रिज़र्व बैंक ने मौद्रिक नीति उपायों की घोषणा की - आरबीआई - Reserve Bank of India
रिज़र्व बैंक ने मौद्रिक नीति उपायों की घोषणा की
19 मार्च 2010 रिज़र्व बैंक ने मौद्रिक नीति उपायों की घोषणा की जनवरी 2010 में मौद्रिक नीति नीति की तीसरी तिमाही समीक्षा के बाद से उल्लेखनीय समष्टि आर्थिक गतिविधियाँ हुई हैं। वृद्धि के मामले में वर्ष 2009-10 और वर्ष 2009-10 की तीसरी तिमाही के लिए केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) द्वारा किए गए अग्रिम अनुमान यह प्रस्तावित करते हैं कि सुधार में मज़बूती आई है। जनवरी 2010 तक उपलब्ध औद्योगिक उत्पादक के वर्तमान आँकड़े यह दर्शाते है कि वृद्धिशील प्रगति बनी हुई है, खासकर विनिर्माण क्षेत्र ने मज़बूत वृद्धि दर्ज की है। पूँजीगत वस्तु क्षेत्र की वृद्धि में तेज़ बढ़ोतरी निवेश गतिविधि में सुधार का उल्लेख करती है। पूरी तरह 13 महीनों तक शिथिल रहने के बाद निर्यात में नवंबर 2009 से विस्तार हुआ है। सुधार की गति बढ़ रही है, इसका प्रमाण बैंक ऋण में निरंतर वृद्धि से तथा गैर-बैंक ॉााटतों से वाणिज्यिक क्षेत्र द्वारा प्राप्त किए गए संसाधनों से भी स्पष्ट होता है। यद्यपि, यह सब कुछ सुधार होती हुई वैश्विक स्थितियों की पृष्ठभूमि में हो रहा है। हाल का वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद और औद्योगिक उत्पाद यह प्रस्तावित करते हैं कि सकारात्मक प्रवृत्ति व्यापक रूप से घरेलू कारकों के कारण है। तथापि, मुद्रास्फीति के मामले में गतिविधियाँ बढ़ती हुए चिंता का एक स्त्रोत हैं। हाल के सप्ताहों में कुछ नरमी के होते हुए भी खाद्यान्न कीमतें बढ़े हुए स्तरों पर बनी रहीं। वास्तव में विभिन्न उपभोक्ता सूचकांकों द्वारा मापी गई उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति पुन: संघनित हो गई है। हाल के महीनों में खाद्येतर विनिर्मित वस्तुओं और इंधन मदों की कीमतों में बढ़ोतरी खास चिंता का विषय रही है। जनवरी 2010 में मौद्रिक नीति की तीसरी तिमाही समीक्षा में रिज़र्व बैंक ने आरक्षित नकदी अनुपात (सीआरआर) को दो चरणों में 75 आधार बिंदुओं तक बढ़ाया। यह अर्थव्यवस्था में बढ़ते हुए विश्वास तथा एक विस्तृत मुद्रास्फीतिकारी प्रतिक्रिया को व्याप्त करते हुए आपूर्ति की ओर से मुद्रास्फीति के रूप में प्रतिबिंबित हुआ। तथापि, नीति दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया क्योंकि यह महसूस किया गया कि सुधार को अभी पूरी तरह मज़बूत होना है और यह कि अपरिपक्व स्थिति में कड़ाई करने से सुधार की प्रक्रिया नज़रअंदाज हो सकती है। बाद की गतिविधियाँ यह दर्शाती हैं कि सुधार में लगातार मज़बूती आ रही है। दूसरी ओर मुद्रास्फीतिकारी दबाव संघनित हो गए हैं और व्यापक मुद्रास्फीतिकारी प्रक्रिया में व्याप्त हो रहे हैं। हाल के औद्योगिक उत्पादन आँकड़े निजी माँग में सुधार प्रस्तावित करते हैं जिससे संभावित रूप से मुद्रास्फीतिकारी दबावों को बल मिलता है। मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को रोक रखना तथा समग्र मुद्रास्फीति को रोखना आवश्यक हो गया है। हेडलाइन थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) मुद्रास्फीति