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शाखा प्राधिकार नीति के औचित्य पर आंतरिक कार्यसमूह (आईडब्ल्यूजी) की रिपोर्ट

06 अक्तूबर 2016

शाखा प्राधिकार नीति के औचित्य पर आंतरिक कार्यसमूह (आईडब्ल्यूजी) की रिपोर्ट

भारतीय रिज़र्व बैंक ने शाखा प्राधिकार नीति के औचित्य पर आंतरिक कार्यसमूह (अध्यक्षः श्रीमती लिली वडेरा, मुख्य महाप्रबंधक, बैंकिंग विनियमन विभाग) की रिपोर्ट आज अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध कराई। रिपोर्ट में निहित सिफारिशों पर सुझाव/अभिमत, यदि कोई हो, तो 5 नवंबर 2016 या इससे पहले ई-मेल कर सकते हैं।

सिफारिशें

इन सिफारिशों में इस बात पर बल दिया गया है कि सभी केंद्रों में कम लागत डिलीवरी चैनलों के माध्यम से बैंकिंग सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित कर तथा विभिन्न बैंकिंग चैनलों के पदचिह्नों की मैपिंग कर वित्तीय समावेशन की सुविधा प्रदान की जाए। समूह ने दो चरणीय दृष्टिकोण की सिफारिश की है।

आईडब्ल्यूजी की मुख्य सिफारिशें निम्नानुसार हैं :

A. प्रथम चरण में, सिफारिशों में चालू ढांचे को व्यापक बनाने पर ध्यानकेंद्रित किय गया है जिससे कि उन सभी बैंकिंग आउटलेटों को शामिल किया जा सके जो स्थायी पॉइंट स्थल हैं और उन्हें शाखाओं के समान बनाना है।

i) ‘बैंकिंग आउटलेट’ को “स्थायी पॉइंट सेवा डिलीवरी इकाई क रूप में परिभाषित किया गया है जिसका संचालन बैंक के स्टाफ या इसके कारोबारी प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है जहां जमाराशियों स्वीकार करने, चेकों का नकदीकरण/नकदी आहरण या पैसा उधार देने संबंधी सेवाएं सप्ताह के पांच दिनों में कम से कम चार घंटों के लिए मुहैया कराई जाती हैं। इसमें एकरूप साइनेज होता है जिसमें बैंक का नाम और इसका प्राधिकार, नियंत्रक प्राधिकारियों के संपर्क ब्यौरे और शिकायत एसक्लेशन तंत्र होता है। बैंक में बैंकिंग आउटलेट की नियमित ऑफसाइट और ऑनसाइट निगरानी होनी चाहिए जिससे कि ‘उचित पर्यवेक्षण’, ‘बाधारहित सेवा’ और ‘ग्राहकों की शिकायतों को समय पर समाधान’ सुनिश्चित किया जा सके। कार्य घंटों/दिवसों को प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाए।”

बैंक की अन्य कोई स्थायी पॉइंट सेवा डिलीवरी इकाई जो न्यूनतम कार्य घंटों/दिवसों के संबंध में उपर्युक्त निर्धारित समय का अनुपालन नहीं करती है, उसे ‘आंशिक बैंकिंग आउटलेट’ माना जाएगा।

ii) बैंकरहित ग्रामीण केंद्रों में बैंकिंग आउटलेट खोलने के 25 प्रतिशत के मानदंड के अधीन बैंक बैंकिंग आउटलेट खोलेंगे। बैंकरहित ग्रामीण केंद्र (यूआरसी) को “ग्रामीण (टीयर 5 और 6) केंद्र के रूप में पुनः परिभाषित किया गया है जिसमें अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक की सीबीएस समर्थित बैंकिंग आउटलेट (स्थायी पॉइंट बीसी आउटलेट सहित), सीबीएस समर्थित क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, स्थानीय क्षेत्र बैंक, लाइसेंसप्राप्त सहकारी बैंक या अन्य कोई सीबीएस-समर्थित बैंक नहीं है जिसे ग्राहक आधारित बैंकिंग लेनदेन करने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा लाइसेंस प्रदान किया गया है।”

किसी भी केंद्र में खोली गई आंशिक बैंकिंग आउटलेट की गणना की जाएगी और इसे बैंकरहित ग्रामीण केंद्रों में 25 प्रतिशत बैंकिंग आउटलेट खोलने के मानदंड की अपेक्षा और अनुपालन के परिकलन हेतु अनुपात आधार पर हर और अंश में जोड़ा जाएगा।

iii) पूर्वोत्तर राज्यों, सिक्किम और वामपंथ उग्रवाद प्रभावित जिलों में बैंकिंग आउटलेट खोलने के लिए प्रोत्साहन देने की दृष्टि से इन राज्यों/अधिसूचित जिलों में खोली गई बैंकिंग आउटलेट या आंशिक बैंकिंग आउटलेट को बैंकरहित ग्रामीण केंद्र में बैंकिंग आउटलेट/आंशिक बैंकिंग आउटलेट समझा जाएगा।

