भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला सं. 2: केरल में श्रम बाजार, मजदूरी और उपभोग व्यय पर मनरेगा के निहितार्थ - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला सं. 2: केरल में श्रम बाजार, मजदूरी और उपभोग व्यय पर मनरेगा के निहितार्थ
17 फरवरी 2016 भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला सं. 2: भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला* के अंतर्गत “केरल में श्रम बाजार, मजदूरी और उपभोग व्यय पर मनरेगा के निहितार्थ” शीर्षक से एक वर्किंग पेपर उपलब्ध कराया है। यह पेपर आर्थिक और नीति अनुसंधान विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक के वी. धन्या द्वारा लिखा गया है। यह पेपर एनएसएसओ इकाई स्तर डेटा और प्राथमिक सर्वेक्षण के आंकड़ों का उपयोग करके केरल की अपर्याप्त श्रम अर्थव्यवस्था में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के निहितार्थों का मूल्यांकन करता है। एनएसएसओ आंकड़ों का विश्लेषण उत्तर-पूर्वी और दक्षिणी राज्यों में अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन के साथ योजना के क्रियान्वयन में राज्यों के बीच की असमानता को दर्शाता है।अध्ययन में केरल के श्रम बाजार पर मनरेगा का आंशिक प्रभाव पाया गया है क्योंकि लगभग आधे श्रमिक नए प्रवेशक थे और काफी हद तक प्रभाव उपभोग व्यय में वृद्धि तक ही सीमित था। फिर भी इसके परिणामस्वरूप महिला श्रमिकों द्वारा किए गए कुछ ग्रामीण कार्यों में मजदूरी में वृद्धि हुई। अध्ययन में पाया गया कि मौजूदा श्रमिकों के लिए मनरेगा ने एक सहारे के विकल्प के रूप में काम किया जिससे मंदी की अवधि के दौरान खपत को बनाए रखा। इससे उनकी उधार लेने की क्षमता भी बढ़ी क्योंकि उधारदाता उधार चुकाने की उनकी क्षमता से आश्वस्त थे। पेपर में यह भी अन्वेषण किया गया है कि मनरेगा के एक अप्रत्यक्ष लाभ के रूप में श्रमिकों की वित्तीय समावेशकता और स्वास्थ्य मानकों में सुधार हुआ। अध्ययन के अनुभवजन्य सबूत से पता चलता है कि मनरेगा से विशेष रूप से खाद्य वस्तुओं के मामले में उपभोग व्यय में वृद्धि हो जाती है। *रिज़र्व बैंक ने आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला की शुरुआत मार्च 2011 में की थी। ये पेपर रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों की प्रगति में अनुसंधान प्रस्तुत करते हैं और अभिमत प्राप्त करने और चर्चा के लिए इन्हें प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के होते हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं होते हैं। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम स्वरूप का ध्यान रखा जाए। संगीता दास प्रेस प्रकाशनी: 2015-2016/1956 |