बंधक गारंटी कंपनियों (एमजीसी) के लिए विनियामक रूपरेखा - आरबीआई - Reserve Bank of India
बंधक गारंटी कंपनियों (एमजीसी) के लिए विनियामक रूपरेखा
23 जनवरी 2008
बंधक गारंटी कंपनियों (एमजीसी) के लिए विनियामक रूपरेखा
यह स्मरण होगा कि वर्ष 2007-08 के लिए संघीय बज़ट की घोषणा करते समय माननीय वित्त मंत्री, भारत सरकार ने बताया था कि :
‘हमारी आम जनता आवास ऋण चाहती है। बंधक रखकर उधार देने वाले बैंकों एवं आवास वित्त कंपनियों के लिए यह और सुगम होगा यदि बंधक की गारंटी तीन तरह से अर्थात् उधारकर्ता, उधारदाता और गारंटीदाता के बीच हुई संविदा के आधार पर मिले। बंधक (मार्गेज) गारंटी कंपनियों के सृजन के लिए अनुमति देने हेतु विनियमन लागू किए जाएंगे।’
तदनुसार बैंक ने बंधक गारंटी कंपनियों के पंजीकरण और परिचालनों पर दिशानिर्देश तैयार किया और 2 अप्रैल 2007 को पत्र डीएनबीएस सं.6625/03.11.01/2006-07 के अनुसार जनता/स्टेक घारकों से अभिमत/सुझाव के लिए अपनी वेबसाइट रखा।
इस संबंध में प्राप्त प्रमुख सुझावों में न्यूनतम पूँजी आवश्यकता, पूँजी पर्याप्तता अनुपात, बंधक गांरटी कंपनियों द्वारा अनर्जक आस्तियों के अधिग्रहण के लिए शुरूआती बिंदु, बंधक गारंटी कंपनियों, ऋणदात्री संस्था और उधारकर्ता के बीच त्रिपक्षीय करार के संबंध में निर्धारण के स्थान पर द्विपक्षीय करार करना शामिल है।
सुझावों को शामिल करने हेतु उनकी विधिवत जाँच की गई और तद्नुसार कतिपय आशोधन किए गए हैं:
- पूर्व में यह अपेक्षित कि किसी बंधक गारंटी कंपनी के पास कारोबार के प्रारंभ में 100 करोड़ रुपए की न्यूनतम स्वाधिकृत निधि होनी चाहिए को कारोबार शुरू किए जाने की तारीख से तीन वर्षों के भीतर बढ़ाकर 300 करोड़ रुपए किया जाएगा को आशोधित करते हुए बताया गया है कि किसी बंधक गारंटी कंपनी के पास कारोबार शुरू करते समय 100 करोड़ रुपए की न्यूनतम निवल स्वाधिकृत निधि होनी चाहिए। परिवर्धन के मामले पर तीन वर्षों के बाद समीक्षा की जाएगी।
- पूर्व में किसी बंधक गारंटी कंपनी को अपनी सकल जोखिम भारित आस्तियों के बारह प्रतिशत (12%) प्रतिशत तक न्यूनतम पूँजी पर्याप्तता अनुपात के रूप में तथा अपनी सकल जोखिम भारित आस्तियों के कम-से-कम आठ प्रतिशत (8%) तक टीयर-I पूँजी के रूप में रखना होता था। समीक्षा करके पूँजी पर्याप्तता निर्धारण को जमाराशि स्वीकार नहीं करनेवाली प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के अनुरूप किया गया है तथा जोखिम भारित आस्तियों के प्रति पूँजी अनुपात को टीयर-I निर्धारण को घटाकर 6% के साथ 10% पर निर्धारित किया गया है।
- अनर्जक आस्तियों से संबंधित शुरूआती प्रावधानों की व्यवस्था उस सीमा को ध्यान में रखकर की गई थी जिसमें संस्थाओं को जोखिम से प्रभावी ढंग से बचाया जा सके। देश में बैंकिंग संस्थाओं की विशिष्ट स्थिति, अर्थव्यवस्था के लिए बैंकों का महत्त्व और उन्नत देशों में भी बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं के बीच हाल की चर्चा के वैश्विक अनुभवों की दृष्टि से यह विचार किया गया कि प्रावधानों को जारी रखना समुचित होगा।
- परिचालनात्मक सुविधा/पारदर्शिता के लिए अंत:निर्मित प्रावधान के साथ बज़ट घोषणा में यथा अपेक्षित त्रिपक्षीय करार उपलब्ध कराया गया है।
परामर्शी दृष्टिकोण के अपने उद्देश्य के अनुक्रम में भारतीय रिज़र्व बैंक ने व्यापक दर्शकों के अध्ययन हेतु बंधक गारंटी कंपनियों के लिए संशोधित दिशानिर्देशों को प्रारूप के रूप में आज अपनी वेबसाइट (www.rbi.org.in) पर डाला। आशोधित दिशानिर्देशों पर अभिमत/सुझाव रिज़र्व बैंक के विचार हेतु यथाशीघ्र लेकिन आशोधित दिशानिर्देशों के प्रकाशन से सात दिन के भीतर भेजे जाएँ।
अजीत प्रसाद
प्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2007-2008/969