iv) लघु वित्त बैंकों की एमएफआई/एनबीएफसी संरचना का पुराना नियम (ग्रेंडफादरिंग) उपलब्ध रहेगा जिससे कि व्यवस्थित सुधार और जोखिम अंतरण को कम किया जा सके। इन संस्थाओं के मौजूदा नेटवर्क को इनके द्वारा बैंक का लाइसेंस प्राप्त करने की तारीख से स्थिर कर दिया जाएगा। भविष्य में खोले गए नए बैंकिंग आउटलेटों/उनकी मौजूदा शाखाओं से परिवर्तित किए गए आउटलेटों के संबंध में, कारोबार शुरू करने के एक वर्ष के अंदर बैंक को बैंकरहित ग्रामीण केंद्रों या पूर्वोत्तर राज्यों और सिक्किम तथा अधिसूचित वामपंथ प्रभावित जिलों में किसी केंद्र में 25 प्रतिशत बैंकिंग आउटलेट खोलने के मानदंड का अनुपालन करना चाहिए। उनकी मौजूदा एनबीएफसी/एमएफआई शाखाओं के संबंध में, उन्हें शाखा को बंद करने या इन्हें बैंकिंग आउटलेटों में परिवर्तित करने के लिए 3 वर्ष की अवधि दी जा सकती है। इस अवधि के दौरान मौजूदा संरचना जारी रह सकती है और इन्हें बैंकिंग आउटलेट माना जाएगा हालांकि उन्हें 25 प्रतिशत के मानदंड के लिए नहीं गिना जाएगा। इस प्रकार तीन वर्ष की अवधि समाप्त होने पर सभी लघु वित्त बैंकों (एसएफबी) को बैंकरहित ग्रामीण केंद्रों में 25 प्रतिशत बैंकिंग आउटलेट खोल चुके होने चाहिए, ऐसा नहीं करने पर इन बैंकों की शाखा के और विस्तार पर उचित प्रतिबंधित उपायों पर विचार किया जाएगा और लागू किया जाएगा जैसा भी उचित समझा जाए। इस व्यवस्था सभी एनबीएफसी/एमएफआई संस्थाओं तक विस्तार किया जाएगा जो बैंकों में परिवर्तित हो गई हैं या समान क्षेत्र पर लाने के लिए भविष्य में परिवर्तित हो जाएंगी।

v) बैंकों के बोर्ड आंतरिक वित्तीय समावेशन के लक्ष्य निर्धारित करें और टीयर-वार/केंद्र-वार आंकड़े एकत्र और संकलित करें तथा नियमित आधार पर इन आउटलेटों में लेनदेनों की निगरानी करें जिससे कि यह सुनिश्चित हो सके कि बैंकिंग सेवाओं का लेनदेन हो रहा है तथा अधिक विशेषरूप से वित्तीय समावेशन के लिए लक्षित ग्राहक बैंकरहित ग्रामीण केंद्रों में बैंकिंग सुविधाएं प्राप्त कर रहे हैं। आवश्यकता पड़ने पर रिज़र्व बैंक में आंकड़े उपलब्ध कराए जाने चाहिए।

B. दूसरे चरण में, एक नए डेटा सिस्टम तैयार किया जा सकता है, जो सभी 'बैंकिंग आउटलेट' मोबाइल बीसी और गैर निर्धारित स्थानों सहित और 'हब और बातचीत” मॉडल के माध्यम से प्रदान की गई सेवाओं के लेनदेनों और स्थानों को कैप्चर करने के लिए सक्षम हो और भावी नीति समीक्षा के लिए उपयोगी हो। जो वित्तीय समावेशन की डिग्री और स्तर को कैप्चर करने में सहायता करेगा डेटा को जीआईएस मैप किए जाने कि जरूरत है ताकि हर समय देश के नक्शे पर बैंकिंग और गैर-बैंकिंग केन्द्रों की एक पूरी तस्वीर का पता चल सकें।

पृष्ठभूमि

नई शाखाओं को खोलना और बैंकों की मौजूदा शाखाओं का स्थानांतरण बैंककारी विनियमन अधिनियम,1949 की धारा 23 के प्रावधानों के अंतर्गत शासित है। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से विकास और संबद्ध डिजिटल और दूरसंचार क्रांति को ध्यान में रखते हुए, बैंक अपने उपायों को बढ़ाने के लिए और दूरदराज के क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधा रहित और सेवारहित केन्द्रों तक पहुंचने के लिए वैकल्पिक तरीकों को देख रहे है। वित्तीय समावेशन को सुविधाजनक बनाने और वितरण चैनल के विकल्प पर परिचालन लचीलापन प्रदान करने की दृष्टि से, यह आवश्यक समझा गया कि और बैंकों की विभिन्न विशेषताओं और उपलब्ध कराई जानेवाली सेवाओं के प्रकार को ध्यान में रखते हुए शाखाओं को और आउटरीच के अनुमत तरीकों को फिर से परिभाषित किया जाए। इस आशय की घोषणा 5 अप्रैल 2016 को पहले द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य 2016-17 में की गई थी और उसी उद्देश्य के लिए एक आंतरिक कार्य समूह गठित किया गया था।

अजीत प्रसाद
सहायक परामर्शदाता

प्रेस प्रकाशनी : 2016-2017/872

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