वर्ष-दर-वर्ष आधार पर फरवरी 2010 में 9.9 प्रतिशत पर रहते हुए मार्च 2010 के अंत तक के लिए तीसरी तिमाही समीक्षा में निर्धारित 8.5 प्रतिशत के हमारे आधारगत अनुमान को पार कर गई है। वर्ष-दर-वर्ष थोक मूल्य सूचकांक खाद्येतर विनिर्माण उत्पाद (भार 52.2 प्रतिशत) मुद्रास्फीति जो नवंबर 2009 में नगण्य (-0.4 प्रतिशत) थी वह सीमांत रूप से दिसंबर 2009 में सकारात्मक (0.7 प्रतिशत) हो गई तथा उसके बाद जनवरी 2010 में तेज़ी से बढ़कर 2.8 प्रतिशत और पुन: फरवरी 2010 में बढ़कर 4.3 प्रतिशत हो गई। वर्ष-दर-वर्ष इंधन मूल्य मुद्रास्फीति भी नवंबर 2009 के 0.8 प्रतिशत (-) से उछलकर दिसंबर 2009 में 5.9 प्रतिशत, जनवरी 2010 में 6.9 प्रतिशत और पुन: फरवरी 2010 में 10.2 प्रतिशत हो गई। माँग की ओर से बढ़ते हुए दबावों के साथ यह जोखिम है कि डब्ल्यूपीआइ मुद्रास्फीति मार्च 2010 में दुहरे अंकों को पार कर सकती है। सारांशत: जनवरी 2010 में तीसरी तिमाही समीक्षा के बाद से जबकि वृद्धि में सुधार व्यापक रूप से आशा के अनुरूप बढ़ा है, मुद्रासफीतिकारी दबाव हमारे आधारगत अनुमान से आगे जाते हुए तेज़ हो गए हैं। यद्यपि, खाद्य कीमतें नरमी के संकेत दे रही हैं वे अभी भी बढ़ी हुई हैं। अधिक महत्त्व के रूप में खाद्यतेर विनिर्मित वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी की दर काफी तेज़ी से बढ़ी है। इसके अलावा बढ़ता हुआ क्षमता उपयोग तथा बढ़ती हुई वस्तुएं और ऊर्जा कीमतें समग्र मुद्रास्फीति पर दबाव डाल रही हैं। इन सब को साथ लेते हुए ये कारक आपूर्ति पक्ष दबावों की जोखिमों को सामान्य ढंग से मुद्रास्फीतिकारी प्रक्रिया में बदलते हुए उच्चतर बनाते हैं। नीति उपाय तीसरी तिमाही समीक्षा ने उल्लेख किया था कि मौद्रिक नीति के हमारे लिखत वर्तमान में उन स्तरों पर हैं जो एक तेज़ी से सुधरती हुई अर्थव्यवस्था की अपेक्षा एक संकट की स्थिति के अधिक अनुरूप हैं। उभरते हुए परिदृश्य में न्यूनतर नीति दरें मुद्रस्फीति संभावना को जटिल बना सकती हैं और खासकर खाद्येतर विनिर्मित वस्तुओं की कीमतों में हाल की बढ़ोतरी को देखते हुए मुद्रासफीतिकारी प्रत्याशाओं को नाजुक बनाती हैं। तीसरी तिमाही समीक्षा में यह उल्लेख भी किया था कि रिज़र्व बैंक आवश्यक होने पर अगली नीति कार्रवाई करेगा। हमारा आकलन यह है कि इस परिस्थिति में अगली नीति कार्रवाई आवश्यक हो गई है। बाद के चरणों में जब मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाएं और संघनित हो गई हैं तब कड़े उपाय करने की अपेक्षा मौद्रिक नीति में अंतरालों को देखते हुए एक सामयिक तरीके से कार्रवाई करना बेहतर होगा, यद्यपि यह निर्धारित नीति समीक्षा से बाहर है। अत: अक्तूबर 2009 में दूसरी तिमाही समीक्षा में श्जरू की गई तथा जनवरी 2010 में तीसरी तिमाही समीक्षा में आगे लाई गई एक समायोजित बहिर्गमन रणनीति के एक भाग के रूप में यह निर्णय लिया गया है कि :
ये उपाय मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाओं को थामे रहेंगे तथा आगे जाकर मुद्रास्फीति को रोकेंगे। चूँकि बैंकिंग प्रणाली में चलनिधि पर्याप्त बनी रहेगी, सुधार में सहायता के लिए ऋण विस्तार प्रभावित नहीं होगा। जी. रघुराज |