RbiSearchHeader

Press escape key to go back

पिछली खोज

थीम
थीम
टेक्स्ट का साइज़
टेक्स्ट का साइज़
S1

Press Releases Marquee

आरबीआई की घोषणाएं
आरबीआई की घोषणाएं

RbiAnnouncementWeb

RBI Announcements
RBI Announcements

असेट प्रकाशक

79788119

सितंबर 2011 के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला सं. 15

11 अक्‍टूबर 2011

सितंबर 2011 के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला सं. 15

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज जनक राज, जे.के. खुंद्रकपम और दीपिका दास द्वारा लिखित "भारत में मौद्रिक और राजकोषीय नीति प्रभाव का अनुभवजन्य विश्‍लेषण" नामक वर्किंग पेपर प्रस्‍तुत किया। देश-विदेश के संदर्भ में, हाल के वर्षों में राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों के प्रभाव के विश्‍लेषण में नए सिरे से रुचि जाग रही है। विभिन्‍न कारकों ने इस प्रवृत्ति में योगदान दिया है। इसमें ये शामिल हैं: i) मौद्रिक नीति के संचालन में केंद्रीय बैंक की बढ़ती स्वतंत्रता; ii) स्थिरता और संवृद्धि संधि (एसजीपी) और यूरोपीय मौद्रिक संघ (ईएमयू) का गठन जिसके तहत अलग-अलग देश स्वतंत्र राजकोषीय नीतियों का अनुकरण करते हैं, फिर भी यह  एक साझी मौद्रिक नीति है और iii) हाल ही के वैश्विक संकट के दौरान मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों की समन्वित जिम्‍मेदारी दिखाने की आवश्‍यकता है।

भारत में, वर्ष 1997 में राजकोषीय घाटे के स्वत: मौद्रीकरण को हटाने और अप्रैल 2006 में रिज़र्व बैंक से सीधे सरकारी उधारी पर प्रतिबंध के साथ मौद्रिक नीति का राजकोषीय प्रभुत्‍व बड़ी मात्रा में कम हो गया है।. इसके अलावा, चलनिधि समायोजन सुविधा की शुरूआत और ब्याज दर माध्‍यम मुख्‍य मौद्रिक नीति संकेत के साधन बनने पर वर्ष 2000 के आरंभ में मौद्रिक नीति की परिचालनगत प्रक्रिया महत्‍वपूर्ण बदलाव से गुजरी। इसलिए, पेपर में वर्ष 2000 की दूसरी तिमाही से वर्ष 2010 की पहली तिमाही तक के तिमाही आंकड़ों का उपयोग करते हुए अनुभवजन्‍य रूप से भारत में मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों के प्रभाव की जॉंच की गई है। विशेष रूप से, पेपर इस बात की जॉंच पर केंद्रित है कि क्‍या समष्टि रूप से आर्थिक स्थिरीकरण के उद्देश्‍य के लिए उत्पादन और मुद्रास्फीति में आघात के लिए मौद्रिक और राजकोषीय नीति प्रतिक्रियाएं संगत हैं। प्रेरित प्रतिक्रिया कार्यों और सदिश स्‍वतः प्रतिगमन (वीएआर) मॉडल से प्राप्त परिवर्तनशील अपघटन विश्‍लेषण के माध्‍यम से विश्‍लेषण किया जाता है।

पेपर का प्रमुख निष्‍कर्ष यह है कि वर्ष 1997 में राजकोषीय घाटे के स्वत: मौद्रीकरण को हटाने और एफआरबीएम अधिनियम के तहत अप्रैल 2006 से सरकारी प्रतिभूतियों को प्राथमिक बाजार में खरीदने से भारतीय रिज़र्व बैंक के प्रतिबंध के बाद भी राजकोषीय नीति काफी हद तक मौद्रिक नीति को प्रभावित करती है। विशेष रूप से, मुद्रास्फीति और उत्पादन में आघात पर दो नीतियों की प्रतिक्रिया ज्यादातर विपरीत दिशा में हैं। जबकि मौद्रिक नीति विपरीत-चक्रीय तरीके से प्रतिक्रिया करती है, राजकोषीय नीति की प्रतिक्रिया मुख्य रूप से प्रकृति में प्रति-चक्रीय है। उत्पादन पर विस्‍तृत राजकोषीय नीति का सकारात्मक प्रभाव कम समय के लिए रहता है, लेकिन मध्‍यम से दीर्घावधि में उसका एक महत्वपूर्ण नकारात्मक प्रभाव होता है।

भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस वर्ष अप्रैल में ''भारतीय रिज़र्व बैंक कार्यकारी पेपर श्रृंखला (आरबीआइ-डब्‍ल्‍यूपी) शुरू की ताकि रिज़र्व बैंक के स्‍टाफ को अपने अनुसंधान अध्‍ययन को प्रस्‍तुत करने के लिए एक मंच मिले और जानकार अनुसंधानकर्ताओं से प्रतिसूचना प्राप्‍त हो सकें।

आरबीआइ वर्किंग पेपर श्रृंखला सहित रिज़र्व बैंक के सभी अनुसंधान प्रकाशनों में व्‍यक्‍त विचार आवश्‍यक रूप से रिज़र्व बैंक के विचारों को नहीं दर्शाते हैं और इस प्रकार भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों के प्रतिनिधित्‍व के रूप में उनकी रिपोर्ट नहीं की जानी चाहिए।

इन पेपरों पर प्रतिसूचना यदि है, तो उसे अनुसंधान अध्‍ययनों के संबंधित लेखकों को भेजी जा सकती है।

अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2011-2012/562

RbiTtsCommonUtility

प्ले हो रहा है
सुनें

संबंधित एसेट

आरबीआई-इंस्टॉल-आरबीआई-सामग्री-वैश्विक

RbiSocialMediaUtility

आरबीआई मोबाइल एप्लीकेशन इंस्टॉल करें और लेटेस्ट न्यूज़ का तुरंत एक्सेस पाएं!

Scan Your QR code to Install our app

RbiWasItHelpfulUtility

क्या यह पेज उपयोगी था?