RbiSearchHeader

Press escape key to go back

पिछली खोज

थीम
थीम
टेक्स्ट का साइज़
टेक्स्ट का साइज़
S2

Press Releases Marquee

आरबीआई की घोषणाएं
आरबीआई की घोषणाएं

RbiAnnouncementWeb

RBI Announcements
RBI Announcements

असेट प्रकाशक

106246547

भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति रिपोर्ट 2014-15 और वित्‍तीय स्थिरता रिपोर्ट – दिसंबर 2015

23 दिसंबर 2015

भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति रिपोर्ट 2014-15 और
वित्‍तीय स्थिरता रिपोर्ट – दिसंबर 2015

भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति 2014-15 (आरटीपी) की सांविधिक रिपोर्ट तथा वित्‍तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) के बारहवें अंक भी आज जारी किए। आरटीपी वर्ष 2014-15 में बैंकिंग क्षेत्र, जिसके अंतर्गत सहकारी बैंक और गैर-बैंकिंग वित्‍तीय संस्‍थाएं शामिल हैं, के कार्यनिष्‍पादन और प्रमुख नीतिगत उपायों की तस्‍वीर प्रस्‍तुत की जाती है। एफएसआर में वित्‍तीय स्थिरता से संबंधित जोखिमों और वित्‍तीय प्रणाली की आघात-सहनीयता का मूल्‍यांकन प्रस्‍तुत किया गया है।

I. आरटीपी की मुख्‍य-मुख्‍य बातें नीचे दी गई हैं:

परिप्रेक्ष्‍य और नीति का परिवेश

  • वैश्विक समष्टि-वित्‍तीय जोखिम उन्‍नत देशों से उभरती अर्थव्‍यवस्‍थाओं में अंतरित हुए हैं, क्‍योंकि उभरती अर्थव्‍यवस्‍थाओं पर संवृद्धि की संभावनाओं के कमज़ोर होने, पण्‍य वस्‍तु के मूल्‍यों में गिरावट आने तथा डॉलर की मज़बूती से दबाव पड़ रहा है। तथापि, अर्थव्‍यवस्‍था में धीमी गति से सुधार होने, मुद्रास्‍फीति के घटने और पूंजी प्रवाहों में उछाल, जिससे बाह्य क्षेत्र का संतुलन बनाए रखने में मदद मिली, होने के बावजूद भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था काफी आघात-सहनीय रही।

  • वर्ष के दौरान की गई विनियामक व पर्यवेक्षणात्‍मक नीतिगत कार्रवाइयों के अंतर्गत बैंकिंग क्षेत्र को दबाव-मुक्‍त करने हेतु की गई पहलें, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के सुधार और पुनर्पूंजीकरण, बैंकों के चलनिधि मानकों को सुदृढ़ बनाने, बैंकिंग प्रणाली में लीवरेज निर्माण की निगरानी, अंतरराष्‍ट्रीय लेखांकन मानकों के साथ अभिसरण, लाइसेंसिंग संबंधी नीतियां तथा शहरी सहकारी बैंकों का विस्‍तारण और बैंकिंग क्षेत्र को और समावेशी बनाने संबंधी कदम भी शामिल हैं।

अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का परिचालन व कार्यनिष्‍पादन

  • वर्ष 2014-15 में तुलन-पत्र की वृद्धि दर की गति धीमी होने के कारण भारतीय बैंकिंग क्षेत्र का कार्यनिष्‍पादन कमज़ोर रहा। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा दिए गए ऋणों की वृद्धि दर में कमी आई, लेकिन निजी क्षेत्र के बैंकों और विदेशी बैंकों ने उच्‍चतर ऋण वृद्धि हासिल की। 2014-15 के दौरान बैंकों के खुदरा ऋण पोर्टफोलियो में लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि बरकरार रही।

  • समग्र प्रवृत्ति की भांति प्राथमिकता-प्राप्‍त क्षेत्र को दिए गए ऋणों की वृद्धि दर में भी गिरावट दर्ज हुई।

  • पिछले वर्ष की तुलना में वर्ष 2014-15 के दौरान लाभ की वृद्धि दर में बढ़ोतरी होने के बावजूद आस्तियों पर प्रतिलाभ, जो कि वित्‍तीय व्‍यवहार्यता का एक सामान्‍य संकेतक है, में कोई सुधार नहीं दिखाई दिया।

  • वर्ष 2014-15 में कुल बैंकिंग क्षेत्र की आस्तियों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की 72 प्रतिशत हिस्‍सेदारी थी, लेकिन कुल लाभ में उनका केवल 42 प्रतिशत की हिस्‍सेदारी थी, वहीं बैंकिंग क्षेत्र के कुल लाभ में निजी क्षेत्र के बैंकों की हिस्‍सेदारी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हिस्‍सेदारी से अधिक रही। आलोच्‍य वर्ष के दौरान सामान्‍यत: बैंकों की, विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की आस्ति गुणवत्‍ता में कमी की प्रवृत्ति बरकरार रही।

