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रिजर्व बैंक वर्किंग पेपर सीरीज नंबर 3: भारतीय अर्थव्यवस्था में अंतर-क्षेत्रीय लिंकेज

14 अगस्त 2015

रिजर्व बैंक वर्किंग पेपर सीरीज नंबर 3: भारतीय अर्थव्यवस्था में अंतर-क्षेत्रीय लिंकेज

भारतीय रिजर्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिजर्व बैंक वर्किंग पेपर सीरीज* के तहत ‘भारतीय अर्थव्यवस्था में अंतर-क्षेत्रीय लिंकेज’ शीर्षक से एक वर्किंग पेपर प्रकाशित किया है, जिसके सह-लेखक है राजीब दास, बिनोद बी.भोई, पंकज कुमार और कृतिका बनर्जी।

इस पेपर में भारत में वृहद अर्थव्यवस्था के क्षेत्रांतर्गत और विभिन्न क्षेत्रों में संबंध स्थापित करने का प्रयास किया गया है ताकि संरचनात्मक समीकरणों की एक श्रृंखला के माध्यम से भारत के लिए एक अर्थमीतीय मॉडल को तैयार किया जा सके। अर्थव्यवस्था की परिकल्पना पांच क्षेत्रों के नेटवर्क के रूप में की गई है, अर्थात्; उत्पादन (जीडीपी और इसके घटक), कीमतें (डब्ल्यूपीआई और इसके घटक), मौद्रिक (धन आपूर्ति और ब्याज दरें), सरकारी वित्त (सरकारी व्यय और प्राप्तियां) और बाहरी क्षेत्र (व्यापार, पूंजी प्रवाह और विनिमय दर)। वार्षिक आंकड़ों का उपयोग करके और अलग-अलग स्तर पर 1980-81 से 2012-13 तक अनुमान लगाए गए हैं। लंबे समय से भारत में विकसित हो रही आर्थिक संरचनाओं को समझने पर जोर दिया गया है।

समीकरणों का सेट मौद्रिक नीति साधनों/दरों से मुद्रा बाजार दर से जमा और ऋण दरों के व्यापक परिदृश्य तक एक विस्तृत पारेषण नेटवर्क को चित्रित करता है । जमा और ऋण समुच्चय के माध्यम से सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि और थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति के संदर्भ में व्यापक वास्तविक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव भी परिलक्षित होता है । राजकोषीय स्थिति कम निजी क्षेत्र के उधारों के माध्यम से ऋण दरों को प्रभावित करती है । निजी निवेशों पर ऋण लागत का प्रभाव प्रमुख है। मुद्रा वृद्धि और ब्याज दर जैसी मौद्रिक नीति चर गैर-खाद्य विनिर्माण मुद्रास्फीति को प्रभावित करती है। वैश्विक एकीकरण और विनिमय दरों का थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति के कई घटकों पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता है। विनिमय दर आयातित वस्तुओं के माध्यम से सीधे कीमतों को प्रभावित करती है और शुद्ध निर्यात और वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद के माध्यम से अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है ।

वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद और कीमतों की वृद्धि राजकोषीय और बाहरी क्षेत्रों में कई अन्य चरों को प्रभावित करती है । सरकार की राजस्व वृद्धि के साथ-साथ सरकार का पूंजीगत व्यय भी चक्रीयता के समर्थन को दर्शाता है । दूसरी ओर राजस्व व्यय अपेक्षाकृत चिपचिपा है, जबकि सरकार की खर्च करने की क्षमता काफी हद तक उधार की लागत पर निर्भर करती है।

माल निर्यात पर विनिर्माण वृद्धि के प्रभाव के मुकाबले भारत के सेवा क्षेत्र की उत्पादन वृद्धि भारत के सेवाओं के निर्यात पर कहीं अधिक प्रभाव दिखाती है। भारत के निर्यात की वैश्विक आय लोचनीयता के संबंध में, सेवाओं का निर्यात वैश्विक विकास चक्र के सापेक्ष लचीलापन प्रदर्शित करता है, जैसाकि माल निर्यात के विपरीत है जो इसके जवाब में बड़े आंदोलनों को दर्शाता है । भारत की वस्तुओं और सेवाओं के आयात में भी घरेलू गतिविधियों के जवाब में उच्च लोचनीयता दिखाई देती है । निर्यात और आयात दोनों पर वास्तविक विनिमय दरों का प्रभाव अपेक्षाकृत छोटा है ।

हालांकि व्यापक-समुच्चय के पूर्वानुमान तकनीकी रूप से इन समीकरणों का उपयोग करके प्राप्त किए जा सकते हैं, लेखकों का मानना है कि इन समीकरणों का उपयोग करके पूर्वानुमान बनाने की सलाह नहीं दी जा सकती है क्योंकि कई संरचनात्मक अवरोध और शासकीय परिवर्तनों के साथ बहुत लंबे समय के लिये अनुमान लगाए जाते हैं। हालांकि, पेपर मौद्रिक नीति निर्माण में सामना की जा रही महत्वपूर्ण नीतिगत मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक अर्थमीतीय मॉडल विकसित करने की दिशा में इन संबंधों को विस्तार देने के लिए अंतर्दृष्टि प्रदान करता है ।

* रिज़र्व बैंक ने आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला की शुरुआत मार्च 2011 में की थी। ये पेपर रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों द्वारा किए जा रहे अनुसंधान प्रस्तुत करते हैं और अभिमत प्राप्त करने और इस पर अधिक चर्चा के लिए इन्हें प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के होते हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं होते हैं। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम स्‍वरूप का ध्यान रखा जाए।

संगीता दास
निदेशक

प्रेस प्रकाशनी : 2015-2016/411

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