक भारत सरकार के ‘राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) द्वारा आयोजित अखिल भारतीय ऋण और निवेश सर्वेक्षण के चार दौरों का इतिहास प्रस्तुत करता है। अनौपचारिक ग्रामीण ऋण मामले पर चर्चा करने और अखिल भारतीय ऋण और निवेश सर्वेक्षण (एआईडीआईएस) आंकड़ों की अनुरूपता बनाए रखने के लिए यह पेपर गैर-सांस्थिक एजेंसियों द्वारा प्रदान किए गए ऋण को अनौपचारिक तथा सांस्थिक एजेंसियों द्वारा प्रदान किए गए ऋण को औपचारिक स्रोत मानता है। वर्ष 2002 के बाद ‘व्यष्टि वित्त संस्थाओं’ (एमएफआई) सहित ग्रामीण ऋण परिदृश्य पर चर्चा शुरू करने के लिए अगले सर्वेक्षण आंकड़ों के अभाव में यह पेपर हाल के चार कार्यालयीन रिर्पोटों पर गंभीरता से विचार करता है। यह पेपर कुल बकाए ऋण में ग्रामीण अनौपचारिक ऋण के हिस्से के आंकडों का आकलन करने का प्रयास करता है जो रिज़र्व बैंक के वित्तीय समावेशन के विभिन्न प्रयासों तथा साहूकारों को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न राज्य सरकारों के विधायीकरण के साथ अखिल भारतीय स्तर पर वर्ष 1971 में 29 प्रतिशत से वर्ष 1981 में 61 प्रतिशत तक बढ़ा है। तथापि, अनौपचारिक ऋण पर ग्रामीण परिवारों की लगभग पांच में से दो हिस्से की निर्भरता यह संकेत देती है कि ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन के लिए और संभावना है। इस पेपर के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं:
वित्तीय समावेशन, वित्तीय शिक्षण के साथ-साथ वित्तीय साक्षरता को प्राथमिकता देने और तत्पर तथा नवोन्मेषी नीति कार्रवाईयों के स्वरूप में वित्तीय क्षेत्र प्रयासों की आवश्यकता है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने मार्च 2011 में भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखलाएं लागू की थी। ये पेपर भारतीय रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों की प्रगति में अनुसंधान का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा इन्हें स्पष्ट अभिमत और आगे चर्चा के लिए प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं। अभिमत और टिप्पणियों लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग इसके अनंतिम स्वरूप को ध्यान में रखकर किए जाएं। आर. आर. सिन्हा प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/1870 |