सहकारी बैंकिंग क्षेत्र की गतिविधियां

  • इस क्षेत्र में धीमी गति से सुधार होता रहा और यह सुधार सहकारी प्रणाली के कतिपय खंडों तक ही सीमित था। हालांकि राज्‍य स्‍तरीय अल्‍पावधिक सहकारी ऋणदात्री संस्‍थाओं की वित्‍तीय स्थिरता में कायापलट हुआ है, फिर भी जहां तक दीर्घावधिक संस्‍थाओं का मामला है आस्ति की गुणवत्‍ता अब भी चिंताजनक है।

  • इक्विटी पर प्रतिलाभ (आरओई) के मामले में शहरी सहकारी बैंकों का कार्यनिष्‍पादन अच्‍छा रहा। तथापि, 2014-15 में सकल अनर्जक अग्रिमों (जीएनपीए) के अनुपात में बढ़ोतरी हुई

गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएं

  • अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाओं (एआईएफआई) के समेकित तुलन पत्र में वर्ष 2014-15 के दौरान 9 प्रतिशत तक विस्तार हुआ जो पिछले दो वर्षों के दुहरे अंकों के विस्तार में नरमी दर्शाता है।

  • जमाराशि स्वीकार नहीं करने वाली प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी-एनडी-एसआई) द्वारा प्रदान किए गए ऋणों और अग्रिमों में वर्ष 2014-15 के दौरान 15.5 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई। एनबीएफसी-एनडी-एसआई की सकल अनर्जक आस्तियों (जीएनपीए) ने थोड़ा सुधार दर्शाया और इनका संकेंद्रण मुख्य रूप से बुनियादी सुविधा क्षेत्र, परिवहन परिचालन खंड और मध्यम तथा बड़े उद्योगों में रहा। दूसरी तरफ, जमाराशि स्वीकार करने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी-डी) की आस्ति गुणवत्ता में गिरावट आई क्योंकि वर्ष 2014-15 के दौरान दोनों सकल तथा निवल अनर्जक आस्तियों में वृद्धि हुई।

II. वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट, दिसंबर 2015 के मुख्य अंश निम्नानुसार हैं:

समष्टि-वित्तीय जोखिम

  • ऐसा प्रतीत हुआ है कि वर्ष 2006 से फेडरल रिज़र्व की पहली दर बढ़ोतरी को बाजारों ने पहले ही हिसाब में ले लिया है, किंतु और बढ़ोतरी होने से बाजार के रुख पर इसका उल्लेखनीय प्रभाव पड़ सकता है। चीन में हुई गतिविधियों और धीमी वैश्विक व्यापार वृद्धि के साथ इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था का भविष्य का रुख तय होगा।

  • जबकि भारत के समष्टि-आर्थिक मौलिक तत्व तुलनात्मक रूप से मजबूत हैं, घरेलू मांग तथा निजी निवेश में अभी भी वृद्धि नहीं हो रही है जो सार्वजनिक निवेश को बढ़ाने की आवश्यकता पर बल देती है। यद्यपि, भारत के चालू खाता संतुलन में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों और स्वर्ण के आयात में हुई कमी से लाभ मिला है, फिर भी कमजोर बाह्य मांग के कारण निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

  • जबकि विदेशी मुद्रा भंडारों की तुलना में लघुकालिक बाह्य ऋण का अनुपात कम हो रहा है, चालू खाता घाटे को वित्तपोषित करने के लिए अधिक पूंजी प्रवाहों को आकर्षित करने के लिए संरचनात्मक सुधारों पर लगातार बल देने और कारोबार करने की सहजता में सुधार करना अपेक्षित होगा।

  • हालांकि चालू वित्तीय वर्ष की पहली छमाही के दौरान कुछ सुधार देखा गया, फिर भी कॉर्पोरेट क्षेत्र में कम होती लाभप्रदता, उच्च लीवरेज़ तथा ऋण चुकाने की कम क्षमता से समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं और वित्तीय क्षेत्र पर इनका प्रतिकूल प्रभाव दिखाई दे रहा है।

वित्तीय संस्थाएं: सुदृढ़ता और लचीलापन

अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक – निष्पादन और जोखिम

  • अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) के कारोबार में सुस्ती आई जैसाकि जमा और क्रेडिट वृद्धि दोनों की गिरावट में देखा गया है। मार्च और सितंबर 2015 के बीच सकल अनर्जक अग्रिम अनुपात में वृद्धि हुई जबकि पुनर्संरचित मानक अग्रिम अनुपात में कमी आई। जून 2015 के क्षेत्रकीय आंकड़े दर्शाते हैं कि उद्योग क्षेत्र ने लगभग 20 प्रतिशत का उच्चतम तनावग्रस्त अग्रिम अनुपात दर्ज किया जिसके बाद सेवाओं का अनुपात 7 प्रतिशत रहा। वर्ष 2015-16 की पहली छमाही के दौरान अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के जोखिम भारित पूंजी अनुपात में गिरावट दर्ज की गई।

