आरबीआई वर्किंग पेपर* (डीईपीआर) शृंखला सं.2/2017 “मौद्रिक नीति के परिचालनात्मक लक्ष्यों पर बाज़ल III तरलता विनियमनों के अनभिप्रेत साइड इफेक्ट्स” - आरबीआई - Reserve Bank of India
आरबीआई वर्किंग पेपर* (डीईपीआर) शृंखला सं.2/2017 “मौद्रिक नीति के परिचालनात्मक लक्ष्यों पर बाज़ल III तरलता विनियमनों के अनभिप्रेत साइड इफेक्ट्स”
22 फरवरी 2017 आरबीआई वर्किंग पेपर* (डीईपीआर) शृंखला सं.2/2017 भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक के वर्किंग पेपर* शृंखला के अंतर्गत एक वर्किंग पेपर उपलब्ध कराया है जिसका शीर्षक है - “मौद्रिक नीति के परिचालनात्मक लक्ष्यों पर बाज़ल III तरलता विनियमनों के अनभिप्रेत साइड इफेक्ट्स” । यह पेपर सितिकांत पट्टनाईक, राजेश कवेडिया तथा अंग्शुमन हैत द्वारा लिखा गया है। बासल III तरलता विनियमों का कार्यान्वयन मुद्रा बाजार के असुरक्षित खंड और इसलिए मौद्रिक नीति के परिचालनात्मक लक्ष्यों के अनभिप्रेत विस्तार पर जोर देता है। एक गतिशील पैनल मॉडल से अनुभवजन्य अनुमान बताते हैं कि तरलता कवरेज अनुपात (एलसीआर) व्यवस्था के तहत, भारत में तरलता की कमी वाले बैंक ओवरनाइट मुद्रा बाजार के असुरक्षित क्षेत्र में उच्च दरों पर उधार देने और लेने के लिए प्रवृत्त होते हैं। नतीजतन, भारित औसत कॉल दर (डब्ल्यूएसीआर) - मौद्रिक नीति के परिचालनात्मक लक्ष्य – करीब 5 से 7 बीपीएस से उपर की ओर बढ़ जाते हैं। अनुमानित परिणामों से संकेत मिलता है कि असुरक्षित मुद्रा बाजार में उधार लेने/ देने का फैलाव और मात्रा बैंकों की समग्र वित्तीय सुदृढ़ता के प्रति संवेदनशील है। *रिज़र्व बैंक ने आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला की शुरुआत मार्च 2011 में की थी। ये पेपर रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों द्वारा किए जा रहे अनुसंधान प्रस्तुत करते हैं और अभिमत प्राप्त करने और चर्चा के लिए इन्हें प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के होते हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं होते हैं। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम स्वरूप का ध्यान रखा जाए। अल्पना किल्लावाला प्रेस प्रकाशनी: 2016-2017/2256 |