  • अन्य वित्तीय संस्थाओं के बीच अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों (एसयूसीबी) और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) दोनों की आस्ति गुणवत्ता में वर्ष 2015-16 की पहली छमाही के दौरान गिरावट आई।

  • बैंकिंग स्थिरता सूचक दर्शाता है कि पिछली वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद से बैंकिंग क्षेत्र के जोखिम बढ़ गए। ऐसा मुख्यरूप से गिरती हुई आस्ति गुणवत्ता, कम मजबूती और सुस्त लाभप्रदता के कारण हुआ।

वित्तीय क्षेत्र विनियमन

  • जबकि वैश्विक वित्तीय क्षेत्र विनियामकीय सुधार एजेंडा को स्थिर रूप से कार्यान्वित किया जा रहा है, भिन्न-भिन्न राष्ट्रीय वरीयताओं के साथ संरचात्मक रूप से अलग-अलग अर्थव्यवस्थाओं के मद्देनजर विभिन्न क्षेत्राधिकारों में इन सुधारों के लागत-लाभ मैट्रिक्स में अधिक अच्छी वृद्धि की आवश्यकता है।

बैंकिंग सेक्टर

  • जबकि भारत में कॉर्पोरेट ऋण बाजार के विकास के लिए उठाए गए कदमों के कुछ परिणाम दिखाई दे रहे हैं, बैंक वित्त पर निर्भरता बनी हुई है और बैंक, विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भी परिसंपत्तियों की गुणवत्ता, लाभप्रदता और पूंजी संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहे है। 'इन्द्रधनुष' की तरह की पहल के माध्यम से शासन प्रक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करने के अलावा, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अपने व्यापार मॉडल की समीक्षा, और पूंजी आयोजना और लाभांश नीति की तरह रणनीतिक फैसलों की जांच की आवश्‍यकता हो सकती है।

प्रतिभूति बाजार

  • भारतीय पूंजी बाजार विनियमन ने अन्य बातों के अलावा पूंजी बाजारों का उपयोग करने के लिए शुरू हुई कंपनियों को सक्षम करने के लिए विशेष मंच बनाकर बदलते कारोबारी माहौल की आवश्यकताओं के साथ तालमेल रखा है। घरेलू संस्थागत निवेशक, विशेष रूप से म्यूचुअल फंड विदेशी पोर्टफोलियो निवेश प्रवाह की वजह से संभाव्‍य उतार-चढ़ाव का प्रतिरोध (बफरिंग) कर रहे हैं। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के साथ वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) के विलय के बाद, व्यापक जोखिम प्रबंधन ढांचे को संरेखित करने और भारत में नेशनल कमोडिटी डेरिवेटिव एक्सचेंज में जोखिम प्रबंधन ढांचे को कारगर बनाने के लिए दिशा निर्देश जारी किए गए हैं।

बीमा क्षेत्र

  • बीमा कंपनियों और पुनर्बीमा कंपनियों के साथ व्‍यापक बीमा कारोबार मॉडल के विशिष्ट पहलु हैं जो उसे बैंकिंग प्रणाली से अलग करते हैं और वित्तीय प्रणाली में स्थिरता का एक स्रोत बनाते हैं।

पेंशन क्षेत्र

  • राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) स्थिर वृद्धि दिखा रही है, और अटल पेंशन योजना (एपीवाई) का लक्ष्‍य असंगठित क्षेत्र के लोगों के सामने आ रही चुनौतियों को कम करने का है।

समग्र मूल्यांकन

  • भारत की वित्तीय प्रणाली स्थिर बनी हुई है और अपेक्षाकृत मजबूत व्यापक आर्थिक बुनियादी तत्‍व वैश्विक अर्थव्यवस्था और वित्तीय बाजारों में अभी भी प्रचलित अनिश्चितता और उभरते जोखिमों का सामना करने के लिए उसे लचीलापन प्रदान कर रहे हैं। हालांकि, नीति निर्माताओं और हितधारकों को वैश्विक परिदृश्य में विकास के संभावित प्रतिकूल प्रभाव के बारे विशेष रूप से वित्तीय बाजारों में बढ़ी हुई अस्थिरता और वैश्विक व्यापार में और अधिक मंदी से सतर्क रहने की आवश्‍यकता होगी।

  • घरेलू मोर्चे पर अनियमित जलवायु परिस्थितियों, सीमित नीति अंतरिक्ष, कंपनी कार्यनिष्‍पादन, वित्तीय संस्थानों की आस्ति गुणवत्ता और अन्य कारकों के बीच कम निवेश वृद्धि से उत्पन्न होने वाले जोखिम चुनौतियां खड़ी कर सकते हैं।

अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2015-2016/1492

RbiTtsCommonUtility

प्ले हो रहा है
सुनें

संबंधित एसेट

आरबीआई-इंस्टॉल-आरबीआई-सामग्री-वैश्विक

RbiSocialMediaUtility

आरबीआई मोबाइल एप्लीकेशन इंस्टॉल करें और लेटेस्ट न्यूज़ का तुरंत एक्सेस पाएं!

Scan Your QR code to Install our app

RbiWasItHelpfulUtility

क्या यह पेज उपयोगी था?